भारतीय न्याय (दूसरी) संहिता, 2023

अध्याय 1- प्रारभिक

1. संक्षिप्त नाम, प्रारम्भ और लागू होना ।

2. परिभाषाएं ।

3. साधारण स्पष्टीकरण ।


अध्याय 2- दण्डों के विषय में

4. दण्ड ।

5. दण्डादेश का लघुकरण ।

6. दण्डावधियों की भिन्नें ।

7. दण्डादिष्ट कारावास के (कतिपय मामलों में सम्पूर्ण कारावास) या उसका कोई भाग कठिन या सादा हो सकेगा ।

8. जुर्माने की रकम, जुर्माना आदि देने में व्यतिक्रम ।

9. कई अपराधों से मिलकर बने अपराध के लिए दण्ड की अवधि ।

10. कई अपराधों में से एक के दोषी व्यक्ति के लिए दण्ड जबकि निर्णय में यह कथित है कि यह संदेह है कि वह किस अपराध का दोषी है ।

11. एकांत परिरोध ।

12. एकांत परिरोध की अवधि ।

13. पूर्व दोषसिद्धि के पश्चात् कतिपय अपराधों के लिए वर्धित दण्ड ।


अध्याय 3- साधारण अपवाद

14. विधि द्वारा आबद्ध या तथ्य की भूल के कारण अपने आप को विधि द्वारा आबद्ध होने का विश्वास करने वाले व्यक्ति द्वारा किया गया कार्य ।

15. न्यायिकतः कार्य करने हेतु न्यायाधीश का कार्य ।

16. न्यायालय के निर्णय या आदेश के अनुसरण में किया गया कार्य ।

17. विधि द्वारा न्यायानुमत या तथ्य की भूल से अपने को विधि द्वारा न्यायानुमत होने का विश्वास करने वाले व्यक्ति द्वारा किया गया कार्य ।

18. विधिपूर्ण कार्य करने में दुर्घटना ।

19. कार्य, जिससे अपहानि कारित होना संभाव्य है, किंतु जो आपराधिक आशय के बिना और अन्य अपहानि के निवारण के लिए किया गया है ।

20. सात वर्ष से कम आयु के बालक का कार्य ।

21. सात वर्ष से ऊपर, किंतु बारह वर्ष से कम आयु के अपरिपक्व समझ के बालक का कार्य ।

22. विकृत्त चित्त वाले व्यक्ति का कार्य ।

23. ऐसे व्यक्ति का कार्य जो अपनी इच्छा के विरुद्ध मत्तता में होने के कारण निर्णय पर पहुंचने में असमर्थ है ।

24. किसी व्यक्ति द्वारा, जो मत्तता में है, किया गया अपराध जिसमें विशेष आशय या ज्ञान का होना अपेक्षित है ।

25. सम्मति से किया गया कार्य जिससे मृत्यु या घोर उपहति कारित करने का आशय न हो और न उसकी संभाव्यता का ज्ञान हो ।

26. किसी व्यक्ति के फायदे के लिए सम्मति से स‌द्भावपूर्वक किया गया कार्य, जिससे मृत्यु कारित करने का आशय नहीं है।

27. संरक्षक द्वारा या उसकी सम्मति से बालक या विकृत्त चित्त वाले व्यक्ति के फायदे के लिए सद्भावपूर्वक किया गया कार्य ।

28. सम्मति, जिसके संबंध में यह ज्ञात हो कि वह भय या भ्रम के अधीन दी गई है।

29. ऐसे कार्यों का अपवर्जन जो कारित अपहानि के बिना भी स्वतः अपराध है ।

30. सम्मति के बिना किसी व्यक्ति के फायदे के लिए स‌द्भावपूर्वक किया गया कार्य ।

31. स‌द्भावपूर्वक दी गई संसूचना ।

32. वह कार्य जिसको करने के लिए कोई व्यक्ति धमकियों द्वारा विवश किया गया है ।

33. तुच्छ अपहानि कारित करने वाला कार्य ।

34. प्राइवेट प्रतिरक्षा में की गई बातें ।

35. शरीर तथा संपत्ति की प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार ।

36. ऐसे व्यक्ति के कार्य के विरुद्ध प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार, जो विकृत्त चित्त व्यक्ति हो ।

37. कार्य, जिनके विरुद्ध प्राइवेट प्रतिरक्षा का कोई अधिकार नहीं है ।

38. शरीर की प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का विस्तार मृत्यु कारित करने पर कब होता है ।

39. कब ऐसे अधिकार का विस्तार मृत्यु से भिन्न कोई अपहानि कारित करने तक का होता है।

40. शरीर की प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का प्रारंभ और बना रहना ।

41. कब संपत्ति की प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का विस्तार मृत्यु कारित करने तक का होता है ।

42. ऐसे अधिकार का विस्तार मृत्यु से भिन्न कोई अपहानि कारित करने तक का कब होता है ।

43. सम्पत्ति की प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का प्रारंभ और बना रहना ।

44. घातक हमले के विरुद्ध प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार जबकि निर्दोष व्यक्ति को अपहानि होने की जोखिम है ।


अध्याय 4- दुष्प्रेरण, आपराधिक षड्यंत्र और प्रयास के विषय में

45. किसी बात का दुष्प्रेरण ।

46. दुष्प्रेरक ।

47. भारत से बाहर के अपराधों का भारत में दुष्प्रेरण ।

48. भारत में अपराधों का भारत से बाहर दुष्प्रेरण ।

49. दुष्प्रेरण का दण्ड, यदि दुष्प्रेरित कार्य उसके परिणामस्वरूप किया जाए, और जहां कि उसके दण्ड के लिए कोई अभिव्यक्त उपबन्ध नहीं है ।

50. दुष्प्रेरण का दण्ड, यदि दुष्प्रेरित व्यक्ति दुष्प्रेरक के आशय से भिन्न आशय से कार्य करता है ।

51. दुष्प्रेरक का दायित्व जब एक कार्य का दुष्प्रेरण किया गया है और उससे भिन्न कार्य किया गया है ।

52. दुष्प्रेरक कब दुष्प्रेरित कार्य के लिए और किए गए कार्य के लिए आकलित दण्ड से दण्डनीय है ।

53. दुष्प्रेरित कार्य से कारित उस प्रभाव के लिए दुष्प्रेरक का दायित्व जो दुष्प्रेरक द्वारा आशयित से भिन्न हो ।

54. अपराध किए जाते समय दुष्प्रेरक की उपस्थिति ।

55. मृत्यु या आजीवन कारावास से दण्डनीय अपराध का दुष्प्रेरण ।

56. कारावास से दण्डनीय अपराध का दुष्प्रेरण ।

57. लोक साधारण द्वारा या दस से अधिक व्यक्तियों द्वारा अपराध किए जाने का दुष्प्रेरण ।

58. मृत्यु या आजीवन कारावास से दंडनीय अपराध करने की परिकल्पना को छिपाना ।

59. किसी ऐसे अपराध के किए जाने की परिकल्पना का लोक सेवक द्वारा छिपाया जाना, जिसका निवारण करना उसका कर्तव्य है ।

60. कारावास से दंडनीय अपराध करने की परिकल्पना को छिपाना ।

61. आपराधिक षड्यंत्र ।

62. आजीवन कारावास या अन्य कारावास से दण्डनीय अपराधों को करने के प्रयत्न करने के लिए दण्ड ।


अध्याय 5- महिला और बालक के विरुद्ध अपराधों के विषय में

63. बलात्संग ।

64. बलात्संग के लिए दंड ।

65. कतिपय मामलों में बलात्संग के लिए दंड ।

66. पीड़िता की मृत्यु या सतत् विकृतशील दशा कारित करने के लिए दंड ।

67. पति द्वारा अपनी पत्नी के साथ पृथक्करण के दौरान मैथुन ।

68. प्राधिकार में किसी व्यक्ति द्वारा मैथुन ।

69. प्रवंचनापूर्ण साधनों, आदि का प्रयोग करके मैथुन ।

70. सामूहिक बलात्संग ।

71. पुनरावृत्तिकर्ता अपराधियों के लिए दंड ।

72. कतिपय अपराधों आदि से पीड़ित व्यक्ति की पहचान का प्रकटीकरण ।

73. अनुज्ञा के बिना न्यायालय की कार्यवाहियों से संबंधित किसी मामले का मुद्रण या प्रकाशन करना ।

74. महिला की लज्जा भंग करने के आशय से उस पर हमला या आपराधिक बल का प्रयोग ।

75. लैंगिक उत्पीड़न ।

76. विवस्त्र करने के आशय से महिला पर हमला या आपराधिक बल का प्रयोग ।

77. दृश्यरतिकता।

78. पीछा करना ।

79. शब्द, अंगविक्षेप या कार्य, जो किसी महिला की लज्जा का अनादर करने के लिए आशयित है।

80. दहेज मृत्यु ।

81. विधिपूर्ण विवाह का प्रवंचना से विश्वास उत्प्रेरित करने वाले पुरुष द्वारा कारित सहवास ।

82. पति या पत्नी के जीवनकाल में पुनः विवाह करना ।

83. विधिपूर्ण विवाह के बिना कपटपूर्वक विवाह कर्म पूरा कर लेना ।

84. विवाहित महिला को आपराधिक आशय से फुसलाकर ले जाना, या ले जाना या निरुद्ध रखना ।

85. किसी महिला के पति या पति के नातेदार द्वारा उसके प्रति क्रूरता करना ।

86 क्रूरता की परिभाषा ।

87. विवाह आदि के करने को विवश करने के लिए किसी महिला को व्यपहृत करना, अपहृत करना या उत्प्रेरित करना ।

88. गर्भपात कारित करना ।

89. महिला की सम्मति के बिना गर्भपात कारित करना ।

90. गर्भपात कारित करने के आशय से किए गए कार्यों द्वारा कारित मृत्यु ।

91. बालक का जीवित पैदा होना रोकने या जन्म के पश्चात् उसकी मृत्यु कारित करने के आशय से किया गया कार्य ।

92. ऐसे कार्य द्वारा जो आपराधिक मानव वध की कोटि में आता है, किसी सजीव अजात बालक की मृत्यु कारित करना ।

93. बालक के पिता या माता या उसकी देखरेख रखने वाले व्यक्ति द्वारा बारह वर्ष से कम आयु के बालक का अरक्षित डाल दिया जाना और परित्याग ।

94. मृत शरीर के गुप्त व्ययन द्वारा जन्म छिपाना ।

95. अपराध को कारित करने के लिए बालक को भाडे पर लेना, नियोजित करना या नियुक्त करना ।

96. बालक का उपापन ।

97. दस वर्ष से कम आयु के बालक के शरीर पर से चोरी करने के आशय से उसका व्यपहरण या अपहरण ।

98. वेश्यावृत्ति आदि के प्रयोजन के लिए बालक को बेचना ।

99. वेश्यावृत्ति आदि के प्रयोजनों के लिए बालक को खरीदना ।


अध्याय 6- मानव शरीर पर प्रभाव डालने वाले अपराधों के विषय में

100. आपराधिक मानव वध ।

101. हत्या ।

102. जिस व्यक्ति की मृत्यु कारित करने का आशय था उससे भिन्न व्यक्ति की मृत्यु करके आपराधिक मानव वध ।

103. हत्या के लिए दण्ड ।

104. आजीवन सिद्धदोष द्वारा हत्या के लिए दण्ड।

105. हत्या की कोटि में न आने वाले आपराधिक मानव वध के लिए दण्ड।

106. उपेक्षा द्वारा मृत्यु कारित करना ।

107. बालक या विकृत्त चित्त व्यक्ति की आत्महत्या का दुष्प्रेरण ।

108. आत्महत्या का दुष्प्रेरण ।

109. हत्या करने का प्रयत्न ।

110. आपराधिक मानव वध करने का प्रयत्न ।

111. संगठित अपराध ।

112. छोटे संगठित अपराध ।

113. आतंकवादी कृत्य ।

114. उपहति ।

115. स्वेच्छया उपहति कारित करना ।

116. घोर उपहति ।

117. स्वेच्छया घोर उपहति कारित करना ।

118. खतरनाक आयुधों या साधनों द्वारा स्वेच्छया उपहति या घोर उपहति कारित करना ।

119. संपत्ति उद्घापित करने के लिए या अवैध कार्य कराने को मजबूर करने के लिए स्वेच्छ्या उपहति या घोर उपहति कारित करना ।

120. संस्वीकृति उद्घापित करने या विवश करके संपत्ति का प्रत्यावर्तन कराने के लिए स्वेच्छया उपहति या घोर उपहति कारित करना ।

121. लोक सेवक को अपने कर्तव्य से भयोपरत् करने के लिए स्वेच्छया उपहति या घोर उपहति कारित करना ।

122. प्रकोपन पर स्वेच्छया उपहति या घोर उपहति कारित करना ।

123. अपराध करने के आशय से विष इत्यादि द्वारा उपहति कारित करना ।

124. अम्ल आदि का प्रयोग करके स्वेच्छया घोर उपहति कारित करना ।

125. कार्य जिससे दूसरों का जीवन या वैयक्तिक क्षेम संकटापन्न हो ।

126. सदोष अवरोध ।

127. सदोष परिरोध ।

128. बल ।

129. आपराधिक बल ।

130. हमला ।

131. गम्भीर प्रकोपन होने से अन्यथा हमला करने या आपराधिक बल का प्रयोग करने के लिए दण्ड ।

132. लोक सेवक को अपने कर्तव्य के निर्वहन से भयोपरत् करने के लिए हमला या आपराधिक बल का प्रयोग ।

133. गम्भीर प्रकोपन होने से अन्यथा किसी व्यक्ति का अनादर करने के आशय से उस पर हमला या आपराधिक बल का प्रयोग ।

134. किसी व्यक्ति द्वारा ले जाई जाने वाली संपत्ति की चोरी के प्रयत्नों में हमला या आपराधिक बल का प्रयोग ।

135. किसी व्यक्ति का सदोष परिरोध करने के प्रयत्नों में हमला या आपराधिक बल का प्रयोग ।

136. गम्भीर प्रकोपन मिलने पर हमला या आपराधिक बल का प्रयोग ।

137. व्यपहरण ।

138. अपहरण ।

139. भीख मांगने के प्रयोजनों के लिए बालक का व्यपहरण या विकलांगीकरण ।

140. हत्या करने के लिए या फिरौती, आदि के लिए व्यपहरण या अपहरण ।

141. विदेश से बालिका या बालक का लाना ।

142. व्यपहृत या अपहृत व्यक्ति को सदोष छिपाना या परिरोध में रखना ।

143. व्यक्ति का दुर्व्यापार ।

144. ऐसे व्यक्ति का, जिसका दुर्व्यापार किया गया है, शोषण ।

145. दासों का आभ्यासिक व्यौहार करना ।

146. विधिविरुद्ध अनिवार्य श्रम ।


अध्याय 7- राज्य के विरुद्ध अपराधों के विषय नें

147. भारत सरकार के विरुद्ध युद्ध करना या युद्ध करने का प्रयत्न करना या युद्ध करने का दुष्प्रेरण करना ।

148. धारा 147 द्वारा दंडनीय अपराधों को करने का षड्यंत्र ।

149. भारत सरकार के विरुद्ध युद्ध करने के आशय से आयुध आदि संग्रह करना ।

150. युद्ध करने की परिकल्पना को सुकर बनाने के आशय से छिपाना ।

151. किसी विधिपूर्ण शक्ति का प्रयोग करने के लिए विवश करने या उसका प्रयोग अवरोधित करने के आशय से राष्ट्रपति, राज्यपाल आदि पर हमला करना ।

152. भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को खतरे में डालने वाले कार्य ।

153. भारत सरकार से मैत्री संबंध रखने वाले किसी विदेशी राज्य के विरुद्ध युद्ध करना ।

154. भारत सरकार के साथ शांति का संबंध रखने वाले विदेशी राज्य के राज्यक्षेत्र में लूटपाट करना ।

155. धारा 153 और धारा 154 में वर्णित युद्ध या लूटपाट द्वारा ली गई सम्पत्ति प्राप्त करना ।

156. लोक सेवक का स्वेच्छया राजकैदी या युद्धकैदी को निकल भागने देना ।

157. उपेक्षा से लोक सेवक का ऐसे कैदी का निकल भागना सहन करना ।

158. ऐसे कैदी के निकल भागने में सहायता देना, उसे छुड़ाना या संश्रय देना ।


अध्याय 8- सेना नौसेना और वायुसेना से संबंधित अपराधों के विषय में

159. विद्रोह का दुष्प्रेरण या किसी सैनिक, नौसैनिक या वायुसैनिक को कर्तव्य से विचलित करने का प्रयत्न करना ।

160. विद्रोह का दुष्प्रेरण यदि उसके परिणामस्वरूप विद्रोह किया जाए ।

161. सैनिक, नौसैनिक या वायुसैनिक द्वारा अपने वरिष्ठ अधिकारी पर जब कि वह अधिकारी अपने पद-निष्पादन में हो, हमले का दुष्प्रेरण ।

162. ऐसे हमले का दुष्प्रेरण यदि हमला किया जाए ।

163. सैनिक, नौसैनिक या वायुसैनिक द्वारा अभित्यजन का दुष्प्रेरण ।

164. अभित्याजक को संश्रय देना ।

165. मास्टर की उपेक्षा से किसी वाणिज्यिक जलयान पर छिपा हुआ अभित्याजक ।

166. सैनिक, नौसैनिक या वायुसैनिक द्वारा अनधीनता के कार्य का दुष्प्रेरण ।

167. कतिपय अधिनियमों के अध्यधीन व्यक्ति ।

168. सैनिक, नौसैनिक या वायुसैनिक द्वारा उपयोग में लाई जाने वाली पोशाक पहनना या टोकन धारण करना ।


अध्याय 9- निर्वाचन संबंधित अपराधों के विषय में

169. अभ्यर्थी, निर्वाचन अधिकार परिभाषित ।

170. रिश्वत ।

171. निर्वाचनों में असम्यक् असर डालना ।

172. निर्वाचनों में प्रतिरूपण।

173. रिश्वत के लिए दण्ड ।

174. निर्वाचनों में असम्यक् असर डालने या प्रतिरूपण के लिए दण्ड ।

175. निर्वाचन के सिलसिले में मिथ्या कथन ।

176. निर्वाचन के सिलसिले में अवैध संदाय ।

177. निर्वाचन लेखा रखने में असफलता ।


अध्याय 10- सिक्कों, करेंसी नोटों, बैंक नोटों और सरकारी स्टाम्पों से संबंधित अपराधों के विषय में

178. सिक्कों, सरकारी स्टांपों, करेंसी नोटों या बैंक नोटों कूटकरण ।

179. कूटरचित या कूटकृत सिक्के, सरकारी स्टाम्प, करेंसी नोट या बैंक नोट को असली के रूप में उपयोग करना ।

180. कूटरचित या कूटकृत सिक्के, सरकारी स्टाम्प, करेंसी नोटों या बैंक नोटों को कब्जे में रखना ।

181. लिखत या कूटरचना के लिए सामग्री या कूटकृत सिक्के, सरकारी स्टाम्प, करेंसी नोटों या बैंक नोटों बनाना या कब्जे में रखना ।

182. करेंसी नोटों या बैंक नोटों के सदृश रखने वाले दस्तावेजों की रचना या उपयोग ।

183. सरकार को हानि कारित करने के आशय से, उस पदार्थ पर से, जिस पर सरकारी स्टाम्प लगा हुआ है, लेख मिटाना या दस्तावेज से वह स्टाम्प हटाना, जो उसके लिए उपयोग में लाया गया है ।

184. ऐसे सरकारी स्टाम्प का उपयोग जिसके बारे में ज्ञात है कि उसका पहले उपयोग हो चुका है।

185. स्टाम्प के उपयोग किए जा चुकने के द्योतक चिह्न का छीलकर मिटाना।

186. बनावटी स्टाम्पों का प्रतिषेध ।

187. टकसाल में नियोजित व्यक्ति द्वारा सिक्के का उस वजन या मिश्रण से भिन्न कारित किया जाना जो विधि द्वारा नियत है ।

188. टकसाल से सिक्का बनाने का उपकरण विधिविरुद्ध रूप से लेना ।


अध्याय 11- लोक प्रशांति के विरुद्ध अपराधों के विषय में

189. विधिविरुद्ध जमाव ।

190. विधिविरुद्ध जमाव का प्रत्येक सदस्य, सामान्य उद्देश्य को अग्रसर करने के लिए किए गए अपराध का दोषी ।

191. बल्वा करना ।

192. बल्वा कराने के आशय से स्वैरिता से प्रकोपन देना यदि बल्वा किया जाए; यदि बल्वा न किया जाए ।

193. उस भूमि के स्वामी, अधिभोगी, आदि, जिस पर विधिविरुद्ध जमाव या बल्वा किया गया है, का दायित्व ।

194. दंगा ।

195. लोक सेवक जब बल्वे इत्यादि को दबा रहा हो, तब उस पर हमला करना या उसे बाधित करना ।

196. धर्म, मूलवंश, जन्म-स्थान, निवास-स्थान, भाषा, इत्यादि के आधारों पर विभिन्न समूहों के बीच शत्रुता का संप्रवर्तन और सौहार्द बने रहने पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाले कार्य करना ।

197. राष्ट्रीय अखंडता पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाले लांछन, प्राख्यान ।


अध्याय 12- लोक सेवकों द्वारा या उनसे संबंधित अपराधों के विषय में

198. लोक सेवक, जो किसी व्यक्ति को क्षति कारित करने के आशय से विधि की अवज्ञा करता है ।

199. लोक सेवक, जो विधि के अधीन निदेश की अवज्ञा करता है ।

200. पीड़ित का उपचार न करने के लिए दंड ।

201. लोक सेवक, जो क्षति कारित करने के आशय से अशुद्ध दस्तावेज रचता है ।

202. लोक सेवक, जो विधिविरुद्ध रूप से व्यापार में लगा है ।

203. लोक सेवक, जो विधिविरुद्ध रूप से संपत्ति क्रय करता है या उसके लिए बोली लगाता है ।

204. लोक सेवक का प्रतिरूपण ।

205. कपटपूर्ण आशय से लोक सेवक के उपयोग की पोशाक पहनना या टोकन को धारण करना ।


अध्याय 13- लोक सेवकों के विधिपूर्ण प्राधिकार के अवमान के विषय में

206. समनों की तामील या अन्य कार्यवाही से बचने के लिए फरार हो जाना ।

207. समन की तामील का या अन्य कार्यवाही का या उसके प्रकाशन का निवारण करना ।

208. लोक सेवक का आदेश न मानकर गैर-हाजिर रहना ।

209. भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 84 के अधीन किसी उ‌द्घोषणा के उत्तर में गैर-हाजिरी ।

210. दस्तावेज या इलैक्ट्रानिक अभिलेख पेश करने के लिए विधिक रूप से आबद्ध व्यक्ति का लोक सेवक को पेश करने का लोप ।

211. विधिक रूप से आबद्ध व्यक्ति द्वारा लोक सेवक को सूचना या इत्तिला देने का लोप ।

212. मिथ्या इत्तिला देना ।

213. शपथ या प्रतिज्ञान से इंकार करना, जबकि लोक सेवक द्वारा वह वैसा करने के लिए सम्यक् रूप से अपेक्षित किया जाए ।

214. प्रश्न करने के लिए प्राधिकृत लोक सेवक का उत्तर देने से इंकार करना ।

215. कथन पर हस्ताक्षर करने से इंकार ।

216. शपथ दिलाने या प्रतिज्ञान कराने के लिए प्राधिकृत लोक सेवक के, या व्यक्ति के समक्ष शपथ या प्रतिज्ञान पर मिथ्या कथन ।

217. इस आशय से मिथ्या इत्तिला देना कि लोक सेवक अपनी विधिपूर्ण शक्ति का उपयोग दूसरे व्यक्ति को क्षति करने के लिए करे ।

218. लोक सेवक के विधिपूर्ण प्राधिकार द्वारा संपत्ति लिए जाने का प्रतिरोध ।

219. लोक सेवक के प्राधिकार द्वारा विक्रय के लिए प्रस्थापित की गई संपत्ति के विक्रय में बाधा उपस्थित करना ।

220. लोक सेवक के प्राधिकार द्वारा विक्रय के लिए प्रस्थापित की गई संपत्ति का अवैध क्रय या

221. लोक सेवक के लोक कृत्यों के निर्वहन में बाधा डालना ।

222. लोक सेवक की सहायता करने का लोप, जबकि सहायता देने के लिए विधि द्वारा आबद्ध हो ।

223. लोक सेवक द्वारा सम्यक् रूप से प्रख्यापित आदेश की अवज्ञा ।

224. लोक सेवक को क्षति करने की धमकी ।

225. लोक सेवक से संरक्षा के लिए आवेदन करने से विरत रहने के लिए किसी व्यक्ति को उत्प्रेरित करने के लिए क्षति की धमकी ।

226. विधिविरुद्ध शक्ति का प्रयोग करने या प्रयोग करने से विरत रहने के लिए आत्महत्या करने का प्रयास ।


अध्याय 14- मिथ्या साक्ष्य और लोक न्याय के विरुद्ध अपराधों के विषय में

227. मिथ्या साक्ष्य देना ।

228. मिथ्या साक्ष्य गढ़ना ।

229. मिथ्या साक्ष्य के लिए दंड ।

230. मृत्यु से दंडनीय अपराध के लिए दोषसिद्धि कराने के आशय से मिथ्या साक्ष्य देना या गढ़ना ।

231. आजीवन कारावास या कारावास से दंडनीय अपराध के लिए दोषसिद्धि कराने के आशय से मिथ्या साक्ष्य देना या गढ़ना ।

232. किसी व्यक्ति को मिथ्या साक्ष्य देने के लिए धमकाना या उत्प्रेरित करना ।

233. उस साक्ष्य को काम में लाना, जिसका मिथ्या होना ज्ञात है ।

234. मिथ्या प्रमाणपत्र जारी करना या हस्ताक्षरित करना ।

235. प्रमाणपत्र को, जिसका मिथ्या होना ज्ञात है, सत्य के रूप में काम में लाना ।

236. ऐसी घोषणा में, जो साक्ष्य के रूप में विधि द्वारा ली जा सके, किया गया मिथ्या कथन ।

237. ऐसी घोषणा का मिथ्या होना जानते हुए, सच्ची के रूप में काम में लाना ।

238. अपराध के साक्ष्य का विलोपन, या अपराधी को प्रतिच्छादित करने के लिए मिथ्या इत्तिला देना ।

239. इत्तिला देने के लिए आबद्ध व्यक्ति द्वारा अपराध की इत्तिला देने का जानबूझकर लोप ।

240. किए गए अपराध के विषय में मिथ्या इत्तिला देना ।

241. साक्ष्य के रूप में किसी दस्तावेज या इलैक्ट्रानिक अभिलेख का पेश किया जाना निवारित करने के लिए उसको नष्ट करना ।

242. वाद या अभियोजन में किसी कार्य या कार्यवाही के प्रयोजन से मिथ्या प्रतिरूपण ।

243. संपत्ति को समपहरण किए जाने में या निष्पादन में अभिगृहीत किए जाने से निवारित करने के लिए उसे कपटपूर्वक हटाना या छिपाना ।

244. संपत्ति पर उसके समपहरण किए जाने में या निष्पादन में अभिगृहीत किए जाने से निवारित करने के लिए कपटपूर्वक दावा ।

245. ऐसी राशि के लिए जो शोध्य न हो कपटपूर्वक डिक्री होने देना सहन करना ।

246. बेईमानी से न्यायालय में मिथ्या दावा करना ।

247. ऐसी राशि के लिए जो शोध्य नहीं है कपटपूर्वक डिक्री अभिप्राप्त करना ।

248. क्षति करने के आशय से अपराध का मिथ्या आरोप ।

249. अपराधी को संश्रय देना ।

250. अपराधी को दंड से प्रतिच्छादित करने के लिए उपहार आदि लेना ।

251. अपराधी के प्रतिच्छादन के प्रतिफलस्वरूप उपहार की प्रस्थापना या संपत्ति का प्रत्यावर्तन ।

252. चोरी की संपत्ति इत्यादि के वापस लेने में सहायता करने के लिए उपहार लेना ।

253. ऐसे अपराधी को संश्रय देना, जो अभिरक्षा से निकल भागा है या जिसको पकड़ने का आदेश दिया जा चुका है।

254. लुटेरों या डाकुओं को संश्रय देने के लिए शास्ति ।

255. लोक सेवक द्वारा किसी व्यक्ति को दंड से या किसी संपत्ति के समपहरण से बचाने के आशय से विधि के निदेश की अवज्ञा ।

256. किसी व्यक्ति को दंड से या किसी संपत्ति को समपहरण से बचाने के आशय से लोक सेवक द्वारा अशुद्ध अभिलेख या लेख की रचना ।

257. न्यायिक कार्यवाही में विधि के प्रतिकूल रिपोर्ट आदि का लोक सेवक द्वारा भ्रष्टतापूर्वक किया जाना ।

258. प्राधिकार वाले व्यक्ति द्वारा जो यह जानता है कि वह विधि के प्रतिकूल कार्य कर रहा है, विचारण के लिए या परिरोध करने के लिए सुपुर्दगी ।

259. पकड़ने के लिए आबद्ध लोक सेवक द्वारा पकड़ने का जानबूझकर लोप ।

260. दंडादेश के अधीन या विधिपूर्वक सुपुर्द किए गए व्यक्ति को पकड़ने के लिए आबद्ध लोक सेवक द्वारा पकड़ने का जानबूझकर लोप ।

261. लोक सेवक द्वारा उपेक्षा से परिरोध या अभिरक्षा में से निकल भागना सहन करना ।

262. किसी व्यक्ति द्वारा विधि के अनुसार अपने पकड़े जाने में प्रतिरोध या बाधा ।

263. किसी अन्य व्यक्ति के विधि के अनुसार पकड़े जाने में प्रतिरोध या बाधा ।

264. उन दशाओं में, जिनके लिए अन्यथा उपबंध नहीं है, लोक सेवक द्वारा पकड़ने का लोप या निकल भागना सहन करना ।

265. अन्यथा अनुपबंधित दशाओं में विधिपूर्वक पकड़ने में प्रतिरोध या बाधा या निकल भागना या छुड़ाना ।

266. दंड के परिहार की शर्त का अतिक्रमण ।

267. न्यायिक कार्यवाही में बैठे हुए लोक सेवक का जानबूझकर अपमान या उसके कार्य में विघ्न ।

268. असेसर का प्रतिरूपण ।

269. जमानतपत्र या बंधपत्र पर छोड़े गए व्यक्ति द्वारा न्यायालय में हाजिर होने में असफलता ।


अध्याय 15- लोक स्वास्थ्य, क्षेम, सुरक्षा, शिष्टता और सदाचार पर प्रभाव डालने वाले अपराधो के विषय में

270. लोक न्यूसेन्स ।

271. उपेक्षापूर्ण कार्य जिससे जीवन के लिए संकटपूर्ण रोग का संक्रम फैलना संभाव्य हो ।

272. परिवेषपूर्ण कार्य, जिससे जीवन के लिए संकटपूर्ण रोग का संक्रम फैलना संभाव्य हो ।

273. करन्तीन के नियम की अवज्ञा ।

274. विक्रय के लिए आशयित खाद्य या पेय का अपमिश्रण ।

275. हानिकर खाद्य या पेय का विक्रय ।

276. ओषधियों का अपमिश्रण ।

277. अपमिश्रित ओषधियों का विक्रय ।

278. ओषधि का भिन्न ओषधि या निर्मिति के तौर पर विक्रय ।

279. लोक जल-स्रोत या जलाशय का जल गंदा करना ।

280. वायुमण्डल को स्वास्थ्य के लिए हानिकर बनाना ।

281. लोक मार्ग पर उतावलेपन से वाहन चलाना या हांकना ।

282. जलयान का उतावलेपन से चलाना ।

283. भ्रामक प्रकाश, चिह्न या बोये का प्रदर्शन ।

284. अक्षमकर या अति लदे हुए जलयान में भाड़े के लिए जलमार्ग से किसी व्यक्ति का प्रवहण ।

285. लोक मार्ग या नौपरिवहन पथ में संकट या बाधा ।

286. विषैले पदार्थ के संबंध में उपेक्षापूर्ण आचरण ।

287. अग्नि या ज्वलनशील पदार्थ के सम्बन्ध में उपेक्षापूर्ण आचरण ।

288. विस्फोटक पदार्थ के बारे में उपेक्षापूर्ण आचरण ।

289. मशीनरी के सम्बन्ध में उपेक्षापूर्ण आचरण ।

290. किसी निर्माण को गिराने, उसकी मरम्मत करने या संनिर्माण करने के संबंध में उपेक्षापूर्ण आचरण ।

291. जीव-जन्तु के संबंध में उपेक्षापूर्ण आचरण ।

292. अन्यथा अनुपबन्धित मामलों में लोक न्यूसेन्स के लिए दण्ड ।

293. न्यूसेन्स बन्द करने के व्यादेश के पश्चात् उसका चालू रखना ।

294. अश्लील पुस्तकों, आदि का विक्रय आदि ।

295. बालक को अश्लील वस्तुओं का विक्रय, आदि ।

296. अश्लील कार्य और गाने ।

297. लाटरी कार्यालय रखना ।


अध्याय 16- धर्म से संबंधित अपराधों के विषय में

298. किसी वर्ग के धर्म का अपमान करने के आशय से उपासना के स्थान को क्षति करना या अपवित्र करना ।

299. विमर्शित और विद्वेषपूर्ण कार्य जो किसी वर्ग के धर्म या धार्मिक विश्वासों का अपमान करके उसकी धार्मिक भावनाओं को आहत करने के आशय से किए गए हों ।

300. धार्मिक जमाव में विघ्न करना ।

301. कब्रिस्तानों, आदि में अतिचार करना ।

302. किसी व्यक्ति की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के विमर्शित आशय से शब्द उच्चारित करना आदि ।


अध्याय 17- सम्पत्ति के विरुद्ध अपराधों के विषय में

303. चोरी ।

304. झपटमारी ।

305. निवास-गृह, यातायात के साधन या पूजा स्थल आदि में चोरी ।

306. लिपिक या सेवक द्वारा स्वामी के कब्जे में संपत्ति की चोरी ।

307. चोरी करने के लिए मृत्यु, उपहति या अवरोध कारित करने की तैयारी के पश्चात् चोरी । उ‌द्दापन के विषय में

308. उद्दापन ।

309. लूट ।

310. डकैती ।

311. मृत्यु या घोर उपहति कारित करने के प्रयत्न के साथ लूट या डकैती ।

312. घातक आयुध से सज्जित होकर लूट या डकैती करने का प्रयत्न ।

313. लुटेरों, आदि की टोली का होने के लिए दण्ड ।

314. सम्पत्ति का बेईमानी से दुर्विनियोग ।

315. ऐसी सम्पत्ति का बेईमानी से दुर्विनियोग, जो मृत व्यक्ति की मृत्यु के समय उसके कब्जे में थी ।

316. आपराधिक न्यासभंग ।

317. चुराई हुई संपत्ति ।

318. छल ।

319. प्रतिरूपण द्वारा छल ।

320. लेनदारों में वितरण निवारित करने के लिए संपत्ति का बेईमानी से या कपटपूर्वक अपसारण या छिपाना ।

321. ऋण को लेनदारों के लिए उपलब्ध होने से बेईमानी से या कपटपूर्वक निवारित करना ।

322. अन्तरण के ऐसे विलेख का, जिसमें प्रतिफल के संबंध में मिथ्या कथन अन्तर्विष्ट है, बेईमानी से या कपटपूर्वक निष्पादन ।

323. सम्पत्ति का बेईमानी से या कपटपूर्वक अपसारण या छिपाया जाना ।

324. रिष्टि ।

325. जीव-जन्तु को वध करने या उसे विकलांग करने द्वारा रिष्टि ।

326. क्षति, जलप्लावन, अग्नि या विस्फोटक पदार्थ द्वारा रिष्टि ।

327. रेल, वायुयान, तल्लायुक्त या बीस टन बोझ वाले जलयान को नष्ट करने या सापद बनाने के आशय से रिष्टि ।

328. चोरी, आदि करने के आशय से जलयान को साशय भूमि या किनारे पर चढ़ा देने के लिए दंड ।

329. आपराधिक अतिचार और गृह-अतिचार ।

330. गृह-अतिचार और गृह-भेदन ।

331. गृह-अतिचार या गृह-भेदन के लिए दंड ।

332. अपराध को करने के लिए गृह-अतिचार ।

333. उपहति, हमला या सदोष अवरोध की तैयारी के पश्चात् गृह-अतिचार ।

334. ऐसे पात्र को, जिसमें संपत्ति है, बेईमानी से तोड़कर खोलना ।


अध्याय 18- दस्तावेजों और संपत्ति चिहनों संबंधी अपराधों के विषय में

335. मिथ्या दस्तावेज रचना ।

336. कूटरचना ।

337. न्यायालय के अभिलेख की या लोक रजिस्टर आदि की कूटरचना ।

338. मूल्यवान प्रतिभूति, विल, इत्यादि की कूटरचना ।

339. धारा 337 या धारा 338 में वर्णित दस्तावेज को, उसे कूटरचित जानते हुए और उसे असली के रूप में उपयोग में लाने का आशय रखते हुए, कब्जे में रखना ।

340. कूटरचित दस्तावेज या इलैक्ट्रानिक अभिलेख और इसे असली के रूप में उपयोग में लाना ।

341. धारा 338 के अधीन दण्डनीय कूटरचना करने के आशय से कूटकृत मुद्रा, आदि का बनाना या कब्जे में रखना ।

342. धारा 338 में वर्णित दस्तावेजों के अधिप्रमाणीकरण के लिए उपयोग में लाई जाने वाली अभिलक्षणा या चिह्न की कूटकृति बनाना या कूटकृत चिह्नयुक्त पदार्थ को कब्जे में रखना ।

343. विल, दत्तकग्रहण प्राधिकार-पत्र या मूल्यवान प्रतिभूति को कपटपूर्वक रद्द, नष्ट, आदि करना ।

344. लेखा का मिथ्याकरण ।

345. सम्पत्ति-चिह्न ।

346. क्षति कारित करने के आशय से सम्पत्ति-चिह्न को बिगाड़ना ।

347. सम्पत्ति-चिह्न का कूटकरण ।

348. सम्पत्ति-चिह्न के कूटकरण के लिए कोई उपकरण बनाना या उस पर कब्जा ।

349. कूटकृत सम्पत्ति-चिह्न से चिह्नित माल का विक्रय ।

350. किसी ऐसे पात्र के ऊपर मिथ्या चिह्न बनाना जिसमें माल रखा है।


अध्याय 19- आपराधिक अभित्रास, अपमान, मानहानि आदि के विषय में

351. आपराधिक अभित्रास ।

352. लोकशांति भंग कराने को प्रकोपित करने के आशय से जानबूझकर अपमान ।

353. लोक रिष्टिकारक वक्तव्य ।

354. व्यक्ति को यह विश्वास करने के लिए उत्प्रेरित करके कि वह दैवी अप्रसाद का भाजन होगा, कराया गया कार्य ।

355. मत्त व्यक्ति द्वारा लोक स्थान में अवचार ।

356. मानहानि ।

357. असहाय व्यक्ति की परिचर्या करने की और उसकी आवश्यकताओं की पूर्ति करने की संविदा का भंग के विषय में ।


अध्याय 20- निरस और व्यावृत्ति के विषय में

358. निरसन और व्यावृत्ति ।

अध्याय 1- प्रारभिक

खंड- 1. संक्षिप्त नाम, प्रारम्भ और लागू होना ।

(1) इस अधिनियम का संक्षिप्त नाम भारतीय न्याय (दूसरी) संहिता, 2023 है।

(2) यह उस तारीख को प्रवृत्त होगा, जो केन्द्रीय सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, नियत करे और इस संहिता के भिन्न-भिन्न उपबंधों के लिए भिन्न-भिन्न तारीखें नियत की जा सकेंगी ।

(3) प्रत्येक व्यक्ति इस संहिता के उपबन्धों के प्रतिकूल प्रत्येक कार्य या लोप के लिए, जिसका वह भारत के भीतर दोषी होगा, इसी संहिता के अधीन दण्डनीय होगा अन्यथा नहीं ।

(4) भारत से परे किए गए किसी अपराध के लिए जो कोई व्यक्ति भारत में तत्समय प्रवृत्त किसी विधि के अनुसार विचारण का पात्र हो, भारत से परे किए गए किसी कार्य के लिए उसे इस संहिता के उपबन्धों के अनुसार ऐसा बरता जाएगा, मानो वह कार्य भारत के भीतर किया गया था ।

(5) इस संहिता के उपबंध-

(क) भारत से बाहर और परे किसी स्थान में भारत के किसी नागरिक द्वारा ;

(ख) भारत में रजिस्ट्रीकृत किसी पोत या विमान पर, चाहे वह कहीं भी हो किसी व्यक्ति द्वारा ;

(ग) भारत में अवस्थित किसी कंप्यूटर संसाधन को लक्ष्य बनाकर भारत से बाहर और परे किसी स्थान पर किसी व्यक्ति द्वारा ; किए गये किसी अपराध को भी लागू हैं ।

स्पष्टीकरण इस धारा में अपराध शब्द के अन्तर्गत भारत से बाहर किया गया ऐसा प्रत्येक कार्य आता है, जो यदि भारत में किया गया होता तो इस संहिता के अधीन दंडनीय होता ।

दृष्टांत

क, जो भारत का नागरिक है, भारत से बाहर और परे किसी स्थान पर हत्या करता है, वह भारत के किसी स्थान में, जहां वह पाया जाए, हत्या के लिए विचारित और दोषसिद्ध किया जा सकता है ।

(6) इस संहिता में की कोई बात, भारत सरकार की सेवा के अधिकारियों, सैनिकों, नौसैनिकों या वायु सैनिकों द्वारा विद्रोह और अभित्यजन के लिए दण्डित करने वाले किसी अधिनियम के उपबन्धों, या किसी विशेष या स्थानीय विधि के उपबन्धों पर प्रभाव नहीं डालेगी ।


खंड- 2. परिभाषाएं ।

इस संहिता में जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो, –

(1) कार्य कार्यों की एक आवलि का उसी प्रकार द्योतक है, जिस प्रकार एक

कार्य का ;

(2) जीवजंतु से मानव से भिन्न कोई जीवित प्राणी अभिप्रेत है;

(3) बालक से अठारह वर्ष से कम आयु का कोई व्यक्ति अभिप्रेत है ;

(4) कूटकरण कोई व्यक्ति जो एक चीज को दूसरी चीज के सदृश इस आशय से करता है कि वह उस सदृश से प्रवंचना करे, या यह संभाव्य जानते हुए करता है कि तद्वारा प्रवंचना की जाएगी, वह कूटकरण करता है, यह कहा जाता है ;

स्पष्टीकरण 1-कूटकरण के लिए यह आवश्यक नहीं है कि नकल ठीक वैसी ही हो ।

स्पष्टीकरण 2-जब कि कोई व्यक्ति एक चीज को दूसरी चीज के सदृश कर दे और सादृश्य ऐसा है कि तद्द्वारा किसी व्यक्ति को प्रवंचना हो सकती हो, तो जब तक कि तत्प्रतिकूल साबित न किया जाए, यह उपधारणा की जाएगी कि जो व्यक्ति एक चीज को दूसरी चीज के इस प्रकार सदृश बनाता है उसका आशय उस सदृश द्वारा प्रवंचना करने का था या वह यह सम्भाव्य जानता था कि तद्वारा प्रवंचना की जाएगी ;

(5) न्यायालय से वह न्यायाधीश अभिप्रेत है, जिसे न्यायिकतः कार्य करने के लिए विधि द्वारा अकेले ही सशक्त किया गया है, या उस न्यायाधीश-निकाय का, जिसे एक निकाय के रूप में न्यायिकतः कार्य करने के लिए विधि द्वारा सशक्त किया गया हो, जबकि ऐसा न्यायाधीश या न्यायाधीश-निकाय न्यायिकतः कार्य कर रहा है ;

(6) मृत्यु से जब तक कि संदर्भ से प्रतिकूल प्रतीत न हो, मानव की मृत्यु अभिप्रेत है;

(7) बेईमानी से से इस आशय से कोई कार्य करना अभिप्रेत है जो एक व्यक्ति को सदोष अभिलाभ कारित करे या अन्य व्यक्ति को सदोष हानि कारित करे ;

(8) दस्तावेज से कोई ऐसा विषय अभिप्रेत है, जिसको किसी पदार्थ पर अक्षरों, अंकों या चिह्न के साधन द्वारा, या उनसे एक से अधिक साधनों द्वारा अभिव्यक्त या वर्णित किया गया हो, और इसके अंतर्गत ऐसे इलैक्ट्रॉनिक और डिजिटल अभिलेख भी हैं, जो उस विषय के साक्ष्य के रूप में उपयोग किए जाने को आशयित हो या उपयोग किया जा सके ;

स्पष्टीकरण 1- यह तत्वहीन है कि किस साधन द्वारा या किस पदार्थ पर अक्षर, अंक या चिह्न बनाए गए हैं, या यह कि साक्ष्य किसी न्यायालय के लिए आशयित है या नहीं, या उसमें उपयोग किया जा सकेगा या नहीं ।

दृष्टांत

(क) किसी संविदा के निबंधनों को अभिव्यक्त करने वाला लेख, जो उस संविदा के साक्ष्य के रूप में उपयोग किया जा सके, दस्तावेज है ।

(ख) बैंककार पर दिया गया चेक, दस्तावेज है ।

(ग) मुख्तारनामा, दस्तावेज है ।

(घ) मानचित्र या रेखांक, जिसको साक्ष्य के रूप में उपयोग में लाने का आशय हो या जो उपयोग में लाया जा सके, दस्तावेज है;

(ङ) जिस लेख में निर्देश या अनुदेश अन्तर्विष्ट हों, दस्तावेज है ।

स्पष्टीकरण 2 अक्षरों, अंकों या चिह्नों से जो कुछ भी वाणिज्यिक या अन्य प्रथा के अनुसार व्याख्या करने पर अभिव्यक्त होता है, वह इस धारा के अर्थ के अन्तर्गत ऐसे अक्षरों, अंकों या चिह्नों से अभिव्यक्त हुआ समझा जाएगा, चाहे वह वास्तव में अभिव्यक्त न भी किया गया हो ।

दृष्टांत

क एक विनिमयपत्र की पीठ पर, जो उसके आदेश के अनुसार देय है, अपना नाम लिख देता है । वाणिज्यिक प्रथा के अनुसार व्याख्या करने पर इस पृष्ठांकन का अर्थ यह है कि धारक को विनिमयपत्र का भुगतान कर दिया जाए । पृष्ठांकन एक दस्तावेज है और इसका अर्थ उसी प्रकार से लगाया जाएगा मानो हस्ताक्षर के ऊपर धारक को भुगतान करो शब्द या उस प्रभाव वाले शब्द लिख दिए गए हों ।

(9) कपटपूर्वक से कपट करने के आशय से कोई कार्य करना अभिप्रेत है, अन्यथा नहीं ।

(10) लिंग पुल्लिंग वाचक शब्द वह और उसके व्युत्पन्न का प्रयोग किसी भी व्यक्ति के लिए किया जाता है, चाहे वह पुरुष हो या महिला या उभयलिंगी ।

स्पष्टीकरण- उभयलिंगी का वह अर्थ होगा, जो उभयलिंगी व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 की धारा (2) के खंड (ट) में है;

(11) स‌द्भावपूर्वक -कोई बात स‌द्भावपूर्वक की गई या विश्वास की गई नहीं कही जाती है, जो सम्यक् सतर्कता और ध्यान के बिना की गई या विश्वास की गई हो ;

(12) सरकार से केन्द्रीय सरकार या कोई राज्य सरकार अभिप्रेत है;

(13) संश्रय - इसके अन्तर्गत किसी व्यक्ति को आश्रय, भोजन, पेय, धन, वस्त्र, आयुध, गोलाबारूद या वाहन के साधन देना, या किन्हीं साधनों से चाहे वे उसी प्रकार के हों या नहीं, जिस प्रकार के इस खंड में प्रगणित हैं, किसी व्यक्ति की सहायता पकड़े जाने से बचने के लिए करना, आता है ;

(14) क्षति से कोई अपहानि अभिप्रेत है, जो किसी व्यक्ति के शरीर, मन, ख्याति या सम्पत्ति को अवैध रूप से कारित हुई हो ;

(15) अवैध और करने के लिए वैध रूप से आबद्ध - अवैध शब्द प्रत्येक उस बात को लागू है, जो अपराध हो, या जो विधि द्वारा प्रतिषिद्ध हो, या जो सिविल कार्यवाही के लिए आधार उत्पन्न करती हो; और कोई व्यक्ति उस बात को करने के लिए वैध रूप से आबद्ध कहा जाता है जिसका लोप करना उसके लिए अवैध है;

(16) न्यायाधीश से ऐसा व्यक्ति अभिप्रेत है, जो आधिकारिक तौर पर न्यायाधीश के रूप में अभिहित किया गया है, इसके अंतर्गत ऐसा कोई व्यक्ति भी आता है, -

(i) जो किसी विधिक कार्यवाही में, चाहे वह सिविल हो या दाण्डिक, अन्तिम निर्णय या ऐसा निर्णय, जो उसके विरुद्ध अपील न होने पर अन्तिम हो जाए या ऐसा निर्णय, जो किसी अन्य प्राधिकारी द्वारा पुष्ट किए जाने पर अन्तिम हो जाए, देने के लिए, विधि द्वारा सशक्त किया गया हो; या

(ii) जो उस व्यक्ति निकाय में से एक हो, जो व्यक्ति निकाय ऐसा निर्णय देने के लिए विधि द्वारा सशक्त किया गया हो ।

दृष्टांत

किसी आरोप के संबंध में, अधिकारिता का प्रयोग करने वाला कोई मजिस्ट्रेट जिसके लिए उसे जुर्माना या कारावास का दण्ड देने की शक्ति प्राप्त है, चाहे उसकी अपील होती हो या न होती हो, न्यायाधीश है ;

(17) जीवन से, जब तक संदर्भ से प्रतिकूल प्रतीत न हो, किसी मानव का जीवन अभिप्रेत है;

(18) स्थानीय विधि से वह विधि अभिप्रेत है जो भारत के किसी विशिष्ट भाग को ही लागू है ;

(19) पुरुष से किसी भी आयु का मानव नर अभिप्रेत है ;

(20) मास और वर्ष - जहां कहीं मास शब्द या वर्ष शब्द का प्रयोग किया गया है, वहां यह समझा जाना है कि मास या वर्ष की गणना ग्रिगोरियन कलैंडर के अनुसार की जानी है;

(21) जंगम सम्पत्ति के अंतर्गत, भूमि और वे चीजें, जो भूबद्ध हों या भूबद्ध किसी चीज से स्थायी रूप से जकड़ी हुई हों, के सिवाय प्रत्येक प्रकार की सम्पत्ति आती है;

(22) वचन जब तक कि संदर्भ से प्रतिकूल प्रतीत न हो, एकवचन के घोतक शब्दों में बहुवचन सम्मिलित होता है, और बहुवचन के घोतक शब्दों में एकवचन सम्मिलित होता है;

(23) शपथ के अंतर्गत किसी शपथ के लिए विधि द्वारा प्रतिस्थापित सत्यनिष्ठ प्रतिज्ञान और ऐसी कोई घोषणा, जिसका किसी लोक सेवक के समक्ष किया जाना या न्यायालय में या अन्यथा सबूत के प्रयोजन के लिए उपयोग किया जाना विधि द्वारा अपेक्षित या प्राधिकृत हो, आती है ;

(क) और उपखंड

(ख) में उल्लिखित अध्यायों और

(24) अपराध -उपखंड

धाराओं में के सिवाय, अपराध शब्द से इस संहिता द्वारा दण्डनीय की गई कोई बात

अभिप्रेत है, किंतु -

(क) अध्याय 3 और निम्नलिखित धाराओं, अर्थात् धारा 8 की उपधारा (2), उपधारा (3), उपधारा (4), उपधारा (5), धारा 9, धारा 49, धारा 50, धारा 52, धारा 54, धारा 55, धारा 56, धारा 57, धारा 58, धारा 59, धारा 60, धारा 61, धारा 119, धारा 120, धारा 123, धारा 127 की उपधारा (7) और उपधारा (8), धारा 222, धारा 230, धारा 231, धारा 240, धारा 248, धारा 250, धारा 251, धारा 259, धारा 260, धारा 261, धारा 262, धारा 263, धारा 308 की उपधारा (6) और उपधारा (7) तथा धारा 330 की उपधारा (2) में अपराध शब्द से इस संहिता के अधीन, या किसी विशेष विधि या स्थानीय विधि के अधीन दण्डनीय कोई बात अभिप्रेत है; और

(ख) धारा 189 की उपधारा (1), धारा 211, धारा 212, धारा 238, धारा 239, धारा 249, धारा 253 और धारा 329 की उपधारा (1) में अपराध शब्द का अर्थ उस दशा में वही है, जिसमें विशेष विधि या स्थानीय विधि के अधीन दण्डनीय कार्य ऐसी विधि के अधीन छह मास या उससे अधिक अवधि के कारावास से, चाहे वह जुर्माने सहित हो या रहित, दण्डनीय हो ;

(25) लोप लोपों की आवलि का उसी प्रकार द्योतक है, जिस प्रकार एकल लोप का;

(26) व्यक्ति के अन्तर्गत कोई भी कंपनी या संगम या व्यक्ति निकाय, चाहे वह निगमित हो या नहीं, आता है;

(27) लोक के अन्तर्गत कोई भी वर्ग या कोई भी समुदाय आता है ;

(28) लोक सेवक से ऐसा कोई व्यक्ति अभिप्रेत हैं, जो निम्नलिखित वर्णनों में से किसी के अधीन आता है, अर्थात् :-

(क) सेना, नौसेना या वायु सेना का प्रत्येक आयुक्त अधिकारी;

(ख) प्रत्येक न्यायाधीश, जिसके अन्तर्गत ऐसा कोई भी व्यक्ति आता है जो किन्हीं न्यायनिर्णायक कृत्यों का चाहे स्वयं या व्यक्तियों के किसी निकाय के सदस्य के रूप में निर्वहन करने के लिए विधि द्वारा सशक्त किया गया हो ;

(ग) न्यायालय का प्रत्येक अधिकारी, जिसके अन्तर्गत समापक, रिसीवर या कमिश्नर आता है, जिसका ऐसे अधिकारी के नाते यह कर्तव्य हो कि वह विधि या तथ्य के किसी मामले में अन्वेषण या रिपोर्ट करे, या कोई दस्तावेज बनाए, अधिप्रमाणीकृत करे, या रखे, या किसी सम्पत्ति का भार सम्भाले या उस सम्पत्ति का व्ययन करे, या किसी न्यायिक आदेशिका का निष्पादन करे, या कोई शपथ ग्रहण कराए या निर्वचन करे, या न्यायालय में व्यवस्था बनाए रखे और प्रत्येक व्यक्ति, जिसे ऐसे कर्तव्यों में से किन्हीं का पालन करने के लिए न्यायालय द्वारा विशेष रूप से प्राधिकृत किया गया है ;

(घ) किसी न्यायालय या लोक सेवक की सहायता करने वाला प्रत्येक असेसर या पंचायत का सदस्य ;

(ङ) प्रत्येक मध्यस्थ या अन्य व्यक्ति, जिसको किसी न्यायालय द्वारा, या किसी अन्य सक्षम लोक प्राधिकारी द्वारा, कोई मामला या विषय, विनिश्चय या रिपोर्ट के लिए निर्दिष्ट किया गया है ;

(च) प्रत्येक व्यक्ति जो किसी ऐसे पद को धारण करता हो, जिसके आधार पर वह किसी व्यक्ति को परिरोध में करने या रखने के लिए सशक्त हो ;

(छ) सरकार का प्रत्येक अधिकारी, जिसका ऐसे अधिकारी के नाते यह कर्तव्य है कि वह अपराधों का निवारण करे, अपराधों की सूचना दे, अपराधियों को न्याय के लिए उपस्थित करे, या लोक स्वास्थ्य, सुरक्षा या सुविधा का संरक्षण करे ;

(ज) प्रत्येक अधिकारी, जिसका ऐसे अधिकारी के नाते यह कर्तव्य है कि वह सरकार की ओर से किसी सम्पत्ति को ग्रहण करे, प्राप्त करे, रखे या व्यय करे, या सरकार की ओर से कोई सर्वेक्षण, निर्धारण या संविदा करे, या किसी राजस्व आदेशिका का निष्पादन करे, या सरकार के धन-संबंधी हितों पर प्रभाव डालने वाले किसी मामले में अन्वेषण या रिपोर्ट करे या सरकार के धन-संबंधी हितों से संबंधित किसी दस्तावेज को बनाए, अधिप्रमाणीकृत करे या रखे, या सरकार के धन-संबंधी हितों के संरक्षण के लिए किसी विधि के व्यतिक्रम को रोके ;

(झ) प्रत्येक अधिकारी, जिसका ऐसे अधिकारी के नाते यह कर्तव्य है कि वह किसी ग्राम, नगर या जिले के किसी पंथ निरपेक्ष सामान्य प्रयोजन के लिए किसी सम्पत्ति को ग्रहण करे, प्राप्त करे, रखे या व्यय करे, कोई सर्वेक्षण या निर्धारण करे, या कोई रेट या कर उद्‌गृहीत करे, या किसी ग्राम, नगर या जिले के लोगों के अधिकारों के अभिनिश्चय करने के लिए कोई दस्तावेज बनाए, अधिप्रमाणीकृत करे या रखे ;

(ञ) प्रत्येक व्यक्ति, जो कोई ऐसा पद धारण करता है जिसके आधार पर वह निर्वाचक नामावली तैयार करने, प्रकाशित करने, बनाए रखने, या पुनरीक्षित करने के लिए या निर्वाचन या निर्वाचन के किसी भाग को संचालित करने के लिए सशक्त हो ;

(ट) प्रत्येक व्यक्ति, जो-

(i) सरकार की सेवा या वेतन में है या किसी लोक कर्तव्य के पालन के लिए सरकार से फीस या कमीशन के रूप में पारिश्रमिक पाता है;

(ii) साधारण खंड अधिनियम, 1897 की धारा 3 के खंड (31) में यथा परिभाषित किसी स्थानीय प्राधिकारी की, किसी केन्द्रीय अधिनियम या राज्य अधिनियम के द्वारा या उसके अधीन स्थापित किसी निगम की या कम्पनी अधिनियम, 2013 की धारा 2 के खंड (45) में यथा परिभाषित किसी सरकारी कम्पनी की सेवा या वेतन में है ।

स्पष्टीकरण-

(क) इस खंड में किए गए वर्णनों में से किसी के अधीन आने वाले व्यक्ति लोक सेवक हैं, चाहे वे सरकार द्वारा नियुक्त किए गए हों या नहीं ;

(ख) प्रत्येक ऐसा व्यक्ति, जो लोक सेवक के ओहदे को वास्तव में धारण किया हुआ है, चाहे उस ओहदे को धारण करने के उसके अधिकार में कैसी ही विधिक त्रुटि हो, लोक सेवक है;

(ग) निर्वाचन से किसी विधायी, नगरपालिका या अन्य लोक प्राधिकारी के सदस्यों का चयन करने के प्रयोजन से कोई निर्वाचन अभिप्रेत है, चाहे वह कैसे ही स्वरूप का हो, जिसके लिए चयन करने की पद्धति तत्समय प्रवृत्त किसी विधि द्वारा या उसके अधीन है ।

दृष्टांत

नगरपालिका आयुक्त, लोक सेवक है;

(29) विश्वास करने का कारण कोई व्यक्ति किसी बात का विश्वास करने का कारण रखता है, यह तब कहा जाता है जब वह उस बात के विश्वास करने का पर्याप्त कारण रखता है, अन्यथा नहीं ;

(30) विशेष विधि से वह विधि अभिप्रेत है, जो किसी विशिष्ट विषय को लागू हो ;

(31) मूल्यवान प्रतिभूति से ऐसा कोई दस्तावेज अभिप्रेत है, जो ऐसी दस्तावेज है, या होना तात्पर्यित है, जिसके द्वारा कोई विधिक अधिकार सृजित, विस्तृत, अन्तरित, निर्बन्धित, निर्वापित किया जाए या छोड़ा जाए या जिसके द्वारा कोई व्यक्ति यह अभिस्वीकृत करता है कि वह विधिक दायित्व के अधीन है, या अमुक विधिक अधिकार नहीं रखता है ।

दृष्टांत

क एक विनिमयपत्र की पीठ पर अपना नाम लिख देता है । इस पृष्ठांकन का प्रभाव किसी व्यक्ति को, जो उसका विधिपूर्ण धारक हो जाए, उस विनिमयपत्र पर का अधिकार अन्तरित किया जाना है, इसलिए यह पृष्ठांकन मूल्यवान प्रतिभूति है ;

(32) जलयान से कोई चीज अभिप्रेत है, जो मानवों के या सम्पत्ति के जल द्वारा प्रवहण के लिए बनाई गई हो ;

(33) स्वेच्छया कोई व्यक्ति किसी परिणाम को स्वेच्छया कारित करता है, यह तब कहा जाता है, जब वह उसे उन साधनों द्वारा कारित करता है, जिनके द्वारा उसे कारित करना उसका आशय था या उन साधनों द्वारा कारित करता है जिन साधनों को काम में लाते समय वह यह जानता था, या यह विश्वास करने का कारण रखता था कि उनसे उसका कारित होना संभाव्य है ;

दृष्टांत

क लूट को सुकर बनाने के प्रयोजन से एक बड़े नगर के एक बसे हुए गृह में रात को आग लगाता है और इस प्रकार एक व्यक्ति की मृत्यु कारित कर देता है। यहां क का आशय भले ही मृत्यु कारित करने का न रहा हो और वह दुखित भी हो कि उसके कार्य से मृत्यु कारित हुई है तो भी यदि वह यह जानता था कि संभाव्य है कि वह मृत्यु कारित कर दे तो उसने स्वेच्छया मृत्यु कारित की है ;

(34) विल से कोई वसीयती दस्तावेज अभिप्रेत है ;

(35) महिला से किसी भी आयु की मानव नारी अभिप्रेत है ;

(36) सदोष अभिलाभ से विधिविरुद्ध साधनों द्वारा ऐसी सम्पत्ति का अभिलाभ अभिप्रेत है, जिसका अभिलाभ प्राप्त करने वाला व्यक्ति वैध रूप से हकदार न हो;

(37) सदोष हानि से विधिविरुद्ध साधनों द्वारा ऐसी सम्पत्ति की हानि अभिप्रेत है, जिसकी हानि उठाने वाला व्यक्ति वैध रूप से हकदार हो ;

(38) सदोष अभिलाभ प्राप्त करना और सदोष हानि उठाना - कोई व्यक्ति सदोष अभिलाभ प्राप्त करता है, यह तब कहा जाता है जब कि वह व्यक्ति सदोष रखे रखता है और तब भी जबकि वह सदोष अर्जन करता है । कोई व्यक्ति सदोष हानि उठाता है, यह तब कहा जाता है, जब कि उसे किसी सम्पत्ति से सदोष अलग रखा जाता है और तब भी जबकि उसे किसी सम्पत्ति से सदोष वंचित किया जाता है; और (39) उन शब्दों और पदों के, जो इसमें प्रयुक्त हैं और इस संहिता में परिभाषित नहीं हैं, किन्तु सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 और भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 में परिभाषित हैं, वहीं अर्थ होंगे, जो क्रमशः उस अधिनियम और संहिता में उनके हैं :

परन्तु इस संहिता में भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 के प्रतिनिर्देश का अर्थान्वयन भारतीय नागरिक सुरक्षा (दूसरी) संहिता, 2023 से लिया जाएगा ।


खंड- 3. साधारण स्पष्टीकरण ।

(1) इस संहिता में सर्वत्र, अपराध की प्रत्येक परिभाषा, प्रत्येक दण्ड उपबंध और प्रत्येक ऐसी परिभाषा या दण्ड उपबंध का प्रत्येक दृष्टांत, साधारण अपवाद शीर्षक वाले अध्याय में अन्तर्विष्ट अपवादों के अध्यधीन समझा जाएगा, चाहे उन अपवादों को ऐसी परिभाषा, दण्ड उपबंध या दृष्टांत में दुहराया न गया हो ।

दृष्टांत

(क) इस संहिता की वे धाराएं, जिनमें अपराधों की परिभाषाएं अन्तर्विष्ट हैं, यह अभिव्यक्त नहीं करती कि सात वर्ष से कम आयु का बालक ऐसे अपराध नहीं कर सकता, किन्तु परिभाषाएं उस साधारण अपवाद के अध्यधीन समझी जानी हैं जिसमें यह उपबन्धित है कि कोई बात, जो सात वर्ष से कम आयु के बालक द्वारा की जाती है, अपराध नहीं है ।

(ख) क, एक पुलिस अधिकारी, वारण्ट के बिना, य को, जिसने हत्या की है, पकड़ लेता है । यहां क सदोष परिरोध के अपराध का दोषी नहीं है, क्योंकि वह य को पकड़ने के लिए विधि द्वारा आबद्ध था, और इसलिए यह मामला उस साधारण अपवाद के अन्तर्गत आ जाता है, जिसमें यह उपबन्धित है कि कोई बात अपराध नहीं है जो किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा की जाए जो उसे करने के लिए विधि द्वारा आबद्ध हो ।

(2) प्रत्येक पद, जिसका स्पष्टीकरण इस संहिता के किसी भाग में किया गया है, इस संहिता के प्रत्येक भाग में उस स्पष्टीकरण के अनुरूप ही प्रयोग किया गया है ।

(3) जब कोई सम्पत्ति किसी व्यक्ति के कारण उस व्यक्ति का पति या पत्नी, लिपिक या सेवक के कब्जे में है, तब वह इस संहिता के अर्थ के अन्तर्गत उस व्यक्ति के कब्जे में है ।

स्पष्टीकरण-लिपिक या सेवक की हैसियत से अस्थायी रूप से या किसी विशिष्ट अवसर पर नियोजित कोई व्यक्ति इस उपधारा के अर्थ के अन्तर्गत लिपिक या सेवक है ।

(4) जब तक कि संदर्भ से प्रतिकूल आशय प्रतीत न हो, इस संहिता के प्रत्येक भाग में किए गए कार्यों का निर्देश करने वाले शब्दों का विस्तार अवैध लोपों पर भी है ।

(5) जब कोई आपराधिक कार्य कई व्यक्तियों द्वारा अपने सबके सामान्य आशय को अग्रसर करने में किया जाता है, तब ऐसे व्यक्तियों में से प्रत्येक व्यक्ति उस कार्य के लिए उसी प्रकार दायित्व के अधीन है, मानो वह कार्य अकेले उसी ने किया हो ।

(6) जब कभी कोई कार्य, जो आपराधिक ज्ञान या आशय से किए जाने के कारण ही आपराधिक है, कई व्यक्तियों द्वारा किया जाता है, तब ऐसे व्यक्तियों में से प्रत्येक व्यक्ति, जो ऐसे ज्ञान या आशय से उस कार्य में सम्मिलित होता है, उस कार्य के लिए उसी प्रकार दायित्व के अधीन है, मानो वह कार्य उस ज्ञान या आशय से अकेले उसी द्वारा किया गया हो ।

(7) जहां कहीं किसी कार्य द्वारा या किसी लोप द्वारा किसी परिणाम का कारित किया जाना या उस परिणाम को कारित करने का प्रयत्न करना अपराध है, वहां यह समझा जाना है कि उस परिणाम का अंशतः कार्य द्वारा और अंशतः लोप द्वारा कारित किया जाना वही अपराध है ।

दृष्टांत

क अंशतः य को भोजन देने का अवैध रूप से लोप करके और अंशतः य को पीट कर जानबूझकर य की मृत्यु कारित करता है । क ने हत्या की है ।

(8) जब कोई अपराध कई कार्यों द्वारा किया जाता है, तब जो कोई या तो अकेले या किसी अन्य व्यक्ति के साथ सम्मिलित होकर उन कार्यों में से कोई एक कार्य करके उस अपराध के किए जाने में जानबूझकर सहयोग करता है, वह उस अपराध को करता है ।

दृष्टांत

(क) क और ख पृथक् पृथक् रूप से और विभिन्न समयों पर य को विष की छोटी-छोटी मात्राएं देकर उसकी हत्या करने को सहमत होते हैं। क और ख, य की हत्या करने के आशय से सहमति के अनुसार य को विष देते हैं । य इस प्रकार दी गई विष की कई मात्राओं के प्रभाव से मर जाता है । यहां क और ख हत्या करने में जानबूझकर सहयोग करते हैं और क्योंकि उनमें से प्रत्येक ऐसा कार्य करता है, जिससे मृत्यु कारित होती है, वे दोनों इस अपराध के दोषी हैं, यद्यपि उनके कार्य पृथक् हैं ।

(ख) क और ख संयुक्त जेलर हैं, और अपनी उस हैसियत में वे एक कैदी य का बारी- बारी से एक समय में 6 घंटे के लिए संरक्षण-भार रखते हैं। य को दिए जाने के प्रयोजन से जो भोजन क और ख को दिया जाता है, वह भोजन इस आशय से कि य की मृत्यु कारित कर दी जाए, प्रत्येक अपने हाजिरी के काल में य को देने का लोप करके वह परिणाम अवैध रूप से कारित करने में जानते हुए सहयोग करते हैं। य भूख से मर जाता है। क और ख दोनों य की हत्या के दोषी हैं ।

(ग) एक जेलर क, एक कैदी य का संरक्षण-भार रखता है । क, य की मृत्यु कारित करने के आशय से, य को भोजन देने का अवैध रूप से लोप करता है, जिसके परिणामस्वरूप य की शक्ति बहुत क्षीण हो जाती है, किन्तु यह क्षुधापीड़न उसकी मृत्यु, कारित करने के लिए पर्याप्त नहीं होता । क अपने पद से च्युत कर दिया जाता है और ख उसका उत्तरवर्ती होता है । क से दुस्संधि या सहयोग किए बिना ख यह जानते हुए कि ऐसा करने से संभाव्य है कि वह य की मृत्यु कारित कर दे, य को भोजन देने का अवैध रूप से लोप करता है । य, भूख से मर जाता है । ख हत्या का दोषी है किन्तु क ने ख से सहयोग नहीं किया, इसलिए क हत्या के प्रयत्न का ही दोषी है ।

(9) जहां कई व्यक्ति किसी आपराधिक कार्य को करने में लगे हुए हैं या सम्बद्ध हैं, वहां वे उस कार्य के आधार पर विभिन्न अपराधों के दोषी हो सकेंगे ।

दृष्टांत

क गम्भीर प्रकोपन की ऐसी परिस्थितियों के अधीन य पर आक्रमण करता है कि य का उसके द्वारा वध किया जाना केवल ऐसा आपराधिक मानव वध है, जो हत्या की कोटि में नहीं आता है । ख जो य से वैमनस्य रखता है, उसका वध करने के आशय से और प्रकोपन के वशीभूत न होते हुए य का वध करने में क की सहायता करता है । यहां, यद्यपि क और ख दोनों य की मृत्यु कारित करने में लगे हुए हैं, ख हत्या का दोषी है और क केवल आपराधिक मानव वध का दोषी है ।

अध्याय 2- दण्डों के विषय में

खंड- 4. दण्ड ।

अपराधी, इस संहिता के उपबंधों के अधीन जिन दण्डों से दायी हैं, वे हैं- (क) मृत्यु ;

(ख) आजीवन कारावास ;

(ग) कारावास, जो दो प्रकार का है, अर्थात् :- (1) कठिन, अर्थात् कठोर श्रम के साथ ;

(2) सादा ;

(घ) सम्पत्ति की जब्ती ;

(ङ) जुर्माना ;

(च) सामुदायिक सेवा ।


खंड- 5. दण्डादेश का लघुकरण ।

समुचित सरकार, अपराधी की सम्मति के बिना इस संहिता के अधीन किसी दंड का, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 474 के अनुसार, किसी अन्य दंड में लघुकरण कर सकेगी ।

स्पष्टीकरण-इस धारा के प्रयोजनों के लिए, समुचित सरकार पद से, -

(क) उन मामलों में केन्द्रीय सरकार अभिप्रेत है, जिनमें दंडादेश मृत्यु का दण्डादेश है, या ऐसे विषय, जिस पर संघ की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार है, से संबंधित किसी विधि के विरुद्ध अपराध के लिए है; और

(ख) उन मामलों में उस राज्य की सरकार अभिप्रेत है, जिसके भीतर अपराधी दण्डादिष्ट हुआ है, जहां कि दंडादेश (चाहे मृत्यु का हो या नहीं) ऐसे विषय, जिस पर राज्य की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार है, से संबंधित किसी विधि के विरुद्ध अपराध के लिए है ।


खंड- 6. दण्डावधियों की भिन्नें ।

दण्डावधियों की भिन्नों का गणना करने में, अन्यथा उपबंधित के सिवाय, आजीवन कारावास को बीस वर्ष के कारावास के समतुल्य गिना जाएगा ।


खंड- 7. दण्डादिष्ट कारावास के (कतिपय मामलों में सम्पूर्ण कारावास) या उसका कोई भाग कठिन या सादा हो सकेगा ।

प्रत्येक ऐसे मामले में, जिसमें कोई अपराधी दोनों में से किसी भांति के कारावास से दण्डनीय है, वह न्यायालय, जो ऐसे अपराधी को दण्डादेश देगा, सक्षम होगा कि दण्डादेश में यह निर्दिष्ट करे कि ऐसा सम्पूर्ण कारावास कठिन होगा, या यह कि ऐसा सम्पूर्ण कारावास सादा होगा, या यह कि ऐसे कारावास का कुछ भाग कठिन होगा और शेष सादा ।


खंड- 8. जुर्माने की रकम, जुर्माना आदि देने में व्यतिक्रम ।

(1) जहां वह राशि अभिव्यक्त नहीं की गई है, कि कितना जुर्माना हो सकेगा, वहां अपराधी जिस जुर्माने की रकम का दायी है, वह असीमित है, किन्तु अत्यधिक नहीं होगी । (2) किसी अपराध के प्रत्येक मामले में, -

(क) जो कारावास के साथ जुर्माने से दण्डनीय है, जिसमें अपराधी कारावास सहित या रहित, जुर्माने से दण्डादिष्ट हुआ है ;

(ख) जो कारावास या जुर्माने या केवल जुर्माने से दण्डनीय है, जिसमें अपराधी जुर्माने से दण्डादिष्ट हुआ है, वह न्यायालय, जो ऐसे अपराधी को दण्डादिष्ट करेगा, सक्षम होगा कि दण्डादेश द्वारा निदेश दे कि जुर्माना देने में व्यतिक्रम होने की दशा में, अपराधी किसी अमुक अवधि के लिए कारावास भोगेगा, जो कारावास उस अन्य कारावास के अतिरिक्त होगा जिसके लिए वह दण्डादिष्ट हुआ है या जिससे वह दण्डादेश के लघुकरण पर दण्डनीय है ।

(3) यदि अपराध कारावास और जुर्माना दोनों से दण्डनीय हो, तो वह अवधि, जिसके लिए जुर्माना देने में व्यतिक्रम होने की दशा के लिए न्यायालय अपराधी को कारावासित करने का निदेश दे, कारावास की उस अवधि की एक चौथाई से अधिक नहीं होगी, जो अपराध के लिए अधिकतम नियत है ।

(4) वह कारावास, जिसे न्यायालय जुर्माना देने में व्यतिक्रम होने के लिए या सामुदायिक सेवा के व्यतिक्रम में अधिरोपित करे, ऐसा किसी भांति का हो सकेगा, जिससे अपराधी को उस अपराध के लिए दण्डादिष्ट किया जा सकता था ।

(5) यदि अपराध जुर्माने से या सामुदायिक सेवा से दण्डनीय हो तो वह कारावास, जिसे न्यायालय जुर्माना देने में व्यतिक्रम होने की दशा के लिए या सामुदायिक सेवा में व्यतिक्रम के लिए अधिरोपित करे, सादा होगा और वह अवधि, जिसके लिए जुर्माना देने में व्यतिक्रम होने की दशा के लिए या सामुदायिक सेवा में व्यतिक्रम के लिए न्यायालय अपराधी को कारावासित करने का निदेश दे, निम्नलिखित अवधि से अधिक नहीं होगी, -

(क) दो मास से अनधिक कोई अवधि, जब जुर्माने की रकम पांच हजार रुपए से अधिक की न हो;

(ख) चार मास से अनधिक कोई अवधि, जब जुर्माने की रकम दस हजार रुपए से अधिक की न हो; और

(ग) किसी अन्य दशा में, एक वर्ष से अनधिक कोई अवधि ।

(6) (क) जुर्माना देने में व्यतिक्रम होने की दशा के लिए अधिरोपित कारावास तब पर्यवसित हो जाएगा, जब वह जुर्माना या तो चुका दिया जाए या विधि की प्रक्रिया द्वारा उद्‌गृहीत कर लिया जाए ;

(ख) यदि जुर्माना देने में व्यतिक्रम होने की दशा के लिए नियत की गई कारावास की अवधि का अवसान होने से पूर्व जुर्माने का ऐसा अनुपात चुका दिया जाए या उद्‌गृहीत कर लिया जाए कि देने में व्यतिक्रम होने पर कारावास की जो अवधि भोगी जा चुकी हो, वह जुर्माने के तब तक न चुकाए गए भाग के आनुपातिक से कम न हो तो कारावास पर्यवसित हो जाएगा ।

दृष्टांत

क एक हजार रुपए के जुर्माने और उसके देने में व्यतिक्रम होने की दशा के लिए चार मास के कारावास से दण्डादिष्ट किया गया है। यहां, यदि कारावास के एक मास के अवसान से पूर्व जुर्माने के सात सौ पचास रुपए चुका दिए जाएं या उद्‌गृहीत कर लिए जाएं तो प्रथम मास का अवसान होते ही क उन्मुक्त कर दिया जाएगा । यदि सात सौ पचास रुपए प्रथम मास के अवसान पर या किसी भी पश्चात्वर्ती समय पर, जब कि क कारावास में है, चुका दिए या उद्‌गृहीत कर लिए जाएं, तो क तुरन्त उन्मुक्त कर दिया जाएगा । यदि कारावास के दो मास के अवसान से पूर्व जुर्माने के पांच सौ रुपए चुका दिए जाएं या उद्‌गृहीत कर लिए जाएं, तो क दो मास के पूरे होते ही उन्मुक्त कर दिया जाएगा । यदि पांच सौ रुपए उन दो मास के अवसान पर या किसी भी पश्चात्वर्ती समय पर, जब कि क कारावास में है, चुका दिए जाएं या उद्‌गृहीत कर लिए जाएं, तो क तुरन्त उन्मुक्त कर दिया जाएगा ।

(7) जुर्माना या उसका कोई भाग, जो चुकाया न गया हो, दण्डादेश दिए जाने के पश्चात् छह वर्ष के भीतर किसी भी समय, और यदि अपराधी दण्डादेश के अधीन छह वर्ष से अधिक के कारावास से दण्डनीय हो तो उस कालावधि के अवसान से पूर्व किसी भी समय, उद्‌गृहीत किया जा सकेगा; और अपराधी की मृत्यु, किसी भी सम्पत्ति को, जो उसकी मृत्यु के पश्चात् उसके ऋणों के लिए वैध रूप से दायी हो, इस दायित्व से उन्मुक्त नहीं करती ।


खंड- 9. कई अपराधों से मिलकर बने अपराध के लिए दण्ड की अवधि ।

(1) जहां कोई बात, जो अपराध है, ऐसे भागों से, जिनमें का कोई भाग स्वयं अपराध है, मिलकर बनी है, वहां अपराधी अपने ऐसे अपराधों में से एक से अधिक के दण्ड से दण्डित नहीं किया जाएगा, जब तक कि ऐसा अभिव्यक्त रूप से उपबन्धित न हो ।

(2) जहां-

(क) कोई बात, अपराधों को परिभाषित या दण्डित करने वाली किसी तत्समय प्रवृत्त विधि की दो या अधिक पृथक् परिभाषाओं में आने वाला अपराध है; या

(ख) कई कार्य, जिनमें से स्वयं एक से या स्वयं एकाधिक से अपराध गठित होता है, मिलकर भिन्न अपराध गठित करते हैं, वहां अपराधी को उससे गुरुतर दण्ड से दण्डित न किया जाएगा, जो ऐसे अपराधों में से किसी भी एक के लिए वह न्यायालय, जो उसका विचारण करे, उसे दे सकता हो ।

दृष्टांत

(क) क, य पर लाठी से पचास प्रहार करता है। यहां, हो सकता है कि क ने सम्पूर्ण मारपीट द्वारा उन प्रहारों में से प्रत्येक प्रहार द्वारा भी, जिनसे वह सम्पूर्ण मारपीट गठित है, य की स्वेच्छ्या उपहति कारित करने का अपराध किया हो। यदि क प्रत्येक प्रहार के लिए दण्डनीय होता वह प्रत्येक प्रहार के लिए एक वर्ष के हिसाब से पचास वर्ष के लिए कारावासित किया जा सकता था। किन्तु वह सम्पूर्ण मारपीट के लिए केवल एक ही दण्ड से दण्डनीय है ।

(ख) किन्तु यदि उस समय जब क, य को पीट रहा है, म हस्तक्षेप करता है, और क, म पर जानबूझकर प्रहार करता है, तो यहां म पर किया गया प्रहार उस कार्य का भाग नहीं है, जिसके द्वारा क, य को स्वेच्छया उपहति कारित करता है, इसलिए क, य को स्वेच्छ्या कारित की गई उपहति के लिए एक दण्ड से और म पर किए गए प्रहार के लिए दूसरे दण्ड से दण्डनीय है ।


खंड- 10. कई अपराधों में से एक के दोषी व्यक्ति के लिए दण्ड जबकि निर्णय में यह कथित है कि यह संदेह है कि वह किस अपराध का दोषी है ।

उन सब मामलों में, जिनमें यह निर्णय दिया जाता है कि कोई व्यक्ति उस निर्णय में विनिर्दिष्ट कई अपराधों में से एक अपराध का दोषी है, किन्तु यह संदेहपूर्ण है कि वह उन अपराधों में से किस अपराध का दोषी है, यदि वही दण्ड सब अपराधों के लिए उपबन्धित नहीं है तो वह अपराधी उस अपराध के लिए दण्डित किया जाएगा, जिसके लिए कम से कम दण्ड उपबन्धित किया गया है।


खंड- 11. एकांत परिरोध ।

जब कभी कोई व्यक्ति ऐसे अपराध के लिए दोषसिद्ध ठहराया जाता है जिसके लिए न्यायालय को इस संहिता के अधीन उसे कठिन कारावास से दंडादिष्ट करने की शक्ति है, तो न्यायालय अपने दंडादेश द्वारा आदेश दे सकेगा कि अपराधी को उस कारावास के, जिसके लिए वह दंडादिष्ट किया गया है, किसी भाग या भागों के लिए, जो कुल मिलाकर तीन मास से अधिक नहीं होंगे, निम्न मापमान के अनुसार एकांत परिरोध में रखा जाएगा, अर्थात् :-

(क) यदि कारावास की अवधि छह मास से अधिक न हो तो एक मास से अनधिक समय ;

(ख) यदि कारावास की अवधि छह मास से अधिक हो और एक वर्ष से अधिक न हो तो दो मास से अनधिक समय ;

(ग) यदि कारावास की अवधि एक वर्ष से अधिक हो तो तीन मास से अनधिक समय ।


खंड- 12. एकांत परिरोध की अवधि ।

एकांत परिरोध के दण्डादेश के निष्पादन में ऐसा परिरोध किसी दशा में भी एक बार में चौदह दिन से अधिक न होगा, साथ ही ऐसे एकांत परिरोध की कालावधियों के बीच में उन कालावधियों से अन्यून अंतराल होंगे; और जब दिया गया कारावास तीन मास से अधिक हो, तब दिए गए सम्पूर्ण कारावास के किसी एक मास में एकांत परिरोध सात दिन से अधिक नहीं होगा, साथ ही एकांत परिरोध की कालावधियों के बीच में उन्हीं कालावधियों से अन्यून अंतराल होंगे ।


खंड- 13. पूर्व दोषसिद्धि के पश्चात् कतिपय अपराधों के लिए वर्धित दण्ड ।

जो कोई व्यक्ति भारत में के किसी न्यायालय द्वारा इस संहिता के अध्याय 10 या अध्याय 17 के अधीन तीन वर्ष या उससे अधिक की अवधि के लिए दोनों में से किसी भांति के कारावास से दण्डनीय अपराध के लिए दोषसिद्ध ठहराए जाने के पश्चात्, उन दोनों अध्यायों में से किसी अध्याय के अधीन उतनी ही अवधि के लिए वैसे ही कारावास से दण्डनीय किसी अपराध का दोषी है, तो वह प्रत्येक ऐसे पश्चात्वर्ती अपराध के लिए आजीवन कारावास से या दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डनीय होगा ।

अध्याय 3- साधारण अपवाद

खंड- 14. विधि द्वारा आबद्ध या तथ्य की भूल के कारण अपने आप को विधि द्वारा आबद्ध होने का विश्वास करने वाले व्यक्ति द्वारा किया गया कार्य ।

कोई बात अपराध नहीं है, जो किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा की जाए, जो उसे करने के लिए विधि द्वारा आबद्ध है या जो तथ्य की भूल के कारण, न कि विधि की भूल के कारण, सद्भावपूर्वक विश्वास करता है कि वह उसे करने के लिए विधि द्वारा आबद्ध है ।

दृष्टांत

(क) विधि के समादेशों के अनुरूप अपने वरिष्ठ अधिकारी के आदेश से एक सैनिक क भीड़ पर गोली चलाता है। क ने कोई अपराध नहीं किया ।

(ख) न्यायालय का अधिकारी क, म को गिरफ्तार करने के लिए उस न्यायालय द्वारा आदिष्ट किए जाने पर और सम्यक् जांच करने के पश्चात्, यह विश्वास करके कि य ही म है, य को गिरफ्तार कर लेता है। क ने कोई अपराध नहीं किया ।


खंड- 15. न्यायिकतः कार्य करने हेतु न्यायाधीश का कार्य ।

कोई बात अपराध नहीं है, जो न्यायिक रूप से कार्य करते हुए किसी न्यायाधीश द्वारा किसी शक्ति के प्रयोग में की जाती है, जिसके बारे में उसे स‌द्भावपूर्वक विश्वास है कि उसके पास वह है या उसे विधि द्वारा दी गई है ।


खंड- 16. न्यायालय के निर्णय या आदेश के अनुसरण में किया गया कार्य ।

कोई बात, जो किसी न्यायालय के निर्णय या आदेश के अनुसरण में की जाए या उसके द्वारा अधिदिष्ट हो, यदि वह उस निर्णय या आदेश के प्रवृत्त रहते की जाए, अपराध नहीं है, चाहे उस न्यायालय को ऐसा निर्णय या आदेश देने की अधिकारिता न रही हो, परन्तु यह तब जब कि वह कार्य करने वाला व्यक्ति स‌द्भावपूर्वक विश्वास करता हो कि उस न्यायालय को वैसी अधिकारिता थी ।


खंड- 17. विधि द्वारा न्यायानुमत या तथ्य की भूल से अपने को विधि द्वारा न्यायानुमत होने का विश्वास करने वाले व्यक्ति द्वारा किया गया कार्य ।

कोई बात अपराध नहीं है, जो ऐसे व्यक्ति द्वारा की जाए, जो उसे करने के लिए विधि द्वारा न्यायानुमत है, या तथ्य की भूल के कारण, न कि विधि की भूल के कारण स‌द्भावपूर्वक विश्वास करता है कि वह उसे करने के लिए विधि द्वारा न्यायानुमत है ।

दृष्टांत

क, य को ऐसा कार्य करते देखता है, जो क को हत्या प्रतीत होता है । क स‌द्भावपूर्वक काम में लाए गए अपने श्रेष्ठ निर्णय के अनुसार उस शक्ति को प्रयोग में लाते हुए, जो विधि ने हत्या करने वालों को, उस कार्य में पकड़ने के लिए समस्त व्यक्तियों को दे रखी है, य को उचित प्राधिकारियों के समक्ष ले जाने के लिए य को अभिगृहीत करता है । क ने कोई अपराध नहीं किया है, चाहे तत्पश्चात् असल बात यह निकले कि य आत्म-प्रतिरक्षा में कार्य कर रहा था ।


खंड- 18. विधिपूर्ण कार्य करने में दुर्घटना ।

कोई बात अपराध नहीं है, जो दुर्घटना या दुर्भाग्य से और किसी आपराधिक आशय या ज्ञान के बिना विधिपूर्ण रीति से विधिपूर्ण साधनों द्वारा और उचित सतर्कता और सावधानी के साथ विधिपूर्ण कार्य करने में ही हो जाती है ।

दृष्टांत

क कुल्हाड़ी से काम कर रहा है; कुल्हाड़ी का फल उसमें से निकल कर उछट जाता है, और निकट खड़ा हुआ व्यक्ति उससे मारा जाता है । यहां यदि क की ओर से उचित सावधानी का कोई अभाव नहीं था तो उसका कार्य माफी योग्य है और अपराध नहीं है ।


खंड- 19. कार्य, जिससे अपहानि कारित होना संभाव्य है, किंतु जो आपराधिक आशय के बिना और अन्य अपहानि के निवारण के लिए किया गया है ।

कोई बात केवल इस कारण अपराध नहीं है कि वह यह जानते हुए की गई है कि उससे अपहानि कारित होना संभाव्य है, यदि वह अपहानि कारित करने के किसी आपराधिक आशय के बिना और व्यक्ति या संपत्ति को अन्य अपहानि का निवारण या परिवर्जन करने के प्रयोजन से सद्भावपूर्वक की गई हो ।

स्पष्टीकरण-ऐसे मामले में यह तथ्य का प्रश्न है कि जिस अपहानि का निवारण या परिवर्जन किया जाना है, क्या वह ऐसी प्रकृति की और इतनी आसन्न थी कि वह कार्य, जिससे यह जानते हुए कि उससे अपहानि कारित होना संभाव्य है, करने की जोखिम उठाना न्यायानुमत या माफी योग्य था ।

दृष्टांत

(क) क, जो एक जलयान का कप्तान है, अचानक और अपने किसी कसूर या उपेक्षा के बिना अपने आपको ऐसी स्थिति में पाता है कि यदि उसने जलयान का मार्ग नहीं बदला तो इससे पूर्व कि वह अपने जलयान को रोक सके वह बीस या तीस यात्रियों से भरी नाव ख को अनिवार्यतः टकराकर डुबो देगा, और अपना मार्ग बदलने से उसे केवल दो यात्रियों वाली नाव ग को डुबाने की जोखिम उठानी पड़ती है, जिसको वह संभवतः बचाकर निकल जाए । यहां, यदि क नाव ग को डुबाने के किसी आशय के बिना और नाव ख के यात्रियों को संकट से बचाने के प्रयोजन से स‌द्भावपूर्वक अपना मार्ग बदल देता है, यद्यपि वह नाव ग को ऐसे कार्य द्वारा टकराकर डुबा सकता है, जिससे ऐसे परिणाम का उत्पन्न होना वह संभाव्य जानता था, तथापि तथ्यतः यह पाया जाता है कि वह संकट, जिसे बचाने का उसका आशय था, जिससे नाव ग डुबाने की जोखिम उठाना माफी योग्य है, तो वह किसी अपराध का दोषी नहीं है ।

(ख) क एक बड़े अग्निकांड के समय आग को फैलने से रोकने के लिए घरों को गिरा देता है । वह इस कार्य को मानव जीवन या संपत्ति को बचाने के आशय से स‌द्भावपूर्वक करता है । यहां, यदि यह पाया जाता है कि रोके जाने वाली अपहानि इस प्रकृति की और इतनी आसन्न थी कि क का कार्य माफी योग्य है तो क उस अपराध का दोषी नहीं है ।


खंड- 20. सात वर्ष से कम आयु के बालक का कार्य ।

कोई बात अपराध नहीं है, जो सात वर्ष से कम आयु के बालक द्वारा की जाती है ।


खंड- 21. सात वर्ष से ऊपर, किंतु बारह वर्ष से कम आयु के अपरिपक्व समझ के बालक का कार्य ।

कोई बात अपराध नहीं है, जो सात वर्ष से ऊपर और बारह वर्ष से कम आयु के ऐसे बालक द्वारा की जाती है जिसकी समझ इतनी परिपक्व नहीं हुई है कि वह उस अवसर पर अपने आचरण की प्रकृति और परिणामों का निर्णय कर सके ।


खंड- 22. विकृत्त चित्त वाले व्यक्ति का कार्य ।

कोई बात अपराध नहीं है, जो ऐसे व्यक्ति द्वारा की जाती है, जो उसे करते समय, चित्त-विकृत्ति के कारण, उस कार्य की प्रकृति, या यह कि जो कुछ वह कर रहा है वह दोषपूर्ण या विधि के प्रतिकूल है, जानने में असमर्थ है ।


खंड- 23. ऐसे व्यक्ति का कार्य जो अपनी इच्छा के विरुद्ध मत्तता में होने के कारण निर्णय पर पहुंचने में असमर्थ है ।

कोई बात अपराध नहीं है, जो ऐसे व्यक्ति द्वारा की जाती है, जो उसे करते समय मत्तता के कारण उस कार्य की प्रकृति, या यह कि जो कुछ वह कर रहा है, वह दोषपूर्ण या विधि के प्रतिकूल है, जानने में असमर्थ है; परंतु वह चीज, जिससे उसकी मत्तता हुई थी, उसको अपने ज्ञान के बिना या इच्छा के विरुद्ध दी गई थी ।


खंड- 24. किसी व्यक्ति द्वारा, जो मत्तता में है, किया गया अपराध जिसमें विशेष आशय या ज्ञान का होना अपेक्षित है ।

उन दशाओं में, जहां कि कोई किया गया कार्य अपराध नहीं होता जब तक कि वह किसी विशिष्ट ज्ञान या आशय से न किया गया हो, कोई व्यक्ति, जो वह कार्य मत्तता की स्थिति में करता है, इस प्रकार बरते जाने के दायित्व के अधीन होगा मानो उसे वही ज्ञान था जो उसे होता यदि वह मत्तता में न होता जब तक कि वह चीज, जिससे उसे मत्तता हुई थी, उसे उसके ज्ञान के बिना या उसकी इच्छा के विरुद्ध न दी गई हो ।


खंड- 25. सम्मति से किया गया कार्य जिससे मृत्यु या घोर उपहति कारित करने का आशय न हो और न उसकी संभाव्यता का ज्ञान हो ।

कोई बात, जो मृत्यु या घोर उपहति कारित करने के आशय से न की गई हो और जिसके बारे में कर्ता को यह ज्ञात न हो कि उससे मृत्यु या घोर उपहति कारित होना संभाव्य है, किसी ऐसी अपहानि के कारण अपराध नहीं है जो उस बात से अठारह वर्ष से अधिक आयु के किसी व्यक्ति को, जिसने वह अपहानि सहन करने की या अभिव्यक्त या विवक्षित सम्मति दे दी हो, कारित हो या कारित होना कर्ता द्वारा आशयित हो या जिसके बारे में कर्ता को ज्ञात हो कि वह ऐसे किसी व्यक्ति को, जिसने उस अपहानि की जोखिम उठाने की सम्मति दे दी है, उस बात द्वारा कारित होनी संभाव्य है ।

दृष्टांत

क और य आमोदार्थ आपस में पटेबाजी करने को सहमत होते हैं । इस सहमति में किसी अपहानि को, जो ऐसी पटेबाजी में खेल के नियम के विरुद्ध न होते हुए कारित हो, उठाने की प्रत्येक की सम्मति विवक्षित है, और यदि क यथानियम पटेबाजी करते हुए य को उपहति कारित कर देता है, तो क कोई अपराध नहीं करता है ।


खंड- 26. किसी व्यक्ति के फायदे के लिए सम्मति से स‌द्भावपूर्वक किया गया कार्य, जिससे मृत्यु कारित करने का आशय नहीं है।

कोई बात, जो मृत्यु कारित करने के आशय से न की गई हो, किसी ऐसी अपहानि के कारण नहीं है जो उस बात से किसी ऐसे व्यक्ति को, जिसके फायदे के लिए वह बात स‌द्भावपूर्वक की जाए और जिसने उस अपहानि को सहने, या उस अपहानि की जोखिम उठाने के लिए चाहे अभिव्यक्त, या विवक्षित सम्मति दे दी हो, कारित हो या कारित करने का कर्ता का आशय हो या कारित होने की संभाव्यता कर्ता को ज्ञात है ।

दृष्टांत

क, एक शल्य चिकित्सक, यह जानते हुए कि एक विशेष शल्य क्रिया से य को, जो वेदनापूर्ण व्याधि से ग्रस्त है, मृत्यु कारित होने की संभाव्यता है किंतु य की मृत्यु कारित करने का आशय न रखते हुए और स‌द्भावपूर्वक य के फायदे के आशय से य की सम्मति से य पर वह शल्य क्रिया करता है । क ने कोई अपराध नहीं किया है ।


खंड- 27. संरक्षक द्वारा या उसकी सम्मति से बालक या विकृत्त चित्त वाले व्यक्ति के फायदे के लिए सद्भावपूर्वक किया गया कार्य ।

कोई बात, जो बारह वर्ष से कम आयु के व्यक्ति या विकृत्त चित्त वाले व्यक्ति के फायदे के लिए स‌द्भावपूर्वक उसके संरक्षक की या विधिपूर्ण भारसाधक किसी अन्य व्यक्ति द्वारा या अभिव्यक्त या विवक्षित सम्मति से, की जाए, किसी ऐसी अपहानि के कारण, अपराध नहीं है जो उस बात से उस व्यक्ति को कारित हो, या कारित करने का कर्ता का आशय हो या कारित होने की संभाव्यता कर्ता को ज्ञात हो :

परन्तु इस अपवाद का विस्तार, -

(क) साशय मृत्यु कारित करने या मृत्यु कारित करने का प्रयत्न करने पर न होगा ;

(ख) मृत्यु या घोर उपहति के निवारण के या किसी घोर रोग या अंगशैथिल्य से मुक्त करने के प्रयोजन से भिन्न किसी प्रयोजन के लिए किसी ऐसी बात के करने पर न होगा जिसे करने वाला व्यक्ति जानता हो कि उससे मृत्यु कारित होना संभाव्य है ; (ग) स्वेच्छया घोर उपहति कारित करने या घोर उपहति कारित करने का प्रयत्न करने पर न होगा जब तक कि वह मृत्यु या घोर उपहति के निवारण के, या किसी घोर रोग या अंगशैथिल्य से मुक्त करने के प्रयोजन से न की गई हो ;

(घ) किसी ऐसे अपराध के दुष्प्रेरण पर न होगा जिस अपराध के किए जाने पर इसका विस्तार नहीं है ।

दृष्टांत

क स‌द्भावपूर्वक, अपने बालक के फायदे के लिए अपने बालक की सम्मति के बिना, यह संभाव्य जानते हुए कि शस्त्रकर्म से उस बालक की मृत्यु कारित होगी, न कि इस आशय से कि उस बालक को मृत्यु कारित कर दे, शल्यचिकित्सक द्वारा पथरी निकलवाने के लिए अपने बालक की शल्यक्रिया करवाता है । क का उद्देश्य बालक को रोगमुक्त कराना था, इसलिए वह इस अपवाद के अंतर्गत आता है ।


खंड- 28. सम्मति, जिसके संबंध में यह ज्ञात हो कि वह भय या भ्रम के अधीन दी गई है।

कोई सम्मति ऐसी सम्मति नहीं है, जैसी इस संहिता की किसी धारा से आशयित है, -

(क) यदि वह सम्मति किसी व्यक्ति ने क्षति के भय के अधीन, या तथ्य के किसी भ्रम के अधीन दी हो, और यदि कार्य करने वाला व्यक्ति यह जानता हो, या उसके पास विश्वास करने का कारण हो, कि ऐसे भय या भ्रम के परिणामस्वरूप वह सम्मति दी गई थी; या

(ख) यदि वह सम्मति ऐसे व्यक्ति ने दी हो, जो चित्त-विकृति, या मत्तता के कारण, उस बात की, जिसके लिए वह अपनी सम्मति देता है, प्रकृति और परिणाम को समझने में असमर्थ हो; या

(ग) जब तक कि संदर्भ से तत्प्रतिकूल प्रतीत न हो, यदि वह सम्मति ऐसे व्यक्ति ने दी हो, जो बारह वर्ष से कम आयु का है ।


खंड- 29. ऐसे कार्यों का अपवर्जन जो कारित अपहानि के बिना भी स्वतः अपराध है ।

धारा 25, धारा 26 और धारा 27 के अपवादों का विस्तार उन कार्यों पर नहीं है, जो उस अपहानि के बिना भी स्वतः अपराध है जो उस व्यक्ति को, जो सम्मति देता है या जिसकी ओर से सम्मति दी जाती है, उन कार्यों से कारित हो, या कारित किए जाने का आशय हो, या कारित होने की संभाव्यता ज्ञात हो ।

दृष्टांत

गर्भपात कराना (जब तक कि वह उस महिला का जीवन बचाने के प्रयोजन से स‌द्भावपूर्वक कारित न किया गया हो) किसी अपहानि के बिना भी, जो उसने उस महिला को कारित हो या कारित करने का आशय हो, स्वतः अपराध है । इसलिए वह ऐसी अपहानि के कारण अपराध नहीं है; और ऐसा गर्भपात कराने की उस महिला की या उसके संरक्षक की सम्मति उस कार्य को न्यायानुमत नहीं बनाती ।


खंड- 30. सम्मति के बिना किसी व्यक्ति के फायदे के लिए स‌द्भावपूर्वक किया गया कार्य ।

कोई बात जो किसी व्यक्ति के फायदे के लिए सद्भावपूर्वक यद्यपि, उसकी सम्मति के बिना, की गई है, ऐसी किसी अपहानि के कारण, जो उस बात से उस व्यक्ति को कारित हो जाए, अपराध नहीं है, यदि परिस्थितियां ऐसी हों कि उस व्यक्ति के लिए यह असंभव हो कि वह अपनी सम्मति प्रकट करे या वह व्यक्ति सम्मति देने के लिए असमर्थ हो और उसका कोई संरक्षक या उसका विधिपूर्ण भारसाधक कोई दूसरा व्यक्ति न हो जिससे ऐसे समय पर सम्मति अभिप्राप्त करना संभव हो कि वह बात फायदे के साथ की जा सके :

परन्तु, -

(क) इस अपवाद का विस्तार साशय मृत्यु कारित करने या मृत्यु कारित करने का प्रयत्न करने पर न होगा ;

(ख) इस अपवाद का विस्तार मृत्यु या घोर उपहति के निवारण के या किसी घोर रोग या अंगशैथिल्य से मुक्त करने के प्रयोजन से भिन्न किसी प्रयोजन के लिए किसी ऐसी बात के करने पर न होगा, जिसे करने वाला व्यक्ति जानता हो कि उससे मृत्यु कारित होना संभाव्य है ;

(ग) इस अपवाद का विस्तार मृत्यु या उपहति के निवारण के प्रयोजन से भिन्न किसी प्रयोजन के लिए स्वेच्छया उपहति कारित करने या उपहति कारित करने का प्रयत्न करने पर न होगा ;

(घ) इस अपवाद का विस्तार किसी ऐसे अपराध के दुष्प्रेरण पर न होगा जिस अपराध के किए जाने पर इसका विस्तार नहीं है ।

दृष्टांत

(1) य अपने घोड़े से गिर गया और मूर्छित हो गया । क एक शल्यचिकित्सक का यह विचार है कि य के कपाल पर शल्यक्रिया आवश्यक है। क, य की मृत्यु करने का आशय न रखते हुए, किंतु स‌द्भावपूर्वक य के फायदे के लिए, य के स्वयं किसी निर्णय पर पहुंचने की शक्ति प्राप्त करने से पूर्व ही कपाल पर शल्यक्रिया करता है । क ने कोई अपराध नहीं किया ।

(2) य को एक बाघ उठा ले जाता है । यह जानते हुए कि संभाव्य है कि गोली लगने से य मर जाए, किंतु य का वध करने का आशय न रखते हुए और स‌द्भावपूर्वक य के फायदे के आशय से क उस बाघ पर गोली चलाता है । क की गोली से य को मृत्युकारक घाव हो जाता है। क ने कोई अपराध नहीं किया ।

(3) क, एक शल्यचिकित्सक, यह देखता है कि एक बालक की ऐसी दुर्घटना हो गई है जिसका प्राणांतक साबित होना संभाव्य है, यदि शस्त्रकर्म तुरंत न कर दिया जाए । इतना समय नहीं है कि उस बालक के संरक्षक से आवेदन किया जा सके । क, स‌द्भावपूर्वक बालक के फायदे का आशय रखते हुए बालक के अन्यथा अनुनय करने पर भी शस्त्रकर्म करता है । क ने कोई अपराध नहीं किया ।

(4) एक बालक य के साथ क एक जलते हुए गृह में है। गृह के नीचे लोग एक कंबल तान लेते हैं । क उस बालक को यह जानते हुए कि संभाव्य है कि गिरने से वह बालक मर जाए किंतु उस बालक को मार डालने का आशय न रखते हुए और स‌द्भावपूर्वक उस बालक के फायदे के आशय से गृह छत पर से नीचे गिरा देता है। यहां, यदि गिरने से वह बालक मर भी जाता है, तो भी क ने कोई अपराध नहीं किया ।

स्पष्टीकरण-केवल धन संबंधी फायदा वह फायदा नहीं है, जो धारा 26, धारा 27 और इस धारा के अर्थान्तर्गत आता है ।


खंड- 31. स‌द्भावपूर्वक दी गई संसूचना ।

स‌द्भावपूर्वक दी गई संसूचना उस अपहानि के कारण अपराध नहीं है, जो उस व्यक्ति को हो जिसे वह दी गई है, यदि वह उस व्यक्ति के फायदे के लिए दी गई हो ।

दृष्टांत

क, एक शल्यचिकित्सक, एक रोगी को स‌द्भावपूर्वक यह संसूचित करता है कि उसकी राय में वह जीवित नहीं रह सकता । इस आघात के परिणामस्वरूप उस रोगी की मृत्यु हो जाती है । क ने कोई अपराध नहीं किया है, यद्यपि वह जानता था कि उस संसूचना से उस रोगी की मृत्यु कारित होना संभाव्य है ।


खंड- 32. वह कार्य जिसको करने के लिए कोई व्यक्ति धमकियों द्वारा विवश किया गया है ।

हत्या और मृत्यु से दंडनीय उन अपराधों को, जो राज्य के विरुद्ध हैं, छोड़कर कोई बात अपराध नहीं है, जो ऐसे व्यक्ति द्वारा की जाए जो उसे करने के लिए ऐसी धमकियों से विवश किया गया हो जिनसे उस बात को करते समय उसको युक्तियुक्त रूप से यह आशंका कारित हो गई हो कि अन्यथा परिणाम यह होगा कि उस व्यक्ति की तत्काल मृत्यु हो जाए :

परन्तु यह तब जबकि उस कार्य को करने वाले व्यक्ति ने अपनी ही इच्छा से या तत्काल मृत्यु से कम अपनी अपहानि की युक्तियुक्त आशंका से अपने को उस स्थिति में न डाला हो, जिसमें कि वह ऐसी मजबूरी के अधीन पड़ गया है ।

स्पष्टीकरण 1-वह व्यक्ति, जो स्वयं अपनी इच्छा से, या पीटे जाने की धमकी के कारण, डाकुओं की टोली में उनके शील को जानते हुए सम्मिलित हो जाता है, इस आधार पर ही इस अपवाद का फायदा उठाने का हकदार नहीं कि वह अपने साथियों द्वारा ऐसी बात करने के लिए विवश किया गया था जो विधिना अपराध है ।

स्पष्टीकरण 2-डाकुओं की एक टोली द्वारा अभिगृहीत और तत्काल मृत्यु की धमकी द्वारा किसी बात के करने के लिए, जो विधिना अपराध है, विवश किया गया व्यक्ति, उदाहरणार्थ, एक लोहार, जो अपने औजार लेकर एक गृह का द्वार तोड़ने को विवश किया जाता है, जिससे डाकू उसमें प्रवेश कर सकें और उसे लूट सकें, इस अपवाद का फायदा उठाने के लिए हकदार है ।


खंड- 33. तुच्छ अपहानि कारित करने वाला कार्य ।

कोई बात इस कारण से अपराध नहीं है कि उससे कोई अपहानि कारित होती है या कारित की जानी आशयित है या कारित होने की संभाव्यता ज्ञात है, यदि वह इतनी तुच्छ है कि मामूली समझ और स्वभाव वाला कोई व्यक्ति उसकी शिकायत न करेगा ।


खंड- 34. प्राइवेट प्रतिरक्षा में की गई बातें ।

कोई बात अपराध नहीं है, जो प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार के प्रयोग में किया जाता है ।


खंड- 35. शरीर तथा संपत्ति की प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार ।

धारा 37 में अंतर्विष्ट निर्बन्धनों के अध्यधीन, प्रत्येक व्यक्ति को अधिकार है कि, वह-

(क) मानव शरीर पर प्रभाव डालने वाले किसी अपराध के विरुद्ध अपने शरीर और किसी अन्य व्यक्ति के शरीर की प्रतिरक्षा करे ;

(ख) किसी ऐसे कार्य के विरुद्ध, जो चोरी, लूट, रिष्टि या आपराधिक अतिचार की परिभाषा में आने वाला अपराध है, या जो चोरी, लूट, रिष्टि या आपराधिक अतिचार करने का प्रयत्न है, अपनी या किसी अन्य व्यक्ति की, चाहे जंगम, चाहे स्थावर संपत्ति की प्रतिरक्षा करे ।


खंड- 36. ऐसे व्यक्ति के कार्य के विरुद्ध प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार, जो विकृत्त चित्त व्यक्ति हो ।

जब कोई कार्य, जो अन्यथा कोई अपराध होता, उस कार्य को करने वाले व्यक्ति के बालकपन, समझ की परिपक्वता के अभाव, चित्त-विकृत्ति या मत्तता के कारण, या उस व्यक्ति के किसी भ्रम के कारण, वह अपराध नहीं है, तब प्रत्येक व्यक्ति उस कार्य के विरुद्ध प्राइवेट प्रतिरक्षा का वही अधिकार रखता है, जो वह उस कार्य के वैसा अपराध होने की दशा में रखता ।

दृष्टांत

(क) य, विकृत्त चित्त व्यक्ति, क को जान से मारने का प्रयत्न करता है । य किसी अपराध का दोषी नहीं है। किन्तु क को प्राइवेट प्रतिरक्षा का वही अधिकार है, जो वह य के स्वस्थचित्त होने की दशा में रखता ।

(ख) क रात्रि में एक ऐसे गृह में प्रवेश करता है जिसमें प्रवेश करने के लिए वह वैध रूप से हकदार है । य, स‌द्भावपूर्वक क को गृह-भेदक समझकर, क पर आक्रमण करता है । यहां य इस भ्रम के अधीन क पर आक्रमण करके कोई अपराध नहीं करता है किंतु क, य के विरुद्ध प्राइवेट प्रतिरक्षा का वही अधिकार रखता है, जो वह तब रखता, जब य उस भ्रम के अधीन कार्य न करता ।


खंड- 37. कार्य, जिनके विरुद्ध प्राइवेट प्रतिरक्षा का कोई अधिकार नहीं है ।

(1) प्राइवेट प्रतिरक्षा का कोई अधिकार नहीं है, -

(क) यदि कोई कार्य, जिससे मृत्यु या घोर उपहति की आशंका युक्तियुक्त रूप से कारित नहीं होती, स‌द्भावपूर्वक अपने पदाभास में कार्य करते हुए लोक सेवक द्वारा किया जाता है या किए जाने का प्रयत्न किया जाता है तो चाहे वह कार्य विधि द्वारा सर्वथा न्यायानुमत न भी हो ;

(ख) यदि कोई कार्य, जिससे मृत्यु या घोर उपहति की आशंका युक्तियुक्त रूप से कारित नहीं होती, स‌द्भावपूर्वक अपने पदाभास में कार्य करते हुए लोक सेवक के निदेश से किया जाता है, या किए जाने का प्रयत्न किया जाता है, चाहे वह निदेश विधि द्वारा सर्वथा न्यायानुमत न भी हो ;

(ग) उन मामलों में, जिनमें संरक्षा के लिए लोक प्राधिकारियों की सहायता प्राप्त करने के लिए समय है ।

(2) किसी भी मामले में, प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का विस्तार उतनी अपहानि से अधिक अपहानि करने पर नहीं है, जितनी प्रतिरक्षा के प्रयोजन से करना आवश्यक है ।

स्पष्टीकरण 1 कोई व्यक्ति किसी लोक सेवा द्वारा ऐसे लोक सेवक के नाते किए गए या किए जाने के लिए प्रयतित, कार्य के विरुद्ध प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार से तब तक वंचित नहीं होता, जब तक कि वह यह न जानता हो, या विश्वास करने का कारण न रखता हो, कि उस कार्य को करने वाला व्यक्ति ऐसा लोक सेवक है ।

स्पष्टीकरण 2 कोई व्यक्ति किसी लोक सेवक के निदेश से किए गए, या किए जाने के लिए प्रयतित, किसी कार्य के विरुद्ध प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार से तब तक वंचित नहीं होता, जब तक कि वह यह न जानता हो, या विश्वास करने का कारण न रखता हो, कि उस कार्य को करने वाला व्यक्ति ऐसे निदेश से कार्य कर रहा है, या जब तक कि वह व्यक्ति उस प्राधिकार का कथन न कर दे, जिसके अधीन वह कार्य कर रहा है, या यदि उसके पास लिखित प्राधिकार है, जो जब तक कि वह ऐसे प्राधिकार को मांगे जाने पर पेश न कर दे ।


खंड- 38. शरीर की प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का विस्तार मृत्यु कारित करने पर कब होता है ।

शरीर की प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का विस्तार, पूर्ववर्ती अंतिम धारा 37 में वर्णित निर्बन्धनों के अधीन रहते हुए, हमलावर की स्वेच्छया मृत्यु कारित करने या कोई अन्य अपहानि कारित करने तक है, यदि वह अपराध, जिसके कारण ऐसे अधिकार के प्रयोग का अवसर आता है, एतस्मिनपश्चात् प्रगणित भांतियों में से किसी भी भांति का है, अर्थात् :-

(क) ऐसा हमला, जिससे युक्तियुक्त रूप से यह आशंका कारित हो कि अन्यथा ऐसे हमले का परिणाम मृत्यु होगा ;

(ख) ऐसा हमला, जिससे युक्तियुक्त रूप से यह आशंका कारित हो कि अन्यथा ऐसे हमले का परिणाम घोर उपहति होगा ;

(ग) बलात्संग करने के आशय से किया गया कोई हमला ;

(घ) प्रकृति-विरुद्ध काम-तृष्णा की तृप्ति के आशय से किया गया कोई हमला ; (ङ) व्यपहरण या अपहरण करने के आशय से किया गया कोई हमला ;

(च) इस आशय से किया गया कोई हमला कि किसी व्यक्ति का ऐसी परिस्थितियों में सदोष परिरोध किया जाए, जिनसे उसे युक्तियुक्त रूप से यह आशंका कारित हो कि वह अपने को छुड़वाने के लिए लोक प्राधिकारियों की सहायता प्राप्त नहीं कर सकेगा ;

(छ) अम्ल फेंकने या देने का कृत्य, या अम्ल फेंकने या देने का प्रयास करना जिससे युक्तियुक्त रूप से यह आंशका कारित हो कि ऐसे कृत्य के परिणामस्वरूप अन्यथा घोर उपहति कारित होगी ।


खंड- 39. कब ऐसे अधिकार का विस्तार मृत्यु से भिन्न कोई अपहानि कारित करने तक का होता है।

यदि अपराध पूर्वगामी धारा 38 में प्रगणित भांतियों में से किसी भांति का नहीं है, तो शरीर की प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का विस्तार हमलावर की मृत्यु स्वेच्छया कारित करने तक का नहीं होता, किंतु इस अधिकार का विस्तार धारा 37 में वर्णित निर्बन्धनों के अध्यधीन हमलावर की मृत्यु से भिन्न कोई अपहानि स्वेच्छया कारित करने तक का होता है ।


खंड- 40. शरीर की प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का प्रारंभ और बना रहना ।

शरीर की प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार उसी क्षण प्रारंभ हो जाता है, जब अपराध करने के प्रयत्न या धमकी से शरीर के संकट की युक्तियुक्त आशंका पैदा होती है, चाहे वह अपराध किया न गया हो, और वह तब तक बना रहता है जब तक शरीर के संकट की ऐसी आशंका बनी रहती है ।


खंड- 41. कब संपत्ति की प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का विस्तार मृत्यु कारित करने तक का होता है ।

संपत्ति की प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का विस्तार, धारा 37 में वर्णित निर्बन्धनों के अध्यधीन दोषकर्ता की मृत्यु या अन्य अपहानि स्वेच्छया कारित करने तक का है, यदि वह अपराध जिसके किए जाने के, या किए जाने के प्रयत्न के कारण उस अधिकार के प्रयोग का अवसर आता है, इसके पश्चात् प्रगणित भांतियों में से किसी भी भांति का है, अर्थात्:-

(क) लूट;

(ख) रात्रौ गृह-भेदन ;

(ग) अग्नि या किसी विस्फोटक पदार्थ द्वारा रिष्टि, जो किसी ऐसे निर्माण, तंबू या जलयान को की गई है, जो मानव आवास के रूप में या संपत्ति की अभिरक्षा के स्थान के रूप में उपयोग में लाया जाता है ;

(घ) चोरी, रिष्टि या गृह-अतिचार, जो ऐसी परिस्थितियों में किया गया है, जिनसे युक्तियुक्ति रूप से यह आशंका कारित हो कि यदि प्राइवेट प्रतिरक्षा के ऐसे अधिकार का प्रयोग न किया गया तो परिणाम मृत्यु या घोर उपहति होगा ।


खंड- 42. ऐसे अधिकार का विस्तार मृत्यु से भिन्न कोई अपहानि कारित करने तक का कब होता है ।

यदि वह अपराध, जिसके किए जाने या किए जाने के प्रयत्न से प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार के प्रयोग का अवसर आता है, ऐसी चोरी, रिष्टि या आपराधिक अतिचार है, जो धारा 41 में प्रगणित भांतियों में से किसी भांति का न हो, तो उस अधिकार का विस्तार स्वेच्छया मृत्यु कारित करने तक का नहीं होता किन्तु उसका विस्तार धारा 37 में वर्णित निर्बंधनों के अध्यधीन दोषकर्ता की मृत्यु से भिन्न कोई अपहानि स्वेच्छया कारित करने तक का होता है ।


खंड- 43. सम्पत्ति की प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का प्रारंभ और बना रहना ।

सम्पत्ति की प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार, -

(क) तब प्रारंभ होता है, जब सम्पत्ति के संकट की युक्तियुक्त आशंका प्रारंभ होती है ;

(ख) चोरी के विरुद्ध अपराधी के संपत्ति सहित पहुंच से बाहर हो जाने तक या या तो लोक प्राधिकारियों की सहायता अभिप्राप्त कर लेने या संपत्ति प्रत्युद्धृत हो जाने तक बना रहता है;

(ग) लूट के विरुद्ध तब तक बना रहता है, जब तक अपराधी किसी व्यक्ति की मृत्यु या उपहति, या सदोष अवरोध कारित करता रहता या कारित करने का प्रयत्न करता रहता है, या जब तक तत्काल मृत्यु का, या तत्काल उपहति का, या तत्काल वैयक्तिक अवरोध का, भय बना रहता है ;

(घ) आपराधिक अतिचार या रिष्टि के विरुद्ध तब तक बना रहता है, जब तक अपराधी आपराधिक अतिचार या रिष्टि करता रहता है ;

(ङ) रात्रौ गृह-भेदन के विरुद्ध तब तक बना रहता है, जब तक ऐसे गृहभेदन से आरंभ हुआ गृह-अतिचार होता रहता है ।


खंड- 44. घातक हमले के विरुद्ध प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार जबकि निर्दोष व्यक्ति को अपहानि होने की जोखिम है ।

जिस हमले से मृत्यु की आशंका युक्तियुक्त रूप से कारित होती है, उसके विरुद्ध प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का प्रयोग करने में यदि प्रतिरक्षक ऐसी स्थिति में हो कि निर्दोष व्यक्ति की अपहानि की जोखिम के बिना वह उस अधिकार का प्रयोग कार्यसाधक रूप से न कर सकता हो तो उसके प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का विस्तार वह जोखिम उठाने तक का है ।

दृष्टांत

क पर एक भीड़ द्वारा आक्रमण किया जाता है, जो उसकी हत्या करने का प्रयत्न करती है । वह उस भीड़ पर गोली चलाए बिना प्राइवेट प्रतिरक्षा के अपने अधिकार का प्रयोग कार्यसाधक रूप से नहीं कर सकता, और वह भीड़ में मिले हुए छोटे-छोटे बालकों की अपहानि करने की जोखिम उठाए बिना गोली नहीं चला सकता । यदि वह इस प्रकार गोली चलाने से उन बालकों में से किसी बालक को अपहानि करे तो क कोई अपराध नहीं करता ।

अध्याय 4- दुष्प्रेरण, आपराधिक षड्यंत्र और प्रयास के विषय में

खंड- 45. किसी बात का दुष्प्रेरण ।

वह व्यक्ति किसी बात के किए जाने का दुष्प्रेरण करता है, जो-

(क) उस बात को करने के लिए किसी व्यक्ति को उकसाता है; या

(ख) उस बात को करने के लिए किसी षड्यंत्र में एक या अधिक अन्य व्यक्ति या व्यक्तियों के साथ सम्मिलित होता है, यदि उस षड्यंत्र के अनुसरण में, और उस बात को करने के उद्देश्य से, कोई कार्य या अवैध लोप घटित हो जाए; या

(ग) उस बात के लिए किए जाने में किसी कार्य या अवैध लोप द्वारा जानबूझकर सहायता करता है ।

स्पष्टीकरण 1-जो कोई व्यक्ति जानबूझकर दुर्व्यपदेशन द्वारा, या किसी तात्त्विक तथ्य, जिसे प्रकट करने के लिए वह आबद्ध है, जानबूझकर छिपाने द्वारा, स्वेच्छया किसी बात का किया जाना कारित या उपाप्त करता है या कारित या उपाप्त करने का प्रयत्न करता है, यह कहा जाता है कि वह उस कृत्य का किया जाना दुष्प्रेरित करता है ।

दृष्टांत

क, एक लोक अधिकारी, न्यायालय के वारन्ट द्वारा य को पकड़ने के लिए प्राधिकृत है । ख उस तथ्य को जानते हुए और यह भी जानते हुए कि ग, य, नहीं है, क को जानबूझकर यह व्यपदिष्ट करता है कि ग, य है, और एतद्वारा जानबूझकर क से य को पकड़वाता है । यहां ख, ग के पकड़े जाने का उकसाने द्वारा दुष्प्रेरण करता है ।

स्पष्टीकरण 2-जो कोई या तो किसी कार्य के किए जाने से पूर्व या किए जाने के समय, उस कार्य के किए जाने को सुकर बनाने के लिए कोई बात करता है और तद्वारा उसके किए जाने को सुकर बनाता है, वह उस कार्य के करने में सहायता करता है, यह कहा जाता है ।


खंड- 46. दुष्प्रेरक ।

कोई व्यक्ति अपराध का दुष्प्रेरण करता है, जो या तो अपराध कारित करने का या ऐसे कृत्य को कारित करने का, जो अपराध होता, यदि वह उसी आशय या ज्ञान से किया जाता, जो दुष्प्रेरक का है, यदि अपराध कारित करने के लिए विधि द्वारा समर्थ व्यक्ति द्वारा किया जाता है ।

स्पष्टीकरण 1-किसी कार्य के अवैध लोप का दुष्प्रेरण अपराध की कोटि में आ सकेगा, चाहे दुष्प्रेरक उस कार्य को करने के लिए स्वयं आबद्ध न हो ।

स्पष्टीकरण 2- दुष्प्रेरण का अपराध गठित होने के लिए यह आवश्यक नहीं है कि दुष्प्रेरित कार्य किया जाए या अपराध गठित करने के लिए अपेक्षित प्रभाव कारित हो ।

दृष्टांत

(क) ग की हत्या करने के लिए ख को क उकसाता है । ख वैसा करने से इन्कार कर देता है । क हत्या करने के लिए ख के दुष्प्रेरण का दोषी है ।

(ख) घ की हत्या करने के लिए ख को क उकसाता है । ख ऐसी उकसाहट के अनुसरण में घ को विद्ध करता है। घ का घाव अच्छा हो जाता है । क हत्या करने के लिए ख को उकसाने का दोषी है ।

स्पष्टीकरण 3- यह आवश्यक नहीं है कि दुष्प्रेरित व्यक्ति अपराध करने के लिए विधि-अनुसार समर्थ हो, या उसका वही दूषित आशय या ज्ञान हो, जो दुष्प्रेरक का है, या कोई भी दूषित आशय या ज्ञान हो ।

दृष्टांत

(क) क दूषित आशय से एक बालक या विकृत्त चित्त व्यक्ति को वह कार्य करने के लिए दुष्प्रेरित करता है, जो यदि वह ऐसे व्यक्ति द्वारा किया जाए जो कोई अपराध करने के लिए विधि-अनुसार समर्थ है और वही आशय रखता है जो कि क का है, तो अपराध होगा । इस प्रकार, वह कार्य किया जाए या न किया जाए, क अपराध के दुष्प्रेरण का दोषी है ।

(ख) य की हत्या करने के आशय से ख को, जो सात वर्ष से कम आयु का बालक है, वह कार्य करने के लिए क उकसाता है जिससे य की मृत्यु कारित हो जाती है । ख दुष्प्रेरित के परिणामस्वरूप वह कार्य क की अनुपस्थिति में करता है और उससे य की मृत्यु कारित करता है । यहां यद्यपि ख वह अपराध करने के लिए विधि-अनुसार समर्थ नहीं था, तथापि क उसी प्रकार से दण्डनीय है, मानो ख वह अपराध करने के लिए विधि-अनुसार समर्थ हो और उसने हत्या की हो, और इसलिए क मृत्यु दण्ड से दण्डनीय है ।

(ग) ख को एक निवासगृह में आग लगाने के लिए क उकसाता है । ख चित्त-विकृति के परिणामस्वरूप उस कार्य की प्रकृति या यह कि वह जो कुछ कर रहा है वह दोषपूर्ण या विधि के प्रतिकूल है जानने में असमर्थ होने के कारण क के उकसाने के परिणामस्वरूप उस गृह में आग लगा देता है । ख ने कोई अपराध नहीं किया है, किन्तु क एक निवासगृह में आग लगाने के अपराध के दुष्प्रेरण का दोषी है, और उस अपराध के लिए उपबन्धित दण्ड से दण्डनीय है ।

(घ) क चोरी कराने के आशय से य के कब्जे में से य की सम्पत्ति लेने के लिए ख को उकसाता है । ख को यह विश्वास करने के लिए क उत्प्रेरित करता है कि वह सम्पत्ति क की है । ख उस सम्पत्ति का इस विश्वास से कि वह क की सम्पत्ति है, य के कब्जे में से स‌द्भावपूर्वक ले लेता है । ख इस भ्रम के अधीन कार्य करते हुए, उसे बेईमानी से नहीं लेता, और इसलिए चोरी नहीं करता; किन्तु क चोरी के दुष्प्रेरण का दोषी है, और उसी दण्ड से दण्डनीय है, मानो ख ने चोरी की हो ।

स्पष्टीकरण 4–अपराध का दुष्प्रेरण अपराध होने के कारण ऐसे दुष्प्रेरण का दुष्प्रेरण भी अपराध है ।

दृष्टांत

ग को य की हत्या करने को उकसाने के लिए ख को क उकसाता है । ख तदनुकूल य की हत्या करने के लिए ख को उकसाता है और ख के उकसाने के परिणामस्वरूप ग उस अपराध को करता है । ख अपने अपराध के लिए हत्या के दण्ड से दण्डनीय है, और क ने उस अपराध को करने के लिए ख को उकसाया, इसलिए क भी उसी दण्ड से दण्डनीय है ।

स्पष्टीकरण 5-षड्यंत्र द्वारा दुष्प्रेरण का अपराध करने के लिए यह आवश्यक नहीं है कि दुष्प्रेरक उस अपराध को करने वाले व्यक्ति के साथ मिलकर उस अपराध की योजना बनाए । यह पर्याप्त है कि उस षड्यंत्र में सम्मिलित हो जिसके अनुसरण में वह अपराध किया जाता है ।

दृष्टांत

य को विष देने के लिए क एक योजना ख से मिलकर बनाता है । यह सहमति हो जाती है कि क विष देगा । ख तब यह वर्णित करते हुए ग को वह योजना समझा देता है कि कोई तीसरा व्यक्ति विष देगा, किन्तु क का नाम नहीं लेता । ग विष उपाप्त करने के लिए सहमत हो जाता है, और उसे उपाप्त करके समझाए गए प्रकार से प्रयोग में लाने के लिए ख को परिदत्त करता है । क विष देता है, परिणामस्वरूप य की मृत्यु हो जाती है । यहां, यद्यपि क और ग ने मिलकर षड्यंत्र नहीं रचा है, तो भी ग उस षड्यंत्र में सम्मिलित रहा है, जिसके अनुसरण में य की हत्या की गई है। इसलिए ग ने इस धारा में परिभाषित अपराध किया है और हत्या के लिए दण्ड से दण्डनीय है ।


खंड- 47. भारत से बाहर के अपराधों का भारत में दुष्प्रेरण ।

वह व्यक्ति इस संहिता के अर्थ के अन्तर्गत अपराध का दुष्प्रेरण करता है, जो भारत से बाहर और उससे परे किसी ऐसे कार्य के किए जाने का भारत में दुष्प्रेरण करता है जो अपराध होगा, यदि भारत में किया जाए।

दृष्टांत

क भारत में ख को, जो एक्स देश में विदेशीय है, उस देश में हत्या करने के लिए उकसाता है । क हत्या के दुष्प्रेरण का दोषी है ।


खंड- 48. भारत में अपराधों का भारत से बाहर दुष्प्रेरण ।

वह व्यक्ति इस संहिता के अर्थ के अन्तर्गत अपराध का दुष्प्रेरण करता है, जो भारत से बाहर और उससे परे किसी ऐसे कार्य के किए जाने का भारत में दुष्प्रेरण करता है जो अपराध होगा, यदि भारत में किया जाए ।

दृष्टांत

क एक्स देश में ख को, भारत में हत्या करने के लिए उकसाता है। क हत्या के दुष्प्रेरण का दोषी है ।


खंड- 49. दुष्प्रेरण का दण्ड, यदि दुष्प्रेरित कार्य उसके परिणामस्वरूप किया जाए, और जहां कि उसके दण्ड के लिए कोई अभिव्यक्त उपबन्ध नहीं है ।

जो कोई किसी अपराध का दुष्प्रेरण करता है, यदि दुष्प्रेरित कार्य दुष्प्रेरण के परिणामस्वरूप किया जाता है, और ऐसे दुष्प्रेरण के दण्ड के लिए इस संहिता द्वारा कोई अभिव्यक्त उपबन्ध नहीं किया गया है, तो वह उस दण्ड से दण्डित किया जाएगा, जो उस अपराध के लिए उपबन्धित है ।

स्पष्टीकरण-कोई कार्य या अपराध दुष्प्रेरण के परिणामस्वरूप किया गया तब कहा जाता है, जब वह उस उकसाहट के परिणामस्वरूप या उस षड्यंत्र के अनुसरण में या उस सहायता से किया जाता है, जिससे दुष्प्रेरण गठित होता है ।

दृष्टांत

(क) ख को मिथ्या साक्ष्य देने के लिए क उकसाता है । ख उस उकसाहट के परिणामस्वरूप, वह अपराध करता है । क उस अपराध के दुष्प्रेरण का दोषी है, और उसी दण्ड से दण्डनीय है जिससे ख है ।

(ख) य को विष देने का षड्यंत्र क और ख रचते हैं । क उस षड्यंत्र के अनुसरण में विष उपाप्त करता है और उसे ख को इसलिए परिदत्त करता है कि वह उसे य को दे । ख उस षड्यंत्र के अनुसरण में वह विष क की अनुपस्थिति में य को देता है और उसके द्वारा य की मृत्यु कारित कर देता है। यहां, ख हत्या का दोषी है । क षड्यंत्र द्वारा उस अपराध के दुष्प्रेरण का दोषी है, और वह हत्या के लिए दण्ड से दण्डनीय है ।


खंड- 50. दुष्प्रेरण का दण्ड, यदि दुष्प्रेरित व्यक्ति दुष्प्रेरक के आशय से भिन्न आशय से कार्य करता है ।

जो कोई किसी अपराध के किए जाने का दुष्प्रेरण करता है, यदि दुष्प्रेरित व्यक्ति ने दुष्प्रेरक के आशय या ज्ञान से भिन्न आशय या ज्ञान से वह कार्य किया हो, तो वह उसी दण्ड से दण्डित किया जाएगा, जो उस अपराध के लिए उपबन्धित है, जो किया जाता यदि वह कार्य दुष्प्रेरक के ही आशय या ज्ञान से, न कि किसी अन्य आशय या ज्ञान से, किया जाता ।


खंड- 51. दुष्प्रेरक का दायित्व जब एक कार्य का दुष्प्रेरण किया गया है और उससे भिन्न कार्य किया गया है ।

जब किसी एक कार्य का दुष्प्रेरण किया जाता है, और कोई भिन्न कार्य किया जाता है, तब दुष्प्रेरक उस किए गए कार्य के लिए उसी प्रकार से और उसी विस्तार तक दायित्व के अधीन है, मानो उसने सीधे उसी कार्य का दुष्प्रेरण किया हो :

परन्तु यह तब जब कि किया गया कार्य दुष्प्रेरण का अधिसम्भाव्य परिणाम था और उस उकसाहट के असर के अधीन या उस सहायता से या उस षड्यंत्र के अनुसरण में किया गया था जिससे वह दुष्प्रेरण गठित होता है ।

दृष्टांत

(क) एक बालक को य के भोजन में विष डालने के लिए क उकसाता है, और उस प्रयोजन से उसे विष परिदत्त करता है । वह बालक उस उकसाहट के परिणामस्वरूप भूल से म के भोजन में, जो य के भोजन के पास रखा हुआ है, विष डाल देता है। यहां, यदि वह बालक क के उकसाने के असर के अधीन उस कार्य को कर रहा था, और किया गया कार्य उन परिस्थितियों में उस दुष्प्रेरण का अधिसम्भाव्य परिणाम है, तो क उसी प्रकार और उसी विस्तार तक दायित्व के अधीन है, मानो उसने उस बालक को म के भोजन में विष डालने के लिए उकसाया हो ।

(ख) ख को य का गृह जलाने के लिए क उकसाता है । ख उस गृह को आग लगा देता है और उसी समय वहां सम्पत्ति की चोरी करता है । क यद्यपि गृह को जलाने के दुष्प्रेरण का दोषी है, किन्तु चोरी के दुष्प्रेरण का दोषी नहीं है; क्योंकि वह चोरी एक अलग कार्य थी और उस गृह जलाने का अधिसम्भाव्य परिणाम नहीं थी ।

(ग) ख और ग को बसे हुए गृह में अर्धरात्रि में लूट के प्रयोजन से भेदन करने के लिए क उकसाता है, और उनको उस प्रयोजन के लिए आयुध देता है । ख और ग वह गृह-भेदन करते हैं, और य द्वारा जो निवासियों में से एक है, प्रतिरोध किए जाने पर, य की हत्या कर देते हैं । यहां, यदि वह हत्या उस दुष्प्रेरण का अधिसम्भाव्य परिणाम थी, तो क हत्या के लिए उपबन्धित दण्ड से दण्डनीय है ।


खंड- 52. दुष्प्रेरक कब दुष्प्रेरित कार्य के लिए और किए गए कार्य के लिए आकलित दण्ड से दण्डनीय है ।

यदि वह कार्य, जिसके लिए दुष्प्रेरक धारा 51 के अनुसार दायित्व के अधीन है, दुष्प्रेरित कार्य के अतिरिक्त किया जाता है और वह कोई सुभिन्न अपराध गठित करता है, तो दुष्प्रेरक उन अपराधों में से प्रत्येक एक के लिए दण्डनीय है।

दृष्टांत

ख को एक लोक सेवक द्वारा किए गए करस्थम् का बलपूर्वक प्रतिरोध करने के लिए क उकसाता है । ख परिणामस्वरूप उस करस्थम् का प्रतिरोध करता है । प्रतिरोध करने में ख करस्थम् का निष्पादन करने वाले अधिकारी को स्वेच्छया घोर उपहति कारित करता है । ख ने करस्थम् का प्रतिरोध करने और स्वेच्छया घोर उपहति कारित करने के दो अपराध किए हैं । इसलिए ख दोनों अपराधों के लिए दण्डनीय है, और यदि क यह सम्भाव्य जानता था कि उस करस्थम् का प्रतिरोध करने में ख स्वेच्छया घोर उपहति कारित करेगा, तो क भी उनमें से प्रत्येक एक अपराध के लिए दण्डनीय होगा ।


खंड- 53. दुष्प्रेरित कार्य से कारित उस प्रभाव के लिए दुष्प्रेरक का दायित्व जो दुष्प्रेरक द्वारा आशयित से भिन्न हो ।

जबकि कार्य का दुष्प्रेरण दुष्प्रेरक द्वारा किसी विशिष्ट प्रभाव को कारित करने के आशय से किया जाता है और दुष्प्रेरण के परिणामस्वरूप जिस कार्य के लिए दुष्प्रेरक दायित्व के अधीन है, वह कार्य दुष्प्रेरक के द्वारा आशयित प्रभाव से भिन्न प्रभाव कारित करता है तब दुष्प्रेरक कारित प्रभाव के लिए उसी प्रकार और उसी विस्तार तक दायित्व के अधीन है, मानो उसने उस कार्य का दुष्प्रेरण उसी प्रभाव को कारित करने के आशय से किया हो परन्तु यह तब जब कि वह यह जानता था कि दुष्प्रेरित कार्य से यह प्रभाव कारित होना सम्भाव्य है ।

दृष्टांत

य को घोर उपहति करने के लिए ख को क उकसाता है । ख उस उकसाहट के परिणामस्वरूप य को घोर उपहति कारित करता है । परिणामतः य की मृत्यु हो जाती है । यहां, यदि क यह जानता था कि दुष्प्रेरित घोर उपहति से मृत्यु कारित होना सम्भाव्य है, तो क हत्या के लिए उपबन्धित दण्ड से दण्डनीय है ।


खंड- 54. अपराध किए जाते समय दुष्प्रेरक की उपस्थिति ।

जब कभी कोई व्यक्ति, जो अनुपस्थित होने पर दुष्प्रेरक के नाते दण्डनीय होता, उस समय उपस्थित हो जब वह कार्य या अपराध किया जाए जिसके लिए वह दुष्प्रेरण के परिणामस्वरूप दण्डनीय होता, तब यह समझा जाएगा कि उसने ऐसा कार्य या अपराध किया है ।


खंड- 55. मृत्यु या आजीवन कारावास से दण्डनीय अपराध का दुष्प्रेरण ।

जो कोई मृत्यु या आजीवन कारावास से दण्डनीय अपराध किए जाने का दुष्प्रेरण करेगा, यदि वह अपराध उस दुष्प्रेरण के परिणामस्वरूप न किया जाए, और ऐसे दुष्प्रेरण के दण्ड के लिए कोई अभिव्यक्त उपबन्ध इस संहिता में नहीं किया गया है, तो वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने का भी दायी होगा और यदि ऐसा कोई कार्य कर दिया जाए, जिसके लिए दुष्प्रेरक उस दुष्प्रेरण के परिणामस्वरूप दायित्व के अधीन हो और जिससे किसी व्यक्ति को उपहति कारित हो, तो दुष्प्रेरक दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि चौदह वर्ष की हो सकेगी, दण्डनीय होगा और जुर्माने का भी दायी होगा ।

दृष्टांत

ख को य की हत्या करने के लिए क उकसाता है। वह अपराध नहीं किया जाता है। यदि य की हत्या ख कर देता है, तो वह मृत्यु या आजीवन कारावास के दण्ड से दण्डनीय होता। इसलिए, क कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डनीय है और जुर्माने से भी दण्डनीय है और यदि दुष्प्रेरण के परिणामस्वरूप य को कोई उपहति हो जाती है, तो वह कारावास से, जिसकी अवधि चौदह वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डनीय होगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा ।


खंड- 56. कारावास से दण्डनीय अपराध का दुष्प्रेरण ।

जो कोई कारावास से दण्डनीय अपराध का दुष्प्रेरण करेगा, यदि वह अपराध उस दुष्प्रेरण के परिणामस्वरूप न किया जाए और ऐसे दुष्प्रेरण के दण्ड के लिए इस संहिता के अधीन कोई अभिव्यक्त उपबन्ध नहीं किया गया है, तो वह उस अपराध के लिए उपबन्धित किसी भांति के कारावास से ऐसी अवधि के लिए, जो उस अपराध के लिए उपबन्धित दीर्घतम अवधि के एक चौथाई भाग तक की हो सकेगी, या ऐसे जुर्माने से, जो उस अपराध के लिए उपबन्धित है, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा और यदि दुष्प्रेरक या दुष्प्रेरित व्यक्ति ऐसा लोक सेवक हो, जिसका कर्तव्य ऐसे अपराध के लिए किए जाने को निवारित करना हो, तो वह दुष्प्रेरक उस अपराध के लिए उपबंधित किसी भांति के कारावास से ऐसी अवधि के लिए, जो उस अपराध के लिए उपबंधित दीर्घतम अवधि के आधे भाग तक की हो सकेगी, या ऐसे जुर्माने से, जो अपराध के लिए उपबंधित है, या दोनों से, दंडित किया जाएगा ।

दृष्टांत

(क) मिथ्या साक्ष्य देने के लिए ख को क उकसाता है। यहां, यदि ख मिथ्या साक्ष्य न दे, तो भी क ने इस धारा में परिभाषित अपराध किया है, और वह तद्‌नुसार दण्डनीय है । (ख) क, एक पुलिस अधिकारी, जिसका कर्तव्य लूट को निवारित करना है, लूट किए जाने का दुष्प्रेरण करता है। यहां, यद्यपि वह लूट नहीं की जाती, क उस अपराध के लिए उपबन्धित कारावास की दीर्घतम अवधि के आधे से, और जुर्माने से भी, दण्डनीय है ।

(ग) क द्वारा, जो एक पुलिस अधिकारी है, और जिसका कर्तव्य लूट को निवारित करना है, उस अपराध के किए जाने का दुष्प्रेरण ख करता है, यहां यद्यपि वह लूट न की जाए, ख लूट के अपराध के लिए उपबन्धित कारावास की दीर्घतम अवधि के आधे से, और जुर्माने से भी, दण्डनीय है ।


खंड- 57. लोक साधारण द्वारा या दस से अधिक व्यक्तियों द्वारा अपराध किए जाने का दुष्प्रेरण ।

जो कोई लोक साधारण द्वारा, या दस से अधिक व्यक्तियों की किसी भी संख्या या वर्ग द्वारा किसी अपराध के किए जाने का दुष्प्रेरण करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, और जुर्माने से दण्डित किया जाएगा ।

दृष्टांत

क, एक लोक स्थान में एक प्लेकार्ड चिपकाता है, जिसमें एक पंथ को जिसमें दस से अधिक सदस्य हैं, एक विरोधी पंथ के सदस्यों पर, जब कि वे जुलूस निकालने में लगे हुए हों, आक्रमण करने के प्रयोजन से, किसी निश्चित समय और स्थान पर मिलने के लिए उकसाया गया है। क ने इस धारा में परिभाषित अपराध किया है ।


खंड- 58. मृत्यु या आजीवन कारावास से दंडनीय अपराध करने की परिकल्पना को छिपाना ।

जो कोई मृत्यु या आजीवन कारावास से दंडनीय अपराध का किया जाना सुकर बनाने के आशय से या संभाव्यतः तद्द्वारा सुकर बनाएगा यह जानते हुए, ऐसे अपराध के किए जाने की परिकल्पना के अस्तित्व को किसी कार्य या लोप द्वारा या विगूढ़न या किसी अन्य सूचना प्रच्छन्न साधन के उपयोग द्वारा स्वेच्छया छिपाएगा या ऐसी परिकल्पना के बारे में ऐसा व्यपदेशन करेगा जिसका मिथ्या होना वह जानता है, -

(क) यदि ऐसा अपराध कर दिया जाए, तो वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी; या

(ख) यदि अपराध न किया जाए, तो वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और दोनों दशाओं में से प्रत्येक एक में जुर्माने से भी दंडनीय होगा ।

दृष्टांत

क, यह जानते हुए कि ख स्थान पर डकैती पड़ने वाली है, मजिस्ट्रेट को यह मिथ्या इत्तिला देता है कि डकैती ग स्थान पर, जो विपरीत दिशा में है, पड़ने वाली है और इस आशय से कि एतद्वारा उस अपराध का किया जाना सुकर बनाए मजिस्ट्रेट को भुलावा देता है । डकैती परिकल्पना के अनुसरण में ख स्थान पर पड़ती है । क इस धारा के अधीन दंडनीय है ।


खंड- 59. किसी ऐसे अपराध के किए जाने की परिकल्पना का लोक सेवक द्वारा छिपाया जाना, जिसका निवारण करना उसका कर्तव्य है ।

जो कोई लोक सेवक होते हुए उस अपराध का किया जाना, जिसका निवारण करना ऐसे लोक सेवक के नाते उसका कर्तव्य है, सुकर बनाने के आशय से या संभाव्यतः तद्वारा सुकर बनाएगा यह जानते हुए, ऐसे अपराध के किए जाने की परिकल्पना के अस्तित्व को किसी कार्य या लोप द्वारा या विगूढ़न या कोई अन्य सूचना प्रच्छन्न साधन के उपयोग द्वारा स्वेच्छया छिपाएगा या ऐसी परिकल्पना के बारे में ऐसा व्यपदेशन करेगा जिसका मिथ्या होना वह जानता है,

(क) यदि ऐसा अपराध कर दिया जाए, तो वह उस अपराध के लिए उपबंधित किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि ऐसे कारावास की दीर्घतम अवधि के आधी तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो उस अपराध के लिए उपबंधित है, या दोनों से;

या (ख) यदि वह अपराध मृत्यु या आजीवन कारावास से दंडनीय हो, तो वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी; या

(ग) या यदि वह अपराध नहीं किया जाए, तो वह उस अपराध के लिए उपबंधित किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि ऐसे कारावास की दीर्घतम अवधि की एक चौथाई तक की हो सकेगी, या ऐसे जुर्माने से, जो उस अपराध के लिए उपबंधित है, या दोनों से, दंडित किया जाएगा ।

दृष्टांत

क, एक पुलिस अधिकारी, लूट किए जाने से संबंधित सब परिकल्पनाओं की, जो उसको ज्ञात हो जाए, इत्तिला देने के लिए वैध रूप से आबद्ध होते हुए और यह जानते हुए कि ख लूट करने की परिकल्पना बना रहा है, उस अपराध के किए जाने को सुकर बनाने के आशय से ऐसी इत्तिला देने का लोप करता है। यहां क ने ख की परिकल्पना के अस्तित्व को एक अवैध लोप द्वारा छिपाया है, और वह इस धारा के उपबंध के अनुसार दंडनीय है ।


खंड- 60. कारावास से दंडनीय अपराध करने की परिकल्पना को छिपाना ।

जो कोई उस अपराध का किया जाना, जो कारावास से दंडनीय है, सुकर बनाने के आशय से या संभाव्यतः तद्द्वारा सुकर बनाएगा यह जानते हुए, ऐसे अपराध के किए जाने की परिकल्पना के अस्तित्व को किसी कार्य या अवैध लोप द्वारा स्वेच्छया छिपाएगा या ऐसी परिकल्पना के बारे में ऐसा व्यपदेशन करेगा, जिसका मिथ्या होना वह जानता है, -

(क) यदि ऐसा अपराध कर दिया जाए, तो वह उस अपराध के लिए उपबंधित भांति के कारावास से, जिसकी अवधि ऐसे कारावास की दीर्घतम अवधि की एक चौथाई तक की हो सकेगी; और

(ख) यदि वह अपराध नहीं किया जाए, तो वह ऐसे कारावास से, जिसकी अवधि ऐसे कारावास की दीर्घतम अवधि के आठवें भाग तक की हो सकेगी, या ऐसे जुर्माने से, जो उस अपराध के लिए उपबंधित है, या दोनों से, दंडित किया जाएगा ।


खंड- 61. आपराधिक षड्यंत्र ।

(1) जब दो या अधिक व्यक्ति-

(क) कोई अवैध कार्य; या

(ख) कोई ऐसा कार्य, जो अवैध नहीं है, अवैध साधनों द्वारा, करने या करवाने के लिए सामान्य उद्देश्य के साथ सहमत होते हैं, तब ऐसी सहमति आपराधिक षड्यंत्र कहलाती है :

परंतु किसी अपराध को करने की सहमति के सिवाय कोई सहमति आपराधिक षड्यंत्र तब तक न होगी, जब तक कि सहमति के अलावा कोई कार्य उसके अनुसरण में उस सहमति के एक या अधिक पक्षकारों द्वारा नहीं कर दिया जाता ।

स्पष्टीकरण यह तत्वहीन है कि अवैध कार्य ऐसी सहमति का चरम उद्देश्य है या उस उद्देश्य का आनुषंगिक मात्र है ।

(2) जो कोई, -

(क) मृत्यु, आजीवन कारावास या दो वर्ष या उससे अधिक अवधि के कठिन कारावास से दंडनीय अपराध करने के आपराधिक षड्यंत्र में शरीक होगा, यदि ऐसे षड्यंत्र के दंड के लिए इस संहिता में कोई अभिव्यक्त उपबंध नहीं है, तो वह उसी प्रकार दंडित किया जाएगा, मानो उसने ऐसे अपराध का दुष्प्रेरण किया था ;

(ख) पूर्वोक्त रूप से दंडनीय अपराध को करने के आपराधिक षड्यंत्र से भिन्न किसी आपराधिक षड्यंत्र में शरीक होगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि छह मास से अधिक की नहीं होगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दंडित किया जाएगा ।


खंड- 62. आजीवन कारावास या अन्य कारावास से दण्डनीय अपराधों को करने के प्रयत्न करने के लिए दण्ड ।

जो कोई इस संहिता द्वारा आजीवन कारावास से या कारावास से दण्डनीय अपराध करने का, या ऐसा अपराध कारित किए जाने का प्रयत्न करेगा, और ऐसे प्रयत्न में अपराध करने की दिशा में कोई कार्य करेगा, जहां कि ऐसे प्रयत्न के दण्ड के लिए कोई अभिव्यक्त उपबन्ध इस संहिता द्वारा नहीं किया गया है, वहां वह उस अपराध के लिए उपबन्धित किसी भांति के कारावास से उस अवधि के लिए, जो, यथास्थिति, आजीवन कारावास से आधे तक की या उस अपराध के लिए उपबन्धित दीर्घतम अवधि के आधे तक की हो सकेगी या ऐसे जुर्माने से, जो उस अपराध के लिए उपबन्धित है, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा ।

दृष्टांत

(क) क, एक सन्दूक तोड़कर खोलता है और उसमें से कुछ आभूषण चुराने का प्रयत्न करता है । सन्दूक इस प्रकार खोलने के पश्चात् उसे ज्ञात होता है कि उसमें कोई आभूषण नहीं है । उसने चोरी करने की दिशा में कार्य किया है, और इसलिए, वह इस धारा के अधीन दोषी है ।

(ख) क, य की जेब में हाथ डालकर य की जेब से चुराने का प्रयत्न करता है । य की जेब में कुछ न होने के परिणामस्वरूप क अपने प्रयत्न में असफल रहता है । क इस धारा के अधीन दोषी है ।

अध्याय 5- महिला और बालक के विरुद्ध अपराधों के विषय में

खंड- 63. बलात्संग ।

यदि कोई पुरुष, –

(क) किसी महिला की योनि, उसके मुंह, मूत्रमार्ग या गुदा में अपना लिंग किसी भी सीमा तक प्रवेश करता है या उससे ऐसा अपने साथ या किसी अन्य व्यक्ति के साथ कराता है; या

(ख) किसी महिला की योनि, मूत्रमार्ग या गुदा में ऐसी कोई वस्तु या शरीर का कोई भाग, जो लिंग न हो, किसी भी सीमा तक अनुप्रविष्ट करता है या उससे ऐसा अपने साथ या किसी अन्य व्यक्ति के साथ कराता है; या

(ग) किसी महिला के शरीर के किसी भाग का इस प्रकार हस्तसाधन करता है जिससे कि उस महिला की योनि, मूत्रमार्ग, गुदा या शरीर के किसी भाग में प्रवेशन कारित किया जा सके या उससे ऐसा अपने साथ या किसी अन्य व्यक्ति के साथ कराता है; या

(घ) किसी महिला की योनि, गुदा, मूत्रमार्ग पर अपना मुंह लगाता है या उससे ऐसा अपने साथ या किसी अन्य व्यक्ति के साथ कराता है,

तो उसके बारे में यह कहा जाएगा कि उसने बलात्संग किया है, जहां ऐसा निम्नलिखित सात भांति की परिस्थितियों में से किसी के अधीन किया जाता है :-

(i) उस महिला की इच्छा के विरुद्ध ;

(ii) उस महिला की सम्मति के बिना ;

(iii) उस महिला की सम्मति से, जब उसकी सम्मति उसे या ऐसे किसी व्यक्ति को, जिससे वह हितबद्ध है, मृत्यु या उपहति के भय में डालकर अभिप्राप्त की गई है ;

(iv) उस महिला की सम्मति से, जब कि वह पुरुष यह जानता है कि वह उस महिला का पति नहीं है और उस महिला ने सम्मति इस कारण दी है कि वह यह विश्वास करती है कि वह ऐसा अन्य पुरुष है जिससे वह विधिपूर्वक विवाहित है या विवाहित होने का विश्वास करती है ;

(v) उस महिला की सम्मति से, जब ऐसी सम्मति देने के समय, वह चित्त- विकृत्ति या मत्तता के कारण या उस पुरुष द्वारा व्यक्तिगत रूप से या किसी अन्य व्यक्ति के माध्यम से कोई संज्ञाशून्यकारी या अस्वास्थ्यकर पदार्थ दिए जाने के कारण, उस बात की, जिसके बारे में वह सम्मति देती है, प्रकृति और परिणामों को समझने में असमर्थ है ;

(vi) उस महिला की सम्मति से या उसके बिना, जब वह अठारह वर्ष से कम आयु की है ;

(vii) जब वह महिला सम्मति संसूचित करने में असमर्थ है ।

स्पष्टीकरण 1-इस धारा के प्रयोजनों के लिए, योनि के अंतर्गत वृहत्त् भगौष्ठ भी है ।

स्पष्टीकरण 2-सम्मति से कोई स्पष्ट स्वैच्छिक सहमति अभिप्रेत है, जब महिला शब्दों, संकेतों या किसी प्रकार की मौखिक या अमौखिक संसूचना द्वारा विनिर्दिष्ट लैंगिक कृत्य में भाग लेने की इच्छा व्यक्त करती है :

परंतु ऐसी महिला के बारे में, जो प्रवेशन के कृत्य का भौतिक रूप से विरोध नहीं करती है, मात्र इस तथ्य के कारण यह नहीं समझा जाएगा कि उसने लैंगिक क्रियाकलाप के प्रति सम्मति प्रदान की है।

अपवाद 1- किसी चिकित्सीय प्रक्रिया या अंतःप्रवेशन से बलात्संग गठित नहीं होगा । अपवाद 2-किसी पुरुष का अपनी स्वयं की पत्नी के साथ मैथुन या लैंगिक कृत्य, यदि पत्नी अठारह वर्ष से कम आयु की न हो, बलात्संग नहीं है ।


खंड- 64. बलात्संग के लिए दंड ।

(1) जो कोई, उपधारा (2) में उपबंधित मामलों के सिवाय, बलात्संग करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कठिन कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष से कम की नहीं होगी, किन्तु जो आजीवन कारावास तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने का भी दायी होगा ।

(2) जो कोई-

(क) पुलिस अधिकारी होते हुए-

(i) उस पुलिस थाने की, जिसमें ऐसा पुलिस अधिकारी नियुक्त है, सीमाओं के भीतर बलात्संग करेगा; या

(ii) किसी भी थाने के परिसर में बलात्संग करेगा ; या

(iii) ऐसे पुलिस अधिकारी की अभिरक्षा में या ऐसे पुलिस अधिकारी के अधीनस्थ किसी पुलिस अधिकारी की अभिरक्षा में, किसी महिला से बलात्संग करेगा ; या

(ख) लोक सेवक होते हुए, ऐसे लोक सेवक की अभिरक्षा में या ऐसे लोक सेवक के अधीनस्थ किसी लोक सेवक की अभिरक्षा में की किसी महिला से बलात्संग करेगा; या

(ग) केंद्रीय या किसी राज्य सरकार द्वारा किसी क्षेत्र में अभिनियोजित सशस्त्र बलों का कोई सदस्य होते हुए, उस क्षेत्र में बलात्संग करेगा ; या

(घ) तत्समय प्रवृत्त किसी विधि द्वारा या उसके अधीन स्थापित किसी जेल, प्रतिप्रेषण गृह या अभिरक्षा के अन्य स्थान के या महिलाओं या बालकों की किसी संस्था के प्रबंधतंत्र या कर्मचारिवृंद में होते हुए, ऐसी जेल, प्रतिप्रेषण गृह, स्थान या संस्था के किसी निवासी से बलात्संग करेगा; या

(ङ) किसी अस्पताल के प्रबंधतंत्र या कर्मचारिवृंद में होते हुए, उस अस्पताल में किसी महिला से बलात्संग करेगा; या

(च) महिला का नातेदार, संरक्षक या अध्यापक या उसके प्रति न्यास या प्राधिकारी की हैसियत में का कोई व्यक्ति होते हुए, उस महिला से बलात्संग करेगा ; या

(छ) सांप्रदायिक या पंथीय हिंसा के दौरान बलात्संग करेगा ; या

(ज) किसी महिला से यह जानते हुए कि वह गर्भवती है, बलात्संग करेगा ; या

(झ) उस महिला से, जो सम्मति देने में असमर्थ है, बलात्संग करेगा; या

(ञ) किसी महिला पर नियंत्रण या प्रभाव रखने की स्थिति में होते हुए, उस महिला से बलात्संग करेगा; या

(ट) मानसिक या शारीरिक निःशक्तता से ग्रसित किसी महिला से बलात्संग करेगा; या

(ठ) बलात्संग करते समय किसी महिला को गंभीर शारीरिक अपहानि कारित करेगा या विकलांग बनाएगा या विद्रूपित करेगा या उसके जीवन को संकटापन्न करेगा ; या

(ड) उसी महिला से बारबार बलात्संग करेगा, वह कठिन कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष से कम की नहीं होगी, किन्तु जो आजीवन कारावास तक की हो सकेगी, जिससे उस व्यक्ति के शेष प्राकृत जीवनकाल के लिए कारावास अभिप्रेत होगा, दंडित किया जाएगा और जुर्माने का भी दायी होगा ।

स्पष्टीकरण-इस उपधारा के प्रयोजनों के लिए, -

(क) सशस्त्र बल से नौसेना बल, सैन्य बल और वायु सैना बल अभिप्रेत है और इसके अंतर्गत तत्समय प्रवृत्त किसी विधि के अधीन गठित सशस्त्र बलों का, जिसमें ऐसे अर्धसैनिक बल और कोई सहायक बल भी हैं, जो केंद्रीय सरकार या राज्य सरकार के नियंत्रणाधीन हैं, कोई सदस्य भी है ;

(ख) अस्पताल से अस्पताल का अहाता अभिप्रेत है और इसके अंतर्गत किसी ऐसी संस्था का अहाता भी है, जो स्वास्थ्य लाभ कर रहे व्यक्तियों को या चिकित्सीय देखरेख या पुनर्वास की अपेक्षा रखने वाले व्यक्तियों के प्रवेश और उपचार करने के लिए है ;

(ग) पुलिस अधिकारी का वही अर्थ होगा जो पुलिस अधिनियम, 1861 के अधीन पुलिस पद में उसका है ;

(घ) महिलाओं या बालकों की संस्था से महिलाओं और बालकों को ग्रहण करने और उनकी देखभाल करने के लिए स्थापित और अनुरक्षित कोई संस्था अभिप्रेत है चाहे उसका नाम अनाथालय हो या उपेक्षित महिलाओं या बालकों के लिए गृह हो या विधवाओं के लिए गृह या किसी अन्य नाम से ज्ञात कोई संस्था हो ।


खंड- 65. कतिपय मामलों में बलात्संग के लिए दंड ।

(1) जो कोई, सोलह वर्ष से कम आयु की किसी महिला से बलात्संग करता है, तो वह, कठिन कारावास से, जिसकी अवधि बीस वर्ष से अन्यून होगी, किंतु जो आजीवन कारावास, जिससे उस व्यक्ति के शेष प्राकृत जीवनकाल का कारावास अभिप्रेत है, दंडित किया जाएगा और जुर्माने का भी दायी होगा :

परंतु ऐसा जुर्माना, पीड़िता के चिकित्सीय खर्चों को पूरा करने और पुनर्वास के लिए न्यायोचित और युक्तियुक्त होगा :

परंतु यह और कि इस उपधारा के अधीन अधिरोपित किसी भी जुर्माने का संदाय पीड़िता को किया ।

(2) जो कोई, बारह वर्ष से कम आयु की किसी महिला से बलात्संग करता है, तो वह, कठिन कारावास से, जिसकी अवधि बीस वर्ष से अन्यून होगी, किंतु जो आजीवन कारावास, जिससे उस व्यक्ति के शेष प्राकृत जीवनकाल का कारावास अभिप्रेत है, और जुर्माने से, या मृत्युदंड से दंडित किया जाएगा :

परंतु ऐसा जुर्माना पीड़िता के चिकित्सीय खचों को पूरा करने और पुनर्वास के लिए न्यायोचित और युक्तियुक्त होगा :

परंतु यह और कि इस उपधारा के अधीन अधिरोपित किसी भी जुमाने का संदाय पीड़िता को किया जाएगा ।


खंड- 66. पीड़िता की मृत्यु या सतत् विकृतशील दशा कारित करने के लिए दंड ।

जो कोई, धारा 64 की उपधारा (1) या उपधारा (2) के अधीन दंडनीय कोई अपराध करेगा और ऐसे अपराध के दौरान ऐसी कोई क्षति पहुंचाएगा, जिससे स्त्री की मृत्यु कारित हो जाती है या जिसके कारण उस स्त्री की दशा सतत् विकृतशील हो जाती है, वह ऐसी अवधि के कठिन कारावास से, जिसकी अवधि बीस वर्ष से कम की नहीं होगी, किंतु जो आजीवन कारावास तक की हो सकेगी, जिससे उस व्यक्ति के शेष प्राकृत जीवनकाल के लिए कारावास अभिप्रेत होगा, या मृत्युदंड से दंडित किया जाएगा ।


खंड- 67. पति द्वारा अपनी पत्नी के साथ पृथक्करण के दौरान मैथुन ।

जो कोई, अपनी पत्नी के साथ, जो पृथक्करण की डिक्री के अधीन या अन्यथा, पृथक् रह रही है, उसकी सम्मति के बिना, मैथुन करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष से कम की नहीं होगी, किंतु जो सात वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने का भी दायी होगा ।

स्पष्टीकरण इस धारा में, मैथुन से धारा 63 के खंड (क) से खंड (घ) में वर्णित कोई कृत्य अभिप्रेत है ।


खंड- 68. प्राधिकार में किसी व्यक्ति द्वारा मैथुन ।

जो कोई, -

(क) प्राधिकार की किसी स्थिति या वैश्वासिक संबंध रखते हुए ; या

(ख) कोई लोक सेवक होते हुए ; या

(ग) तत्समय प्रवृत्त किसी विधि द्वारा या उसके अधीन स्थापित किसी जेल, प्रतिप्रेषण-गृह या अभिरक्षा के अन्य स्थान का या महिलाओं या बालकों की किसी संस्था का अधीक्षक या प्रबंधक होते हुए ; या

(घ) अस्पताल के प्रबंधतंत्र या किसी अस्पताल का कर्मचारिवृंद होते हुए, ऐसी किसी महिला को, जो उसकी अभिरक्षा में है या उसके भारसाधन के अधीन है या परिसर में उपस्थित है, अपने साथ मैथुन करने हेतु, जो बलात्संग के अपराध की कोटि में नहीं आता है, उत्प्रेरित या विलुब्ध करने के लिए ऐसी स्थिति या वैश्वासिक संबंध का दुरुपयोग करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कठिन कारावास से, जिसकी अवधि पांच वर्ष से कम की नहीं होगी किन्तु जो दस वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने का भी दायी होगा ।

धारा में, मैथुन से धारा 63 के खंड (क) से खंड (घ) में वर्णित

स्पष्टीकरण 1—इस कोई कृत्य अभिप्रेत होगा ।

स्पष्टीकरण 2-इस धारा के प्रयोजनों के लिए, धारा 63 का स्पष्टीकरण 1 भी लागू होगा ।

स्पष्टीकरण 3-किसी जेल, प्रतिप्रेषण-गृह या अभिरक्षा के अन्य स्थान या महिलाओं या बालकों की किसी संस्था के संबंध में, अधीक्षक के अंतर्गत कोई ऐसा व्यक्ति है, जो जेल, प्रतिप्रेषण-गृह, स्थान या संस्था में ऐसा कोई पद धारण करता है, जिसके आधार पर वह उसके निवासियों पर किसी प्राधिकार या नियंत्रण का प्रयोग कर सकता है ।

स्पष्टीकरण 4- अस्पताल और महिलाओं या बालकों की संस्था पदों का क्रमशः वही अर्थ होगा, जो धारा 64 की उपधारा (2) के स्पष्टीकरण के खंड (ख) और खंड (घ) में उनका है ।


खंड- 69. प्रवंचनापूर्ण साधनों, आदि का प्रयोग करके मैथुन ।

जो कोई प्रवंचनापूर्ण साधनों द्वारा या किसी महिला को विवाह करने का वचन देकर, उसे पूरा करने के किसी आशय के बिना, उसके साथ मैथुन करता है, ऐसा मैथुन बलात्संग के अपराध की कोटि में नहीं आता है, तो वह दोनों में से किसी भांति के ऐसी अवधि के कारावास से दंडनीय होगा, जो दस वर्ष तक की हो सकेगी, और जुर्माने के लिए भी दायी होगा ।

स्पष्टीकरण– प्रवंचनापूर्ण साधनों में, नियोजन या प्रोन्नति, या पहचान छिपाकर विवाह करने के लिए, उत्प्रेरण या उनका मिथ्या वचन, सम्मिलित है ।


खंड- 70. सामूहिक बलात्संग ।

(1) जहां किसी महिला से, एक या अधिक व्यक्तियों द्वारा, एक समूह गठित करके या सामान्य आशय को अग्रसर करने में कार्य करते हुए बलात्संग किया जाता है, वहां उन व्यक्तियों में से प्रत्येक के बारे में यह समझा जाएगा कि उसने बलात्संग का अपराध किया है और वह ऐसी अवधि के कठिन कारावास से, जिसकी अवधि बीस वर्ष से कम की नहीं होगी, किंतु जो आजीवन कारावास तक, जिससे उस व्यक्ति के शेष प्राकृत जीवनकाल के लिए कारावास अभिप्रेत होगा, की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने से भी दंडनीय होगा :

परंतु ऐसा जुर्माना पीड़िता के चिकित्सीय खर्चों को पूरा करने और पुनर्वास के लिए न्यायोचित और युक्तियुक्त होगा :

परंतु यह और कि इस उपधारा के अधीन अधिरोपित कोई जुर्माना पीड़िता को संदत्त किया जाएगा ।

(2) जहां एक या अधिक व्यक्तियों द्वारा समूह गठित करके या सामान्य आशय को अग्रसर करने में कार्य करते हुए, अठारह वर्ष से कम आयु की किसी महिला से बलात्संग किया जाता है, वहां उन व्यक्तियों में से प्रत्येक व्यक्ति के बारे में यह समझा जाएगा कि उसने बलात्संग का अपराध किया है और वह आजीवन कारावास से, जिससे उस व्यक्ति के शेष प्राकृत जीवनकाल के लिए कारावास अभिप्रेत है, और जुर्माने से, या मृत्युदंड से, दंडनीय होगा :

परन्तु ऐसा जुर्माना पीडिता के चिकित्सीय खर्चों को पूरा करने और पुनर्वास के लिए न्यायोचित और युक्तियुक्त होगा :

परन्तु यह और कि इस उपधारा के अधीन अधिरोपित किसी भी जुर्माने का संदाय पीडिता को किया जाएगा ।


खंड- 71. पुनरावृत्तिकर्ता अपराधियों के लिए दंड ।

जो कोई, धारा 64 या धारा 65 या धारा 66 या धारा 70 के अधीन दंडनीय किसी अपराध के लिए पूर्व में दंडित किया गया है और तत्पश्चात् उक्त धाराओं में से किसी के अधीन दंडनीय किसी अपराध के लिए सिद्धदोष ठहराया जाता है, आजीवन कारावास से, जिससे उस व्यक्ति के शेष प्राकृत जीवनकाल के लिए कारावास अभिप्रेत होगा, या मृत्युदंड से दंडित किया जाएगा ।


खंड- 72. कतिपय अपराधों आदि से पीड़ित व्यक्ति की पहचान का प्रकटीकरण ।

(1) जो कोई किसी नाम या अन्य बात को, जिससे किसी ऐसे व्यक्ति की (जिसे इस धारा में इसके पश्चात् पीड़ित व्यक्ति कहा गया है) पहचान हो सकती है, जिसके विरुद्ध धारा 64 या धारा 65 या धारा 66 या धारा 67 या धारा 68 या धारा 69 या धारा 70 या धारा 71 के अधीन किसी अपराध का किया जाना अभिकथित है या किया गया पाया गया है, मुद्रित या प्रकाशित करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने का भी दायी होगा ।

(2) उपधारा (1) की किसी भी बात का विस्तार किसी नाम या अन्य बात के मुद्रण या प्रकाशन पर, यदि उससे पीड़ित व्यक्ति की पहचान हो सकती है, तब नहीं होता है जब ऐसा मुद्रण या प्रकाशन-

(क) पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी के या ऐसे अपराध का अन्वेषण करने वाले पुलिस अधिकारी के, जो ऐसे अन्वेषण के प्रयोजन के लिए स‌द्भावपूर्वक कार्य करता है, द्वारा या उसके लिखित आदेश के अधीन किया जाता है; या

(ख) पीड़ित व्यक्ति द्वारा या उसके लिखित प्राधिकार से किया जाता है; या

(ग) जहां पीड़ित व्यक्ति की मृत्यु हो चुकी है या वह बालक या विकृत चित्त है, वहां, पीड़ित व्यक्ति के निकट संबंधी द्वारा या उसके लिखित प्राधिकार से, किया जाता है :

परन्तु निकट संबंधी द्वारा कोई भी ऐसा प्राधिकार किसी मान्यताप्राप्त कल्याण संस्था या संगठन के अध्यक्ष या सचिव से, चाहे उसका जो भी नाम हो, भिन्न किसी अन्य व्यक्ति को नहीं दिया जाएगा ।

स्पष्टीकरण-इस उपधारा के प्रयोजनों के लिए, मान्यताप्राप्त कल्याण संस्था या संगठन से केन्द्रीय या राज्य सरकार द्वारा इस उपधारा के प्रयोजनों के लिए किसी मान्यताप्राप्त कोई समाज कल्याण संस्था या संगठन अभिप्रेत है ।


खंड- 73. अनुज्ञा के बिना न्यायालय की कार्यवाहियों से संबंधित किसी मामले का मुद्रण या प्रकाशन करना ।

जो कोई धारा 72 में निर्दिष्ट किसी अपराध की बाबत किसी न्यायालय के समक्ष किसी कार्यवाही के संबंध में, कोई बात उस न्यायालय की पूर्व अनुज्ञा के बिना मुद्रित या प्रकाशित करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने का भी दायी होगा ।

स्पष्टीकरण-किसी उच्च न्यायालय या उच्चतम न्यायालय के निर्णय का मुद्रण या प्रकाशन इस धारा के अर्थ में अपराध की कोटि में नहीं आता है ।


खंड- 74. महिला की लज्जा भंग करने के आशय से उस पर हमला या आपराधिक बल का प्रयोग ।

जो कोई किसी महिला की लज्जा भंग करने के आशय से या यह सम्भाव्य जानते हुए कि तद्वारा वह उसकी लज्जा भंग करेगा, उस महिला पर हमला करेगा या आपराधिक बल का प्रयोग करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि एक वर्ष से कम की नहीं होगी किन्तु जो पांच वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने का भी दायी होगा ।


खंड- 75. लैंगिक उत्पीड़न ।

(1) ऐसा कोई निम्नलिखित कार्य, अर्थात् :-

(i) शारीरिक संस्पर्श और अग्रक्रियाएं करने, जिनमें अवांछनीय और लैंगिक संबंध बनाने संबंधी स्पष्ट प्रस्ताव अंतर्वलित हों ; या

(ii) लैंगिक स्वीकृति के लिए कोई मांग या अनुरोध करने ; या (iii) किसी महिला की इच्छा के विरुद्ध अश्लील साहित्य दिखाने ; या (iv) लैंगिक आभासी टिप्पणियां करने, वाला पुरुष लैंगिक उत्पीड़न के अपराध का दोषी होगा ।

(2) ऐसा कोई पुरुष, जो उपधारा (1) के खंड (i) या खंड (ii) या खंड (iii) में विनिर्दिष्ट अपराध करेगा, वह कठिन कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दंडित किया जाएगा ।

(3) ऐसा कोई पुरुष, जो उपधारा (1) के खंड (iv) में विनिर्दिष्ट अपराध करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दंडित किया जाएगा ।


खंड- 76. विवस्त्र करने के आशय से महिला पर हमला या आपराधिक बल का प्रयोग ।

ऐसा कोई पुरुष, जो किसी महिला को विवस्त्र करने या निर्वस्त्र होने के लिए बाध्य करने के आशय से उस पर हमला करेगा या उसके प्रति आपराधिक बल का प्रयोग करेगा या ऐसे कृत्य का दुष्प्रेरण करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष से कम की नहीं होगी, किंतु जो सात वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने का भी दायी होगा ।


खंड- 77. दृश्यरतिकता।

ऐसा कोई पुरुष, जो कोई किसी प्राइवेट कृत्य में लगी किसी महिला को, जो उन परिस्थितियों में, जिनमें वह यह प्रत्याशा करती है कि उसे देखा नहीं जा रहा है, एकटक देखेगा या उस कृत्य में लिप्त व्यक्ति या उस कृत्य में लिप्त व्यक्ति के कहने पर कोई अन्य व्यक्ति उसका चित्र खींचेगा या उस चित्र को प्रसारित करेगा, प्रथम दोषसिद्धि पर दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि एक वर्ष से कम की नहीं होगी, किंतु जो तीन वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने का भी दायी होगा और द्वितीय या पश्चात्वर्ती किसी दोषसिद्धि पर दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष से कम की नहीं होगी, किंतु जो सात वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने का भी दायी होगा ।

स्पष्टीकरण 1—इस धारा के प्रयोजनों के लिए, प्राइवेट कृत्य के अंतर्गत ताकने का ऐसा कोई कृत्य आता है जो ऐसे किसी स्थान में किया जाता है, जिसके संबंध में, परिस्थितियों के अधीन, युक्तियुक्त रूप से यह प्रत्याशा की जाती है कि वहां एकांतता होगी और जहां कि पीड़िता के जननांगों, नितंबों या वक्षस्थलों को अभिदर्शित किया जाता है या केवल अधोवस्त्र से ढंका जाता है या जहां पीड़िता किसी शौचघर का प्रयोग कर रही है; या जहां पीड़िता ऐसा कोई लैंगिक कृत्य कर रही है जो ऐसे प्रकार का नहीं है जो साधारणतया सार्वजनिक तौर पर किया जाता है ।

स्पष्टीकरण 2-जहां पीड़िता चित्रों या किसी अभिनय के चित्र को खींचने के लिए सम्मति देती है, किन्तु अन्य व्यक्तियों को उन्हें प्रसारित करने की सम्मति नहीं देती है और जहां उस चित्र या कृत्य का प्रसारण किया जाता है वहां ऐसे प्रसारण को इस धारा के अधीन अपराध माना जाएगा ।


खंड- 78. पीछा करना ।

(1) ऐसा कोई पुरुष, जो-

(i) किसी महिला का उससे व्यक्तिगत अन्योन्यक्रिया को आगे बढ़ाने के लिए, उस महिला द्वारा स्पष्ट रूप से अनिच्छा उपदर्शित किए जाने के बावजूद, बारंबार पीछा करता है और संस्पर्श करता है या संस्पर्श करने का प्रयत्न करता है; या

(ii) जो कोई किसी महिला द्वारा इंटरनेट, ई-मेल या किसी अन्य प्ररूप की इलैक्ट्रानिक संसूचना का प्रयोग किए जाने को मानीटर करता है, पीछा करने का अपराध करता है :

परंतु ऐसा आचरण पीछा करने की कोटि में नहीं आएगा, यदि वह पुरुष, जो ऐसा करता है, यह साबित कर देता है कि-

(i) ऐसा कार्य अपराध के निवारण या पता लगाने के प्रयोजन के लिए किया गया था और पीछा करने के अभियुक्त पुरुष को राज्य द्वारा उस अपराध के निवारण और पता लगाने का उत्तरदायित्व सौंपा गया था; या

(ii) ऐसा किसी विधि के अधीन या किसी विधि के अधीन किसी व्यक्ति द्वारा अधिरोपित किसी शर्त या अपेक्षा का पालन करने के लिए किया गया था; या

(iii) विशिष्ट परिस्थितियों में ऐसा आचरण युक्तियुक्त और न्यायोचित था ।

(2) जो कोई पीछा करने का अपराध करेगा, वह प्रथम दोषसिद्धि पर दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने का भी दायी होगा; और किसी द्वितीय या पश्चात्वर्ती दोषसिद्धि पर किसी भी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि पांच वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने का भी दायी होगा ।


खंड- 79. शब्द, अंगविक्षेप या कार्य, जो किसी महिला की लज्जा का अनादर करने के लिए आशयित है।

जो कोई किसी महिला की लज्जा का अनादर करने के आशय से कोई शब्द कहेगा, कोई ध्वनि या अंगविक्षेप करेगा, या कोई वस्तु प्रदर्शित करेगा, इस आशय से कि ऐसी महिला द्वारा ऐसा शब्द या ध्वनि सुनी जाए, या ऐसा अंगविक्षेप या वस्तु देखी जाए, या ऐसी महिला की एकान्तता का अतिक्रमण करेगा, वह साधारण कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दंडनीय होगा ।


खंड- 80. दहेज मृत्यु ।

(1) जहां किसी महिला की मृत्यु किसी दाह या शारीरिक क्षति द्वारा कारित की जाती है या उसके विवाह के सात वर्ष के भीतर सामान्य परिस्थितियों से अन्यथा हो जाती है और यह दर्शित किया जाता है कि उसकी मृत्यु के कुछ पूर्व उसके पति ने या उसके पति के किसी नातेदार ने, दहेज की किसी मांग के लिए, या उसके संबंध में, उसके साथ क्रूरता की थी या उसे तंग किया था वहां ऐसी मृत्यु को दहेज मृत्यु कहा जाएगा और ऐसा पति या नातेदार उसकी मृत्यु कारित करने वाला समझा जाएगा ।

स्पष्टीकरण-इस उपधारा के प्रयोजनों के लिए, दहेज का वही अर्थ है, जो दहेज प्रतिषेध अधिनियम, 1961 की धारा 2 में है ।

(2) जो कोई दहेज मृत्यु कारित करेगा वह कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष से कम की नहीं होगी किन्तु जो आजीवन कारावास की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा ।


खंड- 81. विधिपूर्ण विवाह का प्रवंचना से विश्वास उत्प्रेरित करने वाले पुरुष द्वारा कारित सहवास ।

प्रत्येक पुरुष, जो किसी महिला को, जो विधिपूर्वक उससे विवाहित न हो, प्रवंचना से यह विश्वास कारित करेगा कि वह विधिपूर्वक उससे विवाहित है और इस विश्वास में उस महिला का अपने साथ सहवास या मैथुन कारित करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने का भी दायी होगा ।


खंड- 82. पति या पत्नी के जीवनकाल में पुनः विवाह करना ।

(1) जो कोई, पति या पत्नी के जीवित होते हुए, किसी ऐसी दशा में विवाह करेगा, जिसमें ऐसा विवाह इस कारण शून्य है कि वह ऐसे पति या पत्नी के जीवनकाल में होता है, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने का भी दायी होगा ।

अपवाद-इस धारा का विस्तार किसी ऐसे व्यक्ति पर नहीं है, जिसका ऐसे पति या पत्नी के साथ विवाह सक्षम अधिकारिता के न्यायालय द्वारा शून्य घोषित कर दिया गया हो और न किसी ऐसे व्यक्ति पर है, जो पूर्व पति या पत्नी के जीवनकाल में विवाह कर लेता है, यदि ऐसा पति या पत्नी उस पश्चात्वर्ती विवाह के समय ऐसे व्यक्ति से सात वर्ष तक निरन्तर अनुपस्थित रहा हो, और उस काल के भीतर ऐसे व्यक्ति ने यह नहीं सुना हो कि वह जीवित है, परन्तु यह तब जब कि ऐसा पश्चात्वर्ती विवाह करने वाला व्यक्ति उस विवाह के होने से पूर्व उस व्यक्ति को, जिसके साथ ऐसा विवाह होता है, तथ्यों की वास्तविक स्थिति की जानकारी, जहां तक कि उनका ज्ञान उसको हो, दे दे ।

(2) जो कोई उपधारा (1) के अधीन अपराध अपने पूर्व विवाह की बात उस व्यक्ति से छिपाकर करेगा, जिससे पश्चात्वर्ती विवाह किया जाए, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने का भी दायी होगा ।


खंड- 83. विधिपूर्ण विवाह के बिना कपटपूर्वक विवाह कर्म पूरा कर लेना ।

जो कोई बेईमानी से या कपटपूर्ण आशय से विवाहित होने का कर्म यह जानते हुए पूरा करेगा कि तद्वारा वह विधिपूर्वक विवाहित नहीं हुआ है, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने का भी दायी होगा ।


खंड- 84. विवाहित महिला को आपराधिक आशय से फुसलाकर ले जाना, या ले जाना या निरुद्ध रखना ।

जो कोई किसी महिला को, जो किसी अन्य पुरुष की पत्नी है, और जिसका अन्य पुरुष की पत्नी होना वह जानता है, या विश्वास करने का कारण रखता है, उस पुरुष के पास से, इस आशय से ले जाएगा, या फुसलाकर ले जाएगा कि वह किसी व्यक्ति के साथ अयुक्त संभोग करे या इस आशय से ऐसी किसी महिला को छिपाएगा या निरुद्ध करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा ।


खंड- 85. किसी महिला के पति या पति के नातेदार द्वारा उसके प्रति क्रूरता करना ।

जो कोई, किसी महिला का पति या पति का नातेदार होते हुए, ऐसी महिला के प्रति क्रूरता करेगा, वह कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने का भी दायी होगा ।


खंड- 86 क्रूरता की परिभाषा ।

धारा 85 के प्रयोजनों के लिए, क्रूरता से निम्नलिखित अभिप्रेत है-

(क) जानबूझकर किया गया कोई आचरण, जो ऐसी प्रकृति का है, जिससे उस महिला को आत्महत्या करने के लिए प्रेरित करने की या उस महिला के जीवन, अंग या स्वास्थ्य की (जो चाहे मानसिक हो या शारीरिक) गंभीर क्षति या खतरा कारित करने के लिए उसे करने की सम्भावना है; या

(ख) किसी महिला को तंग करना, जहां उसे या उससे सम्बन्धित किसी व्यक्ति को किसी सम्पत्ति या मूल्यवान प्रतिभूति के लिए किसी विधिविरुद्ध मांग को पूरी करने के लिए प्रपीड़ित करने की दृष्टि से या उसके या उससे संबंधित किसी व्यक्ति के ऐसी मांग पूरी करने में असफल रहने के कारण इस प्रकार तंग किया जा रहा है ।


खंड- 87. विवाह आदि के करने को विवश करने के लिए किसी महिला को व्यपहृत करना, अपहृत करना या उत्प्रेरित करना ।

जो कोई किसी महिला का व्यपहरण या अपहरण उसकी इच्छा के विरुद्ध किसी व्यक्ति से विवाह करने के लिए उस महिला को विवश करने के आशय से या वह विवश की जाएगी यह सम्भाव्य जानते हुए या अयुक्त संभोग करने के लिए उस महिला को विवश या विक्षुब्ध करने के लिए या वह महिला अयुक्त संभोग करने के लिए विवश या विलुब्ध की जाएगी यह संभाव्य जानते हुए करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने का भी दायी होगा ; और जो कोई किसी महिला को किसी अन्य व्यक्ति से अयुक्त संभोग करने के लिए विवश या विलुब्ध करने के आशय से या वह विवश या विलुब्ध की जाएगी, यह संभाव्य जानते हुए इस संहिता में यथापरिभाषित आपराधिक अभित्रास द्वारा या प्राधिकार के दुरुपयोग या विवश करने के अन्य साधन द्वारा उस महिला को किसी स्थान से जाने को उत्प्रेरित करेगा, वह भी पूर्वोक्त प्रकार से दण्डित किया जाएगा ।


खंड- 88. गर्भपात कारित करना ।

जो कोई गर्भवती महिला का स्वेच्छया गर्भपात कारित करेगा, यदि ऐसा गर्भपात उस महिला का जीवन बचाने के प्रयोजन से स‌द्भावपूर्वक, कारित न किया जाए, तो वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा, और यदि वह महिला स्पन्दनगर्भा हो, तो वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने का भी दायी होगा ।

स्पष्टीकरण- जो महिला स्वयं अपना गर्भपात कारित करती है, वह इस धारा के अर्थ के अन्तर्गत आती है ।

खंड- 89. महिला की सम्मति के बिना गर्भपात कारित करना ।

जो कोई उस महिला की सम्मति के बिना, चाहे वह महिला स्पन्दनगर्भा हो या नहीं, धारा 88 के अधीन अपराध करेगा, वह आजीवन कारावास से, या दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा, और जुर्माने का भी दायी होगा ।


खंड- 90. गर्भपात कारित करने के आशय से किए गए कार्यों द्वारा कारित मृत्यु ।

(1) जो कोई गर्भवती महिला का गर्भपात कारित करने के आशय से कोई ऐसा कार्य करेगा, जिससे महिला की मृत्यु कारित हो जाए, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने का भी दायी होगा ।

(2) जहां उपधारा (1) में निर्दिष्ट कार्य उस महिला की सम्मति के बिना किया जाए, तो वह आजीवन कारावास से, या उक्त उपधारा में विनिर्दिष्ट दण्ड से, दण्डित किया जाएगा ।

स्पष्टीकरण-इस अपराध के लिए यह आवश्यक नहीं है कि अपराधी जानता हो कि उस कार्य से मृत्यु कारित करना संभाव्य है ।


खंड- 91. बालक का जीवित पैदा होना रोकने या जन्म के पश्चात् उसकी मृत्यु कारित करने के आशय से किया गया कार्य ।

जो कोई किसी बालक के जन्म से पूर्व कोई कार्य इस आशय से करेगा कि उस बालक का जीवित पैदा होना तद्वारा रोका जाए या जन्म के पश्चात् तद्वारा उसकी मृत्यु कारित हो जाए, और ऐसे कार्य से उस बालक का जीवित पैदा होना रोकेगा, या उसके जन्म के पश्चात् उसकी मृत्यु कारित कर देगा, यदि वह कार्य माता के जीवन को बचाने के प्रयोजन से स‌द्भावपूर्वक नहीं किया गया हो, तो वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा ।


खंड- 92. ऐसे कार्य द्वारा जो आपराधिक मानव वध की कोटि में आता है, किसी सजीव अजात बालक की मृत्यु कारित करना ।

जो कोई ऐसा कोई कार्य ऐसी परिस्थितियों में करेगा कि यदि वह तद्वारा मृत्यु कारित कर देता, तो वह आपराधिक मानव वध का दोषी होता और ऐसे कार्य द्वारा किसी सजीव अजात बालक की मृत्यु कारित करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा, और जुर्माने का भी दायी होगा ।

दृष्टांत

क, यह सम्भाव्य जानते हुए कि वह गर्भवती महिला की मृत्यु कारित कर दे, ऐसा कार्य करता है, जो यदि उससे उस महिला की मृत्यु कारित हो जाती, तो वह आपराधिक मानव वध की कोटि में आता । उस महिला को क्षति होती है, किन्तु उसकी मृत्यु नहीं होती, किन्तु तद्वारा उस अजात सजीव बालक की मृत्यु हो जाती है, जो उसके गर्भ में है । क इस धारा में परिभाषित अपराध का दोषी है ।


खंड- 93. बालक के पिता या माता या उसकी देखरेख रखने वाले व्यक्ति द्वारा बारह वर्ष से कम आयु के बालक का अरक्षित डाल दिया जाना और परित्याग ।

जो कोई बारह वर्ष से कम आयु के बालक का पिता या माता होते हुए, या ऐसे बालक की देखरेख का भार रखते हुए, ऐसे बालक का पूर्णतः परित्याग करने के आशय से उस बालक को किसी स्थान में अरक्षित डाल देगा या छोड़ देगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से या दोनों से, दण्डित किया जाएगा ।

स्पष्टीकरण-यदि बालक अरक्षित डाल दिए जाने के परिणामस्वरूप मर जाए, तो, यथास्थिति, हत्या या आपराधिक मानव वध के लिए अपराधी का विचारण निवारित करना इस धारा से आशयित नहीं है ।


खंड- 94. मृत शरीर के गुप्त व्ययन द्वारा जन्म छिपाना ।

जो कोई किसी बालक के मृत शरीर को गुप्त रूप से गाड़कर या अन्यथा उसका व्ययन करके, चाहे ऐसे बालक की मृत्यु उसके जन्म से पूर्व या पश्चात् या जन्म के दौरान में हुई हो, ऐसे बालक के जन्म को जानबूझकर छिपाएगा या छिपाने का प्रयास करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा ।


खंड- 95. अपराध को कारित करने के लिए बालक को भाडे पर लेना, नियोजित करना या नियुक्त करना ।

जो कोई किसी अपराध को कारित करने के लिए किसी बालक को भाडे पर लेगा, नियोजित करेगा या नियुक्त करेगा, तो वह किसी भी भांति के कारावास से, जो तीन वर्ष से कम नहीं होगा, किंतु जो दस वर्ष तक का हो सकेगा और जुर्माने से भी दंडनीय होगा; और यदि अपराध कारित किया जाता है तो, वह उस अपराध के लिए उपबंधित दंड से भी दंडित किया जाएगा, मानो ऐसा अपराध ऐसे व्यक्ति ने स्वयं किया हो ।

स्पष्टीकरण - लैंगिक शोषण या अश्लील साहित्य के लिए बालक को भाडे पर लेना, नियोजन करना, नियुक्त करना या उपयोग करना इस धारा के अर्थान्तर्गत है ।


खंड- 96. बालक का उपापन ।

जो कोई, बालक को अन्य व्यक्ति से अयुक्त संभोग करने के लिए विवश या विलुब्ध करने के आशय से या तद्वारा विवश या विलुब्ध किया जाएगा, यह सम्भाव्य जानते हुए ऐसे बालक को किसी स्थान से जाने को या कोई कार्य करने को किसी भी साधन द्वारा उत्प्रेरित करेगा, वह कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने के लिए भी दायी होगा ।


खंड- 97. दस वर्ष से कम आयु के बालक के शरीर पर से चोरी करने के आशय से उसका व्यपहरण या अपहरण ।

जो कोई, दस वर्ष से कम आयु के किसी बालक का इस आशय से व्यपहरण या अपहरण करेगा कि ऐसे बालक के शरीर पर से कोई जंगम संपत्ति बेईमानी से ले ले, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने के लिए भी दायी होगा ।


खंड- 98. वेश्यावृत्ति आदि के प्रयोजन के लिए बालक को बेचना ।

जो कोई, किसी बालक को इस आशय से कि ऐसा बालक किसी आयु में भी वेश्यावृत्ति या किसी व्यक्ति से अयुक्त संभोग करने के लिए या किसी विधिविरुद्ध और दुराचारिक प्रयोजन के लिए काम में लाया या उपयोग किया जाए या यह संभाव्य जानते हुए कि ऐसा बालक किसी आयु में भी ऐसे प्रयोजन के लिए काम में लाया जाएगा या उपयोग किया जाएगा, बेचेगा, भाड़े पर देगा या अन्यथा व्ययनित करेगा वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने के लिए भी दायी होगा ।

स्पष्टीकरण 1-जब अठारह वर्ष से कम आयु की महिला किसी वेश्या को या किसी अन्य ऐसे व्यक्ति को, जो वेश्यागृह चलाता हो या उसका प्रबंध करता हो, बेची जाए, भाड़े पर दी जाए या अन्यथा व्ययनित की जाए, तब इस प्रकार ऐसी महिला को व्ययनित करने वाले व्यक्ति के बारे में, जब तक कि तत्प्रतिकूल साबित न कर दिया जाए, यह उपधारणा की जाएगी कि उसने उसको इस आशय से व्ययनित किया है कि वह वेश्यावृत्ति के लिए उपयोग में लाई जाएगी ।

स्पष्टीकरण 2-इस धारा के प्रयोजनों के लिए अयुक्त संभोग से ऐसे व्यक्तियों में मैथुन अभिप्रेत है, जो विवाह से संयुक्त नहीं हैं, या ऐसे किसी संयोग या बन्धन से संयुक्त नहीं हैं जो यद्यपि विवाह की कोटि में तो नहीं आता तथापि उस समुदाय की, जिसके वे हैं या यदि वे भिन्न समुदायों के हैं तो ऐसे दोनों समुदायों की, स्वीय विधि या रूढि द्वारा उनके बीच में विवाह-सदृश सम्बन्ध अभिज्ञात किया जाता हो ।


खंड- 99. वेश्यावृत्ति आदि के प्रयोजनों के लिए बालक को खरीदना ।

जो कोई किसी बालक को इस आशय से कि ऐसा बालक किसी आयु में भी वेश्यावृत्ति या किसी व्यक्ति से अयुक्त संभोग करने के लिए या किसी विधिविरुद्ध और दुराचारिक प्रयोजन के लिए काम में लाया या उपयोग किया जाए या यह सम्भाव्य जानते हुए कि ऐसा व्यक्ति, किसी आयु में भी ऐसे किसी प्रयोजन के लिए काम में लाया जाएगा या उपयोग किया जाएगा, खरीदेगा, भाड़े पर लेगा, या अन्यथा उसका कब्जा अभिप्राप्त करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के, ऐसे अवधि के कारावास से, जो सात वर्ष से कम नहीं होगी किंतु चौदह वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने के लिए भी दायी होगा ।

स्पष्टीकरण 1-अठारह वर्ष से कम आयु की महिला को खरीदने वाली, भाड़े पर लेने वाली या अन्यथा उसका कब्जा अभिप्राप्त करने वाली किसी वेश्या के या वेश्यागृह चलाने या उसका प्रबन्ध करने वाले किसी व्यक्ति के बारे में, जब तक कि तत्प्रतिकूल साबित न कर दिया जाए, यह उपधारणा की जाएगी कि ऐसी महिला का कब्जा उसने इस आशय से अभिप्राप्त किया है कि वह वेश्यावृत्ति के प्रयोजनों के लिए उपयोग में लाई जाएगी ।

स्पष्टीकरण 2- अयुक्त संभोग का वही अर्थ है, जो धारा 98 में है ।

अध्याय 6- मानव शरीर पर प्रभाव डालने वाले अपराधों के विषय में

खंड- 100. आपराधिक मानव वध ।

जो कोई मृत्यु कारित करने के आशय से, या ऐसी शारीरिक क्षति कारित करने के आशय से, जिससे मृत्यु कारित हो जाना सम्भाव्य हो, या यह ज्ञान रखते हुए कि यह सम्भाव्य है कि वह उस कार्य से मृत्यु कारित कर दे, कोई कार्य करके, मृत्यु कारित कर देता है, वह आपराधिक मानव वध का अपराध करता है ।

दृष्टांत

(क) क एक गड्ढे पर लकड़ियां और घास इस आशय से बिछाता है कि तद्वारा मृत्यु कारित करे या यह ज्ञान रखते हुए बिछाता है कि सम्भाव्य है कि तद्वारा मृत्यु कारित हो । य यह विश्वास करते हुए कि वह भूमि सुदृढ़ है, उस पर चलता है, उसमें गिर पड़ता है और मारा जाता है। क ने आपराधिक मानव वध का अपराध किया है ।

(ख) क यह जानता है कि य एक झाड़ी के पीछे है । ख यह नहीं जानता । य की मृत्यु करने के आशय से या यह जानते हुए कि उससे य की मृत्यु कारित होना सम्भाव्य है, ख को उस झाड़ी पर गोली चलाने के लिए क उत्प्रेरित करता है । ख गोली चलाता है और य को मार डालता है । यहां, यह हो सकता है कि ख किसी भी अपराध का दोषी न हो, किन्तु क ने आपराधिक मानव वध का अपराध किया है।

(ग) क एक मुर्गे को मार डालने और उसे चुरा लेने के आशय से उस पर गोली चलाकर ख को, जो एक झाड़ी के पीछे है, मार डालता है, किन्तु क यह नहीं जानता था कि ख वहां है । यहां, यद्यपि क विधिविरुद्ध कार्य कर रहा था, तथापि, वह आपराधिक मानव वध का दोषी नहीं है क्योंकि उसका आशय ख को मार डालने का, या कोई ऐसा कार्य करके, जिससे मृत्यु कारित करना वह सम्भाव्य जानता हो, मृत्यु कारित करने का नहीं था ।

स्पष्टीकरण 1-वह व्यक्ति, जो किसी दूसरे व्यक्ति को, जो किसी विकार, रोग या अंगशैथिल्य से ग्रस्त है, शारीरिक क्षति कारित करता है और तद्वारा उस दूसरे व्यक्ति की मृत्यु त्वरित कर देता है, उसकी मृत्यु कारित करता है, यह समझा जाएगा ।

स्पष्टीकरण 2-जहां कि शारीरिक क्षति से मृत्यु कारित की गई हो, वहां जिस व्यक्ति ने, ऐसी शारीरिक क्षति कारित की हो, उसने वह मृत्यु कारित की है, यह समझा जाएगा, यद्यपि उचित उपचार और कौशलपूर्ण चिकित्सा करने से वह मृत्यु रोकी जा सकती थी ।

स्पष्टीकरण 3 मां के गर्भ में स्थित किसी बालक की मृत्यु कारित करना मानव वध नहीं है । किन्तु किसी जीवित बालक की मृत्यु कारित करना आपराधिक मानव वध की कोटि में आ सकेगा, यदि उस बालक का कोई भाग बाहर निकल आया हो, यद्यपि उस बालक ने श्वास नहीं ली हो या उसने पूर्णतः जन्म नहीं लिया हो ।


खंड- 101. हत्या ।

इसमें इसके पश्चात् अपवादित दशाओं को छोड़कर, आपराधिक मानव वध हत्या है, -

(क) यदि वह कार्य, जिसके द्वारा मृत्यु कारित की गई हो, मृत्यु कारित करने के आशय से किया गया हो; या

(ख) यदि वह कार्य, जिसके द्वारा मृत्यु कारित की गई है, वह ऐसी शारीरिक क्षति कारित करने के आशय से किया गया हो, जिससे अपराधी जानता हो कि उस व्यक्ति को मृत्यु कारित करना सम्भाव्य है, जिसको वह अपहानि कारित की गई है ; या

(ग) यदि वह कार्य, जिसके द्वारा मृत्यु कारित की गई है, वह किसी व्यक्ति को शारीरिक क्षति कारित करने के आशय से किया गया हो और वह शारीरिक क्षति, जिसके कारित करने का आशय हो, प्रकृति के साधारण नैसर्गिक अनुक्रम में मृत्यु कारित करने के लिए पर्याप्त हो; या

(घ) यदि कार्य जिसके द्वारा मृत्यु कारित की गई है, करने वाला व्यक्ति यह जानता हो कि वह कार्य इतना आसन्न संकट है कि पूरी अधिसंभाव्यता है कि वह मृत्यु कारित कर ही देगा या ऐसी शारीरिक क्षति कारित कर ही देगा जिससे मृत्यु कारित होना संभाव्य है और वह मृत्यु कारित करने या पूर्वोक्त रूप की क्षति कारित करने की जोखिम उठाने के लिए किसी प्रतिहेतु के बिना ऐसा कार्य करे ।

दृष्टांत

(क) य को मार डालने के आशय से क उस पर गोली चलाता है, परिणामस्वरूप य की मृत्यु हो जाती है। क हत्या करता है ।

(ख) क यह जानते हुए कि य ऐसे रोग से ग्रस्त है कि सम्भाव्य है कि एक प्रहार उसकी मृत्यु कारित कर दे, शारीरिक क्षति कारित करने के आशय से उस पर आघात करता है । उस प्रहार के परिणामस्वरूप य की मृत्यु हो जाती है। क हत्या का दोषी है, यद्यपि वह प्रहार किसी अच्छे स्वस्थ व्यक्ति की मृत्यु करने के लिए साधारण नैसर्गिक अनुक्रम में पर्याप्त न होता । किन्तु यदि क, यह न जानते हुए कि य किसी रोग से ग्रस्त है, उस पर ऐसा प्रहार करता है, जिससे कोई अच्छा स्वस्थ व्यक्ति साधारण नैसर्गिक अनुक्रम में न मरता, तो यहां, क, यद्यपि शारीरिक क्षति कारित करने का उसका आशय हो, हत्या का दोषी नहीं है, यदि उसका आशय मृत्यु कारित करने का या ऐसी शारीरिक क्षति कारित करने का नहीं था, जिससे साधारण नैसर्गिक अनुक्रम में मृत्यु कारित हो जाए ।

(ग) य को तलवार या लाठी से ऐसा घाव क जानबूझकर करता है, जो साधारण नैसर्गिक अनुक्रम में किसी मनुष्य की मृत्यु कारित करने के लिए पर्याप्त है । परिणामस्वरूप य की मृत्यु कारित हो जाती है, यहां क हत्या का दोषी है, यद्यपि उसका आशय य की मृत्यु कारित करने का न रहा हो ।

(घ) क किसी प्रतिहेतु के बिना व्यक्तियों के एक समूह पर भरी हुई तोप चलाता है और उनमें से एक का वध कर देता है। क हत्या का दोषी है, यद्यपि किसी विशिष्ट व्यक्ति की मृत्यु कारित करने की उसकी पूर्वचिन्तित परिकल्पना न रही हो ।

अपवाद 1-आपराधिक मानव वध हत्या नहीं है, यदि अपराधी उस समय जब वह गम्भीर और अचानक प्रकोपन से आत्म संयम की शक्ति से वंचित हो, उस व्यक्ति की, जिसने कि वह प्रकोपन दिया था, मृत्यु कारित करे या किसी अन्य व्यक्ति की मृत्यु भूल या दुर्घटनावश कारित करे :

परन्तु प्रकोपन, –

(क) किसी व्यक्ति का वध करने या अपहानि करने के लिए अपराधी द्वारा प्रतिहेतु के रूप में ईप्सित न हो या स्वेच्छया प्रकोपित न हो ;

(ख) किसी ऐसी बात द्वारा न दिया गया हो, जो कि विधि के पालन में या लोक सेवक द्वारा ऐसे लोक सेवक की शक्तियों के विधिपूर्ण प्रयोग में की गई हो ;

(ग) किसी ऐसी बात द्वारा न दिया गया हो, जो प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार के

विधिपूर्ण प्रयोग में की गई हो । स्पष्टीकरण-प्रकोपन इतना गम्भीर और अचानक था या नहीं कि अपराध को हत्या

की कोटि में जाने से बचा दे, यह तथ्य का प्रश्न है ।

दृष्टांत

(क) य द्वारा दिए गए प्रकोपन के कारण प्रदीप्त आवेश के असर में म का, जो य का बालक है, क जानबूझकर वध करता है। यह हत्या है, क्योंकि प्रकोपन उस बालक द्वारा नहीं दिया गया था और उस बालक की मृत्यु उस प्रकोपन से किए गए कार्य को करने में दुर्घटना या दुर्भाग्य से नहीं हुई है ।

(ख) क को म गम्भीर और अचानक प्रकोपन देता है । क इस प्रकोपन से म पर पिस्तौल चलाता है, जिसमें न तो उसका आशय य का, जो समीप ही है किन्तु दृष्टि से बाहर है, वध करने का है, और न वह यह जानता है कि सम्भाव्य है कि वह य का वध कर दे । क, य का वध करता है। यहां क ने हत्या नहीं की है, किन्तु केवल आपराधिक मानव वध किया है ।

(ग) य द्वारा, जो एक बेलिफ है, क को विधिपूर्वक गिरफ्तार किया जाता है । उस गिरफ्तारी के कारण क को अचानक और तीव्र आवेश आ जाता है और वह य का वध कर देता है । यह हत्या है, क्योंकि प्रकोपन ऐसी बात द्वारा दिया गया था, जो एक लोक सेवक द्वारा उसकी शक्ति के प्रयोग में की गई थी ।

(घ) य के समक्ष, जो एक मजिस्ट्रेट है, साक्षी के रूप में क उपसंजात होता है । य यह कहता है कि वह क के अभिसाक्ष्य के एक शब्द पर भी विश्वास नहीं करता और यह कि क ने शपथ-भंग किया है। क को इन शब्दों से अचानक आवेश आ जाता है और वह य का वध कर देता है। यह हत्या है ।

(ङ) य की नाक खींचने का प्रयत्न क करता है । य प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार के प्रयोग में ऐसा करने से रोकने के लिए क को पकड़ लेता है। परिणामस्वरूप क को अचानक और तीव्र आवेश आ जाता है और वह य का वध कर देता है। यह हत्या है, क्योंकि प्रकोपन ऐसी बात द्वारा दिया गया था, जो प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार के प्रयोग में की गई थी ।

(च) ख पर य आघात करता है । ख को इस प्रकोपन से तीव्र क्रोध आ जाता है । क, जो निकट ही खड़ा हुआ है, ख के क्रोध का लाभ उठाने और उससे य का वध कराने के आशय से उसके हाथ में एक छुरी उस प्रयोजन के लिए दे देता है । ख उस छुरी से य का वध कर देता है, यहां ख ने चाहे केवल आपराधिक मानव वध ही किया हो, किन्तु क हत्या का दोषी है ।

अपवाद 2-आपराधिक मानव वध हत्या नहीं है, यदि अपराधी, शरीर या सम्पत्ति की प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार को स‌द्भावपूर्वक प्रयोग में लाते हुए विधि द्वारा उसे दी गई शक्ति का अतिक्रमण कर दे, और पूर्वचिन्तन बिना और ऐसी प्रतिरक्षा के प्रयोजन से जितनी अपहानि करना आवश्यक हो उससे अधिक अपहानि करने के किसी आशय के बिना उस व्यक्ति की मृत्यु कारित कर दे, जिसके विरुद्ध वह प्रतिरक्षा का ऐसा अधिकार प्रयोग में ला रहा हो ।

दृष्टांत

क को चाबुक मारने का प्रयत्न य करता है, किन्तु इस प्रकार नहीं कि क को घोर उपहति कारित हो । क एक पिस्तौल निकाल लेता है । य हमले को चालू रखता है । क स‌द्भावपूर्वक यह विश्वास करते हुए कि वह अपने को चाबुक लगाए जाने से किसी अन्य साधन द्वारा नहीं बचा सकता है गोली से य का वध कर देता है। क ने हत्या नहीं की है,

किन्तु केवल आपराधिक मानव वध किया है ।

अपवाद 3-आपराधिक मानव वध हत्या नहीं है, यदि अपराधी ऐसा लोक सेवक होते हुए, या ऐसे लोक सेवक को मद्द देते हुए, जो लोक न्याय की अग्रसरता में कार्य कर रहा है, उसे विधि द्वारा दी गई शक्ति से आगे बढ़ जाए, और कोई ऐसा कार्य करके जिसे वह विधिपूर्ण और ऐसे लोक सेवक के नाते उसके कर्तव्य के सम्यक्, निर्वहन के लिए आवश्यक होने का स‌द्भावपूर्वक विश्वास करता है, और उस व्यक्ति के प्रति, जिसकी कि मृत्यु कारित की गई हो, वैमनस्य के बिना मृत्यु कारित करे ।

अपवाद 4-आपराधिक मानव वध हत्या नहीं है, यदि वह मानव वध अचानक झगड़ा जनित आवेश की तीव्रता में हुई अचानक लड़ाई में पूर्वचिन्तन बिना और अपराधी द्वारा अनुचित लाभ उठाए बिना या क्रूरतापूर्ण या अप्रायिक रीति से कार्य किए बिना किया गया हो ।

स्पष्टीकरण-ऐसी दशाओं में यह तत्वहीन है कि कौन पक्ष प्रकोपन देता है या पहला हमला करता है ।

अपवाद 5-आपराधिक मानव वध हत्या नहीं है, यदि वह व्यक्ति जिसकी मृत्यु कारित की जाए, अठारह वर्ष से अधिक आयु का होते हुए, अपनी सम्मति से मृत्यु होना सहन करे, या मृत्यु की जोखिम उठाए ।

दृष्टांत

य को, जो एक बालक है, उकसाकर क उससे स्वेच्छया आत्महत्या करवाता है । यहां, कम उम्र होने के कारण य अपनी मृत्यु के लिए सम्मति देने में असमर्थ था, इसलिए, क ने हत्या का दुष्प्रेरण किया है ।


खंड- 102. जिस व्यक्ति की मृत्यु कारित करने का आशय था उससे भिन्न व्यक्ति की मृत्यु करके आपराधिक मानव वध ।

यदि कोई व्यक्ति कोई ऐसे कृत्य द्वारा, जिससे उसका आशय मृत्यु कारित करना हो, या जिससे वह जानता हो कि मृत्यु कारित होना सम्भाव्य है, किसी व्यक्ति की मृत्यु कारित करके, जिसकी मृत्यु कारित करने का न तो उसका आशय हो और न वह यह संभाव्य जानता हो कि वह उसकी मृत्यु कारित करेगा, आपराधिक मानव वध करे, तो अपराधी द्वारा किया गया आपराधिक मानव वध उस भांति का होगा, जिस भांति का वह होता, यदि वह उस व्यक्ति की मृत्यु कारित करता जिसकी मृत्यु कारित करना उसके द्वारा आशयित था या वह जानता था कि उस द्वारा उसकी मृत्यु कारित होना सम्भाव्य है ।


खंड- 103. हत्या के लिए दण्ड ।

(1) जो कोई हत्या करेगा, वह मृत्यु या आजीवन कारावास से दण्डित किया जाएगा और जुर्माने के लिए भी दायी होगा ।

(2) जब पांच या पांच से अधिक व्यक्तियों का कोई समूह मिलकर मूलवंश, जाति या समुदाय, लिंग, जन्म स्थान, भाषा व्यैक्तिक विश्वास या किसी अन्य समरूप आधार पर हत्या कारित करते हैं तो ऐसे समूह का प्रत्येक सदस्य मृत्यु या आजीवन कारावास के दंड से दंडनीय होगा और जुर्माने के लिए भी दायी होगा ।


खंड- 104. आजीवन सिद्धदोष द्वारा हत्या के लिए दण्ड।

जो कोई आजीवन कारावास के दण्डादेश के अधीन होते हुए हत्या करेगा, वह मृत्यु या आजीवन कारावास, जो व्यक्ति के शेष प्राकृत जीवनकाल के लिए होगा, से दण्डित किया जाएगा ।


खंड- 105. हत्या की कोटि में न आने वाले आपराधिक मानव वध के लिए दण्ड।

जो कोई ऐसा आपराधिक मानव वध करेगा, जो हत्या की कोटि में नहीं आता है, तो वह आजीवन कारावास से, या दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि पांच वर्ष से कम नहीं होगी किन्तु जो दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने के लिए भी दायी होगा, यदि वह कार्य जिसके द्वारा मृत्यु कारित की गई है, मृत्यु या ऐसी शारीरिक क्षति, जिससे मृत्यु होना संभाव्य है, कारित करने के आशय से किया जाए,

या यदि वह कार्य इस आशय के साथ कि उससे मृत्यु कारित करना सम्भाव्य है, किन्तु मृत्यु या ऐसी शारीरिक क्षति, जिससे मृत्यु कारित करना सम्भाव्य है, कारित करने के किसी आशय के बिना किया जाए, तो वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी और जुर्माने से दण्डित किया जाएगा ।


खंड- 106. उपेक्षा द्वारा मृत्यु कारित करना ।

(1) जो कोई उतावलेपन से या उपेक्षापूर्ण किसी ऐसे कार्य से किसी व्यक्ति की मृत्यु कारित करेगा, जो आपराधिक मानव वध की कोटि में नहीं आता है, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि पांच वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने के लिए भी दायी होगा ।

(2) जो कोई, यान के उतावलेपन या उपेक्षापूर्ण चालन से, किसी व्यक्ति की मृत्यु कारित करेगा, जो आपराधिक मानव वध की कोटि में नहीं आता है और घटना के तत्काल पश्चात्, इसे पुलिस अधिकारी या मजिस्ट्रेट को रिपोर्ट किए बिना, निकलकर भागेगा, किसी भी भांति के ऐसी अवधि के कारावास से, जो दस वर्ष तक का हो सकेगा, दंडित किया जाएगा और जुर्माने के लिए भी दायी होगा ।


खंड- 107. बालक या विकृत्त चित्त व्यक्ति की आत्महत्या का दुष्प्रेरण ।

यदि कोई बालक, विकृत्त चित्त व्यक्ति, मत्तता की अवस्था में कोई व्यक्ति आत्महत्या करता है जो कोई ऐसी आत्महत्या को करने के लिए दुष्प्रेरण करेगा, तो वह मृत्यु या आजीवन कारावास या ऐसी अवधि के कारावास से, जो दस वर्ष से अधिक की नहीं होगी, दंडनीय होगा और जुर्माने के लिए भी दायी होगा ।


खंड- 108. आत्महत्या का दुष्प्रेरण ।

यदि कोई व्यक्ति आत्महत्या करता है, तो जो कोई ऐसी आत्महत्या का दुष्प्रेरण करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने के लिए भी दायी होगा ।


खंड- 109. हत्या करने का प्रयत्न ।

(1) जो कोई किसी कृत्य को ऐसे आशय या ज्ञान से और ऐसी परिस्थितियों में करता है कि यदि वह उस कृत्य द्वारा मृत्यु कारित कर देता तो वह हत्या का दोषी होता, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने के लिए भी दायी होगा, और यदि ऐसे कार्य द्वारा किसी व्यक्ति को उपहति कारित हो जाए, तो वह अपराधी या तो आजीवन कारावास से या ऐसे दण्ड से दण्डनीय होगा, जैसा एतस्मिनपूर्व वर्णित है ।

(2) जब उपधारा (1) के अधीन अपराध करने वाला कोई व्यक्ति आजीवन कारावास के दण्डादेश के अधीन हो, तब यदि उपहति कारित हुई हो, तो वह मृत्यु या आजीवन कारावास, जो व्यक्ति के शेष प्राकृत जीवनकाल के लिए होगा, से दण्डित किया जाएगा ।

दृष्टांत

(क) य का वध करने के आशय से क उस पर ऐसी परिस्थितियों में गोली चलाता है कि यदि मृत्यु हो जाती, तो क हत्या का दोषी होता । क इस धारा के अधीन दण्डनीय है ।

(ख) क सुकुमार अवस्था के बालक की मृत्यु करने के आशय से उसे एक निर्जन स्थान में अरक्षित छोड़ देता है । क ने इस धारा द्वारा परिभाषित अपराध किया है, यद्यपि परिणामस्वरूप उस बालक की मृत्यु नहीं होती ।

(ग) य की हत्या का आशय रखते हुए क एक बन्दूक खरीदता है और उसको भरता है । क ने अभी तक अपराध नहीं किया है । य पर क बन्दूक चलाता है । उसने इस धारा में परिभाषित अपराध किया है, यदि इस प्रकार गोली मार कर वह य को घायल कर देता है, तो वह उपधारा (1) के पश्चात्वर्ती भाग द्वारा उपबन्धित दण्ड से दण्डनीय है ।

(घ) विष द्वारा य की हत्या करने का आशय रखते हुए क विष खरीदता है, और उसे उस भोजन में मिला देता है, जो क के अपने पास रहता है, क ने इस धारा में परिभाषित अपराध अभी तक नहीं किया है। क उस भोजन को य की मेज पर रखता है, या उसको य की मेज पर रखने के लिए य के सेवकों को परिदत्त करता है। क ने इस धारा में परिभाषित अपराध किया है।


खंड- 110. आपराधिक मानव वध करने का प्रयत्न ।

जो कोई किसी कार्य को ऐसे आशय या ज्ञान से और ऐसी परिस्थितियों में करता है कि यदि उस कार्य से वह मृत्यु कारित कर देता, तो वह हत्या की कोटि में न आने वाले आपराधिक मानव वध का दोषी होता, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दंडित किया जाएगा; और यदि ऐसे कार्य द्वारा किसी व्यक्ति को उपहति हो जाए तो वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा ।

दृष्टांत

क गम्भीर और अचानक प्रकोपन पर, ऐसी परिस्थितियों में, य पर पिस्तौल चलाता है कि यदि तद्द्वारा वह मृत्यु कारित कर देता तो वह हत्या की कोटि में न आने वाले आपराधिक मानव वध का दोषी होता । क ने इस धारा में परिभाषित अपराध किया है ।


खंड- 111. संगठित अपराध ।

(1) किसी संगठित अपराध सिंडिकेट के सदस्य के रूप में या ऐसे सिंडिकेट की और से एकल रूप से या संयुक्त रूप से सामान्य मति से कार्य करने वाले किसी व्यक्ति या व्यष्टियों के समूहों द्वारा कोई सतत् विधिविरुद्ध क्रियाकलाप, जिसमें व्यपहरण, डकैती, यान चोरी, उद्दापन, भूमि हथियाना, संविदा पर हत्या करना, आर्थिक अपराध, साइबर अपराध, व्यक्तियों, औषधियों, हथियारों, अवैध माल या सेवाओं का दुर्व्यापार, वेश्यावृत्ति या फिरौती के लिए मानव दुर्व्यापार शामिल है, प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से तात्विक फायदा, जिसके अंतर्गत वित्तीय फायदा भी है, प्राप्त करने के लिए हिंसा, हिंसा की धमकी, अभित्रास, उत्पीड़न या अन्य विधिविरुद्ध साधनों द्वारा संगठित अपराध का गठन करेगा ।

स्पष्टीकरण-इस उपधारा के प्रयोजनों के लिए, -

(i) संगठित अपराध सिंडिकेट से दो या अधिक व्यक्तियों का समूह अभिप्रेत है जो एक सिंडिकेट या टोली के रूप में या तो अकेले या सामूहिक रूप से कृत्य करते हुए किसी सतत् विधि विरुद्ध क्रियाकलाप में लिप्त है ।

(ii) सतत् विधिविरुद्ध क्रियाकलाप से विधि द्वारा प्रतिषिद्ध ऐसा कृत्य अभिप्रेत है जो तीन या अधिक वर्ष के कारावास से दण्डनीय संज्ञेय अपराध है, जो किसी व्यक्ति द्वारा या तो एकल या संयुक्त रूप से, किसी संगठित अपराध सिंडिकेट के सदस्य के रूप में या ऐसे सिंडिकेट की और से जिसके संबंध में एक से अधिक आरोप पत्र दस वर्ष की पूववर्ती अवधि के भीतर सक्षम न्यायालय के समक्ष दाखिल किए गए है, द्वारा किया गया है और उस न्यायालय ने ऐसे अपराध का संज्ञान ग्रहण कर लिया है और जिसमें आर्थिक अपराध भी शामिल है;

(iii) आर्थिक अपराध में आपराधिक न्यासभंग, कूटरचना, करेंसी नोट, बैंक नोट और सरकारी स्टापों का कूटकरण, हवाला संव्यवहार, बडे पैमाने पर विपणन कपट

या किसी प्ररूप में धनीय फायदा अभिप्राप्त करने के लिए विभिन्न व्यक्तियों के साथ कपट करने के लिए कोई स्कीम चलाना या किसी बैंक या वित्तीय संस्था या किसी अन्य संस्था या संगठन को कपट करने की दृष्टी से किसी रीति में, कोई कृत्य करना शामिल है ;

(2) जो कोई संगठित अपराध कारित करेगा, -

(i) यदि ऐसे अपराध के परिणामस्वरूप किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है, तो वह मृत्यु या आजीवन कारावास से दंडित होगा और ऐसे जुर्माने के लिए भी दायी होगा जो दस लाख रुपए से कम नहीं होगा;

(ii) किसी अन्य मामले में, वह ऐसी अवधि के कारावास से दंडनीय होगा, जो पांच वर्ष से कम नहीं होगा किंतु आजीवन कारावास तक हो सकेगी और ऐसे जुर्माने के लिए भी दायी होगी जो पांच लाख रुपए से कम नहीं होगा ।

(3) जो कोई संगठित अपराध का दुष्प्रेरण, प्रयत्न, षडयंत्र करता है या जानते हुए कारित किया जाना सुकर बनाता है या संगठित अपराध के किसी प्रारंभिक कार्य में अन्यथा नियोजित होता है, वह ऐसी अवधि के कारावास से दंडनीय होगा, जो पांच वर्ष से कम नहीं होगी, किंतु जो आजीवन कारावास तक की हो सकेगी और ऐसे जुर्माने के लिए भी दायी होगा, जो पांच लाख रुपए से कम नहीं होगा ।

(4) कोई व्यक्ति जो संगठित अपराध सिंडिकेट का सदस्य है, वह ऐसी अवधि के कारावास से दंडनीय होगा, जो पांच वर्ष से कम नहीं होगा किंतु आजीवन कारावास तक हो सकेगा और ऐसे जुर्माने के लिए भी दायी होगा जो पांच लाख रुपए से कम नहीं होगा ।

(5) जो कोई किसी व्यक्ति को जिसने संगठित अपराध कारित किया है, साशयपूर्वक संश्रय देगा या छिपाएगा वह ऐसी अवधि के कारावास से दंडनीय होगा, जो तीन वर्ष से कम नहीं होगी, किंतु आजीवन कारावास तक हो सकेगी और ऐसे जुर्माने के लिए भी दायी होगा, जो पांच लाख रुपए से कम नहीं होगा :

परंतु यह उपधारा उस दशा में लागू नहीं होगी, जिसमें संश्रय या छिपाना अपराधी के पति-पत्नी द्वारा किया जाता है ।

(6) जो कोई, संगठित अपराध कारित किए जाने से या किसी संगठित अपराध के आगमों से, व्यत्पुन्न या अभिप्राप्त या संगठित अपराध के माध्यम से अर्जित की गई, किसी संपत्ति पर कब्जा रखता है, वह ऐसी अवधि की कारावास से दण्डनीय होगा, जो तीन वर्ष से कम नहीं होगी, किन्तु आजीवन कारावास तक हो सकेगी और ऐसे जुर्माने के लिए भी दायी होगा, जो दो लाख रुपए से कम का नहीं होगा ।

(7) यदि कोई व्यक्ति संगठित अपराध सिंडिकेट का सदस्य की और से या किसी भी समय ऐसी किसी जंगम या स्थावर सम्पत्ति को कब्जे में रखता है, जिसका वह समाधानप्रद लेखा नहीं दे सकता है, वह ऐसी अवधि के कारावास से दंडनीय होगा, जो तीन वर्ष से कम नहीं होगी, किंतु जो दस वर्ष तक हो सकेगी और ऐसे जुर्माने के लिए भी दायी होगा, जो एक लाख रुपए से कम नहीं होगा ।


खंड- 112. छोटे संगठित अपराध ।

(1) जो कोई समूह या टोली का सदस्य होते हुए, या तो एकल रूप से या संयुक्त रूप से, चोरी, झपटमारी, छल, टिकटों के अप्राधिकृत रूप से विक्रय, अप्राधिकृत शर्त लगाने या जुआ खेलने, लोक परीक्षा प्रश्नपत्रों का विक्रय या कोई अन्य समरूप अपराधिक कार्य कारित करता है, तो वह छोटा संगठित अपराध कारित करता है ।

स्पष्टीकरण-इस उपधारा के प्रयोजन के लिए, चोरी में चालाकी से चोरी, यान, निवास-गृह या कारबार परिसर, कार्गो से चोरी, पाकेट मारना, कार्ड स्किमिंग, शॉपलिफ्टिंग के माध्यम से चोरी और स्वचालित टेलर मशीन की चोरी शामिल है ।

(2) जो कोई छोटा संगठित अपराध कारित करता है वह ऐसी अवधि के कारावास से दंडनीय होगा, जो एक वर्ष से कम नहीं होगी, किंतु सात वर्ष तक हो सकेगी और जुर्माने के लिए भी दायी होगा ।


खंड- 113. आतंकवादी कृत्य ।

(1) जो कोई, भारत की एकता, अखंडता, संप्रभूता, सुरक्षा या आर्थिक सुरक्षा या प्रभुता को संकट में डालने या संकट में डालने की संभावना के आशय से या भारत में या किसी विदेश में जनता अथवा जनता के किसी वर्ग में आतंक फैलाने या आतंक फैलाने की संभावना के आशय से-

(क) बमों, डाइनामाइट या अन्य विस्फोटक पदार्थों या ज्वलनशील पदार्थों या अग्न्यायुधों या अन्य प्राणहर आयुधों या विषों या अपायकर गैसों या अन्य रसायनों या परिसंकटमय प्रकृति के किन्हीं अन्य पदार्थों का (चाहे वे जैविक रेडियोधर्मी, न्यूक्लीयर हों या अन्यथा) या किसी भी प्रकृति के किन्हीं अन्य साधनों का उपयोग करके ऐसा कोई कार्य करता है, जिससे, -

(i) किसी व्यक्ति या व्यक्तियों की मृत्यु होती है या उन्हें क्षति होती है या होने की संभावना है; या

(ii) संपत्ति की हानि या उसका नुकसान या विनाश होता हैं या होने की संभावना है ;

(iii) भारत में या किसी विदेश में समुदाय के जीवन के लिए अनिवार्य किन्हीं प्रदायों या सेवाओं में विघ्न कारित होता है या होने की संभावना है; या

(iv) सिक्के या किसी अन्य सामग्री की कृटकृत भारतीय कागज करेंसी के निर्माण या उसकी तस्करी या परिचालन से भारत की आर्थिक स्थिरता को नुकसान कारित होता है या होने की संभावना है; या

(v) भारत की प्रतिरक्षा या भारत सरकार, किसी राज्य सरकार या उनके किन्हीं अभिकरणों के किन्हीं अन्य प्रयोजनों के संबंध में उपयोग की जाने वाली या उपयोग किए जाने के लिए आशयित भारत में या विदेश में किसी सम्पत्ति का नुकसान या विनाश होता है या होने की संभावना है; या

(ख) लोक कृत्यकारियों को आपराधिक बल के द्वारा या आपराधिक बल का प्रदर्शन करके आतंकित करता है या ऐसा करने का प्रयत्न करता है या किसी लोक कृत्यकारी की मृत्यु कारित करता है या किसी लोक कृत्यकारी की मृत्यु कारित करने का प्रयत्न करता है; या

(ग) किसी व्यक्ति को निरुद्ध करता है, उसका व्यपहरण या अपहरण करता है या ऐसे व्यक्ति को मारने या क्षति पहुंचाने को धमकी देता है या भारत सरकार, किसी राज्य सरकार या किसी विदेश की सरकार या किसी अंतरराष्ट्रीय या अंतर-सरकारी संगठन या किसी अन्य व्यक्ति को कोई कार्य करने या किसी कार्य को करने से प्रविरत रहने के लिए बाध्य करने के लिए कोई अन्य कार्य करता है, तो वह आतंकवादी कार्य करता है ।

स्पष्टीकरण इस उपधारा के प्रयोजन के लिए, -

(क) लोक कृत्यकारी से संवैधानिक प्राधिकारी या केन्द्रीय सरकार द्वारा राजपत्र में लोक कृत्यकारी के रूप में अधिसूचित कोई अन्य कृत्यकारी अभिप्रेत है ;

(ख) कूटकृत भारतीय करेंसी से ऐसी कूटकृत करेंसी अभिप्रेत है, जो किसी प्राधिकृत या अधिसूचित न्याय संबंधी प्राधिकारी द्वारा यह परीक्षा करने के पश्चात् कि ऐसी करेंसी भारतीय करेंसी के मुख्य सुरक्षा लक्षणों की अनुकृति है या उसके अनुरूप है, उस रूप में घोषित की जाए ।

(2) जो कोई आतंकवादी का कृत्य कारित करेगा, –

(क) यदि ऐसे अपराध के परिणामस्वरूप किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है, तो वह मृत्यु या आजीवन कारावास से दंडित होगा और जुर्माने के लिए भी दायी होगा ;

(ख) किसी अन्य मामले में, वह ऐसी अवधि के कारावास से दंडनीय होगा, जो पांच वर्ष से कम नहीं होगी, किंतु आजीवन कारावास तक हो सकेगी और जुर्माने के लिए भी दायी होगा ।

(3) जो कोई आतंकवादी कृत्य को कारित करने का षडयंत्र, प्रयत्न करता है, या पक्ष समर्थन, दुष्प्रेरण करता है, सलाह देता है या उद्दित करता है या प्रत्यक्ष रूप से या जानते हुए, उसे सुकर बनाता है या किसी आतंकवादी कृत्य को प्रारंभ करने के लिए कोई कार्य करता है, तो वह ऐसी अवधि के कारावास से दंडनीय होगा, जो पांच वर्ष से कम नहीं होगी, किंतु आजीवन कारावास तक हो सकेगी और जुर्माने के लिए भी दायी होगा ।

(4) जो कोई आतंकवादी कृत्य का प्रशिक्षण देने के लिए किसी कैंप या किन्हीं कैंपों का आयोजन करता है या आयोजन किया जाना कारित करता है या आतंकवादी कृत्य को कारित करने के लिए किसी व्यक्ति या किन्हीं व्यक्तियों को भर्ती करता है या भर्ती किया जाना कारित करता है, तो वह ऐसी अवधि के कारावास से दंडनीय होगा, जो पांच वर्ष से कम नहीं होगी किंतु आजीवन कारावास तक हो सकेगी और जुर्माने के लिए भी दायी होगा ।

(5) कोई व्यक्ति जो आतंकवादी संगठन का सदस्य है, जो आतंकवादी के कृत्य में अंतवर्लित है, वह ऐसी अवधि के कारावास से दंडनीय होगा, जो आजीवन कारावास तक हो सकेगी और जुर्माने के लिए भी दायी होगा ।

(6) जो कोई ऐसे व्यक्ति को जानते हुए कि ऐसे व्यक्ति ने किसी आतंकवादी कृत्य का अपराध कारित किया है, साशयपूर्वक उसे संश्रय देगा या छिपाएगा या संश्रय देने या छिपाना का प्रयत्न करेगा, वह ऐसी अवधि के कारावास से दंडनीय होगा, जो तीन वर्ष से कम नहीं होगी किन्तु आजीवन कारावास तक हो सकेगी और जुर्माने के लिए भी दायी होगा :

परंतु यह उपधारा ऐसे मामलों में लागू नहीं होगी, जिसमें संश्रय देने या छिपाने का कार्य अपराधी के पति या की पत्नी द्वारा किया गया है ।

(7) जो कोई किसी आतंकवादी कृत्य को कारित करने से व्यत्पुन्न या अभिप्राप्त या आतंकवादी कृत्य को कारित करने के माध्यम से अर्जित किसी संपत्ति को जानते हुए कब्जे में रखता है, किसी वह ऐसी अवधि के कारावास से दंडनीय होगी, जो आजीवन कारावास तक हो सकेगी और जुर्माने का भी दायी होगा ।

स्पष्टीकरण-संदेह को दूर करने के लिए यह घोषित किया जाता है कि पुलिस अधीक्षक की पंक्ति से अनिम्न का अधिकारी यह विनिश्चय करेगा कि क्या इस धारा के अधीन या विधिविरुद्ध क्रियाकलाप (निवारण) अधिनियम, 1967 के अधीन मामला रजिस्ट्रीकृत किया जाए ।


खंड- 114. उपहति ।

जो कोई किसी व्यक्ति को शारीरिक पीड़ा, रोग या अंग-शैथिल्य कारित करता है, कहा जाता है कि वह उपहति करता है ।

खंड- 115. स्वेच्छया उपहति कारित करना ।

(1) जो कोई किसी कार्य को इस आशय से करता है कि तद्वारा किसी व्यक्ति को उपहति कारित करे या इस ज्ञान के साथ करता है कि यह संभाव्य है कि वह तद्वारा किसी व्यक्ति को उपहति कारित करे और तद्वारा किसी व्यक्ति को उपहति कारित करता है, कहा जाता है कि वह स्वेच्छया उपहति करता है ।

(2) जो कोई धारा 122 की उपधारा (1) के अधीन उपबंधित मामले के सिवाय स्वेच्छया उपहति कारित करता है, दोनों में से किसी भांति के कारावास से जो एक वर्ष तक का हो सकेगा, या जुर्माने से जो दस हजार तक का हो सकेगा या, दोनों से, दंडनीय होगा ।


खंड- 116. घोर उपहति ।

उपहति की केवल निम्नलिखित किस्में घोर कहलाती हैं-

(क) पुंस्त्वपहरण ;

(ख) दोनों में से किसी भी नेत्र की दृष्टि की स्थायी क्षति ;

(ग) दोनों में से किसी भी कान की श्रवणशक्ति की स्थायी क्षति ;

(घ) किसी भी अंग या जोड़ का विच्छेद ;

(ङ) किसी भी अंग या जोड़ की शक्तियों का नाश या स्थायी ह्रास ;

(च) सिर या चेहरे का स्थायी विद्रूपीकरण ;

(छ) अस्थि या दांत का भंग या विसंधान ;

(ज) कोई उपहति जो जीवन को संकटापन्न करती है या जिसके कारण उपहत व्यक्ति पंद्रह दिन तक तीव्र शारीरिक पीड़ा में रहता है या अपने मामूली कामकाज को करने में असमर्थ रहता है ।


खंड- 117. स्वेच्छया घोर उपहति कारित करना ।

(1) जो कोई स्वेच्छया उपहति कारित करता है, यदि वह उपहति, जिसे कारित करने का उसका आशय है या जिसे वह जानता है कि उसके द्वारा उसका किया जाना सम्भाव्य है घोर उपहति है, और यदि वह उपहति, जो वह कारित करता है, घोर उपहति हो, तो वह स्वेच्छया घोर उपहति करता है , यह कहा जाता है ।

स्पष्टीकरणकोई व्यक्ति स्वेच्छया घोर उपहति कारित करता है, यह नहीं कहा जाता है सिवाय जबकि वह घोर उपहति कारित करता है और घोर उपहति कारित करने का उसका आशय हो या घोर उपहति कारित होना वह सम्भाव्य जानता हो । किन्तु यदि वह यह आशय रखते हुए या यह संभाव्य जानते हुए कि वह किसी एक किस्म की घोर उपहति कारित कर दे वास्तव में दूसरी ही किस्म की घोर उपहति कारित करता है, तो वह स्वेच्छया घोर उपहति कारित करता है, यह कहा जाता है ।

दृष्टांत

क, यह आशय रखते हुए या यह सम्भाव्य जानते हुए कि वह य के चेहरे को स्थायी रूप से विद्रूपित कर देगा, य के चेहरे पर प्रहार करता है जिससे य का चेहरा स्थायी रूप से विद्रूपित तो नहीं होता, किन्तु य को पंद्रह दिन तक तीव्र शारीरिक पीड़ा कारित होती है । क ने स्वेच्छया घोर उपहति कारित की है।

(2) जो कोई, धारा 122 की उपधारा (2) में उपबंधित मामले के सिवाय, स्वेच्छया घोर उपहति कारित करता है, दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जो सात वर्ष तक हो सकेगा, दंडनीय होगा, और जुर्माने का भी दायी होगा ।

(3) जो कोई उपधारा (1) के अधीन अपराध कारित करता है और ऐसे कारित करने के क्रम में किसी व्यक्ति को उपहति कारित करता है, जो उस व्यक्ति को स्थायी दिव्यांगता कारित करता है या लगातार विकृतशील दशा में डाल देता है वह ऐसी अवधि के कठिन कारावास से दंडनीय होगा जो दस वर्ष से कम नहीं होगा किंतु आजीवन कारावास तक हो सकेगा, जिससे उस व्यक्ति के प्राकृत जीवन की शेष अवधि का कारावास अभिप्रेत है ।

(4) जहां पांच या अधिक व्यक्तियों के समूह द्वारा, सामान्य मति से कार्य करते हुए, किसी व्यक्ति को उसके मूलवंश, जाति या समुदाय, लिंग, जन्मस्थान, भाषा, व्यक्तिगत विश्वास या किसी अन्य समरूप आधार पर, घोर उपहति कारित की जाती है, वहां ऐसे समूह का प्रत्येक सदस्य घोर उपहति कारित करने के अपराध का दोषी होगा और दोनों में से किसी भांति के कारावास से दंडनीय होगा, जिसकी अवधि सात वर्ष तक हो सकेगी और जुर्माने के लिए भी दायी होगा ।


खंड- 118. खतरनाक आयुधों या साधनों द्वारा स्वेच्छया उपहति या घोर उपहति कारित करना ।

(1) जो कोई, धारा 122 की उपधारा (1) में उपबंधित दशा के सिवाय, असन, वेधन या काटने के किसी उपकरण द्वारा या किसी ऐसे उपकरण द्वारा जो यदि आक्रामक आयुध के तौर पर उपयोग में लाया जाए, तो उससे मृत्यु कारित होना सम्भाव्य है, या अग्नि या किसी तप्त पदार्थ द्वारा, या किसी विष या किसी संक्षारक पदार्थ द्वारा या किसी विस्फोटक पदार्थ द्वारा या किसी ऐसे पदार्थ द्वारा, जिसका श्वास में जाना या निगलना या रक्त में पहुंचना मानव शरीर के लिए हानिकारक है, या किसी जीव-जन्तु द्वारा स्वेच्छया उपहति कारित करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से जो बीस हजार रूपए तक हो सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा ।

(2) जो कोई, धारा 122 की उपधारा (2) में उपबंधित दशा के सिवाय, उपधारा (1) में निर्दिष्ट किसी साधन से स्वेच्छया घोर उपहति कारित करता है, आजीवन कारावास या दोनों में से किसी भांति के कारावास से दंडनीय होगा, जिसकी अवधि एक वर्ष से कम नहीं होगी किंतु दस वर्ष तक हो सकेगी और जुर्माने के लिए भी दायी होगा ।


खंड- 119. संपत्ति उद्घापित करने के लिए या अवैध कार्य कराने को मजबूर करने के लिए स्वेच्छ्या उपहति या घोर उपहति कारित करना ।

(1) जो कोई इस प्रयोजन से स्वेच्छया उपहति कारित करेगा कि उपहत व्यक्ति से, या उससे हितबद्ध किसी व्यक्ति से, कोई सम्पत्ति या मूल्यवान प्रतिभूति उद्घापित की जाए या उपहत व्यक्ति को या उससे हितबद्ध किसी व्यक्ति को कोई ऐसी बात, जो अवैध हो, या जिससे किसी अपराध का किया जाना सुकर होता हो, करने के लिए मजबूर किया जाए, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने के लिए भी दायी होगा ।

(2) जो कोई उपधारा (1) में निर्दिष्ट किसी प्रयोजन के लिए स्वेच्छया घोर उपहति कारित करता है, आजीवन कारावास या दोनों में से किसी भांति के कारावास से दंडनीय होगा, जिसकी अवधि दस वर्ष तक हो सकेगी और जुर्माने के लिए भी दायी होगा ।


खंड- 120. संस्वीकृति उद्घापित करने या विवश करके संपत्ति का प्रत्यावर्तन कराने के लिए स्वेच्छया उपहति या घोर उपहति कारित करना ।

(1) जो कोई इस प्रयोजन से स्वेच्छया उपहति कारित करेगा कि उपहत व्यक्ति से या उससे हितबद्ध किसी व्यक्ति से कोई संस्वीकृति या कोई जानकारी, जिससे किसी अपराध या अवचार का पता चल सके, उद्घापित की जाए या उपहत व्यक्ति या उससे हितबद्ध व्यक्ति को मजबूर किया जाए कि वह कोई सम्पत्ति या मूल्यवान प्रतिभूति प्रत्यावर्तित करे, या करवाए, या किसी दावे या मांग की पुष्टि, या ऐसी जानकारी दे, जिससे किसी सम्पत्ति या मूल्यवान प्रतिभूति का प्रत्यावर्तन कराया जा सके, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने के लिए भी दायी होगा ।

दृष्टांत

(क) क, जो एक पुलिस अधिकारी है, य से यह संस्वीकृति कराने के लिए कि उसने अपराध किया है उसे उत्प्रेरित करने के लिए यातना देता है। क इस धारा के अधीन अपराध का दोषी है ।

(ख) क, जो एक पुलिस अधिकारी है, ख से यह पता लगाने के लिए को कि अमुक चुराई हुई सम्पत्ति कहां रखी है, उत्प्रेरित करने के लिए उसे यातना देता है । क इस धारा के अधीन अपराध का दोषी है ।

(ग) क, जो एक राजस्व अधिकारी, राजस्व की वह बकाया, जो य द्वारा शोध्य है, देने के लिए य को विवश करने के लिए उसे यातना देता है। क इस धारा के अधीन अपराध का दोषी है ।

(2) जो कोई उपधारा (1) में निर्दिष्ट किसी प्रयोजन के लिए स्वेच्छया घोर उपहति कारित करता है, दोनों में से किसी भांति के कारावास से दंडनीय होगा, जिसकी अवधि दस वर्ष तक हो सकेगी और जुर्माने के लिए भी दायी होगा ।


खंड- 121. लोक सेवक को अपने कर्तव्य से भयोपरत् करने के लिए स्वेच्छया उपहति या घोर उपहति कारित करना ।

(1) जो कोई किसी ऐसे व्यक्ति को, जो लोक सेवक हो, उस समय जब वह वैसे लोक सेवक के नाते अपने कर्तव्य का निर्वहन कर रहा हो या इस आशय से कि उस व्यक्ति को या किसी अन्य लोक सेवक को, वैसे लोक सेवक के नाते उसके अपने कर्तव्य के विधिपूर्ण निर्वहन से निवारित या भयोपरत् करे या वैसे लोक सेवक के नाते उस व्यक्ति द्वारा अपने कर्तव्य के विधिपूर्ण निर्वहन में की गई या किए जाने के लिए प्रयतित किसी बात के परिणामस्वरूप स्वेच्छया उपहति कारित करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि पांच वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा ।

(2) जो कोई किसी ऐसे व्यक्ति को, जो लोक सेवक हो, उस समय जब वह वैसे लोक सेवक के नाते अपने कर्तव्य का निर्वहन कर रहा हो या इस आशय से कि उस व्यक्ति को, या किसी अन्य लोक सेवक को वैसे लोक सेवक के नाते उसके अपने कर्तव्य के निर्वहन से निवारित या भयोपरत् करे या वैसे लोक सेवक के नाते उस व्यक्ति द्वारा अपने कर्तव्य के विधिपूर्ण निर्वहन में की गई या किए जाने के लिए प्रयतित किसी बात के परिणामस्वरूप स्वेच्छया घोर उपहति कारित करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि जो एक वर्ष से कम की नहीं होगी किन्तु जो दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने के लिए भी दायी होगा ।


खंड- 122. प्रकोपन पर स्वेच्छया उपहति या घोर उपहति कारित करना ।

(1) जो कोई गम्भीर और अचानक प्रकोपन पर स्वेच्छया उपहति कारित करेगा, यदि न तो उसका आशय उस व्यक्ति से भिन्न, जिसने प्रकोपन दिया था, किसी व्यक्ति को उपहति कारित करने का हो और न वह अपने द्वारा ऐसी उपहति कारित किया जाना सम्भाव्य जानता हो, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि एक मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो पांच हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दंडित किया जाएगा ।

(2) जो कोई गम्भीर और अचानक प्रकोपन पर स्वेच्छया घोर उपहति कारित करेगा, यदि न तो उसका आशय उस व्यक्ति से भिन्न, जिसने प्रकोपन दिया था, किसी व्यक्ति को घोर उपहति कारित करने का हो और न वह अपने द्वारा ऐसी घोर उपहति कारित किया जाना सम्भाव्य जानता हो, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि पांच वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो दस हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दंडित किया जाएगा ।

स्पष्टीकरण यह धारा उसी परंतुक के अध्यधीन हैं, जिनके अध्यधीन धारा 101 का अपवाद 1 है ।


खंड- 123. अपराध करने के आशय से विष इत्यादि द्वारा उपहति कारित करना ।

जो कोई इस आशय से कि किसी व्यक्ति की उपहति कारित की जाए या अपराध करने के, या किए जाने को सुकर बनाने के आशय से, या यह सम्भाव्य जानते हुए कि वह तद्वारा उपहति कारित करेगा, कोई विष या जड़िमाकारी, नशा करने वाली या अस्वास्थ्यकर ओषधि या अन्य चीज उस व्यक्ति को देगा या उसके द्वारा लिया जाना कारित करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने के लिए भी दायी होगा ।


खंड- 124. अम्ल आदि का प्रयोग करके स्वेच्छया घोर उपहति कारित करना ।

(1) जो कोई किसी व्यक्ति के शरीर के किसी भाग या किन्हीं भागों को उस व्यक्ति पर अम्ल फेंककर या उसे अम्ल देकर या किन्हीं अन्य साधनों का प्रयोग करके, ऐसा कारित करने के आशय या ज्ञान से कि संभाव्य है उनसे ऐसी क्षति या उपहति कारित हो, स्थायी या आंशिक नुकसान कारित करेगा या अंगविकार करेगा या जलाएगा या विकलांग बनाएगा या विद्रूपित करेगा या निःशक्त बनाएगा या घोर उपहति कारित करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष से कम की नहीं होगी किंतु जो आजीवन कारावास तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने से भी दंडनीय होगा :

परंतु ऐसा जुर्माना पीड़ित के उपचार के चिकित्सीय खर्चों को पूरा करने के लिए न्यायोचित और युक्तियुक्त होगा :

परंतु यह और कि इस उपधारा के अधीन अधिरोपित कोई जुर्माना पीड़ित को संदत्त किया जाएगा ।

(2) जो कोई, किसी व्यक्ति को स्थायी या आंशिक नुकसान कारित करने या उसका अंगविकार करने या जलाने या विकलांग बनाने या विद्रूपित करने या निःशक्त बनाने या घोर उपहति कारित करने के आशय से उस व्यक्ति पर अम्ल फेंकेगा या फेंकने का प्रयत्न करेगा या किसी व्यक्ति को अम्ल देगा या अम्ल देने का प्रयत्न करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि पांच वर्ष से कम की नहीं होगी किन्तु जो सात वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने का भी दायी होगा ।

स्पष्टीकरण 1-इस धारा के प्रयोजनों के लिए अम्ल में कोई ऐसा पदार्थ सम्मिलित है जो ऐसे अम्लीय या संक्षारक स्वरूप या ज्वलन प्रकृति का है, जो ऐसी शारीरिक क्षति करने योग्य है, जिससे क्षतचिह्न बन जाते हैं या विद्रूपता या अस्थायी या स्थायी दिव्यांगता हो जाती है ।

स्पष्टीकरण 2 इस धारा के प्रयोजनों के लिए स्थायी या आंशिक नुकसान या अंगविकार या स्थायी विकृतशील दशा का अपरिवर्तनीय होना आवश्यक नहीं होगा ।


खंड- 125. कार्य जिससे दूसरों का जीवन या वैयक्तिक क्षेम संकटापन्न हो ।

जो कोई इतने उतावलेपन या उपेक्षा से कोई ऐसा कार्य करेगा कि उससे मानव जीवन या दूसरों का वैयक्तिक क्षेम संकटापन्न होता हो, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो ढ़ाई हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा, परंतु -

(क) जहां उपहति कारित की जाती है, दोनों में से किसी भांति के कारावास, जिसकी अवधि छह मास तक हो सकेगी या जुर्माने से जो पांच हजार तक हो सकेगा या दोनों से दण्डित किया जाएगा;

(ख) जहां घोर उपहति कारित की जाती है, दोनों में से किसी भांति के कारावास, जो तीन वर्ष तक हो सकेगी या जुर्माने से जो दस हजार तक हो सकेगा या दोनों से दण्डित किया जाएगा ।


खंड- 126. सदोष अवरोध ।

(1) जो कोई किसी व्यक्ति को स्वेच्छया ऐसे बाधा डालता है कि उस व्यक्ति को उस दिशा में, जिसमें उस व्यक्ति को जाने का अधिकार है, जाने से निवारित कर दे, वह उस व्यक्ति का सदोष अवरोध कहा जाता है ।

अपवाद-भूमि के या जल के ऐसे प्राइवेट मार्ग में बाधा डालना जिसके सम्बन्ध में किसी व्यक्ति को स‌द्भावपूर्वक विश्वास है कि वहां बाधा डालने का उसे विधिपूर्ण अधिकार है, इस धारा के अर्थ के अन्तर्गत अपराध नहीं है ।

दृष्टांत

क एक मार्ग में, जिससे होकर जाने का य का अधिकार है, स‌द्भावपूर्वक यह विश्वास न रखते हुए कि उसको मार्ग रोकने का अधिकार प्राप्त है, बाधा डालता है । य जाने से तद्वारा रोक दिया जाता है। क, य का सदोष अवरोध करता है ।

(2) जो कोई किसी व्यक्ति का सदोष अवरोध करेगा, वह सादा कारावास से, जिसकी अवधि एक मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो पांच हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा ।


खंड- 127. सदोष परिरोध ।

(1) जो कोई किसी व्यक्ति का इस प्रकार सदोष अवरोध करता है कि उस व्यक्ति को निश्चित परिसीमा से परे जाने से निवारित कर दे, वह उस व्यक्ति का सदोष परिरोध कहा जाता है ।

दृष्टांत

(क) य को दीवार से घिरे हुए स्थान में प्रवेश कराकर क उसमें ताला लगा देता है । इस प्रकार य दीवार की परिसीमा से परे किसी भी दिशा में नहीं जा सकता। क ने य का सदोष परिरोध किया है ।

(ख) क एक भवन के बाहर जाने के द्वारों पर बन्दूकधारी मनुष्यों को बैठा देता है और य से कह देता है कि यदि य भवन के बाहर जाने का प्रयत्न करेगा, तो वे य को गोली मार देंगे। क ने य का सदोष परिरोध किया है ।

(2) जो कोई किसी व्यक्ति का सदोष परिरोध करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो पांच हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा ।

(3) जो कोई किसी व्यक्ति का सदोष परिरोध तीन या अधिक दिनों के लिए करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो दस हजार रुपए तक का हो सकेगा या दोनों से, दण्डित किया जाएगा ।

(4) जो कोई किसी व्यक्ति का सदोष परिरोध दस या अधिक दिनों के लिए करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि पांच वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से जो दस हजार से अन्यून का हो सकेगा, के लिए भी दायी होगा ।

(5) जो कोई यह जानते हुए किसी व्यक्ति को सदोष परिरोध में रखेगा कि उस व्यक्ति को छोड़ने के लिए रिट सम्यक् रूप से निकल चुकी है, वह किसी अवधि के उस कारावास, जिससे कि वह इस अध्याय की किसी अन्य धारा के अधीन दण्डनीय हो, के अतिरिक्त दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, से दण्डित किया जाएगा और जुर्माने के लिए भी दायी होगा ।

(6) जो कोई किसी व्यक्ति का सदोष परिरोध इस प्रकार करेगा जिससे यह आशय प्रतीत होता हो कि ऐसे परिरुद्ध व्यक्ति से हितबद्ध किसी व्यक्ति को या किसी लोक सेवक को ऐसे व्यक्ति के परिरोध की जानकारी न होने पाए या एतस्मिन्पूर्व वर्णित किसी ऐसे व्यक्ति या लोक सेवक को, ऐसे परिरोध के स्थान की जानकारी न होने पाए या उसका पता वह न चला पाए, वह उस दण्ड के अतिरिक्त जिसके लिए वह ऐसे सदोष परिरोध के लिए दण्डनीय हो, दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा, और जुर्माने के लिए भी दायी होगा ।

(7) जो कोई किसी व्यक्ति का सदोष परिरोध इस प्रयोजन से करेगा कि उस परिरुद्ध व्यक्ति से, या उससे हितबद्ध किसी व्यक्ति से, कोई सम्पत्ति या मूल्यवान प्रतिभूति उद्घापित की जाए, या उस परिरुद्ध व्यक्ति को या उससे हितबद्ध किसी व्यक्ति को, कोई ऐसी अवैध बात करने के लिए, या कोई ऐसी जानकारी देने के लिए जिससे अपराध का किया जाना सुकर हो जाए, मजबूर किया जाए, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने के लिए भी दायी होगा ।

(8) जो कोई किसी व्यक्ति का सदोष परिरोध इस प्रयोजन से करेगा कि उस परिरुद्ध व्यक्ति से, या उससे हितबद्ध किसी व्यक्ति से, कोई संस्वीकृति या कोई जानकारी, जिससे किसी अपराध या अवचार का पता चल सके, उद्घापित की जाए, या वह परिरुद्ध व्यक्ति या उससे हितबद्ध कोई व्यक्ति मजबूर किया जाए कि वह किसी सम्पत्ति या किसी मूल्यवान प्रतिभूति को प्रत्यावर्तित करे या करवाए या किसी दावे या मांग की तुष्टि करे या कोई ऐसी जानकारी दे जिससे किसी सम्पत्ति या किसी मूल्यवान प्रतिभूति का प्रत्यावर्तन कराया जा सके, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने के लिए भी दायी होगा ।


खंड- 128. बल ।

कोई व्यक्ति द्वारा किसी अन्य व्यक्ति पर बल का प्रयोग करता है यह कहा जाता है, यदि वह उस अन्य व्यक्ति में गति, गति-परिवर्तन या गतिहीनता कारित कर देता है या यदि वह किसी पदार्थ में ऐसी गति, गति-परिवर्तन या गतिहीनता कारित कर देता है, जिससे उस पदार्थ का स्पर्श उस अन्य व्यक्ति के शरीर के किसी भाग से या किसी ऐसी चीज से, जिसे वह अन्य व्यक्ति पहने हुए है या ले जा रहा है, या किसी ऐसी चीज से, जो इस प्रकार स्थित है कि ऐसे संस्पर्श से उस अन्य व्यक्ति की संवेदन शक्ति पर प्रभाव पड़ता है, :

परंतु यह तब जबकि गतिमान, गति-परिवर्तन या गतिहीनता करने वाला व्यक्ति उस गति, गति-परिवर्तन या गतिहीनता को एतस्मिन्पश्चात् वर्णित तीन तरीकों में से किसी एक द्वारा कारित करता है, अर्थात् :-

(क) अपनी निजी शारीरिक शक्ति द्वारा ;

(ख) किसी पदार्थ के इस प्रकार व्ययन द्वारा कि उसके अपने या किसी अन्य व्यक्ति द्वारा कोई अन्य कार्य के किए जाने के बिना ही गति या गति-परिवर्तन या गतिहीनता घटित होती है ;

(ग) किसी जीव-जन्तु को गतिमान होने, गति-परिवर्तन करने या गतिहीन होने के लिए उत्प्रेरण द्वारा ।


खंड- 129. आपराधिक बल ।

जो कोई किसी व्यक्ति पर उस व्यक्ति की सम्मति के बिना बल का प्रयोग किसी अपराध को करने के लिए, या ऐसे बल के प्रयोग से कारित करने के आशय से, या ऐसे बल के प्रयोग से सम्भाव्यतः उस व्यक्ति को, जिस पर बल का प्रयोग किया गया है, को क्षति, भय या क्षोभ, कारित करेगा यह जानते हुए जानबूझकर करता है, इसे उस अन्य व्यक्ति पर आपराधिक बल का प्रयोग किया जाना कहा जाता है ।

दृष्टांत

(क) य नदी के किनारे रस्सी से बंधी हुई नाव पर बैठा है । क रस्सियों को उबंधित करता है और उस प्रकार नाव को धार में जानबूझकर बहा देता है । यहां क, य को जानबूझकर गतिमान करता है, और वह ऐसा उन पदार्थों को ऐसी रीति से व्ययनित करके करता है कि किसी व्यक्ति की ओर से कोई अन्य कार्य किए बिना ही गति उत्पन्न हो जाती है । अतएव, क ने य पर बल का प्रयोग जानबूझकर किया है, और यदि उसने य की सम्मति के बिना यह कार्य कोई अपराध करने के लिए या यह आशय रखते हुए, या यह सम्भाव्य जानते हुए किया है कि ऐसे बल के प्रयोग से वह य को क्षति, भय या क्षोभ कारित करे, तो क ने य पर आपराधिक बल का प्रयोग किया है ।

(ख) य एक रथ में सवार होकर चल रहा है। क, य के घोड़ों को चाबुक मारता है, और उसके द्वारा उनकी चाल को तेज कर देता है। यहां क ने जीव-जन्तुओं को उनकी अपनी गति परिवर्तित करने के लिए उत्प्रेरित करके य का गति-परिवर्तन कर दिया है । अतएव, क ने य पर बल का प्रयोग किया है, और यदि क ने य की सम्मति के बिना यह कार्य यह आशय रखते हुए या यह सम्भाव्य जानते हुए किया है कि वह उससे य को क्षति, भय या क्षोभ उत्पन्न करे तो क ने य पर आपराधिक बल का प्रयोग किया है ।

(ग) य एक पालकी में सवार होकर चल रहा है। य को लूटने का आशय रखते हुए क पालकी का डंडा पकड़ लेता है, और पालकी को रोक देता है। यहां, क ने य को गतिहीन किया है, और यह उसने अपनी शारीरिक शक्ति द्वारा किया है, अतएव क ने य पर बल का प्रयोग किया है, और क ने य की सम्मति के बिना यह कार्य अपराध करने के लिए जानबूझकर किया है, इसलिए क ने य पर आपराधिक बल का प्रयोग किया है ।

(घ) क सड़क पर जानबूझकर य को धक्का देता है, यहां क ने अपनी निजी शारीरिक शक्ति द्वारा अपने शरीर को इस प्रकार गति दी है कि वह य के संस्पर्श में आए । अतएव उसने जानबूझकर य पर बल का प्रयोग किया है, और यदि उसने य की सम्मति के बिना यह कार्य यह आशय रखते हुए या यह सम्भाव्य जानते हुए किया है कि वह उससे य को क्षति, भय या क्षोभ उत्पन्न करे, तो उसने य पर आपराधिक बल का प्रयोग किया है ।

(ङ) क यह आशय रखते हुए या यह बात सम्भाव्य जानते हुए एक पत्थर फेंकता है कि वह पत्थर इस प्रकार य, या य के वस्त्र के या य द्वारा ले जाई जाने वाली किसी वस्तु के संस्पर्श में आएगा या यह कि वह पानी में गिरेगा और उछलकर पानी य के कपड़ों पर या य द्वारा ले जाई जाने वाली किसी वस्तु पर जा पड़ेगा। यहां, यदि पत्थर के फेंके जाने से यह परिणाम उत्पन्न हो जाए कि कोई पदार्थ य, या य के वस्त्रों के संस्पर्श में आ जाए, तो क ने य पर बल का प्रयोग किया है; और यदि उसने य की सम्मति के बिना यह कार्य उसके द्वारा य को क्षति, भय या क्षोभ उत्पन्न करने का आशय रखते हुए किया है, तो उसने य पर आपराधिक बल का प्रयोग किया है ।

(च) क किसी महिला का घूंघट जानबूझकर हटा देता है । यहां, क ने उस पर जानबूझकर बल का प्रयोग किया है, और यदि उसने उस महिला की सम्मति के बिना यह कार्य यह आशय रखते हुए या यह सम्भाव्य जानते हुए किया है कि उससे उसको क्षति, भय या क्षोभ उत्पन्न हो, तो उसने उस आपराधिक बल का प्रयोग किया है।

(छ) य स्नान कर रहा है। क स्नान करने के टब में ऐसा जल डाल देता है जिसे वह जानता है कि वह उबल रहा है । यहां, उबलते हुए, जल में ऐसी गति को अपनी शारीरिक शक्ति द्वारा जानबूझकर उत्पन्न करता है कि उस जल का संस्पर्श य से होता है या अन्य जल से होता है, जो इस प्रकार स्थित है कि ऐसे संस्पर्श से य की संवेदन शक्ति प्रभावित होती है; इसलिए क ने य पर जानबूझकर बल का प्रयोग किया है, और यदि उसने य की सम्मति के बिना यह कार्य यह आशय रखते हुए या यह सम्भाव्य जानते हुए किया है कि वह उससे य को क्षति, भय या क्षोभ उत्पन्न करे, तो क ने आपराधिक बल का प्रयोग किया है।

(ज) क, य की सम्मति के बिना, एक कुत्ते को य पर झपटने के लिए भड़काता है । यहां यदि क का आशय य को क्षति, भय या क्षोभ कारित करने का है तो उसने य पर आपराधिक बल का प्रयोग किया है ।


खंड- 130. हमला ।

जो कोई, कोई अंगविक्षेप या कोई तैयारी इस आशय से करता है, या यह सम्भाव्य जानते हुए करता है कि ऐसे अंगविक्षेप या ऐसी तैयारी करने से किसी उपस्थित व्यक्ति को यह आशंका हो जाए कि जो वैसा अंगविक्षेप या तैयारी करता है, वह उस व्यक्ति पर आपराधिक बल का प्रयोग करने ही वाला है, वह हमला करता है, यह कहा जाता है।

स्पष्टीकरण केवल शब्द हमले की कोटि में नहीं आते । किन्तु कोई व्यक्ति ऐसे शब्द प्रयोग करता है, जो उसके अंगविक्षेप या तैयारियों को ऐसा अर्थ दे सकते हैं जिससे वे अंगविक्षेप या तैयारियां हमले की कोटि में आ जाएं ।

दृष्टांत

(क) य पर अपना मुक्का क इस आशय से या यह सम्भाव्य जानते हुए हिलाता है कि उसके द्वारा य को यह विश्वास हो जाए कि क, य को मारने वाला ही है। क ने हमला किया है ।

(ख) क एक हिंसक कुत्ते की मुखबन्धनी इस आशय से या यह सम्भाव्य जानते हुए खोलना आरंभ करता है कि उसके द्वारा य को यह विश्वास हो जाए कि वह य पर कुत्ते से आक्रमण कराने वाला है। क ने य पर हमला किया है ।

(ग) य से यह कहते हुए कि मैं तुम्हें पीटूंगा क एक छड़ी उठा लेता है । यहां यद्यपि क द्वारा प्रयोग में लाए गए शब्द किसी अवस्था में हमले की कोटि में नहीं आते और यद्यपि केवल अंगविक्षेप बनाना जिसके साथ अन्य परिस्थितियों का अभाव है, हमले की कोटि में न भी आए तथापि शब्दों द्वारा स्पष्टीकृत वह अंगविक्षेप हमले की कोटि में आ सकता है ।


खंड- 131. गम्भीर प्रकोपन होने से अन्यथा हमला करने या आपराधिक बल का प्रयोग करने के लिए दण्ड ।

जो कोई किसी व्यक्ति पर हमला या आपराधिक बल का प्रयोग उस व्यक्ति द्वारा गम्भीर और अचानक प्रकोपन दिए जाने पर करने से अन्यथा करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो एक हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा ।

स्पष्टीकरण 1 गम्भीर और अचानक प्रकोपन से इस धारा के अधीन किसी अपराध के दण्ड में कमी नही होगी, -

(क) यदि वह प्रकोपन अपराध करने के लिए प्रतिहेतु के रूप में अपराधी द्वारा ईप्सित या स्वेच्छया प्रकोपित किया गया हो; या

(ख) यदि वह प्रकोपन किसी ऐसी बात द्वारा दिया गया हो जो विधि के पालन में, या किसी लोक सेवक द्वारा ऐसे लोक सेवक की शक्ति के विधिपूर्ण प्रयोग में, की गई हो; या

(ग) यदि वह प्रकोपन किसी ऐसी बात द्वारा दिया गया हो जो प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार के विधिपूर्ण प्रयोग में की गई हो ।

स्पष्टीकरण 2 प्रकोपन अपराध को कम करने के लिए पर्याप्त गम्भीर और अचानक था या नहीं, यह तथ्य का प्रश्न है ।


खंड- 132. लोक सेवक को अपने कर्तव्य के निर्वहन से भयोपरत् करने के लिए हमला या आपराधिक बल का प्रयोग ।

जो कोई किसी ऐसे व्यक्ति पर, जो लोक सेवक हो, उस समय जब वैसे लोक सेवक के नाते वह उसके अपने कर्तव्य का निष्पादन कर रहा हो, या इस आशय से कि उस व्यक्ति को वैसे लोक सेवक के नाते अपने कर्तव्य के निर्वहन से निवारित करे या भयोपरत् करे या ऐसे लोक सेवक के नाते उसके अपने कर्तव्य के विधिपूर्ण निर्वहन में की गई या की जाने के लिए प्रयतित किसी बात के परिणामस्वरूप हमला करेगा या आपराधिक बल का प्रयोग करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा ।


खंड- 133. गम्भीर प्रकोपन होने से अन्यथा किसी व्यक्ति का अनादर करने के आशय से उस पर हमला या आपराधिक बल का प्रयोग ।

जो कोई किसी व्यक्ति पर हमला या आपराधिक बल का प्रयोग उस व्यक्ति द्वारा गम्भीर और अचानक प्रकोपन दिए जाने पर करने, से अन्यथा, इस आशय से करेगा कि तद्वारा उसका अनादर किया जाए, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा ।


खंड- 134. किसी व्यक्ति द्वारा ले जाई जाने वाली संपत्ति की चोरी के प्रयत्नों में हमला या आपराधिक बल का प्रयोग ।

जो कोई किसी व्यक्ति पर हमला या आपराधिक बल का प्रयोग किसी ऐसी सम्पत्ति की चोरी करने के प्रयत्न में करेगा जिसे वह व्यक्ति उस समय पहने हुए हो, या लिए जा रहा हो, वह दोनों में से, किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा ।


खंड- 135. किसी व्यक्ति का सदोष परिरोध करने के प्रयत्नों में हमला या आपराधिक बल का प्रयोग ।

जो कोई किसी व्यक्ति पर हमला या आपराधिक बल का प्रयोग उस व्यक्ति का सदोष परिरोध करने का प्रयत्न करने में करेगा, वह दोनों में से, किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो पांच हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा ।


खंड- 136. गम्भीर प्रकोपन मिलने पर हमला या आपराधिक बल का प्रयोग ।

जो कोई किसी व्यक्ति पर हमला या आपराधिक बल का प्रयोग उस व्यक्ति द्वारा दिए गए गम्भीर और अचानक प्रकोपन पर करेगा, वह सादा कारावास से, जिसकी अवधि एक मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो एक हजार रूपए तक का हो सकेगा या दोनों से, दण्डित किया जाएगा ।

स्पष्टीकरण यह धारा उसी स्पष्टीकरण के अध्यधीन है, जिसके अध्यधीन धारा 131 है ।


खंड- 137. व्यपहरण ।

(1) व्यपहरण दो किस्म का होता है; भारत में से व्यपहरण और विधिपूर्ण संरक्षकता में से व्यपहरण-

(क) जो कोई किसी व्यक्ति का उस व्यक्ति की, या उस व्यक्ति की ओर से सम्मति देने के लिए वैध रूप से प्राधिकृत किसी व्यक्ति की सम्मति के बिना, भारत की सीमाओं से परे प्रवहण कर देता है, वह भारत में से उस व्यक्ति का व्यपहरण करता है, यह कहा जाता है ।

(ख) जो कोई किसी बालक को या किसी विकृत चित्त व्यक्ति को, ऐसे बालक या विकृत चित्त व्यक्ति के विधिपूर्ण संरक्षक की संरक्षकता में से ऐसे संरक्षक की सम्मति के बिना ले जाता है या बहका ले जाता है, वह ऐसे बालक या ऐसे व्यक्ति का विधिपूर्ण संरक्षकता में से व्यपहरण करता है, यह कहा जाता है ।

स्पष्टीकरण इस खंड में विधिपूर्ण सरंक्षक शब्दों के अन्तर्गत ऐसा व्यक्ति आता है, जिस पर ऐसे बालक या अन्य व्यक्ति की देखरेख या अभिरक्षा का भार विधिपूर्वक न्यस्त किया गया है ।

अपवाद इस खंड का विस्तार किसी ऐसे व्यक्ति के कार्य पर नहीं है, जिसे सद्भावपूर्वक यह विश्वास है कि वह किसी अधर्मज बालक का पिता है, या जिसे स‌द्भावपूर्वक यह विश्वास है कि वह ऐसे बालक की विधिपूर्ण अभिरक्षा का हकदार है, जब तक कि ऐसा कार्य दुराचारिक या विधिविरुद्ध प्रयोजन के लिए न किया जाए ।

(2) जो कोई भारत में से या विधिपूर्ण संरक्षकता में से किसी व्यक्ति का व्यपहरण करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने का भी दायी होगा ।


खंड- 138. अपहरण ।

जो कोई किसी व्यक्ति को किसी स्थान से जाने के लिए बल द्वारा विवश करता है, या किन्हीं प्रवंचनापूर्ण उपायों द्वारा उत्प्रेरित करता है, वह उस व्यक्ति का अपहरण करता है, यह कहा जाता है ।


खंड- 139. भीख मांगने के प्रयोजनों के लिए बालक का व्यपहरण या विकलांगीकरण ।

(1) जो कोई किसी बालक का इसलिए व्यपहरण करेगा या बालक का विधिपूर्ण संरक्षक स्वयं न होते हुए बालक की अभिरक्षा इसलिए अभिप्राप्त करेगा कि ऐसा बालक भीख मांगने के प्रयोजनों के लिए नियोजित या प्रयुक्त किया जाए, वह कठिन कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष से कम नहीं होगी, किंतु जो आजीवन कारावास तक की हो सकेगी, दण्डनीय होगा और जुर्माने का भी दायी होगा ।

(2) जो कोई किसी बालक को विकलांग इसलिए करेगा कि ऐसा बालक भीख मांगने के प्रयोजनों के लिए नियोजित या प्रयुक्त किया जाए, वह कारावास से, जिसकी अवधि बीस वर्ष से कम नहीं होगी, किन्तु जो आजीवन कारावास जिससे उस व्यक्ति के शेष प्राकृत जीवन काल कारावास अभिप्रेत है, तक की हो सकेगी, और जुर्माने से भी, दण्डित किया जाएगा ।

(3) जहां कि कोई व्यक्ति, जो बालक का विधिपूर्ण संरक्षक नहीं है, उस बालक को भीख मांगने के प्रयोजनों के लिए नियोजित या प्रयुक्त करेगा, वहां जब तक कि तत्प्रतिकूल साबित न कर दिया जाए, यह उपधारणा की जाएगी कि उसने इस उद्देश्य से उस बालक का व्यपहरण किया था या अन्यथा उसकी अभिरक्षा अभिप्राप्त की थी कि वह बालक भीख मांगने के प्रयोजनों के लिए नियोजित या प्रयुक्त किया जाए ।

(4) इस धारा में भीख मांगने से निम्नलिखित अभिप्रेत है-

(i) लोक स्थान में भीख की याचना या प्राप्ति, चाहे गाने, नाचने, भाग्य बताने, करतब दिखाने या चीजें बेचने के बहाने या अन्यथा करना ;

(ii) भीख की याचना या प्राप्ति करने के प्रयोजन से किसी निजी परिसर में प्रवेश करना ;

(iii) भीख अभिप्राप्त या उद्घापित करने के उद्देश्य से अपना या किसी अन्य

व्यक्ति का या जीव-जन्तु का कोई व्रण, घाव, क्षति, विरूपता या रोग अभिदर्शित या प्रदर्शित करना ;

(iv) भीख की याचना या प्राप्ति के प्रयोजन से बालक का प्रदर्शित के रूप में प्रयोग करना ।


खंड- 140. हत्या करने के लिए या फिरौती, आदि के लिए व्यपहरण या अपहरण ।

(1) जो कोई इसलिए किसी व्यक्ति का व्यपहरण या अपहरण करेगा कि ऐसे व्यक्ति की हत्या की जाए या उसको ऐसे व्ययनित किया जाए कि वह अपनी हत्या होने के खतरे में पड़ जाए, वह आजीवन कारावास से या कठिन कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने का भी दायी होगा ।

दृष्टांत

(क) क इस आशय से या यह सम्भाव्य जानते हुए कि किसी देव मूर्ति पर य की बलि चढ़ाई जाए भारत में से य का व्यपहरण करता है । क ने इस धारा में परिभाषित अपराध किया है ।

(ख) ख को उसके गृह से क इसलिए बलपूर्वक या बहकाकर ले जाता है कि ख की हत्या की जाए । क ने इस धारा में परिभाषित अपराध किया है ।

(2) जो कोई इसलिए किसी व्यक्ति का व्यपहरण या अपहरण करेगा या ऐसे व्यपहरण या अपहरण के पश्चात् ऐसे व्यक्ति को निरोध में रखेगा और ऐसे व्यक्ति की मृत्यु या उसकी उपहति कारित करने की धमकी देगा या अपने आचरण से ऐसी युक्तियुक्त आशंका पैदा करेगा कि ऐसे व्यक्ति की मृत्यु हो सकती है या उसको उपहति की जा सकती है या ऐसे व्यक्ति को उपहति या उसकी मृत्यु कारित करेगा जिससे कि सरकार या किसी विदेशी राज्य या अंतरराष्ट्रीय अंतर-सरकारी संगठन या किसी अन्य व्यक्ति को किसी कार्य को करने या करने से प्रविरत रहने के लिए या फिरौती देने के लिए विवश किया जाए, वह मृत्यु या आजीवन कारावास से दंडित किया जाएगा और जुर्माने का भी दायी होगा ।

(3) जो कोई इस आशय से किसी व्यक्ति का व्यपहरण या अपहरण करेगा कि उसका गुप्त रूप से और सदोष परिरोध किया जाए, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने का भी दायी होगा ।

(4) जो कोई किसी व्यक्ति का व्यपहरण या अपहरण इसलिए करेगा कि उसे घोर उपहति या दासत्व का या किसी व्यक्ति की प्रकृति विरुद्ध काम वासना का विषय बनाया जाए या बनाए जाने के खतरे में वह जैसे पड़ सकता है वैसे उसे व्ययनित किया जाए या सम्भाव्य जानते हुए करेगा कि ऐसे व्यक्ति को उपर्युक्त बातों का विषय बनाया जाएगा या उपर्युक्त रूप से व्ययनित किया जाएगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने का भी दायी होगा ।


खंड- 141. विदेश से बालिका या बालक का लाना ।

जो कोई, इक्कीस वर्ष से कम आयु की किसी बालिका को, या अठारह वर्ष से कम आयु के किसी बालक को, भारत के बाहर के किसी देश से, उस बालिका या बालक को, किसी अन्य व्यक्ति से अयुक्त संभोग करने के लिए विवश या विलुब्ध करने के आशय से, या तद्द्वारा वह विवश या विलुब्ध की जाएगी, यह सम्भाव्य जानते हुए, लाएगा, वह कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने का भी दायी होगा ।


खंड- 142. व्यपहृत या अपहृत व्यक्ति को सदोष छिपाना या परिरोध में रखना ।

जो कोई यह जानते हुए कि कोई व्यक्ति व्यपहृत या अपहृत किया गया है, ऐसे व्यक्ति को सदोष छिपाएगा या परिरोध में रखेगा, वह उसी प्रकार दण्डित किया जाएगा, मानो उसने उसी आशय या ज्ञान या प्रयोजन से ऐसे व्यक्ति का व्यपहरण या अपहरण किया हो, जिससे उसने ऐसे व्यक्ति को छिपाया या परिरोध में निरुद्ध रखा है ।


खंड- 143. व्यक्ति का दुर्व्यापार ।

(1) जो कोई, शोषण के प्रयोजन के लिए, -

(क) धमकियों का प्रयोग करके ; या

(ख) बल, या किसी भी अन्य प्रकार के प्रपीड़न का प्रयोग करके ; या

(ग) अपहरण द्वारा ; या

(घ) कपट का प्रयोग करके या प्रवंचना द्वारा ; या

(ङ) शक्ति का दुरुपयोग करके ; या

(च) उत्प्रेरणा द्वारा, जिसके अंतर्गत ऐसे किसी व्यक्ति की, जो भर्ती किए गए, परिवहनित, संश्रित, स्थानांतरित या गृहीत व्यक्ति पर नियंत्रण रखता है, सम्मति प्राप्त करने के लिए भुगतान या फायदे देना या प्राप्त करना भी आता है, किसी व्यक्ति या किन्हीं व्यक्तियों को भर्ती करता है, परिवहनित करता है, संश्रय देता है, स्थानांतरित करता है, या गृहीत करता है, वह दुर्व्यापार का अपराध करता है ।

स्पष्टीकरण 1– शोषण पद के अंतर्गत शारीरिक शोषण का कोई कृत्य या किसी प्रकार का लैंगिक शोषण, दासता, या दासता अधिसेविता के समान व्यवहार, भिक्षावृत्ति या अंगों का बलात् अपसारण भी है ।

स्पष्टीकरण 2 दुर्व्यापार के अपराध के अवधारण में पीड़ित की सम्मति महत्वहीन है ।

(2) जो कोई दुर्व्यापार का अपराध करेगा वह कठिन कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष से कम की नहीं होगी, किंतु जो दस वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने का भी दायी होगा ।

(3) जहां अपराध में एक से अधिक व्यक्तियों का दुर्व्यापार अंतर्वलित है, वहां वह कठिन कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष से कम की नहीं होगी, किंतु जो आजीवन कारावास तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने का भी दायी होगा ।

(4) जहां अपराध में किसी बालक का दुर्व्यापार अंतर्वलित है, वहां वह कठिन कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष से कम की नहीं होगी, किंतु जो आजीवन कारावास तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने का भी दायी होगा ।

(5) जहां अपराध में एक से अधिक बालक का दुर्व्यापार अंतर्वलित है, वहां वह कठिन कारावास से, जिसकी अवधि चौदह वर्ष से कम की नहीं होगी, किंतु जो आजीवन कारावास तक की हो सकेगी, दंडनीय होगा और जुर्माने का भी दायी होगा ।

(6) यदि किसी व्यक्ति को किसी बालक का एक से अधिक अवसरों पर दुर्व्यापार किए जाने के अपराध के लिए सिद्धदोष ठहराया जाता है तो ऐसा व्यक्ति आजीवन कारावास से, जिससे उस व्यक्ति के शेष प्राकृत जीवनकाल के लिए कारावास अभिप्रेत होगा, दंडित किया जाएगा और जुर्माने का भी दायी होगा । (7) जहां कोई लोक सेवक या कोई पुलिस अधिकारी, किसी व्यक्ति के दुर्व्यापार में अंतर्वलित है, वहां ऐसा लोक सेवक या पुलिस अधिकारी आजीवन कारावास से, जिससे उस व्यक्ति के शेष प्राकृत जीवनकाल के लिए कारावास अभिप्रेत होगा, दंडित किया जाएगा और जुर्माने का भी दायी होगा ।


खंड- 144. ऐसे व्यक्ति का, जिसका दुर्व्यापार किया गया है, शोषण ।

(1) जो कोई, यह जानते हुए या इस बात का विश्वास करने का कारण रखते हुए कि किसी बालक का दुर्व्यापार किया गया है, ऐसे बालक को किसी भी रीति में लैंगिक शोषण के लिए रखेगा, वह कठोर कारावास से, जिसकी अवधि पांच वर्ष से कम की नहीं होगी, किंतु जो दस वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने का भी दायी होगा ।

(2) जो कोई यह जानते हुए या इस बात का विश्वास करने का कारण रखते हुए कि किसी व्यक्ति का दुर्व्यापार किया गया है, ऐसे व्यक्ति को किसी भी रीति में लैंगिक शोषण के लिए रखेगा, वह कठिन कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष से कम की नहीं होगी, किंतु जो सात वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने का भी दायी होगा ।


खंड- 145. दासों का आभ्यासिक व्यौहार करना ।

जो कोई अभ्यासतः दासों को आयात करेगा, निर्यात करेगा, अपसारित करेगा, खरीदेगा, बेचेगा या उनका दुर्व्यापार या व्यौहार करेगा, वह आजीवन कारावास से, या दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष से अधिक नहीं होगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने का भी दायी होगा ।


खंड- 146. विधिविरुद्ध अनिवार्य श्रम ।

जो कोई किसी व्यक्ति को उस व्यक्ति की इच्छा के विरुद्ध श्रम करने के लिए विधिविरुद्ध तौर पर विवश करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा ।

अध्याय 7- राज्य के विरुद्ध अपराधों के विषय नें

खंड- 147. भारत सरकार के विरुद्ध युद्ध करना या युद्ध करने का प्रयत्न करना या युद्ध करने का दुष्प्रेरण करना

जो कोई भारत सरकार के विरुद्ध युद्ध करेगा, या ऐसा युद्ध करने का प्रयत्न करेगा या ऐसा युद्ध करने का दुष्प्रेरण करेगा, वह मृत्यु या आजीवन कारावास से दंडित किया जाएगा और जुर्माने का भी दायी होगा ।

दृष्टांत

क भारत सरकार के विरुद्ध विप्लव में सम्मिलित होता है । क ने इस धारा में परिभाषित अपराध किया है ।


खंड- 148. धारा 147 द्वारा दंडनीय अपराधों को करने का षड्यंत्र ।

जो कोई धारा 147 द्वारा दंडनीय अपराधों में से कोई अपराध करने के लिए भारत के भीतर या बाहर षड्यंत्र करेगा या केंद्रीय सरकार को या किसी राज्य की सरकार को आपराधिक बल द्वारा या आपराधिक बल के प्रदर्शन द्वारा आतंकित करने का षड्यंत्र करेगा, वह आजीवन कारावास से, या दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने का भी दायी होगा ।

स्पष्टीकरण-इस धारा के अधीन षड्यंत्र गठित होने के लिए यह आवश्यक नहीं है कि उसके अनुसरण में कोई कार्य या अवैध लोप गठित हुआ हो ।


खंड- 149. भारत सरकार के विरुद्ध युद्ध करने के आशय से आयुध आदि संग्रह करना ।

जो कोई भारत सरकार के विरुद्ध या तो युद्ध करने, या युद्ध करने की तैयारी करने के आशय से पुरुष, आयुध या गोलाबारूद संग्रह करेगा, या अन्यथा युद्ध करने की तैयारी करेगा, वह आजीवन कारावास से, या दोनों में से किसी भांति के कारावास से जिसकी अवधि दस वर्ष से अधिक की नहीं होगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने का भी दायी होगा ।


खंड- 150. युद्ध करने की परिकल्पना को सुकर बनाने के आशय से छिपाना ।

जो कोई भारत सरकार के विरुद्ध युद्ध करने की परिकल्पना के अस्तित्वों को किसी कार्य द्वारा, या किसी अवैध लोप द्वारा, इस आशय से कि इस प्रकार छिपाने के द्वारा ऐसे युद्ध करने को सुकर बनाए, या यह सम्भाव्य जानते हुए कि इस प्रकार छिपाने के द्वारा ऐसे युद्ध करने को सुकर बनाएगा, छिपाएगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने का भी दायी होगा ।


खंड- 151. किसी विधिपूर्ण शक्ति का प्रयोग करने के लिए विवश करने या उसका प्रयोग अवरोधित करने के आशय से राष्ट्रपति, राज्यपाल आदि पर हमला करना ।

जो कोई भारत के राष्ट्रपति या किसी राज्य के राज्यपाल को ऐसे राष्ट्रपति या राज्यपाल की विधिपूर्ण शक्तियों में से किसी शक्ति का किसी प्रकार प्रयोग करने के लिए या प्रयोग करने से विरत रहने के लिए उत्प्रेरित करने या विवश करने के आशय से, ऐसे राष्ट्रपति या राज्यपाल पर हमला करेगा या उसका सदोष अवरोध करेगा, या सदोष अवरोध करने का प्रयत्न करेगा या उसे आपराधिक बल द्वारा या आपराधिक बल के प्रदर्शन द्वारा आतंकित करेगा या ऐसे आतंकित करने का प्रयत्न करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने का भी दायी होगा ।


खंड- 152. भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को खतरे में डालने वाले कार्य ।

जो कोई प्रयोजनपूर्वक या जानबूझकर, बोले गए या लिखे गए शब्दों द्वारा या संकेतों द्वारा, या दृश्यरूपण या इलैक्ट्रानिक संसूचना द्वारा या वित्तीय साधन के प्रयोग द्वारा या अन्यथा अलगाव या सशस्त्र विद्रोह या विध्वंसक क्रियाकलापों को प्रदीप्त करता है या प्रदीप्त करने का प्रयास करता है या अलगाववादी क्रियाकलापों की भावना को बढ़ावा देता है या भारत के संप्रभुता या एकता और अखंडता को खतरे में डालता है या ऐसे अपराध में सम्मिलित होता है या कारित करता है, वह आजीवन कारावास से, या ऐसे कारावास से जो सात वर्ष तक हो सकेगा, दंडनीय होगा और जुर्माने के लिए भी दायी होगा ।

स्पष्टीकरण इस धारा में निर्दिष्ट क्रियाकलाप प्रदीप्त किए बिना या प्रदीप्त करने के प्रयास के बिना विधिपूर्ण साधनों द्वारा उनको परिवर्तित कराने की दृष्टि से सरकार के उपायों या प्रशासनिक या अन्य क्रिया के प्रति अननुमोदन प्रकट करने वाली टीका- टिप्पणियां इस धारा के अधीन अपराध का गठन नहीं करती ।


खंड- 153. भारत सरकार से मैत्री संबंध रखने वाले किसी विदेशी राज्य के विरुद्ध युद्ध करना ।

जो कोई भारत सरकार से मैत्री का या शांति का संबंध रखने वाले किसी विदेशी राज्य की सरकार के विरुद्ध युद्ध करेगा या ऐसा युद्ध करने का प्रयत्न करेगा, या ऐसा युद्ध करने के लिए दुष्प्रेरण करेगा, वह आजीवन कारावास से, जिसमें जुर्माना जोड़ा जा सकेगा या दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, जिसमें जुर्माना जोड़ा जा सकेगा या जुर्माने से दंडित किया जाएगा ।


खंड- 154. भारत सरकार के साथ शांति का संबंध रखने वाले विदेशी राज्य के राज्यक्षेत्र में लूटपाट करना ।

जो कोई भारत सरकार से मैत्री का या शांति का संबंध रखने वाले किसी विदेशी राज्य के राज्यक्षेत्र में लूटपाट करेगा, या लूटपाट करने की तैयारी करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और वह जुर्माने का और ऐसी लूटपाट करने के लिए उपयोग में लाई गई या उपयोग में लाई जाने के लिए आशयित, या ऐसी लूटपाट द्वारा अर्जित संपत्ति के समपहरण का भी दायी होगा ।


खंड- 155. धारा 153 और धारा 154 में वर्णित युद्ध या लूटपाट द्वारा ली गई सम्पत्ति प्राप्त करना ।

जो कोई किसी सम्पत्ति को यह जानते हुए प्राप्त करेगा कि वह धारा 153 और धारा 154 में वर्णित अपराधों में से किसी के किए जाने में ली गई है वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और वह जुर्माने से और इस प्रकार प्राप्त की गई संपत्ति के समपहरण का भी दायी होगा ।


खंड- 156. लोक सेवक का स्वेच्छया राजकैदी या युद्धकैदी को निकल भागने देना ।

जो कोई लोक सेवक होते हुए और किसी राजकैदी या युद्धकैदी को अभिरक्षा में रखते हुए, स्वेच्छया ऐसे कैदी को किसी ऐसे स्थान से जिसमें ऐसा कैदी परिरुद्ध है, निकल भागने देगा, वह आजीवन कारावास से या दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने का भी दायी होगा ।


खंड- 157. उपेक्षा से लोक सेवक का ऐसे कैदी का निकल भागना सहन करना ।

जो कोई लोक सेवक होते हुए और किसी राजकैदी या युद्धकैदी को अभिरक्षा में रखते हुए उपेक्षा से ऐसे कैदी का किसी ऐसे परिरोध स्थान से जिसमें ऐसा कैदी परिरुद्ध है, निकल भागना सहन करेगा, वह सादा कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने का भी दायी होगा ।


खंड- 158. ऐसे कैदी के निकल भागने में सहायता देना, उसे छुड़ाना या संश्रय देना ।

जो कोई जानते हुए किसी राजकैदी या युद्धकैदी को विधिपूर्ण अभिरक्षा से निकल भागने में मदद या सहायता देगा, या किसी ऐसे कैदी को छुड़ाएगा, या छुड़ाने का प्रयत्न करेगा, या किसी ऐसे कैदी को, जो विधिपूर्ण अभिरक्षा से निकल भागा है, संश्रय देगा या छिपाएगा या ऐसे कैदी के फिर से पकड़े जाने का प्रतिरोध करेगा या करने का प्रयत्न करेगा, वह आजीवन कारावास से या दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने का भी दायी होगा ।

स्पष्टीकरण कोई राजकैदी या युद्धकैदी, जिसे अपने पैरोल पर भारत में कतिपय सीमाओं के भीतर, यथेच्छ विचरण की अनुज्ञा है, विधिपूर्ण अभिरक्षा से निकल भागा है, यह तब कहा जाता है, जब वह उन सीमाओं से परे चला जाता है, जिनके भीतर उसे यथेच्छ विचरण की अनुज्ञा है ।

अध्याय 8- सेना नौसेना और वायुसेना से संबंधित अपराधों के विषय में

खंड- 159. विद्रोह का दुष्प्रेरण या किसी सैनिक, नौसैनिक या वायुसैनिक को कर्तव्य से विचलित करने का प्रयत्न करना ।

जो कोई भारत सरकार की सेना, नौसेना या वायुसेना के किसी अधिकारी, सैनिक, नौसैनिक या वायुसैनिक द्वारा विद्रोह किए जाने का दुष्प्रेरण करेगा, या किसी ऐसे अधिकारी, सैनिक, नौसैनिक या वायुसैनिक को उसकी राजनिष्ठा या उसके कर्तव्य से विचलित करने का प्रयत्न करेगा, वह आजीवन कारावास से या दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने का भी दायी होगा ।


खंड- 160. विद्रोह का दुष्प्रेरण यदि उसके परिणामस्वरूप विद्रोह किया जाए ।

जो कोई भारत सरकार की सेना, नौसेना या वायुसेना के किसी अधिकारी, सैनिक, नौसैनिक या वायुसैनिक द्वारा विद्रोह किए जाने का दुष्प्रेरण करेगा, यदि उस दुष्प्रेरण के परिणामस्वरूप विद्रोह हो जाए, तो वह मृत्यु से या आजीवन कारावास से, या दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और वह जुर्माने का भी दायी होगा ।


खंड- 161. सैनिक, नौसैनिक या वायुसैनिक द्वारा अपने वरिष्ठ अधिकारी पर जब कि वह अधिकारी अपने पद-निष्पादन में हो, हमले का दुष्प्रेरण ।

जो कोई भारत सरकार की सेना, नौसेना या वायुसेना के किसी अधिकारी, सैनिक, नौसैनिक या वायुसैनिक द्वारा किसी वरिष्ठ अधिकारी पर, जब कि वह अधिकारी अपने पद-निष्पादन में हो, हमले का दुष्प्रेरण करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और वह जुर्माने का भी दायी होगा ।


खंड- 162. ऐसे हमले का दुष्प्रेरण यदि हमला किया जाए ।

जो कोई भारत सरकार की सेना, नौसेना या वायुसेना के अधिकारी, सैनिक, नौसैनिक या वायुसैनिक द्वारा किसी वरिष्ठ अधिकारी पर, जब कि वह अधिकारी अपने पद- निष्पादन में हो, हमले का दुष्प्रेरण करेगा, यदि ऐसा हमला उस दुष्प्रेरण के परिणामस्वरूप किया जाए, तो वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने का भी दायी होगा ।


खंड- 163. सैनिक, नौसैनिक या वायुसैनिक द्वारा अभित्यजन का दुष्प्रेरण ।

जो कोई भारत सरकार की सेना, नौसेना या वायुसेना के किसी अधिकारी, सैनिक, नौसैनिक या वायुसैनिक द्वारा अभित्यजन किए जाने का दुष्प्रेरण करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से दंडित किया जाएगा ।


खंड- 164. अभित्याजक को संश्रय देना ।

जो कोई एतस्मिनपश्चात् यथा अपवादित के सिवाय, यह जानते हुए या यह विश्वास करने का कारण रखते हुए कि भारत सरकार की सेना, नौसेना या वायुसेना के किसी अधिकारी, सैनिक, नौसैनिक या वायुसैनिक ने अभित्यजन किया है, ऐसे अधिकारी, सैनिक, नौसैनिक या वायुसैनिक को संश्रय देगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से दंडित किया जाएगा ।

अपवाद इस उपबंध का विस्तार उस मामले पर नहीं है, जिसमें पत्नी/पति द्वारा अपने पति/पत्नी को संश्रय दिया जाता है ।


खंड- 165. मास्टर की उपेक्षा से किसी वाणिज्यिक जलयान पर छिपा हुआ अभित्याजक ।

किसी ऐसे वाणिज्यिक जलयान का, जिस पर भारत सरकार की सेना, नौसेना या वायुसेना का कोई अभित्याजक छिपा हुआ हो, मास्टर या भारसाधक व्यक्ति, यद्यपि वह ऐसे छिपने के संबंध में अनभिज्ञ हो, ऐसी शास्ति से दंडनीय होगा जो तीन हजार रुपए से अधिक नहीं होगी, यदि उसे ऐसे छिपने का ज्ञान हो सकता था किंतु केवल इस कारण नहीं हुआ कि ऐसे मास्टर या भारसाधक व्यक्ति के नाते उसके कर्तव्य में कुछ उपेक्षा हुई, या उस जलयान पर अनुशासन का कुछ अभाव था ।


खंड- 166. सैनिक, नौसैनिक या वायुसैनिक द्वारा अनधीनता के कार्य का दुष्प्रेरण ।

जो कोई ऐसी बात का दुष्प्रेरण करेगा जिसे कि वह भारत सरकार की सेना, नौसेना या वायुसेना के किसी अधिकारी, सैनिक, नौसैनिक या वायुसैनिक द्वारा अनधीनता का कार्य जानता हो, यदि अनधीनता का ऐसा कार्य उस दुष्प्रेरण के परिणामस्वरूप किया जाए, तो वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दंडित किया जाएगा ।


खंड- 167. कतिपय अधिनियमों के अध्यधीन व्यक्ति ।

वायुसेना अधिनियम, 1950, सेना अधिनियम, 1950 या नौसेना अधिनियम, 1957 के अध्यधीन कोई व्यक्ति, इस अध्याय में परिभाषित अपराधों में से किसी के लिए इस संहिता के अधीन दंडनीय नहीं होगा ।


खंड- 168. सैनिक, नौसैनिक या वायुसैनिक द्वारा उपयोग में लाई जाने वाली पोशाक पहनना या टोकन धारण करना ।

जो कोई, भारत सरकार की सेना, नौसेना या वायुसेना का सैनिक, नौसैनिक या वायुसैनिक न होते हुए, इस आशय से कि यह विश्वास किया जाए कि वह ऐसा सैनिक, नौसैनिक या वायुसैनिक है, ऐसी कोई पोशाक पहनेगा या ऐसा टोकन धारण करेगा, जो ऐसे सैनिक, नौसैनिक या वायुसैनिक द्वारा उपयोग में लाई जाने वाली पोशाक या टोकन के सदृश हो, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो दो हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दंडित किया जाएगा ।

अध्याय 9- निर्वाचन संबंधित अपराधों के विषय में

खंड- 169. अभ्यर्थी, निर्वाचन अधिकार परिभाषित ।

इस अध्याय के प्रयोजनों के लिए-

(क) अभ्यर्थी से वह व्यक्ति अभिप्रेत है, जो किसी निर्वाचन में अभ्यर्थी के रूप में नामनिर्दिष्ट किया गया है ;

(ख) निर्वाचन अधिकार से किसी निर्वाचन में अभ्यर्थी के रूप में खड़े होने या खड़े न होने या अभ्यर्थना से अपना नाम वापस लेने या मत देने या मत देने से विरत रहने का किसी व्यक्ति का अधिकार अभिप्रेत है ।


खंड- 170. रिश्वत ।

(1) जो कोई

(i) किसी व्यक्ति को इस उद्देश्य से परितोषण देता है कि वह उस व्यक्ति को या किसी अन्य व्यक्ति को किसी निर्वाचन अधिकार का प्रयोग करने के लिए उत्प्रेरित करे या किसी व्यक्ति को इसलिए इनाम दे कि उसने ऐसे अधिकार का प्रयोग किया है; या

(ii) स्वयं अपने लिए या किसी अन्य व्यक्ति के लिए कोई परितोषण ऐसे किसी अधिकार को प्रयोग में लाने के लिए या किसी अन्य व्यक्ति को ऐसे किसी अधिकार को प्रयोग में लाने के लिए उत्प्रेरित करने या उत्प्रेरित करने का प्रयत्न करने के लिए इनाम के रूप में प्रतिगृहीत करता है, वह रिश्वत का अपराध करता है :

परंतु लोक नीति की घोषणा या लोक कार्यवाही का वचन इस धारा के अधीन अपराध नहीं होगा ।

(2) जो व्यक्ति परितोषण देने की प्रस्थापना करता है या देने को सहमत होता है या उपाप्त करने की प्रस्थापना या प्रयत्न करता है, यह समझा जाएगा कि वह परितोषण देता है ।

(3) जो व्यक्ति परितोषण अभिप्राप्त करता है या प्रतिगृहीत करने को सहमत है या अभिप्राप्त करने का प्रयत्न करता है, यह समझा जाएगा कि वह परितोषण प्रतिगृहीत करता है और जो व्यक्ति वह बात करने के लिए, जिसे करने का उसका आशय नहीं है, हेतु स्वरूप, या जो बात उसने नहीं की है उसे करने के लिए इनाम के रूप में परितोषण प्रतिगृहीत करता है, यह समझा जाएगा कि उसने परितोषण को इनाम के रूप में प्रतिगृहीत किया है ।


खंड- 171. निर्वाचनों में असम्यक् असर डालना ।

(1) जो कोई किसी निर्वाचन अधिकार के निर्बाध प्रयोग में स्वेच्छया हस्तक्षेप करता है या हस्तक्षेप करने का प्रयत्न करता है, वह निर्वाचन में असम्यक् असर डालने का अपराध करता है ।

(2) उपधारा (1) के उपबंधों की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, जो कोई —

(क) किसी अभ्यर्थी या मतदाता को, या किसी ऐसे व्यक्ति को, जिससे अभ्यर्थी या मतदाता हितबद्ध है, किसी प्रकार की क्षति करने की धमकी देता है; या

(ख) किसी अभ्यर्थी या मतदाता को यह विश्वास करने के लिए उत्प्रेरित करता है या उत्प्रेरित करने का प्रयत्न करता है कि वह या कोई ऐसा व्यक्ति, जिससे वह हितबद्ध है, दैवी अप्रसाद या आध्यात्मिक परिनिन्दा का भाजन हो जाएगा या बना दिया जाएगा,

यह समझा जाएगा कि वह उपधारा (1) के अर्थ के अंतर्गत ऐसे अभ्यर्थी या मतदाता के निर्वाचन अधिकार के निर्बाध प्रयोग में हस्तक्षेप करता है ।

(3) लोक नीति की घोषणा या लोक कार्यवाही का वचन या किसी वैध अधिकार का प्रयोग मात्र, जो किसी निर्वाचन अधिकार में हस्तक्षेप करने के आशय के बिना है, इस धारा के अर्थ के अंतर्गत हस्तक्षेप करना नहीं समझा जाएगा ।


खंड- 172. निर्वाचनों में प्रतिरूपण।

जो कोई किसी निर्वाचन में किसी अन्य व्यक्ति के नाम से, चाहे वह जीवित हो या मृत, या किसी कल्पित नाम से, मतपत्र के लिए आवेदन करता या मत देता है, या ऐसे निर्वाचन में एक बार मत दे चुकने के पश्चात् उसी निर्वाचन में अपने नाम से मतपत्र के लिए आवेदन करता है, और जो कोई किसी व्यक्ति द्वारा किसी ऐसे प्रकार से मतदान को दुष्प्रेरित करता है, उपाप्त करता है या उपाप्त करने का प्रयत्न करता है, वह निर्वाचन में प्रतिरूपण का अपराध करता है :

परंतु इस धारा की कोई बात किसी ऐसे व्यक्ति को लागू नहीं होगी जिसे तत्समय प्रवृत्त किसी विधि के अधीन मतदाता की ओर से, जहां तक वह ऐसे मतदाता की ओर से परोक्षी के रूप में मत देता है, परोक्षी के रूप में मत देने के लिए प्राधिकृत किया गया है ।


खंड- 173. रिश्वत के लिए दण्ड ।

जो कोई रिश्वत का अपराध करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा :

परंतु सत्कार के रूप में रिश्वत केवल जुर्माने से ही दण्डित की जाएगी ।

स्पष्टीकरण सत्कार से रिश्वत का वह रूप अभिप्रेत है जहां परितोषण, खाद्य, पेय, मनोरंजन या रसद के रूप में है ।


खंड- 174. निर्वाचनों में असम्यक् असर डालने या प्रतिरूपण के लिए दण्ड ।

जो कोई किसी निर्वाचन में असम्यक् असर डालने या प्रतिरूपण का अपराध करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा ।


खंड- 175. निर्वाचन के सिलसिले में मिथ्या कथन ।

जो कोई निर्वाचन के परिणाम पर प्रभाव डालने के आशय से किसी अभ्यर्थी के वैयक्तिक शील या आचरण के संबंध में तथ्य का कथन तात्पर्पित होने वाला कोई ऐसा कथन करेगा या प्रकाशित करेगा, जो मिथ्या है, और जिसका मिथ्या होना वह जानता या विश्वास करता है या जिसके सत्य होने का वह विश्वास नहीं करता है वह जुर्माने से दण्डित किया जाएगा ।


खंड- 176. निर्वाचन के सिलसिले में अवैध संदाय ।

जो कोई किसी अभ्यर्थी के साधारण या विशेष लिखित प्राधिकार के बिना ऐसे अभ्यर्थी का निर्वाचन अग्रसर करने या निर्वाचन करा देने के लिए कोई सार्वजनिक सभा करने में या किसी विज्ञापन, परिपत्र या प्रकाशन पर या किसी भी अन्य ढंग से व्यय करेगा या करना प्राधिकृत करेगा, वह जुर्माने से, जो दस हजार रुपए तक का हो सकेगा, दण्डित किया जाएगा :

परन्तु यदि कोई व्यक्ति, जिसने प्राधिकार के बिना कोई ऐसे व्यय किए हों, जो कुल मिलाकर दस रुपए से अधिक न हों, उस तारीख से जिस तारीख को ऐसे व्यय किए गए हों, दस दिन के भीतर उस अभ्यर्थी का लिखित अनुमोदन अभिप्राप्त कर ले, तो यह समझा जाएगा कि उसने ऐसे व्यय उस अभ्यर्थी के प्राधिकार से किए हैं ।


खंड- 177. निर्वाचन लेखा रखने में असफलता ।

जो कोई किसी तत्समय प्रवृत्त विधि द्वारा या विधि का बल रखने वाले किसी नियम द्वारा इसके लिए अपेक्षित होते हुए कि वह निर्वाचन में या निर्वाचन के संबंध में किए गए व्ययों का लेखा रखे, ऐसा लेखा रखने में असफल रहेगा, वह जुर्माने से, जो पांच हजार रुपए तक का हो सकेगा, दंडित किया जाएगा ।

अध्याय 10- सिक्कों, करेंसी नोटों, बैंक नोटों और सरकारी स्टाम्पों से संबंधित अपराधों के विषय में

खंड- 178. सिक्कों, सरकारी स्टांपों, करेंसी नोटों या बैंक नोटों कूटकरण ।

जो कोई, किसी सिक्के, राजस्व के प्रयोजन के लिए सरकार द्वारा जारी स्टाम्प, करेंसी नोट या बैंक नोट का कूटकरण करेगा या जानते हुए कूटकरण की प्रक्रिया के किसी भाग को करेगा, आजीवन कारावास से या दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने का भी दायी होगा ।

स्पष्टीकरण-इस अध्याय के प्रयोजनों के लिए, -

(1) बैंक-नोट पद से वचन-पत्र या मांग पर धारक को धन के संदाय हेतु व्यवस्था अभिप्रेत है जो विश्व के किसी भी भाग में बैंककारी कारबार करने वाले किसी व्यक्ति द्वारा जारी या किसी राज्य या संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न शक्ति के प्राधिकार द्वारा जारी और प्राधिकार के अधीन प्रचालित धन के स्थान पर या उसके समतुल्य प्रयोग किए जाने हेतु आशयित है ;

(2) सिक्का पद का वही अर्थ होगा, जो सिक्का निर्माण अधिनियम, 2011 की धारा 2 में इसका है और इसके अंतर्गत तत्समय धन के रूप में उपयोग में लाई जा रही और इस प्रकार उपयोग में लाए जाने के लिए किसी राज्य या संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न शक्ति के प्राधिकार द्वारा स्टांपित और प्रचालित धातु भी है ;

(3) कोई व्यक्ति सरकारी स्टाम्प कूटकरण का अपराध करेगा, जो एक अंकित मूल्य के असली स्टाम्प को किसी भिन्न अंकित मूल्य के असली स्टाम्प जैसा दिखाई देने का कूटकरण करता है ;

(4) जो व्यक्ति असली सिक्के को किसी भिन्न सिक्के के जैसा दिखाई देने वाला इस आशय से बनाता है कि प्रवंचना की जाए या यह संभाव्य जानते हुए बनाता है कि तद्द्वारा प्रवंचना की जाएगी, वह यह सिक्के के कूटकरण का अपराध करता है; और (5) सिक्का कूटकरण अपराध के कूटकरण में सिक्के के वजन को कम करना या मिश्रण परिवर्तन या दिखाई देने में परिवर्तन सम्मिलित है ।


खंड- 179. कूटरचित या कूटकृत सिक्के, सरकारी स्टाम्प, करेंसी नोट या बैंक नोट को असली के रूप में उपयोग करना ।

जो कोई किसी कूटरचित या कूटकृत सिक्के, किसी स्टाम्प, करेंसी नोट या बैंक नोट, को यह जानते हुए या यह विश्वास का कारण रखते हुए आयात करेगा या निर्यात करेगा या बेचेगा या परिदत्त करेगा या क्रय करेगा या किसी अन्य व्यक्ति से प्राप्त करेगा या अन्यथा उसका दुर्व्यापार करेगा या असली के रूप में उपयोग करेगा, वह आजीवन कारावास से या दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने का भी दायी होगा ।


खंड- 180. कूटरचित या कूटकृत सिक्के, सरकारी स्टाम्प, करेंसी नोटों या बैंक नोटों को कब्जे में रखना ।

जो कोई, किसी कूटरचित या कूटकृत सिक्के, स्टांप, करेंसी नोट या बैंक नोट को यह जानते हुए या विश्वास रखने का कारण रखते हुए कि वह कूटरचित या कूटकृत है उसे असली के रूप में उपयोग में लाने के आशय से या इस आशय से कि उसे असली के रूप में उपयोग में लाया जा सके, अपने कब्जे में रखेगा तो वह किसी भी भांति के कारावास से, जो सात वर्ष तक हो सकेगा या जुर्माने से या दोनों से दंडनीय होगा ।

स्पष्टीकरण यदि कोई व्यक्ति कूटरचित या कूटकृत सिक्के, स्टांप, करेंसी-नोट या बैंक नोट के कब्जे को विधिपूर्ण स्रोत से होना स्थापित कर देता है, तो यह इस धारा के अधीन अपराध गठित नहीं करेगा ।


खंड- 181. लिखत या कूटरचना के लिए सामग्री या कूटकृत सिक्के, सरकारी स्टाम्प, करेंसी नोटों या बैंक नोटों बनाना या कब्जे में रखना ।

जो कोई किसी सिक्के के कूटकरण या कूटरचना, राजस्व के प्रयोजन के लिए सरकार द्वारा जारी स्टाम्प, करेंसी नोट या बैंक नोट मशीनरी, डाई या लिखत या सामग्री, जिसे प्रयोग किए जाने के प्रयोजन से या जानते हुए या जिसके बारे में वह जानता है कि यह प्रयोग में लाया जाएगा, बनाता है, या ढालता है, उसको बनाने या ढालने की प्रक्रिया के किसी भाग में कार्य करता है या क्रय या विक्रय या निपटान करता है या उसके कब्जे में कोई मशीनरी, डाई, लिखत या सामग्री है, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने का भी दायी होगा ।


खंड- 182. करेंसी नोटों या बैंक नोटों के सदृश रखने वाले दस्तावेजों की रचना या उपयोग ।

(1) जो कोई, किसी दस्तावेज को, जो करेंसी नोट या बैंक नोट होना तात्पर्यित हो या करेंसी नोट या बैंक नोट के किसी भी प्रकार सदृश् हो या इतने निकटतः सदृश हो कि प्रवंचना हो जाना प्रकल्पित हो, रचेगा या रचवाएगा या किसी भी प्रयोजन के लिए उपयोग में लाएगा या किसी व्यक्ति को परिदत्त करेगा, वह जुर्माने से, जो तीन सौ रुपए तक का हो सकेगा, दंडित किया जाएगा ।

(2) यदि कोई व्यक्ति, जिसका नाम ऐसे दस्तावेज पर हो, जिसकी रचना उपधारा (1) अधीन अपराध है, किसी पुलिस अधिकारी को उस व्यक्ति का नाम और पता, जिसके द्वारा वह मुद्रित की गई थी या अन्यथा रची गई थी, बताने के लिए अपेक्षित किए जाने पर उसे विधिपूर्ण प्रतिहेतु के बिना बताने से इनकार करेगा, वह जुर्माने से, जो छह सौ रुपए तक का हो सकेगा, दंडित किया जाएगा ।

(3) जहां किसी ऐसे दस्तावेज पर, जिसके बारे में किसी व्यक्ति पर उपधारा (1) के अधीन अपराध का आरोप लगाया गया हो या किसी अन्य दस्तावेज पर, जो उस दस्तावेज के संबंध में उपयोग में लाया गया हो या वितरित किया गया हो, किसी व्यक्ति का नाम हो, वहां जब तक तत्प्रतिकूल साबित नहीं कर दिया जाए, यह उपधारणा की जा सकेगी कि उस व्यक्ति ने दस्तावेज रचवाया है ।


खंड- 183. सरकार को हानि कारित करने के आशय से, उस पदार्थ पर से, जिस पर सरकारी स्टाम्प लगा हुआ है, लेख मिटाना या दस्तावेज से वह स्टाम्प हटाना, जो उसके लिए उपयोग में लाया गया है ।

जो कोई कपटपूर्वक, या इस आशय से कि सरकार को हानि कारित की जाए, किसी पदार्थ पर से, जिस पर सरकार द्वारा राजस्व के प्रयोजन के लिए जारी कोई स्टाम्प लगा हुआ हो, किसी लेख या दस्तावेज को, जिसके लिए ऐसा स्टाम्प उपयोग में लाया गया हो, हटाएगा या मिटाएगा या किसी लेख या दस्तावेज पर से उस लेख या दस्तावेज के लिए उपयोग में लाया गया स्टाम्प इसलिए हटाएगा कि ऐसा स्टाम्प किसी भिन्न लेख या दस्तावेज के लिए उपयोग में लाया जाए, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दंडित किया जाएगा ।


खंड- 184. ऐसे सरकारी स्टाम्प का उपयोग जिसके बारे में ज्ञात है कि उसका पहले उपयोग हो चुका है।

जो कोई कपटपूर्वक, या इस आशय से कि सरकार को हानि कारित की जाए, सरकार द्वारा राजस्व के प्रयोजन के लिए जारी किसी स्टाम्प को, जिसके बारे में वह जानता है कि वह स्टाम्प उससे पहले उपयोग में लाया जा चुका है, किसी प्रयोजन के लिए उपयोग में लाएगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दंडित किया जाएगा ।


खंड- 185. स्टाम्प के उपयोग किए जा चुकने के द्योतक चिह्न का छीलकर मिटाना।

जो कोई कपटपूर्वक, या इस आशय से कि सरकार को हानि कारित की जाए, सरकार द्वारा राजस्व के प्रयोजन के लिए जारी स्टाम्प पर से उस चिह्न को छीलकर मिटाएगा या हटाएगा, जो ऐसे स्टाम्प पर यह द्योतन करने के प्रयोजन से कि वह उपयोग में लाया जा चुका है, लगा हुआ या छापित हो या ऐसे किसी स्टाम्प को, जिस पर से ऐसा चिह्न मिटाया या हटाया गया हो, जानते हुए अपने कब्जे में रखेगा या बेचेगा या व्ययनित करेगा, या ऐसे किसी स्टाम्प को, जो वह जानता है कि उपयोग में लाया जा चुका है, बेचेगा या व्ययनित करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दंडित किया जाएगा ।


खंड- 186. बनावटी स्टाम्पों का प्रतिषेध ।

(1) जो कोई किसी बनावटी स्टाम्प को -

(क) बनाएगा, जानते हुए चलाएगा, उसका व्यौहार करेगा या उसका विक्रय करेगा या किसी बनावटी स्टाम्प को डाक संबंधी किसी प्रयोजन के लिए जानते हुए उपयोग में लाएगा ; या

(ख) किसी बनावटी स्टाम्प को, विधिपूर्ण प्रतिहेतु के बिना, अपने कब्जे में रखेगा ; या

(ग) कोई बनावटी स्टाम्प बनाने के लिए किसी डाई, पट्टी, उपकरण या सामग्रियों को, बनाएगा, या किसी विधिपूर्ण प्रतिहेतु के बिना, अपने कब्जे में रखेगा, वह जुर्माने से, जो दो सौ रुपए तक हो सकेगा, दंडित किया जाएगा ।

(2) कोई ऐसा स्टाम्प, कोई बनावटी स्टाम्प बनाने की डाई, पट्टी, उपकरण या सामग्रियां, जो किसी व्यक्ति के कब्जे में हो, अभिगृहीत की जा सकेगी और अभिगृहीत की जाएं तो समपहृत कर ली जाएगी ।

(3) इस धारा में बनावटी स्टाम्प से ऐसा कोई स्टाम्प अभिप्रेत है, जिससे यह मिथ्या रूप से तात्पर्यत हो कि सरकार ने डाक महसूल की दर के द्योतन के प्रयोजन से उसे जारी किया है या जो सरकार द्वारा उस प्रयोजन से जारी किसी स्टाम्प की, कागज पर या अन्यथा, अनुलिपि या अनुकृति या समरूपण हो ।

(4) इस धारा में और धारा 178 से धारा 181 तथा धारा 183 से धारा 185 तक में भी, जिनमें ये दोनों धाराएं भी समाविष्ट हैं, सरकार शब्द के अंतर्गत, जब भी वह डाक महसूल की दर के द्योतन के जारी से प्रचालित किए गए किसी स्टाम्प के ससंग या निर्देशन में उपयोग किया गया है, धारा 2 के खंड (12) में किसी बात के होते हुए भी, वह या वे व्यक्ति समझे जाएंगे जो भारत के किसी भाग में या किसी विदेश में, कार्यपालिका सरकार का प्रशासन चलाने के लिए विधि द्वारा प्राधिकृत हो ।


खंड- 187. टकसाल में नियोजित व्यक्ति द्वारा सिक्के का उस वजन या मिश्रण से भिन्न कारित किया जाना जो विधि द्वारा नियत है ।

जो कोई भारत में विधिपूर्वक स्थापित किसी टकसाल में से नियोजित होते हुए इस आशय से कोई कार्य करेगा, या उस कार्य का लोप करेगा, जिसे करने के लिए वह वैध रूप से आबद्ध हो कि उस टकसाल से जारी कोई सिक्का विधि द्वारा नियत वजन या मिश्रण से भिन्न वजन या मिश्रण का कारित हो, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने का भी दायी होगा ।


खंड- 188. टकसाल से सिक्का बनाने का उपकरण विधिविरुद्ध रूप से लेना ।

जो कोई भारत में विधिपूर्वक स्थापित किसी टकसाल में से सिक्का बनाने के किसी औजार या उपकरण को विधिपूर्ण प्राधिकार के बिना बाहर निकाल लाएगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने का भी दायी होगा ।

अध्याय 11- लोक प्रशांति के विरुद्ध अपराधों के विषय में

खंड- 189. विधिविरुद्ध जमाव ।

(1) पांच या अधिक व्यक्तियों का जमाव विधिविरुद्ध जमाव के रूप में नामनिर्दिष्ट है, यदि उन व्यक्तियों का, जिनसे वह जमाव गठित हुआ है, सामान्य उद्देश्य हो, -

(क) केंद्रीय सरकार को, या किसी राज्य सरकार को, या संसद् को या, किसी राज्य के विधान-मंडल को, या किसी लोक सेवक को, जब कि वह ऐसे लोक सेवक की विधिपूर्ण शक्ति का प्रयोग कर रहा हो, आपराधिक बल द्वारा, या आपराधिक बल के प्रदर्शन द्वारा, आतंकित करना ; या

(ख) किसी विधि के, या किसी विधिक प्रक्रिया के, निष्पादन का प्रतिरोध करना ;या

(ग) किसी रिष्टि या आपराधिक अतिचार या अन्य अपराध का करना; या

(घ) किसी व्यक्ति पर आपराधिक बल द्वारा या आपराधिक बल के प्रदर्शन द्वारा, किसी संपत्ति का कब्जा लेना या अभिप्राप्त करना या किसी व्यक्ति को किसी मार्ग के अधिकार के उपभोग से, या जल का उपयोग करने के अधिकार या अन्य अमूर्त अधिकार से, जिसका वह कब्जा रखता हो, या उपभोग करता हो, वंचित करना या किसी अधिकार या अनुमित अधिकार को प्रवर्तित कराना ; या

(ङ) आपराधिक बल द्वारा या आपराधिक बल के प्रदर्शन द्वारा, किसी व्यक्ति को वह करने के लिए, जिसे करने के लिए वह वैध रूप से आबद्ध न हो या उसका लोप करने के लिए, जिसे करने का वह वैध रूप से हकदार हो, विवश करना ।

स्पष्टीकरण कोई जमाव, जो इकठ्ठा होते समय विधिविरुद्ध नहीं था, तत्पश्चात् विधिविरुद्ध जमाव बन सकेगा ।

(2) जो कोई उन तथ्यों से परिचित होते हुए, जो किसी जमाव को विधिविरुद्ध जमाव बनाते हैं, उस जमाव में जानबूझकर सम्मिलित होता है या उसमें बना रहता है, यह कहा जाता है कि वह विधिविरुद्ध जमाव का सदस्य है, और ऐसा सदस्य, दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दंडित किया जाएगा ।

(3) जो कोई किसी विधिविरुद्ध जमाव में, यह जानते हुए कि ऐसे विधिविरुद्ध जमाव को बिखर जाने का समादेश विधि द्वारा विहित रीति से दिया गया है, सम्मिलित होगा, या बना रहेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दंडित किया जाएगा ।

(4) जो कोई किसी घातक आयुध से, या किसी ऐसी चीज से, जिससे आक्रामक आयुध के रूप में उपयोग किए जाने पर मृत्यु कारित होना संभाव्य है, सज्जित होते हुए किसी विधिविरुद्ध जमाव का सदस्य होगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दंडित किया जाएगा ।

(5) जो कोई पांच या अधिक व्यक्तियों के किसी जमाव में, जिससे लोक शांति में विघ्न कारित होना सम्भाव्य हो, ऐसे जमाव को बिखर जाने का समादेश विधिपूर्वक दे दिए जाने पर जानते हुए सम्मिलित होगा या बना रहेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दंडित किया जाएगा ।

स्पष्टीकरण यदि वह जमाव उपधारा (1) के अर्थान्तर्गत विधिविरुद्ध जमाव हो, तो अपराधी उपधारा (3) के अधीन दंडनीय होगा ।

(6) जो कोई किसी व्यक्ति को किसी विधिविरुद्ध जमाव में सम्मिलित होने या उसका सदस्य बनाने के लिए भाड़े पर लेगा या वचनबद्ध या नियोजित करेगा या भाड़े पर लिए जाने का, वचनबद्ध या नियोजित करने का संप्रवर्तन करेगा या के प्रति मौनानुकूल बना रहेगा, वह ऐसे विधिविरुद्ध जमाव के सदस्य के रूप में, और किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा ऐसे विधिविरुद्ध जमाव के सदस्य के नाते ऐसे भाड़े पर लेने, वचनबद्ध या नियोजन के अनुसरण में किए गए किसी भी अपराध के लिए उसी रीति में दंडनीय होगा, मानो वह ऐसे विधिविरुद्ध जमाव का सदस्य रहा था या ऐसा अपराध उसने स्वयं किया था ।

(7) जो कोई किसी विधिविरुद्ध जमाव के सदस्यों के लिए किसी गृह या उसके अधिभोग या प्रभार के अधीन किसी परिसर में संश्रय, आश्रय या जमाव करता है या यह जानते हुए कि ऐसे व्यक्ति, किसी विधिविरुद्ध जमाव का सदस्य बनने के लिए भाड़े पर लिए गए हैं, लगाए गए हैं या नियोजित किए गए है या उससे जुड़ने के लिए भाड़े पर लिए जाने हैं या भाड़े पर लगाए जाने हैं या नियोजित किए जाने है, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दंडित किया जाएगा ।

(8) जो कोई उपधारा (1) में विनिर्दिष्ट किन्हीं कृत्यों को करता है या करने में सहायता करता है या भाड़े पर या नियोजन किए जाने हेतु प्रयास करता है या प्रस्ताव करता है या नियोजित हैं या भाड़े पर लिया गया है, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दंडित किया जाएगा ।

(9) जो कोई उपधारा (8) में निर्दिष्ट इस प्रकार नियोजित या भाड़े पर होने के नाते आयुध के साथ जाता है या आयुध सहित नियोजन या प्रस्ताव करता है, घातक आयुध से सज्जित होकर या किसी ऐसे आयुध का उपयोग करता है जिससे मृत्यु कारित करने के अपराध की संभाव्यता है तो, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दंडित किया जाएगा ।


खंड- 190. विधिविरुद्ध जमाव का प्रत्येक सदस्य, सामान्य उद्देश्य को अग्रसर करने के लिए किए गए अपराध का दोषी ।

यदि विधिविरुद्ध जमाव के किसी सदस्य द्वारा उस जमाव के सामान्य उद्देश्य को अग्रसर करने में अपराध किया जाता है, या कोई ऐसा अपराध किया जाता है, जिसका किया जाना उस जमाव के सदस्य उस उद्देश्य को अग्रसर करने में सम्भाव्य जानते थे, तो प्रत्येक व्यक्ति, जो उस अपराध के किए जाने के समय उस जमाव का सदस्य है, उस अपराध का दोषी होगा ।


खंड- 191. बल्वा करना ।

(1) जब कभी विधिविरुद्ध जमाव द्वारा या उसके किसी सदस्य द्वारा ऐसे जमाव के सामान्य उद्देश्य को अग्रसर करने में बल या हिंसा का प्रयोग किया जाता है, तब ऐसे जमाव का प्रत्येक सदस्य बल्वा करने के अपराध का दोषी होगा ।

(2) जो कोई बल्वा करने का दोषी होगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दंडित किया जाएगा ।

(3) जो कोई घातक आयुध से, या किसी ऐसी चीज से, जिससे आक्रामक आयुध के रूप में उपयोग किए जाने पर मृत्यु कारित होनी संभाव्य हो, सज्जित होते हुए बल्वा करने का दोषी होगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि पांच वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दंडित किया जाएगा ।


खंड- 192. बल्वा कराने के आशय से स्वैरिता से प्रकोपन देना यदि बल्वा किया जाए; यदि बल्वा न किया जाए ।

जो कोई अवैध बात के करने के द्वारा, किसी व्यक्ति को परिद्वेष से या स्वैरिता से प्रकोपित इस आशय से या यह सम्भाव्य जानते हुए करेगा कि ऐसे प्रकोपन के परिणामस्वरूप बल्वे का अपराध किया जाएगा; यदि ऐसे प्रकोपन के परिणामस्वरूप बल्वे का अपराध किया जाए, तो वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, और यदि बल्वे का अपराध न किया जाए, तो वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दंडित किया जाएगा ।


खंड- 193. उस भूमि के स्वामी, अधिभोगी, आदि, जिस पर विधिविरुद्ध जमाव या बल्वा किया गया है, का दायित्व ।

(1) जब कभी कोई विधिविरुद्ध जमाव या बल्वा हो, तब भूमि, जिस पर ऐसा विधिविरुद्ध जमाव हो या ऐसा बल्वा किया जाए, उसका स्वामी या अधिभोगी और ऐसी भूमि में हित रखने वाला या हित रखने का दावा करने वाला व्यक्ति, एक हजार रुपए से अनधिक के जुर्माने से दंडनीय होगा, यदि वह या उसका अभिकर्ता या प्रबंधक यह जानते हुए कि ऐसा अपराध किया जा रहा है या किया जा चुका है या इस बात का विश्वास करने का कारण रखते हुए कि ऐसे अपराध का किया जाना सम्भाव्य है, उस बात की अपनी शक्ति-भर शीघ्रतम सूचना निकटतम पुलिस थाने के प्रधान अधिकारी को नहीं देता है और उस दशा में, जिसमें उसे या उन्हें यह विश्वास करने का कारण हो कि यह लगभग किया ही जाने वाला है, अपनी शक्ति-भर सब विधिपूर्ण साधनों का उपयोग उसका निवारण करने के लिए नहीं करता है या करते हैं और उसके हो जाने पर अपनी शक्ति-भर सब विधिपूर्ण साधनों का उस विधिविरुद्ध जमाव को बिखेरने या बल्वे को दबाने के लिए उपयोग नहीं करता है या करते हैं ।

(2) जब कभी किसी ऐसे व्यक्ति के फायदे के लिए या उसकी ओर से बल्वा किया जाए, जो किसी भूमि का, जिसके विषय में ऐसा बल्वा हो, स्वामी या अधिभोगी हो या जो ऐसी भूमि में या बल्वे को पैदा करने वाले किसी विवादग्रस्त विषय में कोई हित रखने का दावा करता हो या जो उससे कोई फायदा प्रतिगृहीत कर या पा चुका हो, तब ऐसा व्यक्ति, जुर्माने से दंडनीय होगा, यदि वह या उसका अभिकर्ता या प्रबंधक इस बात का विश्वास करने का कारण रखते हुए कि ऐसा बल्वा किया जाना संभाव्य था या कि जिस विधिविरुद्ध जमाव द्वारा ऐसा बल्वा किया गया था, वह जमाव किया जाना सम्भाव्य था, अपनी शक्ति-भर सब विधिपूर्ण साधनों का ऐसे जमाव या बल्वे का किया जाना निवारित करने के लिए और उसे दबाने और बिखरने के लिए उपयोग नहीं करेगा या करेंगे ।

(3) जब कभी ऐसे व्यक्ति के फायदे के लिए या ऐसे व्यक्ति की ओर से बल्वा किया जाए, जो किसी भूमि का, जिसके विषय में ऐसा बल्वा हो, स्वामी हो या अधिभोगी हो या जो ऐसी भूमि में या बल्वे के पैदा करने वाले किसी विवादग्रस्त विषय में कोई हित रखने का दावा करता हो या जो उससे कोई फायदा प्रतिगृहीत कर या पा चुका हो, तब उस व्यक्ति का अभिकर्ता या प्रबंधक जुर्माने से दंडनीय होगा, यदि ऐसा अभिकर्ता या प्रबंधक यह विश्वास करने का कारण रखते हुए कि ऐसे बल्वे का किया जाना सम्भाव्य था या कि जिस विधिविरुद्ध जमाव द्वारा ऐसा बल्वा किया गया था, उसका किया जाना सम्भाव्य था, अपनी शक्ति-भर सब विधिपूर्ण साधनों का ऐसे बल्वे या जमाव का किया जाना निवारित करने के लिए और उसको दबाने और बिखरने के लिए उपयोग नहीं करेगा या करेंगे ।


खंड- 194. दंगा ।

(1) जब दो या अधिक व्यक्ति, लोकस्थान में लड़कर लोक शान्ति में विघ्न डालते हैं, तब यह कहा जाता है कि वे दंगा करते हैं।

(2) जो कोई दंगा करता है, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि एक मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो एक हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दंडित किया जाएगा ।


खंड- 195. लोक सेवक जब बल्वे इत्यादि को दबा रहा हो, तब उस पर हमला करना या उसे बाधित करना ।

(1) जो कोई, किसी लोक सेवक पर, जो विधिविरुद्ध जमाव के बिखेरने का, या बल्वे या दंगे को दबाने का प्रयास ऐसे लोक सेवक के नाते अपने कर्तव्य के निर्वहन में कर रहा हो, हमला करता है या उसके काम में बाधा डालता है या किसी लोक सेवक पर आपराधिक बल का प्रयोग करता है, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो पच्चीस हजार रुपए से कम का नहीं होगा या दोनों से, दंडित किया जाएगा ।

(2) जो कोई, ऐसे किसी लोक सेवक पर, जो विधिविरुद्ध जमाव के बिखेरने का, या बल्वे या दंगे को दबाने का प्रयास, ऐसे लोक सेवक के नाते अपने कर्तव्य के निर्वहन में कर रहा हो, हमले की धमकी देगा या उसके काम में बाधा डालेगा या किसी लोक सेवक पर आपराधिक बल का प्रयोग करने की धमकी देगा, या उसका प्रयोग करने का प्रयत्न करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दंडित किया जाएगा ।


खंड- 196. धर्म, मूलवंश, जन्म-स्थान, निवास-स्थान, भाषा, इत्यादि के आधारों पर विभिन्न समूहों के बीच शत्रुता का संप्रवर्तन और सौहार्द बने रहने पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाले कार्य करना ।

(1) जो कोई, -

(क) बोले गए या लिखे गए शब्दों द्वारा या संकेतों द्वारा या दृश्यरूपणों द्वारा या अन्यथा विभिन्न धार्मिक, मूलवंशीय, भाषायी या प्रादेशिक समूहों या जातियों या समुदायों के बीच असौहार्द या शत्रुता, घृणा या वैमनस्य की भावनाएं, धर्म, मूलवंश, जन्म-स्थान, निवास-स्थान, भाषा, जाति या समुदाय के आधारों पर या अन्य किसी भी आधार पर संप्रवर्तित करेगा या संप्रवर्तित करने का प्रयत्न करेगा; या

(ख) कोई ऐसा कार्य करेगा, जो विभिन्न धार्मिक, मूलवंशीय, भाषायी या प्रादेशिक समूहों या जातियों या समुदायों के बीच सौहार्द बने रहने पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाला है और जो लोक-प्रशान्ति में विघ्न डालता है या जिससे उसमें विघ्न पड़ना सम्भाव्य हो; या

(ग) कोई ऐसा अभ्यास, आन्दोलन, कवायद या अन्य वैसा ही क्रियाकलाप इस आशय से संचालित करेगा कि ऐसे क्रियाकलाप में भाग लेने वाले व्यक्ति किसी धार्मिक, मूलवंशीय, भाषायी या प्रादेशिक समूह या जाति या समुदाय के विरुद्ध आपराधिक बल या हिंसा का प्रयोग करेंगे या प्रयोग करने के लिए प्रशिक्षित किए जाएंगे या यह सम्भाव्य जानते हुए संचालित करेगा कि ऐसे क्रियाकलाप में भाग लेने वाले व्यक्ति आपराधिक बल या हिंसा का प्रयोग करेंगे या प्रयोग करने के लिए प्रशिक्षित किए जाएंगे या ऐसे क्रियाकलाप में इस आशय से भाग लेगा कि आपराधिक बल या हिंसा का प्रयोग करेंगे या प्रयोग करने के लिए प्रशिक्षित किया जाए या यह सम्भाव्य जानते हुए भाग लेगा कि ऐसे क्रियाकलाप में भाग लेने वाले व्यक्ति आपराधिक बल या हिंसा का प्रयोग करेंगे या प्रयोग करने के लिए प्रशिक्षित किए जाएंगे और ऐसे क्रियाकलाप से ऐसी धार्मिक, मूलवंशीय, भाषायी या प्रादेशिक समूह या जाति या समुदाय के सदस्यों के बीच, चाहे किसी भी कारण से, भय या संत्रास या असुरक्षा की भावना उत्पन्न होती है या उत्पन्न होनी सम्भाव्य है ;

वह कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से दंडित किया जाएगा ।

(2) जो कोई उपधारा (1) में विनिर्दिष्ट अपराध, किसी पूजा के स्थान में या किसी जमाव में, जो धार्मिक पूजा या धार्मिक कर्म करने में लगा हुआ हो, करेगा, वह कारावास से, जो पांच वर्ष तक का हो सकेगा, दंडित किया जाएगा और जुर्माने का भी दायी होगा ।


खंड- 197. राष्ट्रीय अखंडता पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाले लांछन, प्राख्यान ।

(1) जो कोई बोले गए या लिखे गए शब्दों द्वारा या संकेतों द्वारा या दृश्यरूपणों द्वारा या अन्यथा, -

(क) ऐसा कोई लांछन लगाएगा या प्रकाशित करेगा कि किसी वर्ग के व्यक्ति इस कारण से कि वे किसी धार्मिक, मूलवंशीय, भाषायी या प्रादेशिक समूह या जाति या समुदाय के सदस्य हैं, विधि द्वारा स्थापित भारत के संविधान के प्रति सच्ची श्रद्धा और निष्ठा नहीं रख सकते या भारत की प्रभुता और अखंडता की मर्यादा नहीं बनाए रख सकते; या

(ख) यह प्राख्यान करेगा, परामर्श देगा, सलाह देगा, प्रचार करेगा या प्रकाशित करेगा कि किसी वर्ग के व्यक्तियों को इस कारण से कि वे किसी धार्मिक, मूलवंशीय, भाषायी या प्रादेशिक समूह या जाति या समुदाय के सदस्य हैं, भारत के नागरिक के रूप में उनके अधिकार न दिए जाएं या उन्हें उनसे वंचित किया जाए ; या

(ग) किसी वर्ग के व्यक्तियों की, बाध्यता के संबंध में इस कारण कि वे किसी धार्मिक, मूलवंशीय, भाषायी या प्रादेशिक समूह या जाति या समुदाय के सदस्य हैं, कोई प्राख्यान करता है, परामर्श देता है, अभिवाक् करता है या अपील करता है या प्रकाशित करता है, और ऐसे प्राख्यान, परामर्श, अभिवाक् या अपील से ऐसे सदस्यों तथा अन्य व्यक्तियों के बीच असौहार्द, या शत्रुता या घृणा या वैमनस्य की भावनाएं उत्पन्न होती हैं या उत्पन्न होनी संभाव्य हैं; या

(घ) भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता या सुरक्षा को खतरे में डालने वाली मिथ्या या भ्रामक जानकारी देता है या प्रकाशित करता है, वह कारावास से, जो तीन वर्ष तक का हो सकेगा, या जुर्माने से, या दोनों से, दंडित किया जाएगा ।

(2) जो कोई, उपधारा (1) में विनिर्दिष्ट कोई अपराध, किसी उपासना स्थल में या धार्मिक उपासना या धार्मिक कर्म करने में लगे हुए किसी जमाव में करेगा, वह कारावास से, जो पांच वर्ष तक का हो सकेगा, दंडित किया जाएगा और जुर्माने का भी दायी होगा ।

अध्याय 12- लोक सेवकों द्वारा या उनसे संबंधित अपराधों के विषय में

खंड- 198. लोक सेवक, जो किसी व्यक्ति को क्षति कारित करने के आशय से विधि की अवज्ञा करता है ।

जो कोई लोक सेवक होते हुए, विधि के किसी ऐसे निदेश की, जो उस ढंग के बारे में हो, जिस ढंग से लोक सेवक के नाते उसे आचरण करना है, जानते हुए इस आशय से या यह सम्भाव्य जानते हुए अवज्ञा करेगा कि ऐसी अवज्ञा से वह किसी व्यक्ति को क्षति कारित करेगा, वह सादा कारावास से, जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दंडित किया जाएगा ।

दृष्टांत

क, जो एक अधिकारी है, और न्यायालय द्वारा य के पक्ष में दी गई डिक्री की तुष्टि के लिए निष्पादन में सम्पत्ति लेने के लिए विधि द्वारा निदेशित है, यह ज्ञान रखते हुए कि यह सम्भाव्य है कि तद्द्वारा वह य को क्षति कारित करेगा, जानते हुए विधि के उस निदेश की अवज्ञा करता है। क ने इस धारा में परिभाषित अपराध किया है ।


खंड- 199. लोक सेवक, जो विधि के अधीन निदेश की अवज्ञा करता है ।

जो कोई, लोक सेवक होते हुए, -

(क) विधि के किसी ऐसे निदेश की, जो उसको किसी अपराध या किसी अन्य मामले में अन्वेषण के प्रयोजन के लिए, किसी व्यक्ति को किसी स्थान पर उपस्थिति की अपेक्षा किए जाने से प्रतिषिद्ध करता है, जानते हुए अवज्ञा करेगा ; या

(ख) किसी ऐसी रीति को, जिसमें वह ऐसा अन्वेषण करेगा, विनियमित करने वाली विधि के किसी अन्य निदेश की, किसी व्यक्ति पर प्रतिकूल प्रभाव डालने के लिए, जानते हुए अवज्ञा करेगा ; या

(ग) धारा 64, धारा 65, धारा 66, धारा 67, धारा 68, धारा 70, धारा 71, धारा 74, धारा 76, धारा 77, धारा 79, धारा 124, धारा 143 या धारा 144 के अधीन दंडनीय संज्ञेय अपराध के संबंध में उसे भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 173 की उपधारा (1) के अधीन दी गई किसी सूचना को लेखबद्ध करने में असफल रहेगा, वह कठिन कारावास से, जिसकी अवधि छह मास से कम की नहीं होगी, किंतु जो दो वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने का भी दायी होगा ।


खंड- 200. पीड़ित का उपचार न करने के लिए दंड ।

जो कोई ऐसे किसी लोक या प्राइवेट अस्पताल का, चाहे वह केंद्रीय सरकार, राज्य सरकार, स्थानीय निकाय या किसी अन्य व्यक्ति द्वारा चलाया जा रहा हो, भारसाधक होते हुए भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 397 के उपबंधों का उल्लंघन करता है, वह कारावास से, जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी या जुर्माने से या दोनों से, दंडित किया जाएगा ।


खंड- 201. लोक सेवक, जो क्षति कारित करने के आशय से अशुद्ध दस्तावेज रचता है ।

जो कोई लोक सेवक होते हुए और ऐसे लोक सेवक के नाते, किसी दस्तावेज या इलैक्ट्रानिक अभिलेख की रचना या अनुवाद करने का भार वहन करते हुए उस दस्तावेज या इलैक्ट्रानिक अभिलेख की रचना, तैयार या अनुवाद ऐसे प्रकार से जिसे वह जानता हो या विश्वास करता हो कि अशुद्ध है, इस आशय से, या सम्भाव्य जानते हुए करेगा कि तद्वारा वह किसी व्यक्ति को क्षति कारित करे, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी या जुर्माने से, या दोनों से, दंडित किया जाएगा ।


खंड- 202. लोक सेवक, जो विधिविरुद्ध रूप से व्यापार में लगा है ।

जो कोई, लोक सेवक होते हुए और ऐसे लोक सेवक के नाते, इस बात के लिए वैध रूप से आबद्ध होते हुए कि वह व्यापार में न लगे, व्यापार में लगता है, वह सादा कारावास से, जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी या जुर्माने से, या दोनों से, या सामुदायिक सेवा से, दंडित किया जाएगा ।


खंड- 203. लोक सेवक, जो विधिविरुद्ध रूप से संपत्ति क्रय करता है या उसके लिए बोली लगाता है ।

जो कोई, लोक सेवक होते हुए और ऐसे लोक सेवक के नाते, इस बात के लिए वैध रूप से आबद्ध होते हुए कि वह कतिपय संपत्ति को न तो क्रय करे और न उसके लिए बोली लगाए, या तो अपने नाम में, या किसी दूसरे के नाम में, या दूसरों के साथ संयुक्त रूप से, या अंशों में उस संपत्ति को क्रय करता है, या उसके लिए बोली लगाता है, वह सादा कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी या जुर्माने से, या दोनों से, दंडित किया जाएगा, और यदि वह संपत्ति क्रय कर ली गई है, तो वह अधिहृत कर ली जाएगी ।


खंड- 204. लोक सेवक का प्रतिरूपण ।

जो कोई किसी विशिष्ट पद को लोक सेवक के नाते धारण करने का अपदेश यह जानते हुए करेगा कि वह ऐसा पद धारण नहीं करता है या ऐसा पद धारण करने वाले किसी अन्य व्यक्ति का छद्म प्रतिरूपण करेगा और ऐसे बनावटी रूप में ऐसे पदभार से कोई कार्य करेगा या करने का प्रयत्न करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि छह मास से कम की नहीं होगी, किन्तु तीन वर्ष तक की हो सकेगी और जुर्माने से, दंडित किया जाएगा ।


खंड- 205. कपटपूर्ण आशय से लोक सेवक के उपयोग की पोशाक पहनना या टोकन को धारण करना ।

जो कोई लोक सेवकों के किसी कतिपय वर्ग का न होते हुए, इस आशय से कि यह विश्वास किया जाए, या इस ज्ञान से कि सम्भाव्य है कि यह विश्वास किया जाए, कि वह लोक सेवकों के उस वर्ग का है, लोक सेवकों के उस वर्ग द्वारा उपयोग में लाई जाने वाली पोशाक के सदृश पोशाक पहनेगा, या टोकन के सदृश कोई टोकन धारण करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो पांच हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दंडित किया जाएगा ।

अध्याय 13- लोक सेवकों के विधिपूर्ण प्राधिकार के अवमान के विषय में

खंड- 206. समनों की तामील या अन्य कार्यवाही से बचने के लिए फरार हो जाना ।

जो कोई किसी ऐसे लोक सेवक द्वारा निकाले गए समन, सूचना या आदेश की तामील से बचने के लिए फरार हो जाएगा, जो ऐसे लोक सेवक के नाते ऐसे समन, सूचना या आदेश को निकालने के लिए वैध रूप से सक्षम हो, –

(क) वह सादा कारावास से, जिसकी अवधि एक मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो पांच हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दंडित किया जाएगा ;

(ख) समन या सूचना या आदेश किसी न्यायालय में स्वयं या अभिकर्ता द्वारा हाजिर होने के लिए, या दस्तावेज या इलैक्ट्रानिक अभिलेख पेश करने के लिए हो, तो वह सादा कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो दस हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा ।


खंड- 207. समन की तामील का या अन्य कार्यवाही का या उसके प्रकाशन का निवारण करना ।

जो कोई किसी लोक सेवक द्वारा, जो लोक सेवक के नाते कोई समन, सूचना या आदेश निकालने के लिए वैध रूप से सक्षम हो, निकाले गए समन, सूचना या आदेश की तामील, अपने पर या किसी अन्य व्यक्ति पर होना किसी प्रकार जानबूझकर निवारित करेगा, या किसी ऐसे समन, सूचना या आदेश का किसी ऐसे स्थान में विधिपूर्वक लगाया जाना जानबूझकर निवारित करेगा, या किसी ऐसे समन, सूचना या आदेश को किसी ऐसे स्थान से, जहां कि विधिपूर्वक लगाया हुआ है, जानबूझकर हटाएगा, किसी ऐसे लोक सेवक के प्राधिकाराधीन की जाने वाली किसी उद्द्घोषणा का विधिपूर्वक किया जाना जानबूझकर निवारित करेगा, जो ऐसे लोक सेवक के नाते ऐसी उ‌द्घोषणा का किया जाना निर्दिष्ट करने के लिए वैध रूप से सक्षम हो, -

(क) वह सादा कारावास से, जिसकी अवधि एक मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो पांच हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दंडित किया जाएगा ;

(ख) समन, सूचना, आदेश या उ‌द्घोषणा किसी न्यायालय में स्वयं या अभिकर्ता द्वारा हाजिर होने के लिए या दस्तावेज या इलैक्ट्रानिक अभिलेख पेश करने के लिए हो, तो वह सादा कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो दस हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दंडित किया जाएगा ।


खंड- 208. लोक सेवक का आदेश न मानकर गैर-हाजिर रहना ।

जो कोई किसी लोक सेवक द्वारा निकाले गए उस समन, सूचना, आदेश या उ‌द्घोषणा के पालन में, जिसे ऐसे लोक सेवक के नाते निकालने के लिए वह वैध रूप से सक्षम हो, किसी निश्चित स्थान और समय पर स्वयं या अभिकर्ता द्वारा हाजिर होने के लिए वैध रूप से आबद्ध होते हुए, उस स्थान या समय पर हाजिर होने का जानबूझकर लोप करता है, या उस स्थान से, जहां हाजिर होने के लिए वह आबद्ध है, उस समय से पूर्व चला जाता है, जिस समय चला जाना उसके लिए विधिपूर्ण होता, -

(क) वह सादा कारावास से, जिसकी अवधि एक मास तक की हो सकेगी या जुर्माने से, जो पांच हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दंडित किया जाएगा ;

(ख) समन, सूचना, आदेश या उ‌द्घोषणा किसी न्यायालय में स्वयं या किसी अभिकर्ता द्वारा हाजिर होने के लिए है, तो वह सादा कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो दस हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दंडित किया जाएगा ।

दृष्टांत

(क) क उच्च न्यायालय द्वारा निकाले गए सपीना के पालन में उस न्यायालय के समक्ष उपसंजात होने के लिए वैध रूप से आबद्ध होते हुए, उपसंजात होने में जानबूझकर लोप करता है । क ने इस धारा में परिभाषित अपराध किया है ।

(ख) क जिला न्यायाधीश द्वारा निकाले गए समन के पालन में उस जिला न्यायाधीश के समक्ष साक्षी के रूप में उपसंजात होने के लिए वैध रूप से आबद्ध होते हुए, उपसंजात होने में जानबूझकर लोप करता है । क ने इस धारा में परिभाषित अपराध किया है ।


खंड- 209. भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 84 के अधीन किसी उ‌द्घोषणा के उत्तर में गैर-हाजिरी ।

जो कोई भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 84 की उपधारा (1) के अधीन प्रकाशित किसी उ‌द्घोषणा की अपेक्षानुसार विनिर्दिष्ट स्थान और विनिर्दिष्ट समय पर हाजिर होने में असफल रहेगा, तो वह कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी या जुर्माने से या दोनों से या सामुदायिक सेवा से दंडित किया जाएगा और जहां उस धारा की उपधारा (4) के अधीन कोई ऐसी घोषणा की गई है जिसमें उसे उ‌द्घोषित अपराधी के रूप में घोषित किया गया है, वहां वह ऐसे कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने का भी दायी होगा ।


खंड- 210. दस्तावेज या इलैक्ट्रानिक अभिलेख पेश करने के लिए विधिक रूप से आबद्ध व्यक्ति का लोक सेवक को पेश करने का लोप ।

जो कोई किसी लोक सेवक को, ऐसे लोक सेवक के नाते किसी दस्तावेज या इलैक्ट्रानिक अभिलेख को पेश करने या परिदत्त करने के लिए विधिक रूप से आबद्ध होते हुए, उसको इस प्रकार पेश करने या परिदत्त करने का जानबूझकर लोप करेगा, -

(क) वह सादा कारावास से, जिसकी अवधि एक मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो पांच हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा ;

(ख) और जहां वह दस्तावेज या इलैक्ट्रानिक अभिलेख किसी न्यायालय में पेश या परिदत्त किया जाना हो, तो वह सादा कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो दस हजार रुपए तक हो सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा ।

दृष्टांत

क, जो एक एक जिला न्यायालय के समक्ष दस्तावेज पेश करने के लिए विधिक रूप से आबद्ध है, उसको पेश करने का जानबूझकर लोप करता है । क ने इस धारा में परिभाषित अपराध किया है ।


खंड- 211. विधिक रूप से आबद्ध व्यक्ति द्वारा लोक सेवक को सूचना या इत्तिला देने का लोप ।

जो कोई किसी लोक सेवक को, ऐसे लोक सेवक के नाते किसी विषय पर कोई सूचना देने या इत्तिला देने के लिए विधिक रूप से आबद्ध होते हुए, विधि द्वारा अपेक्षित रीति से और समय पर ऐसी सूचना या इत्तिला देने का जानबूझकर लोप करेगा, -

(क) वह सादा कारावास से, जिसकी अवधि एक मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो पांच हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दंडित किया जाएगा ;

(ख) जहां दी जाने के लिए अपेक्षित सूचना या इत्तिला, किसी अपराध के किए जाने के विषय में हो, या किसी अपराध के किए जाने का निवारण करने के प्रयोजन से या किसी अपराधी को पकड़ने के लिए अपेक्षित हो, तो वह सादा कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो दस हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दंडित किया जाएगा ;

(ग) जहां दी जाने के लिए अपेक्षित सूचना या इत्तिला भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 394 के अधीन दिए गए आदेश द्वारा अपेक्षित है, तो वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी या जुर्माने से, जो दस हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दंडित किया जाएगा ।


खंड- 212. मिथ्या इत्तिला देना ।

जो कोई, किसी लोक सेवक को, किसी विषय पर इत्तिला देने के लिए विधिक रूप से आबद्ध होते हुए, उस विषय पर सच्ची इत्तिला के रूप में ऐसी इत्तिला देगा, जिसका मिथ्या होना वह जानता है या जिसके मिथ्या होने का विश्वास करने का कारण उसके पास है, -

(क) वह सादा कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से जो पांच हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दंडित किया जाएगा ;

(ख) वह इत्तिला, जिसे देने के लिए वह विधिक रूप से आबद्ध हो, कोई अपराध किए जाने के विषय में हो, या किसी अपराध के किए जाने का निवारण करने के प्रयोजन से, या किसी अपराधी को पकड़ने के लिए अपेक्षित हो, तो वह दोनों में से, किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दंडित किया जाएगा ।

दृष्टांत

(क) क, एक भू-धारक, यह जानते हुए कि उसकी भू-सम्पदा की सीमाओं के अंदर एक हत्या की गई है, उस जिले के मजिस्ट्रेट को जानबूझकर यह मिथ्या इत्तिला देता है कि मृत्यु सांप के काटने के परिणामस्वरूप दुर्घटना से हुई है । क इस धारा में परिभाषित अपराध का दोषी है ।

(ख) क, जो ग्राम चौकीदार है, यह जानते हुए कि अनजाने लोगों का एक बड़ा गिरोह य के गृह में, जो पड़ोस के गांव का निवासी एक धनी व्यापारी है, डकैती करने के लिए उसके गांव से होकर गया है और निकटतम पुलिस थाने के अधिकारी को उपरोक्त घटना की इत्तिला शीघ्र और ठीक समय पर देने के लिए विधिक रूप से आबद्ध होते हुए, पुलिस अधिकारी को जानबूझकर यह मिथ्या इत्तिला देता है कि संदिग्धशील के लोगों का एक गिरोह किसी भिन्न दिशा में स्थित एक दूरस्थ स्थान पर डकैती करने के लिए गांव से होकर गया है। यहां क, इस धारा में परिभाषित अपराध का दोषी है ।

स्पष्टीकरण धारा 211 में और इस धारा में, अपराध शब्द के अंतर्गत भारत से बाहर किसी स्थान पर किया गया कोई ऐसा कार्य आता है, जो यदि भारत में किया जाता, तो निम्नलिखित धारा अर्थात् धारा 103, धारा 105, धारा 307, धारा 309 की उपधारा (2), उपधारा (3) और उपधारा (4), धारा 310 की उपधारा (2), उपधारा (3), उपधारा (4) और उपधारा (5), धारा 311, धारा 312, धारा 326 के खंड (च) और खंड (छ), धारा 331 की उपधारा (4), उपधारा (6) उपधारा (7) और उपधारा (8), धारा 332 के खंड (क) और खंड (ख) में से किसी धारा के अधीन दंडनीय होता; और अपराधी शब्द के अंतर्गत कोई भी ऐसा व्यक्ति आता है, जो कोई ऐसा कार्य करने का दोषी अभिकथित हो ।


खंड- 213. शपथ या प्रतिज्ञान से इंकार करना, जबकि लोक सेवक द्वारा वह वैसा करने के लिए सम्यक् रूप से अपेक्षित किया जाए ।

जो कोई सत्य कथन करने के लिए शपथ या प्रतिज्ञान द्वारा अपने आप को आबद्ध करने से इंकार करता है, जबकि उससे अपने को इस प्रकार आबद्ध करने की अपेक्षा ऐसे लोक सेवक द्वारा की जाए जो यह अपेक्षा करने के लिए विधिक रूप से सक्षम हो कि वह व्यक्ति इस प्रकार अपने को आबद्ध करे, वह सादा कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो पांच हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दंडित किया जाएगा ।


खंड- 214. प्रश्न करने के लिए प्राधिकृत लोक सेवक का उत्तर देने से इंकार करना ।

जो कोई किसी लोक सेवक से किसी विषय पर सत्य कथन करने के लिए विधिक रूप से आबद्ध होते हुए, ऐसे लोक सेवक की विधिक शक्तियों के प्रयोग में उस लोक सेवक द्वारा उस विषय के बारे में उससे पूछे गए किसी प्रश्न का उत्तर देने से इंकार करता है, वह सादा कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो पांच हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दंडित किया जाएगा ।


खंड- 215. कथन पर हस्ताक्षर करने से इंकार ।

जो कोई अपने द्वारा किए गए किसी कथन पर हस्ताक्षर करने को ऐसे लोक सेवक द्वारा अपेक्षा किए जाने पर, जो उससे यह अपेक्षा करने के लिए विधिक रूप से सक्षम हो कि वह उस कथन पर हस्ताक्षर करे, उस कथन पर हस्ताक्षर करने से इंकार करता है, वह सादा कारावास से, जिसकी अवधि तीन मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो तीन हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दंडित किया जाएगा ।


खंड- 216. शपथ दिलाने या प्रतिज्ञान कराने के लिए प्राधिकृत लोक सेवक के, या व्यक्ति के समक्ष शपथ या प्रतिज्ञान पर मिथ्या कथन ।

जो कोई किसी लोक सेवक या किसी अन्य व्यक्ति से, जो ऐसे शपथ दिलाने या प्रतिज्ञान देने के लिए विधि द्वारा प्राधिकृत हो, किसी विषय पर सत्य कथन करने के लिए शपथ या प्रतिज्ञान द्वारा विधिक रूप से आबद्ध होते हुए, ऐसे लोक सेवक या यथापूर्वोक्त अन्य व्यक्ति से उस विषय के संबंध में कोई ऐसा कथन करेगा, जो मिथ्या है, और जिसके मिथ्या होने का या तो उसे ज्ञान है, या विश्वास है या जिसके सत्य होने का उसे विश्वास नहीं है, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा, और जुर्माने का भी दायी होगा ।


खंड- 217. इस आशय से मिथ्या इत्तिला देना कि लोक सेवक अपनी विधिपूर्ण शक्ति का उपयोग दूसरे व्यक्ति को क्षति करने के लिए करे ।

जो कोई किसी लोक सेवक को कोई ऐसी इत्तिला, जिसके मिथ्या होने का उसे ज्ञान या विश्वास है, इस आशय से देगा कि वह उस लोक सेवक को प्रेरित करे या यह सम्भाव्य जानते हुए देगा कि वह उसको तद्द्वारा प्रेरित करेगा कि वह लोक सेवक-

(क) कोई ऐसी बात करे या करने का लोप करे जिसे वह लोक सेवक, यदि उसे उस संबंध में, जिसके बारे में ऐसी इत्तिला दी गई है, तथ्यों की सही स्थिति का पता होता तो न करता या करने का लोप न करता ; या

(ख) ऐसे लोक सेवक की विधिपूर्ण शक्ति का उपयोग करे जिस उपयोग से किसी व्यक्ति को क्षति या क्षोभ हो, वह दोनों में से, किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो दस हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दंडित किया जाएगा ।

दृष्टांत

(क) क एक मजिस्ट्रेट को यह इत्तिला देता है कि य एक पुलिस अधिकारी, जो ऐसे मजिस्ट्रेट का अधीनस्थ है, कर्तव्य पालन में उपेक्षा या अवचार का दोषी है, यह जानते हुए देता है कि ऐसी इत्तिला मिथ्या है, और यह सम्भाव्य है कि उस इत्तिला से वह मजिस्ट्रेट य को पदच्युत कर देगा । क ने इस धारा में परिभाषित अपराध किया है ।

(ख) क एक लोक सेवक को यह मिथ्या इत्तिला देता है कि य के पास गुप्त स्थान में विनिषिद्ध नमक है । वह इतिला यह जानते हुए देता है कि ऐसी इत्तिला मिथ्या है, और यह जानते हुए देता है कि यह सम्भाव्य है कि उस इत्तिला के परिणामस्वरूप य के परिसर की तलाशी ली जाएगी, जिससे य को क्षोभ होगा । क ने इस धारा में परिभाषित अपराध किया है ।

(ग) एक पुलिसजन को क यह मिथ्या इत्तिला देता है कि एक विशिष्ट ग्राम के पास उस पर हमला किया गया है और उसे लूट लिया गया है। वह अपने पर हमलावर के रूप में किसी व्यक्ति का नाम नहीं लेता । किन्तु वह यह जानता है कि यह संभाव्य है कि इस इत्तिला के परिणामस्वरूप पुलिस उस ग्राम में जांच करेगी और तलाशियां लेगी, जिससे ग्रामवासियों या उनमें से कुछ को क्षोभ होगा । क ने इस धारा में परिभाषित अपराध किया है।


खंड- 218. लोक सेवक के विधिपूर्ण प्राधिकार द्वारा संपत्ति लिए जाने का प्रतिरोध ।

जो कोई किसी लोक सेवक के विधिपूर्ण प्राधिकार द्वारा किसी संपत्ति के ले लिए जाने का प्रतिरोध यह जानते हुए या यह विश्वास करने का कारण रखते हुए करेगा कि वह ऐसा लोक सेवक है, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो दस हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दंडित किया जाएगा ।


खंड- 219. लोक सेवक के प्राधिकार द्वारा विक्रय के लिए प्रस्थापित की गई संपत्ति के विक्रय में बाधा उपस्थित करना ।

जो कोई ऐसी किसी संपत्ति के विक्रय में, जो ऐसे लोक सेवक के नाते किसी लोक सेवक के विधिपूर्ण प्राधिकार द्वारा विक्रय के लिए प्रस्थापित की गई हो, जानबूझकर बाधा डालेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि एक मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो पांच हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दंडित किया जाएगा ।


खंड- 220. लोक सेवक के प्राधिकार द्वारा विक्रय के लिए प्रस्थापित की गई संपत्ति का अवैध क्रय या उसके लिए अवैध बोली लगाना ।

जो कोई संपत्ति के किसी ऐसे विक्रय में, जो लोक सेवक के नाते लोक सेवक के विधिपूर्ण प्राधिकार द्वारा हो रहा हो, किसी ऐसे व्यक्ति के निमित्त चाहे वह व्यक्ति वह स्वयं हो, या कोई अन्य हो, किसी संपत्ति का क्रय करेगा या किसी संपत्ति के लिए बोली लगाएगा, जिसके बारे में वह जानता हो कि वह व्यक्ति उस विक्रय में उस संपत्ति के क्रय करने के बारे में किसी विधिक असमर्थता के अधीन है या ऐसी संपत्ति के लिए यह आशय रखकर बोली लगाएगा कि ऐसी बोली लगाने से जिन बाध्यताओं के अधीन वह अपने आप को डालता है उन्हें उसे पूरा नहीं करना है, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि एक मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो दो सौ रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दंडित किया जाएगा ।


खंड- 221. लोक सेवक के लोक कृत्यों के निर्वहन में बाधा डालना ।

जो कोई किसी लोक सेवक के लोक कृत्यों के निर्वहन में स्वेच्छया बाधा डालेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो दो हजार पांच सौ रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दंडित किया जाएगा ।


खंड- 222. लोक सेवक की सहायता करने का लोप, जबकि सहायता देने के लिए विधि द्वारा आबद्ध हो ।

जो कोई किसी लोक सेवक को, उसके लोक कर्तव्य के निष्पादन में सहायता देने या पहुंचाने के लिए विधि द्वारा आबद्ध होते हुए, ऐसी सहायता देने का जानबूझकर लोप करेगा, -

(क) वह सादा कारावास से, जिसकी अवधि एक मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो दो हजार पांच सौ रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दंडित किया जाएगा ;

(ख) और ऐसी सहायता की मांग उससे ऐसे लोक सेवक द्वारा, जो ऐसी मांग करने के लिए विधिक रूप से सक्षम हो, न्यायालय द्वारा विधिपूर्वक निकाली गई किसी आदेशिका के निष्पादन के, या अपराध के किए जाने का निवारण करने के, या बल्वे या दंगे को दबाने के, या ऐसे व्यक्ति को, जिस पर अपराध का आरोप है या जो अपराध का या विधिपूर्ण अभिरक्षा से निकल भागने का दोषी है, पकड़ने के प्रयोजनों से की जाए, तो वह सादा कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो पांच हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दंडित किया जाएगा ।


खंड- 223. लोक सेवक द्वारा सम्यक् रूप से प्रख्यापित आदेश की अवज्ञा ।

जो कोई यह जानते हुए कि वह ऐसे लोक सेवक द्वारा प्रख्यापित किसी आदेश से, जो ऐसे आदेश को प्रख्यापित करने के लिए विधिपूर्वक सशक्त है, कोई कार्य करने से विरत रहने के लिए या अपने कब्जे में की, या अपने प्रबन्धाधीन, किसी संपत्ति के बारे में कोई विशेष व्यवस्था करने के लिए निर्दिष्ट किया गया है, ऐसे निदेश की अवज्ञा करेगा, —

(क) यदि ऐसी अवज्ञा विधिपूर्वक नियोजित किन्हीं व्यक्तियों को बाधा, क्षोभ या क्षति, या बाधा, क्षोभ या क्षति की जोखिम कारित करे, या कारित करने की प्रवृत्ति रखती हो, तो वह सादा कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो दो हजार पांच सौ रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दंडित किया जाएगा ।

(ख) और जहां ऐसी अवज्ञा मानव जीवन, स्वास्थ्य या सुरक्षा को संकट कारित करे, या कारित करने की प्रवृत्ति रखती हो, या बलवा या दंगा कारित करती हो, या कारित करने की प्रवृत्ति रखती हो, तो वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो पांच हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दंडित किया जाएगा । स्पष्टीकरण यह आवश्यक नहीं है कि अपराधी का आशय अपहानि उत्पन्न करने का हो या उसके ध्यान में यह हो कि उसकी अवज्ञा करने से अपहानि होना संभाव्य है । यह पर्याप्त है कि जिस आदेश की वह अवज्ञा करता है, उस आदेश का उसे ज्ञान है, और यह भी ज्ञान है कि उसके अवज्ञा करने से अपहानि उत्पन्न होती या होनी संभाव्य है ।

दृष्टांत

कोई आदेश, जिसमें यह निदेश है कि अमुक धार्मिक जुलूस अमुक सड़क से होकर न निकले, ऐसे लोक सेवक द्वारा प्रख्यापित किया जाता है, जो ऐसा आदेश प्रख्यापित करने के लिए विधिपूर्वक सशक्त है । क जानते हुए उस आदेश की अवज्ञा करता है, और तद्द्वारा बलवे का संकट कारित करता है। क ने इस धारा में परिभाषित अपराध किया है ।


खंड- 224. लोक सेवक को क्षति करने की धमकी ।

जो कोई किसी लोक सेवक को या ऐसे किसी व्यक्ति को जिससे उस लोक सेवक के हितबद्ध होने का उसे विश्वास हो, इस प्रयोजन से क्षति की कोई धमकी देगा कि उस लोक सेवक को उत्प्रेरित किया जाए कि वह ऐसे लोक सेवक के कृत्यों के प्रयोग से संसक्त कोई कार्य करे, या करने से प्रविरत रहे, या करने में विलम्ब करे, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दंडित किया जाएगा ।


खंड- 225. लोक सेवक से संरक्षा के लिए आवेदन करने से विरत रहने के लिए किसी व्यक्ति को उत्प्रेरित करने के लिए क्षति की धमकी ।

जो कोई किसी व्यक्ति को इस प्रयोजन से क्षति की कोई धमकी देगा कि वह उस व्यक्ति को उत्प्रेरित करे कि वह किसी क्षति से संरक्षा के लिए कोई वैध आवेदन किसी ऐसे लोक सेवक से करने से विरत रहे, या प्रतिविरत रहे, जो ऐसे लोक सेवक के नाते ऐसी संरक्षा करने या कराने के लिए वैध रूप से सशक्त हो, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दंडित किया जाएगा ।


खंड- 226. विधिविरुद्ध शक्ति का प्रयोग करने या प्रयोग करने से विरत रहने के लिए आत्महत्या करने का प्रयास

जो कोई किसी लोक सेवक को अपने शासकीय कर्तव्य करने या शासकीय कर्तव्यों का निर्वहन करने से विरत रहने के आशय से या करने हेतु आत्महत्या का प्रयत्न करता है, वह सादा कारावास से, जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, या सामुदायिक सेवा से दंडनीय होगा ।

अध्याय 14- मिथ्या साक्ष्य और लोक न्याय के विरुद्ध अपराधों के विषय में

खंड- 227. मिथ्या साक्ष्य देना ।

जो कोई शपथ द्वारा या विधि के किसी अभिव्यक्त उपबंध द्वारा सत्य कथन करने के लिए वैध रूप से आबद्ध होते हुए, या किसी विषय पर घोषणा करने के लिए विधि द्वारा आबद्ध होते हुए, ऐसा कोई कथन करेगा, जो मिथ्या है, और या तो जिसके मिथ्या होने का उसे ज्ञान है या विश्वास है, या जिसके सत्य होने का उसे विश्वास नहीं है, वह मिथ्या साक्ष्य देता है, यह कहा जाता है ।

स्पष्टीकरण 1 कोई कथन चाहे वह मौखिक हो, या अन्यथा किया गया हो, इस धारा के अंतर्गत आता है ।

स्पष्टीकरण 2 अनुप्रमाणित करने वाले व्यक्ति के अपने विश्वास के बारे में मिथ्या कथन इस धारा के अर्थ के अंतर्गत आता है और कोई व्यक्ति यह कहने से कि उसे उस बात का विश्वास है, जिस बात का उसे विश्वास नहीं है, तथा यह कहने से कि वह उस बात को जानता है जिस बात को वह नहीं जानता, मिथ्या साक्ष्य देने का दोषी हो सकेगा ।

दृष्टांत

(क) क एक न्यायसंगत दावे के समर्थन में, जो य के विरुद्ध ख के एक हजार रुपए के लिए है, विचारण के समय शपथ पर मिथ्या कथन करता है कि उसने य को ख के दावे का न्यायसंगत होना स्वीकार करते हुए सुना था । क ने मिथ्या साक्ष्य दिया है ।

(ख) क सत्य कथन करने के लिए शपथ द्वारा आबद्ध होते हुए कथन करता है कि वह अमुक हस्ताक्षर के संबंध में यह विश्वास करता है कि वह य का हस्तलेख है, जबकि वह उसके य का हस्तलेख होने का विश्वास नहीं करता है। यहां क वह कथन करता है, जिसका मिथ्या होना वह जानता है, और इसलिए मिथ्या साक्ष्य देता है ।

(ग) य के हस्तलेख के साधारण स्वरूप को जानते हुए क यह कथन करता है कि अमुक हस्ताक्षर के संबंध में उसका यह विश्वास है कि वह य का हस्तलेख है; क उसके ऐसा होने का विश्वास स‌द्भावपूर्वक करता है । यहां, क का कथन केवल अपने विश्वास के संबंध में है, और उसके विश्वास के संबंध में सत्य है, और इसलिए, यद्यपि वह हस्ताक्षर य का हस्तलेख न भी हो, क ने मिथ्या साक्ष्य नहीं दिया है ।

(घ) क शपथ द्वारा सत्य कथन करने के लिए आबद्ध होते हुए यह कथन करता है कि वह यह जानता है कि य एक विशिष्ट दिन एक विशिष्ट स्थान में था, जबकि वह उस विषय में कुछ भी नहीं जानता । क मिथ्या साक्ष्य देता है, चाहे बतलाए हुए दिन य उस स्थान पर रहा हो या नहीं ।

(ङ) क एक दुभाषिया या अनुवादक किसी कथन या दस्तावेज के, जिसका यथार्थ भाषान्तरण या अनुवाद करने के लिए वह शपथ द्वारा आबद्ध है, ऐसे भाषान्तरण या अनुवाद को, जो यथार्थ भाषान्तरण या अनुवाद नहीं है और जिसके यथार्थ होने का वह विश्वास नहीं करता, यथार्थ भाषान्तरण या अनुवाद के रूप में देता या प्रमाणित करता है । क ने मिथ्या साक्ष्य दिया है ।


खंड- 228. मिथ्या साक्ष्य गढ़ना ।

जो कोई इस आशय से किसी परिस्थिति को अस्तित्व में लाता है, या किसी पुस्तक या अभिलेख या इलैक्ट्रानिक अभिलेख में कोई मिथ्या प्रविष्टि करता है, या मिथ्या कथन अंतर्विष्ट रखने वाला कोई दस्तावेज या इलैक्ट्रानिक अभिलेख रचता है कि ऐसी परिस्थिति, मिथ्या प्रविष्टि या मिथ्या कथन न्यायिक कार्यवाही में, या ऐसी किसी कार्यवाही में जो लोक सेवक के समक्ष उसके उस नाते या मध्यस्थ के समक्ष विधि द्वारा की जाती है, साक्ष्य में दर्शित हो और कि इस प्रकार साक्ष्य में दर्शित होने पर ऐसी परिस्थिति, मिथ्या प्रविष्टि या मिथ्या कथन के कारण कोई व्यक्ति जिसे ऐसी कार्यवाही में साक्ष्य के आधार पर राय कायम करनी है ऐसी कार्यवाही के परिणाम के लिए तात्त्विक किसी बात के संबंध में गलत राय बनाए, वह मिथ्या साक्ष्य गढ़ता है , यह कहा जाता है ।

दृष्टांत

(क) क एक बक्स में, जो य का है, इस आशय से आभूषण रखता है कि वे उस बक्स में पाए जाएं, और इस परिस्थिति से य चोरी के लिए दोषसिद्ध ठहराया जाए । क ने मिथ्या साक्ष्य गढ़ा है ।

(ख) क अपनी दुकान की बही में एक मिथ्या प्रविष्टि इस प्रयोजन से करता है कि वह न्यायालय में सम्पोषक साक्ष्य के रूप में काम में लाई जाए । क ने मिथ्या साक्ष्य गढ़ा है ।

(ग) य को एक आपराधिक षड्यंत्र के लिए दोषसिद्ध ठहराया जाने के आशय से क एक पत्र य के हस्तलेख की अनुकृति करके लिखता है, जिससे यह तात्पर्यित है कि य ने उसे ऐसे आपराधिक षड्यंत्र के सह अपराधी को संबोधित किया है और उस पत्र को ऐसे स्थान पर रख देता है, जिसके संबंध में वह यह जानता है कि पुलिस अधिकारी संभाव्यतः उस स्थान की तलाशी लेंगे। क ने मिथ्या साक्ष्य गढ़ा है ।


खंड- 229. मिथ्या साक्ष्य के लिए दंड ।

(1) जो कोई जानबूझकर किसी न्यायिक कार्यवाही के किसी प्रक्रम में मिथ्या साक्ष्य देगा या किसी न्यायिक कार्यवाही के किसी प्रक्रम में उपयोग में लाए जाने के प्रयोजन से मिथ्या साक्ष्य गढ़ेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी दंडित किया जाएगा, और दस हजार रुपए तक के जुर्माने के लिए भी दायी होगा ;

(2) जो कोई उपधारा (1) में निर्दिष्ट से भिन्न किसी अन्य मामले में जानबूझकर मिथ्या साक्ष्य देगा या गढ़ेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा, और पांच हजार रुपए तक के जुर्माने का भी दायी होगा ।

स्पष्टीकरण 1 सेना न्यायालय के समक्ष विचारण न्यायिक कार्यवाही है ।

स्पष्टीकरण 2 न्यायालय के समक्ष कार्यवाही प्रारम्भ होने के पूर्व, जो विधि द्वारा निर्दिष्ट अन्वेषण होता है, वह न्यायिक कार्यवाही का एक प्रक्रम है, चाहे वह अन्वेषण किसी न्यायालय के सामने न भी हो ।

दृष्टांत

यह अभिनिश्चय करने के प्रयोजन से कि क्या य को विचारण के लिए सुपुर्द किया जाना चाहिए, मजिस्ट्रेट के समक्ष जांच में क शपथ पर कथन करता है, जिसका वह मिथ्या होना जानता है । यह जांच न्यायिक कार्यवाही का एक प्रक्रम है, इसलिए क ने मिथ्या साक्ष्य दिया है।

स्पष्टीकरण 3 न्यायालय द्वारा विधि के अनुसार निर्दिष्ट और न्यायालय के प्राधिकार के अधीन संचालित अन्वेषण न्यायिक कार्यवाही का एक प्रक्रम है, चाहे वह अन्वेषण किसी न्यायालय के सामने न भी हो ।

दृष्टांत

संबंधित स्थान पर जा कर भूमि की सीमाओं को अभिनिश्चित करने के लिए न्यायालय द्वारा प्रतिनियुक्त अधिकारी के समक्ष जांच में क शपथ पर कथन करता है जिसका मिथ्या होना वह जानता है। यह जांच न्यायिक कार्यवाही का एक प्रक्रम है, इसलिए क ने मिथ्या साक्ष्य दिया है ।

खंड- 230. मृत्यु से दंडनीय अपराध के लिए दोषसिद्धि कराने के आशय से मिथ्या साक्ष्य देना या गढ़ना ।

(1) जो कोई भारत में तत्समय प्रवृत्त विधि के द्वारा मृत्यु से दंडनीय अपराध के लिए किसी व्यक्ति को दोषसिद्ध कराने के आशय से या संभाव्यतः तद्वारा दोषसिद्ध कराएगा यह जानते हुए मिथ्या साक्ष्य देगा या गढ़ेगा, वह आजीवन कारावास से, या कठिन कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा, और पचास हजार रुपए तक के जुर्माने से भी दंडनीय होगा ।

(2) यदि निर्दोष व्यक्ति को उपधारा (1) में निर्दिष्ट ऐसे मिथ्या साक्ष्य के परिणामस्वरूप दोषसिद्ध किया जाए, और उसे निष्पादित किया जाए, तो उस व्यक्ति को, जो ऐसा मिथ्या साक्ष्य देगा, या तो मृत्यु दंड या उपधारा (1) में विनिर्दिष्ट दंड दिया जाएगा ।


खंड- 231. आजीवन कारावास या कारावास से दंडनीय अपराध के लिए दोषसिद्धि कराने के आशय से मिथ्या साक्ष्य देना या गढ़ना ।

जो कोई इस आशय से या यह सम्भाव्य जानते हुए कि एतद्वारा वह किसी व्यक्ति को ऐसे अपराध के लिए, जो भारत में तत्समय प्रवृत्त विधि द्वारा मृत्यु से दंडनीय न हो किन्तु आजीवन कारावास या सात वर्ष या उससे अधिक की अवधि के कारावास से दंडनीय हो, दोषसिद्ध कराए, मिथ्या साक्ष्य देगा या गढ़ेगा, वह वैसे ही दंडित किया जाएगा जैसे वह व्यक्ति दंडनीय होता जो उस अपराध के लिए दोषसिद्ध होता ।

दृष्टांत

क न्यायालय के समक्ष इस आशय से मिथ्या साक्ष्य देता है कि एतद्वारा य डकैती के लिए दोषसिद्ध किया जाए । डकैती का दंड जुर्माना सहित या रहित आजीवन कारावास या ऐसा कठिन कारावास है, जो दस वर्ष तक की अवधि का हो सकता है । क इसलिए जुर्माने सहित या रहित आजीवन कारावास या कारावास से दंडनीय है ।

खंड- 232. किसी व्यक्ति को मिथ्या साक्ष्य देने के लिए धमकाना या उत्प्रेरित करना ।

(1) जो कोई किसी दूसरे व्यक्ति को, उसके शरीर, ख्याति या संपत्ति को या ऐसे व्यक्ति के शरीर या ख्याति को, जिसमें वह व्यक्ति हितबद्ध है, यह कारित करने के आशय से कोई क्षति करने की धमकी देता है, कि वह व्यक्ति मिथ्या साक्ष्य दे तो वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी या जुर्माने से या दोनों से दंडित किया जाएगा ;

(2) यदि कोई निर्दोष व्यक्ति उपधारा (1) में निदिष्ट मिथ्या साक्ष्य के परिणामस्वरूप मृत्यु से या सात वर्ष से अधिक के कारावास से दोषसिद्ध और दंडादिष्ट किया जाता है तो ऐसा व्यक्ति, जो धमकी देता है, उसी दंड से दंडित किया जाएगा और उसी रीति में और उसी सीमा तक दंडादिष्ट किया जाएगा, जैसे निर्दोष व्यक्ति दंडित और दंडादिष्ट किया गया है ।

खंड- 233. उस साक्ष्य को काम में लाना, जिसका मिथ्या होना ज्ञात है ।

जो कोई किसी साक्ष्य को, जिसका मिथ्या होना या गढ़ा होना वह जानता है, सत्य या असली साक्ष्य के रूप में भ्रष्टतापूर्वक उपयोग में लाएगा, या उपयोग में लाने का प्रयत्न करेगा, वह ऐसे दंडित किया जाएगा, मानो उसने मिथ्या साक्ष्य दिया हो या गढ़ा हो ।


खंड- 234. मिथ्या प्रमाणपत्र जारी करना या हस्ताक्षरित करना ।

जो कोई ऐसा प्रमाणपत्र, जिसका दिया जाना या हस्ताक्षरित किया जाना विधि द्वारा अपेक्षित हो, या जो किसी ऐसे तथ्य से संबंधित हो, जिसका वैसा प्रमाणपत्र विधि द्वारा साक्ष्य में ग्राह्य हो, यह जानते हुए या विश्वास करते हुए कि वह किसी तात्त्विक बात के बारे में मिथ्या है, वैसा प्रमाणपत्र जारी करेगा या हस्ताक्षरित करेगा, वह उसी प्रकार दंडित किया जाएगा, मानो उसने मिथ्या साक्ष्य दिया हो ।


खंड- 235. प्रमाणपत्र को, जिसका मिथ्या होना ज्ञात है, सत्य के रूप में काम में लाना ।

जो कोई किसी ऐसे प्रमाणपत्र को यह जानते हुए कि वह किसी तात्त्विक बात के संबंध में मिथ्या है सत्य प्रमाणपत्र के रूप में भ्रष्टतापूर्वक उपयोग में लाएगा, या उपयोग में लाने का प्रयत्न करेगा, वह ऐसे दंडित किया जाएगा, मानो उसने मिथ्या साक्ष्य दिया हो ।


खंड- 236. ऐसी घोषणा में, जो साक्ष्य के रूप में विधि द्वारा ली जा सके, किया गया मिथ्या कथन ।

जो कोई अपने द्वारा की गई या हस्ताक्षरित किसी घोषणा में, जिसकी किसी तथ्य के साक्ष्य के रूप में लेने के लिए कोई न्यायालय, या कोई लोक सेवक या अन्य व्यक्ति विधि द्वारा आबद्ध या प्राधिकृत हो कोई ऐसा कथन करेगा, जो किसी ऐसी बात के संबंध में, जो उस उद्देश्य के लिए तात्त्विक हो जिसके लिए वह घोषणा की जाए या उपयोग में लाई जाए, मिथ्या है और जिसके मिथ्या होने का उसे ज्ञान या विश्वास है, या जिसके सत्य होने का उसे विश्वास नहीं है, वह उसी प्रकार दंडित किया जाएगा, मानो उसने मिथ्या साक्ष्य दिया हो ।


खंड- 237. ऐसी घोषणा का मिथ्या होना जानते हुए, सच्ची के रूप में काम में लाना ।

जो कोई किसी ऐसी घोषणा को, यह जानते हुए कि वह किसी तात्त्विक बात के संबंध में मिथ्या है, भ्रष्टतापूर्वक सत्य के रूप में उपयोग में लाएगा, या उपयोग में लाने का प्रयत्न करेगा, वह उसी प्रकार दंडित किया जाएगा, मानो उसने मिथ्या साक्ष्य दिया हो ।

स्पष्टीकरण कोई घोषणा, जो केवल किसी अप्ररूपिता के आधार पर अग्राह्य है, धारा 236 और इस धारा के अर्थ के अंतर्गत घोषणा है ।

खंड- 238. अपराध के साक्ष्य का विलोपन, या अपराधी को प्रतिच्छादित करने के लिए मिथ्या इत्तिला देना ।

जो कोई यह जानते हुए या यह विश्वास करने का कारण रखते हुए कि कोई अपराध किया गया है, उस अपराध के किए जाने के किसी साक्ष्य का विलोप, इस आशय से कारित करेगा कि अपराधी को वैध दंड से प्रतिच्छादित करे या उस आशय से उस अपराध से संबंधित कोई ऐसी इत्तिला देगा, जिसके मिथ्या होने का उसे ज्ञान या विश्वास है, -

(क) यदि वह अपराध जिसके किए जाने का उसे ज्ञान या विश्वास है, मृत्यु से दंडनीय हो, तो वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने का भी दायी होगा ;

(ख) और यदि वह अपराध आजीवन कारावास से, या ऐसे कारावास से, जो दस वर्ष तक का हो सकेगा, दंडनीय हो, तो वह दोनों में से किसी भांति के, कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी दंडित किया जाएगा और जुर्माने का भी दायी होगा ;

(ग) यदि वह अपराध ऐसे कारावास से उतनी अवधि के लिए दंडनीय हो, जो दस वर्ष तक की न हो, तो वह उस अपराध के लिए उपबंधित भांति के कारावास से उतनी अवधि के लिए, जो उस अपराध के लिए उपबंधित कारावास की दीर्घतम अवधि की एक-चौथाई तक हो सकेगी या जुर्माने से, या दोनों से, दंडित किया जाएगा ।

दृष्टांत

क यह जानते हुए कि ख ने य की हत्या की है ख को दंड से प्रतिच्छादित करने के आशय से मृत शरीर को छिपाने में ख की सहायता करता है। क सात वर्ष के लिए दोनों में से किसी भांति के कारावास से, और जुर्माने से भी दंडनीय है ।

खंड- 239. इत्तिला देने के लिए आबद्ध व्यक्ति द्वारा अपराध की इत्तिला देने का जानबूझकर लोप ।

जो कोई यह जानते हुए या यह विश्वास करने का कारण रखते हुए कि कोई अपराध किया गया है, उस अपराध के बारे में कोई इत्तिला जिसे देने के लिए वह वैध रूप से आबद्ध हो, देने का जानबूझकर लोप करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी या पांच हजार रुपए तक का जुर्माने से, या दोनों से, दंडित किया जाएगा ।


खंड- 240. किए गए अपराध के विषय में मिथ्या इत्तिला देना ।

जो कोई यह जानते हुए, या यह विश्वास करने का कारण रखते हुए, कि कोई अपराध किया गया है उस अपराध के बारे में कोई ऐसी इत्तिला देगा, जिसके मिथ्या होने का उसे ज्ञान या विश्वास हो, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से या दोनों से, दंडित किया जाएगा ।

स्पष्टीकरण धारा 238 और धारा 239 में और इस धारा में अपराध शब्द के अंतर्गत भारत से बाहर किसी स्थान पर किया गया कोई भी ऐसा कार्य आता है, जो यदि भारत में किया जाता तो निम्नलिखित धारा अर्थात् धारा 103, धारा 105, धारा 307, धारा 309 की उपधारा (2), उपधारा (3) और उपधारा (4), धारा 310 की उपधारा (2), उपधारा (3), उपधारा (4) और उपधारा (5), धारा 311, धारा 312, धारा 326 के खंड (च) और खंड (छ), धारा 331 की उपधारा (4), उपधारा (6) उपधारा (7) और उपधारा (8), धारा 332 के खंड (क) और खंड (ख) में से किसी भी धारा के अधीन दंडनीय होता ।

खंड- 241. साक्ष्य के रूप में किसी दस्तावेज या इलैक्ट्रानिक अभिलेख का पेश किया जाना निवारित करने के लिए उसको नष्ट करना ।

जो कोई किसी ऐसी दस्तावेज या इलैक्ट्रानिक अभिलेख को छिपाएगा या नष्ट करेगा जिसे किसी न्यायालय में या ऐसी कार्यवाही में, जो किसी लोक सेवक के समक्ष उसकी वैसी हैसियत में विधिपूर्वक की गई है, साक्ष्य के रूप में पेश करने के लिए उसे विधिपूर्वक विवश किया जा सके, या पूर्वोक्त न्यायालय या लोक सेवक के समक्ष साक्ष्य के रूप में पेश किए जाने या उपयोग में लाए जाने से निवारित करने के आशय से, या उस प्रयोजन के लिए उस दस्तावेज या इलैक्ट्रानिक अभिलेख को पेश करने को उसे विधिपूर्वक समनित या

अपेक्षित किए जाने के पश्चात्, ऐसी संपूर्ण दस्तावेज या इलैक्ट्रानिक अभिलेख को, या उसके किसी भाग को मिटाएगा, या ऐसा बनाएगा, जो पढ़ा न जा सके, वह दोनों में से किसी भांतिके कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, या पांच हजार रुपए तक के जुर्माने से, या दोनों से, दंडित किया जाएगा ।

खंड- 242. वाद या अभियोजन में किसी कार्य या कार्यवाही के प्रयोजन से मिथ्या प्रतिरूपण ।

जो कोई किसी दूसरे का मिथ्या प्रतिरूपण करेगा और ऐसे धरे हुए रूप में किसी वाद या आपराधिक अभियोजन में कोई स्वीकृति या कथन करेगा, या दावे की संस्वीकृति करेगा, या कोई आदेशिका निकलवाएगा या जमानतदार या प्रतिभू बनेगा, या कोई भी अन्य कार्य करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दंडित किया जाएगा ।


खंड- 243. संपत्ति को समपहरण किए जाने में या निष्पादन में अभिगृहीत किए जाने से निवारित करने के लिए उसे कपटपूर्वक हटाना या छिपाना ।

जो कोई किसी संपत्ति को, या उसमें के किसी हित को इस आशय से कपटपूर्वक हटाएगा, छिपाएगा या किसी व्यक्ति को अंतरित या परिदत्त करेगा, कि एतद्द्वारा वह उस संपत्ति या उसमें के किसी हित का ऐसे दंडादेश के अधीन जो न्यायालय या किसी अन्य सक्षम प्राधिकारी द्वारा सुनाया जा चुका है या जिसके बारे में वह जानता है कि न्यायालय या अन्य सक्षम प्राधिकारी द्वारा उसका सुनाया जाना संभाव्य है, समपहरण के रूप में या जुर्माने के चुकाने के लिए लिया जाना या ऐसी डिक्री या आदेश के निष्पादन में, जो सिविल वाद में न्यायालय द्वारा दिया गया हो या जिसके बारे में वह जानता है कि सिविल वाद में न्यायालय द्वारा उसका सुनाया जाना संभाव्य है, लिया जाना निवारित करे, वह दोनों में, से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, या पांच हजार रुपए तक के जुर्माने से, या दोनों से, दंडित किया जाएगा ।


खंड- 244. संपत्ति पर उसके समपहरण किए जाने में या निष्पादन में अभिगृहीत किए जाने से निवारित करने के लिए कपटपूर्वक दावा ।

जो कोई किसी संपत्ति को, या उसमें के किसी हित को, यह जानते हुए कि ऐसी किसी संपत्ति या हित पर उसका कोई अधिकार या अधिकारपूर्ण दावा नहीं है, कपटपूर्वक प्रतिगृहीत करेगा, प्राप्त करेगा या उस पर दावा करेगा या किसी संपत्ति या उसमें के किसी हित पर किसी अधिकार के बारे में इस आशय से प्रवंचना करेगा कि तद्द्वारा वह उस संपत्ति या उसमें के हित का ऐसे दंडादेश के अधीन, जो न्यायालय या किसी अन्य सक्षम प्राधिकारी द्वारा सुनाया जा चुका है या जिसके बारे में वह जानता है कि न्यायालय या किसी अन्य सक्षम प्राधिकारी द्वारा उसका सुनाया जाना संभाव्य है, समपहरण के रूप में या जुर्माने के चुकाने के लिए लिया जाना, या ऐसी डिक्री या आदेश के निष्पादन में, जो सिविल वाद में न्यायालय द्वारा दिया गया हो, या जिसके बारे में वह जानता है कि सिविल वाद में न्यायालय द्वारा उसका दिया जाना संभाव्य है, लिया जाना निवारित करे, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दंडित किया जाएगा ।


खंड- 245. ऐसी राशि के लिए जो शोध्य न हो कपटपूर्वक डिक्री होने देना सहन करना ।

जो कोई किसी व्यक्ति के बाद में ऐसी राशि के लिए, जो ऐसे व्यक्ति को शोध्य न हो या शोध्य राशि से अधिक हो, या किसी ऐसी संपत्ति या संपत्ति में के हित के लिए, जिसका ऐसा व्यक्ति हकदार न हो, अपने विरुद्ध कोई डिक्री या आदेश कपटपूर्वक पारित करवाएगा, या पारित किया जाना सहन करेगा या किसी डिक्री या आदेश को उसके तुष्ट कर दिए जाने के पश्चात् या किसी ऐसी बात के लिए, जिसके विषय में उस डिक्री या आदेश की तुष्टि कर दी गई हो, अपने विरुद्ध कपटपूर्वक निष्पादित करवाएगा या किया जाना सहन करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दंडित किया जाएगा ।

दृष्टांत

य के विरुद्ध एक वाद क संस्थित करता है । य यह संभाव्य जानते हुए कि क उसके विरुद्ध डिक्री अभिप्राप्त कर लेगा, ख के वाद में, जिसका उसके विरुद्ध कोई न्यायसंगत दावा नहीं है, अधिक रकम के लिए अपने विरुद्ध निर्णय किया जाना इसलिए कपटपूर्वक सहन करता है कि ख स्वयं अपने लिए या य के फायदे के लिए य की संपत्ति के किसी ऐसे विक्रय के आगमों का अंश ग्रहण करे, जो क की डिक्री के अधीन किया जाए । य ने इस धारा के अधीन अपराध किया है ।

खंड- 246. बेईमानी से न्यायालय में मिथ्या दावा करना ।

जो कोई कपटपूर्वक या बेईमानी से या किसी व्यक्ति को क्षति या क्षोभ कारित करने के आशय से न्यायालय में कोई ऐसा दावा करेगा, जिसका मिथ्या होना वह जानता हो, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा, और जुर्माने का भी दायी होगा ।


खंड- 247. ऐसी राशि के लिए जो शोध्य नहीं है कपटपूर्वक डिक्री अभिप्राप्त करना ।

जो कोई किसी व्यक्ति के विरुद्ध ऐसी राशि के लिए, जो शोध्य न हो, या जो शोध्य राशि से अधिक हो, या किसी संपत्ति या संपत्ति में के हित के लिए, जिसका वह हकदार न हो, डिक्री या आदेश कपटपूर्वक अभिप्राप्त कर लेगा या किसी डिक्री या आदेश को, उसके तुष्ट कर दिए जाने के पश्चात् या ऐसी बात के लिए, जिसके विषय में उस डिक्री या आदेश की तुष्टि कर दी गई हो, किसी व्यक्ति के विरुद्ध कपटपूर्वक निष्पादित करवाएगा या अपने नाम में कपटपूर्वक ऐसा कोई कार्य किया जाना सहन करेगा या किए जाने की अनुज्ञा देगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से जिसकी अवधि दो वर्ष की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दंडित किया जाएगा ।


खंड- 248. क्षति करने के आशय से अपराध का मिथ्या आरोप ।

जो कोई किसी व्यक्ति को यह जानते हुए कि उस व्यक्ति के विरुद्ध ऐसी कार्यवाही या आरोप के लिए कोई न्यायसंगत या विधिपूर्ण आधार नहीं है क्षति कारित करने के आशय से उस व्यक्ति के विरुद्ध कोई दांडिक कार्यवाही संस्थित करेगा या करवाएगा या उस व्यक्ति पर मिथ्या आरोप लगाएगा कि उसने अपराध किया है-

(क) वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि पांच वर्ष तक की हो सकेगी, या दो लाख रुपए तक के जुर्माने से, या दोनों से, दंडित किया जाएगा ;

(ख) ऐसी दांडिक कार्यवाही मृत्यु, आजीवन कारावास या दस वर्ष या उससे अधिक के कारावास से दंडनीय अपराध के मिथ्या आरोप पर संस्थित की जाए, तो वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने का भी दायी होगा ।

खंड- 249. अपराधी को संश्रय देना ।

जब कोई अपराध किया जा चुका हो, तब जो कोई किसी ऐसे व्यक्ति को, जिसके बारे में वह जानता हो या विश्वास करने का कारण रखता हो कि वह अपराधी है, वैध दंड से प्रतिच्छादित करने के आशय से संश्रय देगा या छिपाएगा-

(क) यदि वह अपराध मृत्यु से दंडनीय हो तो वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि पांच वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने का भी दायी होगा ;

(ख) यदि वह अपराध आजीवन कारावास से, या दस वर्ष तक के कारावास से, दंडनीय हो, तो वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने का भी दायी होगा ;

(ग) यदि वह अपराध एक वर्ष तक, न कि दस वर्ष तक के कारावास से दंडनीय हो, तो वह उस अपराध के लिए उपबंधित भांति के कारावास से, जिसकी अवधि उस अपराध के लिए उपबंधित कारावास की दीर्घतम अवधि की एक-चौथाई तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दंडित किया जाएगा ;

स्पष्टीकरण इस धारा में अपराध के अंतर्गत भारत से बाहर किसी स्थान पर किया गया ऐसा कार्य आता है, जो, यदि भारत में किया जाता हो तो निम्नलिखित धारा, अर्थात् धारा 103, धारा 105, धारा 307, धारा 309 की उपधारा (2), उपधारा (3) और उपधारा (4), धारा 310 की उपधारा (2), उपधारा (3), उपधारा (4) और उपधारा (5), धारा 311, धारा 312, धारा 326 के खंड (च) और खंड (छ), धारा 331 की उपधारा (4), उपधारा (6), उपधारा (7) और उपधारा (8), धारा 332 के खंड (क) और खंड (ख) में से किसी धारा के अधीन दंडनीय होता और प्रत्येक एक ऐसा कार्य इस धारा के प्रयोजनों के लिए ऐसे दंडनीय समझा जाएगा, मानो अभियुक्त व्यक्ति उसे भारत में करने का दोषी था ।

अपवाद-इस उपबंध का विस्तार किसी ऐसे मामले पर नहीं है जिससे अपराधी को संश्रय देना या छिपाना उसके पति या पत्नी द्वारा हो ।

दृष्टांत

क यह जानते हुए कि ख ने डकैती की है, ख को वैध दंड से प्रतिच्छादित करने के लिए जानते हुए छिपा लेता है । यहां, ख आजीवन कारावास से दंडनीय है, क तीन वर्ष से अनधिक अवधि के लिए दोनों में से किसी भांति के कारावास से दंडनीय है और जुर्माने का भी दायी होगा ।

खंड- 250. अपराधी को दंड से प्रतिच्छादित करने के लिए उपहार आदि लेना ।

जो कोई अपने या किसी अन्य व्यक्ति के लिए कोई परितोषण या अपने या किसी अन्य व्यक्ति के लिए किसी संपत्ति का प्रत्यास्थापन, किसी अपराध के छिपाने के लिए या किसी व्यक्ति को किसी अपराध के लिए वैध दंड से प्रतिच्छादित करने के लिए, या किसी व्यक्ति के विरुद्ध वैध दंड दिलाने के प्रयोजन से उसके विरुद्ध की जाने वाली कार्यवाही न करने के लिए, प्रतिफलस्वरूप प्रतिगृहीत करेगा या अभिप्राप्त करने का प्रयत्न करेगा या प्रतिगृहीत करने के लिए करार करेगा, -

(क) यदि वह अपराध मृत्यु से दंडनीय हो, तो वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा, और जुर्माने का भी दायी होगा ;

(ख) यदि वह अपराध आजीवन कारावास या दस वर्ष तक के कारावास से दंडनीय हो, तो वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने का भी दायी होगा ;

(ग) वह अपराध दस वर्ष से कम तक के कारावास से दंडनीय हो, तो वह उस अपराध के लिए उपबंधित भांति के कारावास से इतनी अवधि के लिए, जो उस अपराध के लिए उपबंधित कारावास की दीर्घतम अवधि की एक चौथाई तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दंडित किया जाएगा ।

खंड- 251. अपराधी के प्रतिच्छादन के प्रतिफलस्वरूप उपहार की प्रस्थापना या संपत्ति का प्रत्यावर्तन ।

जो कोई, किसी व्यक्ति को कोई अपराध उस व्यक्ति द्वारा छिपाए जाने के लिए या उस व्यक्ति द्वारा किसी व्यक्ति को किसी अपराध के लिए वैध दंड से प्रतिच्छादित किए जाने के लिए या उस व्यक्ति द्वारा किसी व्यक्ति को वैध दंड दिलाने के प्रयोजन से उसके विरुद्ध की जाने वाली कार्यवाही न की जाने के लिए प्रतिफलस्वरूप कोई परितोषण देगा या दिलाएगा या देने या दिलाने की प्रस्थापना या करार करेगा, या कोई संपत्ति प्रत्यावर्तित करेगा या कराएगा, -

(क) यदि वह अपराध मृत्यु से दंडनीय हो, तो वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने का भी दायी होगा ;

(ख) यदि वह अपराध आजीवन कारावास से या दस वर्ष तक के कारावास से दंडनीय हो, तो वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने का भी दायी होगा ;

(ग) यदि वह अपराध दस वर्ष से कम के कारावास से दंडनीय हो, तो वह उस अपराध के लिए उपबंधित भांति के कारावास से इतनी अवधि के लिए, जो उस अपराध के लिए उपबंधित कारावास की दीर्घतम अवधि की एक-चौथाई तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दंडित किया जाएगा ।

अपवाद इस धारा और धारा 250 के उपबंध ऐसे किसी मामले को विस्तारित नहीं करेंगे जिसमें अपराध का विधिपूर्वक शमन किया जा सके ।

खंड- 252. चोरी की संपत्ति इत्यादि के वापस लेने में सहायता करने के लिए उपहार लेना ।

जो कोई किसी व्यक्ति की किसी ऐसी जंगम संपत्ति के वापस करा लेने में, जिससे इस संहिता के अधीन दंडनीय किसी अपराध द्वारा वह व्यक्ति वंचित कर दिया गया हो, सहायता करने के बहाने या सहायता करने की बाबत कोई परितोषण लेगा या लेने का करार करेगा या लेने को सम्मत होगा, वह, जब तक कि अपनी शक्ति में के सब साधनों को अपराधी को पकड़वाने के लिए और अपराध के लिए दोषसिद्ध कराने के लिए उपयोग में न लाए, दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दंडित किया जाएगा ।


खंड- 253. ऐसे अपराधी को संश्रय देना, जो अभिरक्षा से निकल भागा है या जिसको पकड़ने का आदेश दिया जा चुका है।

जब किसी अपराध के लिए दोषसिद्ध या आरोपित व्यक्ति उस अपराध के लिए वैध अभिरक्षा में होते हुए ऐसी अभिरक्षा से निकल भागे, या जब कभी कोई लोक सेवक ऐसे लोक सेवक की विधिपूर्ण शक्तियों का प्रयोग करते हुए किसी अपराध के लिए किसी व्यक्ति को पकड़ने का आदेश दे, तब जो कोई ऐसे निकल भागने को या पकड़े जाने के आदेश को जानते हुए, उस व्यक्ति को पकड़ा जाना निवारित करने के आशय से उसे संश्रय देगा या छिपाएगा, वह निम्नलिखित रीति से दंडित किया जाएगा, -

(क) यदि वह अपराध, जिसके लिए वह व्यक्ति अभिरक्षा में था या पकड़े जाने के लिए आदेशित है, मृत्यु से दंडनीय हो, तो वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा, और जुर्माने का भी दायी होगा ;

(ख) यदि वह अपराध आजीवन कारावास से या दस वर्ष के कारावास से दंडनीय हो, तो वह जुर्माने सहित या रहित दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा ;

(ग) यदि वह अपराध ऐसे कारावास से दंडनीय हो, जो एक वर्ष तक का, न कि दस वर्ष तक का हो सकता है, तो वह उस अपराध के लिए उपबंधित भांति के कारावास से, जिसकी अवधि उस अपराध के लिए उपबंधित कारावास की दीर्घतम अवधि की एक चौथाई तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से दंडित किया जाएगा ।

स्पष्टीकरण इस धारा में अपराध के अंतर्गत कोई भी ऐसा कार्य या लोप भी आता है, जिसका कोई व्यक्ति भारत से बाहर दोषी होना अभिकथित हो, जो यदि वह भारत में उसका दोषी होता, तो अपराध के रूप में दंडनीय होता और जिसके लिए, वह प्रत्यर्पण से संबंधित किसी विधि के अधीन या अन्यथा भारत में पकड़े जाने या अभिरक्षा में निरुद्ध किए जाने के दायित्व के अधीन हो, और प्रत्येक ऐसा कार्य या लोप इस धारा के प्रयोजनों के लिए ऐसे दंडनीय समझा जाएगा, मानो अभियुक्त व्यक्ति भारत में उसका दोषी हुआ था ।

अपवाद इस धारा के उपबंधों का विस्तार ऐसे मामले पर नहीं है, जिसमें संश्रय देना या छिपाना पकड़े जाने वाले व्यक्ति के पति या पत्नी द्वारा हो ।


खंड- 254. लुटेरों या डाकुओं को संश्रय देने के लिए शास्ति ।

जो कोई यह जानते हुए या विश्वास करने का कारण रखते हुए कि कोई व्यक्ति लूट या डकैती हाल ही में करने वाले हैं या हाल ही में लूट या डकैती कर चुके हैं, उनको या उनमें से किसी को, ऐसी लूट या डकैती का किया जाना सुकर बनाने के, या उनको या उनमें से किसी को दंड से प्रतिच्छादित करने के आशय से संश्रय देगा, वह कठिन कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने का भी दायी होगा ।

स्पष्टीकरण इस धारा के प्रयोजनों के लिए यह तत्त्वहीन है कि लूट या डकैती भारत में करनी आशयित है या की जा चुकी है, या भारत से बाहर ।

अपवाद इस धारा के उपबंधों का विस्तार ऐसे मामले पर नहीं है, जिसमें संश्रय देना, या छिपाना अपराधी के पति या पत्नी द्वारा हो ।

खंड- 255. लोक सेवक द्वारा किसी व्यक्ति को दंड से या किसी संपत्ति के समपहरण से बचाने के आशय से विधि के निदेश की अवज्ञा ।

जो कोई लोक सेवक होते हुए विधि के ऐसे किसी निदेश की, जो उस संबंध में हो कि उससे ऐसे लोक सेवक के नाते किस ढंग का आचरण करना चाहिए, जानते हुए अवज्ञा किसी व्यक्ति को वैध दंड से बचाने के आशय से या संभाव्यतः तद्वारा बचाएगा यह जानते हुए या उतने दंड की अपेक्षा, जिससे वह दंडनीय है, तद्वारा कम दंड दिलवाएगा यह संभाव्य जानते हुए या किसी संपत्ति को ऐसे समपहरण या किसी भार से, जिसके लिए वह संपत्ति विधि के द्वारा दायित्व के अधीन है बचाने के आशय से या संभाव्यतः तद्द्वारा बचाएगा यह जानते हुए करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दंडित किया जाएगा ।


खंड- 256. किसी व्यक्ति को दंड से या किसी संपत्ति को समपहरण से बचाने के आशय से लोक सेवक द्वारा अशुद्ध अभिलेख या लेख की रचना ।

जो कोई लोक सेवक होते हुए और ऐसे लोक सेवक के नाते कोई अभिलेख या अन्य लेख तैयार करने का भार रखते हुए, उस अभिलेख या लेख की इस प्रकार से रचना, जिसे वह जानता है कि अशुद्ध है लोक को या किसी व्यक्ति को हानि या क्षति कारित करने के आशय से या संभाव्यतः तद्द्वारा कारित करेगा यह जानते हुए या किसी व्यक्ति को वैध दंड से बचाने के आशय से या संभाव्यतः तद्द्वारा बचाएगा यह जानते हुए या किसी संपत्ति को ऐसे समपहरण या अन्य भार से, जिसके दायित्व के अधीन वह संपत्ति विधि के अनुसार है, बचाने के आशय से या संभाव्यतः तद्द्वारा बचाएगा या जानते हुए करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दंडित किया जाएगा ।


खंड- 257. न्यायिक कार्यवाही में विधि के प्रतिकूल रिपोर्ट आदि का लोक सेवक द्वारा भ्रष्टतापूर्वक किया जाना ।

जो कोई लोक सेवक होते हुए, न्यायिक कार्यवाही के किसी प्रक्रम में कोई रिपोर्ट, आदेश, अधिमत या विनिश्चय, जिसका विधि के प्रतिकूल होना वह जानता हो, भ्रष्टतापूर्वक या विद्वेषपूर्वक देगा, या सुनाएगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दंडित किया जाएगा ।


खंड- 258. प्राधिकार वाले व्यक्ति द्वारा जो यह जानता है कि वह विधि के प्रतिकूल कार्य कर रहा है, विचारण के लिए या परिरोध करने के लिए सुपुर्दगी ।

जो कोई किसी ऐसे पद पर होते हुए, जिससे व्यक्तियों को विचारण या परिरोध के लिए सुपुर्द करने का, या व्यक्तियों को परिरोध में रखने का उसे वैध प्राधिकार हो किसी व्यक्ति को उस प्राधिकार के प्रयोग में यह जानते हुए भ्रष्टतापूर्वक या विद्वेषपूर्वक विचारण या परिरोध के लिए सुपुर्द करेगा या परिरोध में रखेगा कि ऐसा करने में वह विधि के प्रतिकूल कार्य कर रहा है, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दंडित किया जाएगा ।


खंड- 259. पकड़ने के लिए आबद्ध लोक सेवक द्वारा पकड़ने का जानबूझकर लोप ।

कोई ऐसा लोक सेवक होते हुए, जो किसी अपराध के लिए आरोपित या पकड़े जाने के दायित्व के अधीन किसी व्यक्ति को पकड़ने या परिरोध में रखने के लिए सेवक के नाते वैध रूप से आबद्ध है, ऐसे व्यक्ति को पकड़ने का जानबूझकर लोप करता है या ऐसे परिरोध में से ऐसे व्यक्ति का निकल भागना जानबूझकर सहन करता है या ऐसे व्यक्ति के निकल भागने में या निकल भागने के लिए प्रयत्न करने में जानबूझकर मदद करता है, वह निम्नलिखित रूप से दंडित किया जाएगा, -

(क) यदि परिरुद्ध व्यक्ति या जो व्यक्ति पकड़ा जाना चाहिए था वह मृत्यु से दंडनीय अपराध के लिए आरोपित या पकड़े जाने के दायित्व के अधीन हो, तो वह जुर्माने सहित या रहित दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी; या

(ख) यदि परिरुद्ध व्यक्ति या जो व्यक्ति पकड़ा जाना चाहिए था वह आजीवन कारावास या दस वर्ष तक की अवधि के कारावास से दंडनीय अपराध के लिए आरोपित है या पकड़े जाने के दायित्व के अधीन है, तो वह जुर्माने सहित या रहित दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी; या (ग) यदि परिरुद्ध व्यक्ति या जो पकड़ा जाना चाहिए था वह दस वर्ष से कम की अवधि के लिए कारावास से दंडनीय अपराध के लिए आरोपित है या पकड़े जाने के दायित्व के अधीन है, तो वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से ।

खंड- 260. दंडादेश के अधीन या विधिपूर्वक सुपुर्द किए गए व्यक्ति को पकड़ने के लिए आबद्ध लोक सेवक द्वारा पकड़ने का जानबूझकर लोप ।

जो कोई ऐसा लोक सेवक होते हुए, जो किसी अपराध के लिए न्यायालय के दंडादेश के अधीन या अभिरक्षा में रखे जाने के लिए विधिपूर्वक सुपुर्द किए गए किसी व्यक्ति को पकड़ने या परिरोध में रखने के लिए ऐसे लोक सेवक के नाते वैध रूप से आबद्ध है, ऐसे व्यक्ति को पकड़ने का जानबूझकर लोप करता है, या ऐसे परिरोध में से जानबूझकर ऐसे व्यक्ति का निकल भागना सहन करता है या ऐसे व्यक्ति के निकल भागने में, या निकल भागने का प्रयत्न करने में जानबूझकर मदद करता है, वह निम्नलिखित रूप से दंडित किया जाएगा, -(क) यदि परिरुद्ध व्यक्ति या जो व्यक्ति पकड़ा जाना चाहिए था वह मृत्यु दंडादेश के अधीन हो, तो वह जुर्माने सहित या रहित आजीवन कारावास से, या दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि चौदह वर्ष तक की हो सकेगी; या

(ख) यदि परिरुद्ध व्यक्ति या जो व्यक्ति पकड़ा जाना चाहिए था वह न्यायालय के दंडादेश से, या ऐसे दंडादेश से लघुकरण के आधार पर आजीवन कारावास या दस वर्ष की या उससे अधिक की अवधि के लिए कारावास के अध्यधीन हो, तो वह जुर्माने सहित या रहित, दोनों में से किसी भांति के कारावास से जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी; या

(ग) यदि परिरुद्ध व्यक्ति या जो व्यक्ति पकड़ा जाना चाहिए था वह न्यायालय के दंडादेश से दस वर्ष से कम की अवधि के लिए कारावास के अध्यधीन हो या यदि वह व्यक्ति अभिरक्षा में रखे जाने के लिए विधिपूर्वक सुपुर्द किया गया हो, तो वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से ।

खंड- 261. लोक सेवक द्वारा उपेक्षा से परिरोध या अभिरक्षा में से निकल भागना सहन करना ।

जो कोई ऐसा लोक सेवक होते हुए, जो अपराध के लिए आरोपित या दोषसिद्ध या अभिरक्षा में रखे जाने के लिए विधिपूर्वक सुपुर्द किए गए किसी व्यक्ति को परिरोध में रखने के लिए ऐसे लोक सेवक के नाते वैध रूप से आबद्ध हो, ऐसे व्यक्ति का परिरोध में से निकल भागना उपेक्षा से सहन करता है, वह सादा कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दंडित किया जाएगा ।


खंड- 262. किसी व्यक्ति द्वारा विधि के अनुसार अपने पकड़े जाने में प्रतिरोध या बाधा ।

जो कोई किसी ऐसे अपराध के लिए, जिसका उस पर आरोप हो, या जिसके लिए वह दोषसिद्ध किया गया है, विधि के अनुसार अपने पकड़े जाने में जानबूझकर प्रतिरोध करता है या अवैध बाधा डालता है, या किसी अभिरक्षा से, जिसमें वह किसी ऐसे अपराध के लिए विधिपूर्वक निरुद्ध हो, निकल भागता है, या निकल भागने का प्रयत्न करता है, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दंडित किया जाएगा । स्पष्टीकरण इस धारा में उपबंधित दंड, उस दंड के अतिरिक्त है जिससे वह व्यक्ति, जिसे पकड़ा जाना हो, या अभिरक्षा में निरुद्ध रखा जाना हो, उस अपराध के लिए दंडनीय था, जिसका उस पर आरोप लगाया गया था या जिसके लिए वह दोषसिद्ध किया गया था ।


खंड- 263. किसी अन्य व्यक्ति के विधि के अनुसार पकड़े जाने में प्रतिरोध या बाधा ।

जो कोई किसी अपराध के लिए किसी दूसरे व्यक्ति के विधि के अनुसार पकड़े जाने में जानबूझकर प्रतिरोध करता है या अवैध बाधा डालता है, या किसी दूसरे व्यक्ति को किसी ऐसी अभिरक्षा से, जिसमें वह व्यक्ति किसी अपराध के लिए विधिपूर्वक निरुद्ध हो, जानबूझकर छुड़ावाता है या छुड़ाने का प्रयत्न करता है, -

(क) वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी या जुर्माने से, या दोनों से, दंडित किया जाएगा; या

(ख) यदि उस व्यक्ति पर, जिसे पकड़ा जाना हो, या जो छुड़ाया गया हो, या जिसके छुड़ाने का प्रयत्न किया गया हो, आजीवन कारावास से, या दस वर्ष तक की अवधि के कारावास से दंडनीय अपराध का आरोप हो या वह उसके लिए पकड़े जाने के दायित्व के अधीन हो, तो वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने का भी दायी होगा; या

(ग) यदि उस व्यक्ति पर, जिसे पकड़ा जाना हो या जो छुड़ाया गया हो, या जिसके छुड़ाने का प्रयत्न किया गया हो, मृत्यु-दंड से दंडनीय अपराध का आरोप हो या वह उसके लिए पकड़े जाने के दायित्व के अधीन हो तो, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने का भी दायी होगा; या

(घ) यदि वह व्यक्ति, जिसे पकड़ा जाना हो या जो छुड़ाया गया हो, या जिसके छुड़ाने का प्रयत्न किया गया हो, किसी न्यायालय के दंडादेश के अधीन या वह ऐसे दंडादेश के लघुकरण के आधार पर आजीवन कारावास या दस वर्ष या उससे अधिक अवधि के कारावास से दंडनीय हो, तो वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने का भी दायी होगा; या

(ङ) यदि वह व्यक्ति, जिसे पकड़ा जाना हो, या जो छुड़ाया गया हो या जिसके छुड़ाने का प्रयत्न किया गया हो, मृत्यु दंडादेश के अधीन हो, तो वह आजीवन कारावास से, या दोनों में से किसी भांति के कारावास से, इतनी अवधि के लिए जो दस वर्ष से अनधिक है, दंडित किया जाएगा और जुर्माने का भी दायी होगा ।

खंड- 264. उन दशाओं में, जिनके लिए अन्यथा उपबंध नहीं है, लोक सेवक द्वारा पकड़ने का लोप या निकल भागना सहन करना ।

जो कोई ऐसा लोक सेवक होते हुए जो किसी व्यक्ति को पकड़ने या परिरोध में रखने के लिए लोक सेवक के नाते वैध रूप से आबद्ध हो उस व्यक्ति को किसी ऐसी दशा में, जिसके लिए धारा 259, धारा 260 या धारा 261 या किसी अन्य तत्समय प्रवृत्त विधि में कोई उपबंध नहीं है, पकड़ने का लोप करेगा या परिरोध में से निकल भागना सहन करेगा, -

(क) यदि वह ऐसा जानबूझकर करता है, तो वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी या जुर्माने से, या दोनों से; और

(ख) यदि वह ऐसा उपेक्षापूर्वक करता है तो वह सादा कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दंडित किया जाएगा ।

खंड- 265. अन्यथा अनुपबंधित दशाओं में विधिपूर्वक पकड़ने में प्रतिरोध या बाधा या निकल भागना या छुड़ाना ।

जो कोई स्वयं अपने या किसी अन्य व्यक्ति के विधिपूर्वक पकड़े जाने में जानबूझकर कोई प्रतिरोध करता है या अवैध बाधा डालता है या किसी अभिरक्षा में से, जिसमें वह विधिपूर्वक निरुद्ध हो, निकल भागता है या निकल भागने का प्रयत्न करता है या किसी अन्य व्यक्ति को ऐसी अभिरक्षा में से, जिसमें वह व्यक्ति विधिपूर्वक निरुद्ध हो, छुड़ाता है या छुड़ाने का प्रयत्न करता है वह किसी ऐसी दशा में, जिसके लिए धारा 262 या धारा 263 या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि में उपबंध नहीं है, दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दंडित किया जाएगा ।


खंड- 266. दंड के परिहार की शर्त का अतिक्रमण ।

जो कोई दंड का सशर्त परिहार स्वीकृत कर लेने पर किसी शर्त का जिस पर ऐसा परिहार दिया गया था, जानते हुए अतिक्रमण करता है, यदि वह उस दंड का, जिसके लिए वह मूलतः दंडादिष्ट किया गया था, कोई भाग पहले ही न भोग चुका हो, तो वह उस दंड से और यदि वह उस दंड का कोई भाग भोग चुका हो, तो वह उस दंड के उतने भाग से, जितने को वह पहले ही भोग चुका हो, दंडित किया जाएगा ।


खंड- 267. न्यायिक कार्यवाही में बैठे हुए लोक सेवक का जानबूझकर अपमान या उसके कार्य में विघ्न ।

जो कोई किसी लोक सेवक का उस समय, जबकि ऐसा लोक सेवक न्यायिक कार्यवाही के किसी प्रक्रम में बैठा हुआ हो, जानबूझकर कोई अपमान करेगा या उसके कार्य में कोई विघ्न डालेगा, वह सादा कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो पांच हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दंडित किया जाएगा ।


खंड- 268. असेसर का प्रतिरूपण ।

जो कोई किसी मामले में प्रतिरूपण द्वारा या अन्यथा, अपने को यह जानते हुए असेसर के रूप में तालिकांकित, पेनलित या गृहीतशपथ जानबूझकर कराएगा या होने देना जानते हुए सहन करेगा कि वह इस प्रकार तालिकांकित, पेनलित या गृहीतशपथ होने का विधि द्वारा हकदार नहीं है या यह जानते हुए कि वह इस प्रकार तालिकांकित, पेनलित या गृहीतशपथ विधि के प्रतिकूल हुआ है ऐसे असेसर के रूप में स्वेच्छा सेवा करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दंडित किया जाएगा ।


खंड- 269. जमानतपत्र या बंधपत्र पर छोड़े गए व्यक्ति द्वारा न्यायालय में हाजिर होने में असफलता ।

जो कोई, किसी अपराध से आरोपित किए जाने पर और जमानतपत्र पर या अपने बंधपत्र पर छोड़ दिए जाने पर, जमानत या बंधपत्र के निबंधनों के अनुसार न्यायालय में पर्याप्त कारणों के बिना (जो साबित करने का भार उस पर होगा) हाजिर होने में असफल रहता है वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी या जुर्माने से, या दोनों से, दंडित किया जाएगा ।

स्पष्टीकरण इस धारा के अधीन दंड-

(क) उस दंड के अतिरिक्त है, जिसके लिए अपराधी उस अपराध के लिए, जिसके लिए उसे आरोपित किया गया है, दोषसिद्धि पर दायी होगा; और

(ख) न्यायालय की बंधपत्र के समपहरण का आदेश करने की शक्ति पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाला नहीं है ।

अध्याय 15- लोक स्वास्थ्य, क्षेम, सुरक्षा, शिष्टता और सदाचार पर प्रभाव डालने वाले अपराधो के विषय में

खंड- 270. लोक न्यूसेन्स ।

वह व्यक्ति लोक न्यूसेन्स का दोषी है, जो कोई ऐसा कार्य करता है या किसी ऐसे अवैध लोप का दोषी है, जिससे लोक को या जनसाधारण को जो आसपास में रहते हों या आसपास की सम्पत्ति पर अधिभोग रखते हों, कोई सामान्य क्षति, संकट या क्षोभ कारित हो या जिससे उन व्यक्तियों का जिन्हें किसी लोक अधिकार को उपयोग में लाने का मौका पड़े, क्षति, बाधा, संकट या क्षोभ कारित होना अवश्यंभावी हो, किंतु कोई सामान्य न्यूसेन्स इस आधार पर माफी योग्य नहीं है कि उससे कुछ सुविधा या भलाई कारित होती है ।


खंड- 271. उपेक्षापूर्ण कार्य जिससे जीवन के लिए संकटपूर्ण रोग का संक्रम फैलना संभाव्य हो ।

जो कोई विधिविरुद्ध रूप से या उपेक्षा से ऐसा कोई कार्य करेगा, जिससे कि और जिससे वह जानता या विश्वास करने का कारण रखता हो कि, जीवन के लिए संकटपूर्ण किसी रोग का संक्रम फैलना संभाव्य है, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दंडित किया जाएगा ।


खंड- 272. परिवेषपूर्ण कार्य, जिससे जीवन के लिए संकटपूर्ण रोग का संक्रम फैलना संभाव्य हो ।

जो कोई परिवेष से ऐसा कोई कार्य करेगा जिससे कि, और जिससे वह जानता या विश्वास करने का कारण रखता हो कि, जीवन के लिए संकटपूर्ण किसी रोग का संक्रमण फैलना संभाव्य है, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दंडित किया जाएगा ।


खंड- 273. करन्तीन के नियम की अवज्ञा ।

जो कोई परिवहन के किसी ढंग को क्वारंटाइन की स्थिति में रखे जाने के, या क्वारंटाइन की स्थिति वाले किसी ऐसे परिवहन का समागम विनियमित करने के, या ऐसे स्थानों के, जहां कोई संक्रामक रोग फैल रहा हो और अन्य स्थानों के बीच समागम विनियमित करने के लिए सरकार द्वारा बनाए गए किसी नियम को जानते हुए अवज्ञा करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दंडित किया जाएगा ।


खंड- 274. विक्रय के लिए आशयित खाद्य या पेय का अपमिश्रण ।

जो कोई किसी खाने या पीने की वस्तु को इस आशय से कि वह ऐसी वस्तु के खाद्य या पेय के रूप में बेचे या यह संभाव्य जानते हुए कि वह खाद्य या पेय के रूप में बेची जाएगी, ऐसे अपमिश्रित करेगा कि ऐसी वस्तु खाद्य या पेय के रूप में हानिकर बन जाए वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो पांच हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दंडित किया जाएगा ।


खंड- 275. हानिकर खाद्य या पेय का विक्रय ।

जो कोई किसी ऐसी वस्तु को, जो अपायकर कर दी गई हो, या हो गई हो, या खाने पीने के लिए अनुपयुक्त दशा में हो, यह जानते हुए या यह विश्वास करने का कारण रखते हुए कि वह खाद्य या पेय के रूप में अपायकर है, खाद्य या पेय के रूप में बेचेगा, या बेचने की प्रस्थापना करेगा या बेचने के लिए अभिदर्शित करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो पांच हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा ।


खंड- 276. ओषधियों का अपमिश्रण ।

जो कोई किसी ओषधि या भेषजीय निर्मिति में अपमिश्रण इस आशय से कि या यह सम्भाव्य जानते हुए कि वह किसी ओषधीय प्रयोजन के लिए ऐसे बेची जाएगी या उपयोग की जाएगी, मानो उसमें ऐसा अपमिश्रण न हुआ हो, ऐसे प्रकार से करेगा कि उस ओषधि या भेषजीय निर्मिति की प्रभावकारिता कम हो जाए, क्रिया बदल जाए या वह हानिकर हो जाए, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो पांच हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा ।


खंड- 277. अपमिश्रित ओषधियों का विक्रय ।

जो कोई यह जानते हुए कि किसी ओषधि या भेषजीय निर्मिति में इस प्रकार से अपमिश्रण किया गया है कि उसकी प्रभावकारिता कम हो गई या उसकी क्रिया बदल गई है, या वह हानिकर बन गई है, उसे बेचेगा या बेचने की प्रस्थापना करेगा या बेचने के लिए अभिदर्शित करेगा, या किसी ओषधालय से ओषधीय प्रयोजनों के लिए उसे अनपमिश्रित के तौर पर देगा या उसका अपमिश्रित होना न जानने वाले व्यक्ति द्वारा ओषधीय प्रयोजनों के लिए उसका उपयोग कारित करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो पांच हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा ।


खंड- 278. ओषधि का भिन्न ओषधि या निर्मिति के तौर पर विक्रय ।

जो कोई किसी ओषधि या भेषजीय निर्मिति को, भिन्न ओषधि या भेषजीय निर्मिति के तौर पर जानते हुए बेचेगा या बेचने की प्रस्थापना करेगा या बेचने के लिए अभिदर्शित करेगा या ओषधीय प्रयोजनों के लिए औषधालय से देगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो पांच हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा ।


खंड- 279. लोक जल-स्रोत या जलाशय का जल गंदा करना ।

जो कोई किसी लोक जल-स्रोत या जलाशय के जल को स्वेच्छया इस प्रकार भ्रष्ट या गंदा करेगा कि वह उस प्रयोजन के लिए, जिसके लिए वह मामूली तौर पर उपयोग में आता हो, कम उपयोगी हो जाए, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो पांच हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा ।


खंड- 280. वायुमण्डल को स्वास्थ्य के लिए हानिकर बनाना ।

जो कोई किसी स्थान के वायुमण्डल को स्वेच्छया इस प्रकार दूषित करेगा कि वह जनसाधारण के स्वास्थ्य के लिए, जो पड़ोस में निवास या कारबार करते हों, या लोक मार्ग से आते जाते हों अपायकर बन जाए, वह जुर्माने से, जो एक हजार रुपए तक का हो सकेगा, दण्डित किया जाएगा ।


खंड- 281. लोक मार्ग पर उतावलेपन से वाहन चलाना या हांकना ।

जो कोई किसी लोक मार्ग पर ऐसे उतावलेपन या उपेक्षा से कोई वाहन चलाएगा या सवार होकर हांकेगा जिससे मानव जीवन संकटापन्न हो जाए या किसी अन्य व्यक्ति को उपहति या क्षति कारित होना सम्भाव्य हो, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो एक हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा ।


खंड- 282. जलयान का उतावलेपन से चलाना ।

जो कोई किसी जलयान को ऐसे उतावलेपन या उपेक्षा से चलाएगा, जिससे मानव जीवन संकटापन्न हो जाए या किसी अन्य व्यक्ति को उपहति या क्षति कारित होना सम्भाव्य हो, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो दस हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा ।


खंड- 283. भ्रामक प्रकाश, चिह्न या बोये का प्रदर्शन ।

जो कोई किसी भ्रामक प्रकाश, चिह्न या बोये का प्रदर्शन इस आशय से, या यह सम्भाव्य जानते हुए करेगा, कि ऐसा प्रदर्शन किसी नौपरिवाहक को मार्ग भ्रष्ट कर देगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, और ऐसे जुर्माने से दण्डित किया जाएगा जो दस हजार रुपए से कम नहीं होगा ।


खंड- 284. अक्षमकर या अति लदे हुए जलयान में भाड़े के लिए जलमार्ग से किसी व्यक्ति का प्रवहण ।

जो कोई किसी व्यक्ति को किसी जलयान में जलमार्ग से, जानते हुए या उपेक्षापूर्वक भाड़े पर तब प्रवहण करेगा, या कराएगा जब वह जलयान ऐसी दशा में हो या इतना लदा हुआ हो जिससे उस व्यक्ति का जीवन संकटापन्न हो सकता हो, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो पांच हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा ।


खंड- 285. लोक मार्ग या नौपरिवहन पथ में संकट या बाधा ।

जो कोई किसी कार्य को करके या अपने कब्जे में की, या अपने भारसाधन के अधीन किसी सम्पत्ति की व्यवस्था करने का लोप करने के द्वारा, किसी लोकमार्ग या नौपरिवहन के लोक पथ में किसी व्यक्ति को संकट, बाधा या क्षति कारित करेगा वह जुर्माने से, जो पांच हजार रुपए तक का हो सकेगा, दण्डित किया जाएगा ।


खंड- 286. विषैले पदार्थ के संबंध में उपेक्षापूर्ण आचरण ।

जो कोई किसी विषैले पदार्थ से कोई कार्य ऐसे उतावलेपन या उपेक्षा से करेगा, जिससे मानव जीवन संकटापन्न हो जाए, या जिससे किसी व्यक्ति को, उपहति या क्षति कारित होना सम्भाव्य हो या अपने कब्जे में के किसी विषैले पदार्थ की ऐसी व्यवस्था करने का, जो ऐसे विषैले पदार्थ से मानव जीवन को किसी अधिसम्भाव्य संकट से बचाने के लिए पर्याप्त हो, जानते हुए या उपेक्षापूर्वक लोप करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो पांच हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा ।


खंड- 287. अग्नि या ज्वलनशील पदार्थ के सम्बन्ध में उपेक्षापूर्ण आचरण ।

जो कोई अग्नि या किसी ज्वलनशील पदार्थ से कोई कार्य ऐसे उतावलेपन या उपेक्षा से करेगा जिससे मानव जीवन संकटापन्न हो जाए या जिससे किसी अन्य व्यक्ति को उपहति या क्षति कारित होना सम्भाव्य हो या अपने कब्जे में की अग्नि या किसी ज्वलनशील पदार्थ की ऐसी व्यवस्था करने का, जो ऐसी अग्नि या ज्वलनशील पदार्थ से मानव जीवन को किसी अधिसम्भाव्य संकट से बचाने के लिए पर्याप्त हो, जानते हुए या उपेक्षापूर्वक लोप करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी या जुर्माने से, जो दो हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा ।


खंड- 288. विस्फोटक पदार्थ के बारे में उपेक्षापूर्ण आचरण ।

जो कोई किसी विस्फोटक पदार्थ से, कोई कार्य ऐसे उतावलेपन या उपेक्षा से करेगा, जिससे मानव जीवन संकटापन्न हो जाए या जिससे किसी अन्य व्यक्ति को उपहति या क्षति कारित होना सम्भाव्य हो, या अपने कब्जे में की किसी विस्फोटक पदार्थ की ऐसी व्यवस्था करने का, जैसी ऐसे पदार्थ से मानव जीवन को अधिसम्भाव्य संकट से बचाने के लिए पर्याप्त हो, जानते हुए या उपेक्षापूर्वक लोप करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो पांच हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा ।


खंड- 289. मशीनरी के सम्बन्ध में उपेक्षापूर्ण आचरण ।

जो कोई किसी मशीनरी से, कोई कार्य ऐसे उतावलेपन या उपेक्षा से करेगा, जिससे मानव जीवन संकटापन्न हो जाए या जिससे किसी अन्य व्यक्ति को उपहति या क्षति कारित होना सम्भाव्य हो, या अपने कब्जे में की या अपनी देखरेख के अधीन की किसी मशीनरी की ऐसी व्यवस्था करने का जो, ऐसी मशीनरी से मानव जीवन को किसी अभिसम्भाव्य संकट से बचाने के लिए पर्याप्त हो, जानते हुए या उपेक्षापूर्वक लोप करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो पांच हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा ।


खंड- 290. किसी निर्माण को गिराने, उसकी मरम्मत करने या संनिर्माण करने के संबंध में उपेक्षापूर्ण आचरण ।

जो कोई किसी निर्माण को गिराने, उसकी मरम्मत करने में या सन्निर्माण करने उस निर्माण के ऐसे उपाय करने का, जो उस निर्माण के या उसके किसी भाग के गिरने से मानव जीवन को किसी अधिसम्भाव्य संकट से बचाने के लिए पर्याप्त हो, जानते हुए या उपेक्षापूर्वक लोप करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो पांच हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा ।


खंड- 291. जीव-जन्तु के संबंध में उपेक्षापूर्ण आचरण ।

जो कोई अपने कब्जे में के किसी जीव-जन्तु के संबंध में ऐसे उपाय करने का, जो ऐसे जीव-जन्तु से मानव जीवन को किसी अभिसम्भाव्य संकट या घोर उपहति के किसी अधिसंभाव्य संकट से बचाने के लिए पर्याप्त हो, जानते हुए या उपेक्षापूर्वक लोप करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो पांच हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा ।


खंड- 292. अन्यथा अनुपबन्धित मामलों में लोक न्यूसेन्स के लिए दण्ड ।

जो कोई किसी ऐसे मामले में लोक न्यूसेन्स करेगा जो इस संहिता द्वारा अन्यथा दण्डनीय नहीं है, वह जुर्माने से, जो एक हजार रुपए तक का हो सकेगा, दण्डित किया जाएगा ।


खंड- 293. न्यूसेन्स बन्द करने के व्यादेश के पश्चात् उसका चालू रखना ।

जो कोई किसी लोक सेवक द्वारा, जिसको किसी न्यूसेन्स की पुनरावृत्ति न करने या उसे चालू न रखने के लिए व्यादेश प्रचालित करने का प्राधिकार हो, ऐसे व्यादिष्ट किए जाने पर, किसी लोक न्यूसेन्स की पुनरावृत्ति करेगा, या उसे चालू रखेगा, वह सादा कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो पांच हजार रुपए तक हो सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा ।


खंड- 294. अश्लील पुस्तकों, आदि का विक्रय आदि ।

(1) उपधारा (2) के प्रयोजनों के लिए, किसी पुस्तक, पुस्तिका, कागज, लेख, रेखाचित्र, रंगचित्र, रूपण, आकृति या अन्य वस्तु जिसके अंतर्गत इलेक्ट्रानिक प्ररूप में किसी अंतर्वस्तु का प्रदर्शन भी है, को अश्लील समझा जाएगा यदि वह कामो‌द्दीपक है या कामुक व्यक्तियों के लिए रुचिकर है या उसका या (जहां उसमें दो या अधिक सुभिन्न मदें समाविष्ट हैं वहां) उसकी किसी मद का प्रभाव, समग्र रूप से विचार करने पर, ऐसा है जो उन व्यक्तियों को दुराचारी तथा भ्रष्ट बनाए जिसके द्वारा उसमें अन्तर्विष्ट या सन्निविष्ट विषय का पढ़ा जाना, देखा जाना या सुना जाना सभी सुसंगत परिस्थितियों को ध्यान में रखते हए सम्भाव्य है ।

(2) जो कोई-

(क) किसी अश्लील पुस्तक, पुस्तिका, कागज, रेखाचित्र, रंगचित्र, रूपण या आकृति या किसी भी अन्य अश्लील वस्तु को, चाहे वह किसी भी रीतियों में कुछ भी हो, बेचेगा, भाड़े पर देगा, वितरित करेगा, लोक प्रदर्शित करेगा, या उसको किसी भी प्रकार परिचालित करेगा, या उसे विक्रय, भाड़े, वितरण, लोक प्रदर्शन या परिचालन के प्रयोजनों के लिए रचेगा, उत्पादित करेगा, या अपने कब्जे में रखेगा; या

(ख) किसी अश्लील वस्तु का आयात या निर्यात या प्रवहण पूर्वोक्त प्रयोजनों में से किसी प्रयोजन के लिए करेगा या यह जानते हुए, या यह विश्वास करने का कारण रखते हुए करेगा कि ऐसी वस्तु बेची, भाड़े पर दी, वितरित या लोक प्रदर्शित या, किसी प्रकार से परिचालित की जाएगी; या

(ग) किसी ऐसे कारबार में भाग लेगा या उससे लाभ प्राप्त करेगा, जिस कारबार में वह यह जानता है या यह विश्वास करने का कारण रखता है कि कोई ऐसी अश्लील वस्तु पूर्वोक्त प्रयोजनों में से किसी प्रयोजन के लिए रची जातीं, उत्पादित की जातीं, क्रय की जातीं, रखी जातीं, आयात की जातीं, निर्यात की जातीं, प्रवहण की जातीं, लोक प्रदर्शित की जातीं या किसी भी प्रकार से परिचालित की जाती हैं, या

(घ) यह विज्ञापित करेगा या किन्हीं साधनों द्वारा वे चाहे कुछ भी हों यह ज्ञात कराएगा कि कोई व्यक्ति किसी ऐसे कार्य में, जो इस धारा के अधीन अपराध है, लगा हुआ है, या लगने के लिए तैयार है, या यह कि कोई ऐसी अश्लील वस्तु किसी व्यक्ति से या किसी व्यक्ति के द्वारा प्राप्त की जा सकती है, या

(ङ) किसी ऐसे कार्य को, जो इस धारा के अधीन अपराध है, करने की प्रस्थापना करेगा या करने का प्रयत्न करेगा,

प्रथम दोषसिद्धि पर दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी और जुर्माने से, जो पांच हजार रुपए तक का हो सकेगा, तथा द्वितीय या पश्चात्वर्ती दोषसिद्धि की दशा में दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि पांच वर्ष तक की हो सकेगी और जुर्माने से भी, जो दस हजार रुपए तक का हो सकेगा दण्डित किया जाएगा ।

अपवाद- इस धारा का विस्तार निम्नलिखित पर नहीं होगा, -

(क) किसी ऐसी पुस्तक, पुस्तिका, कागज, लेख, रेखाचित्र, रंगचित्र, रूपण या आकृति-

(i) जिसका प्रकाशन लोकहित में होने के कारण इस आधार पर न्यायोचित साबित हो गया है कि ऐसी पुस्तक, पुस्तिका, कागज, लेख, रेखाचित्र, रंगचित्र, रूपण या आकृति विज्ञान, साहित्य, कला या विद्या या सर्वजन सम्बन्धी अन्य उद्देश्यों के हित में है; या

(ii) जो स‌द्भावपूर्वक धार्मिक प्रयोजनों के लिए रखी या उपयोग में लाई जाती है;

(ख) किसी ऐसे रूपण जो, –

(i) प्राचीन संस्मारक तथा पुरातत्वीय स्थल और अवशेष अधिनियम, 1958 के अर्थ में प्राचीन संस्मारक पर या उसमें; या

(ii) किसी मंदिर पर या उसमें या मूर्तियों के प्रवहण के उपयोग में लाए जाने वाले या किसी धार्मिक प्रयोजन के लिए रखे या उपयोग में लाए जाने वाले किसी रथ पर, तक्षित, उत्कीर्ण, रंगचित्रित या अन्यथा रूपित हों ।

खंड- 295. बालक को अश्लील वस्तुओं का विक्रय, आदि ।

जो कोई, किसी बालक को कोई ऐसी अश्लील वस्तु, जो धारा 294 में निर्दिष्ट है, बेचेगा, भाड़े पर देगा, वितरण करेगा, प्रदर्शित करेगा या परिचालित करेगा या ऐसा करने की प्रस्थापना या प्रयत्न करेगा प्रथम दोषसिद्धि पर दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, और जुर्माने से, जो दो हजार रुपए तक का हो सकेगा, तथा द्वितीय या पश्चात्वर्ती दोषसिद्धि की दशा में दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी और जुर्माने से भी, जो पांच हजार रुपए तक का हो सकेगा, दण्डित किया जाएगा ।


खंड- 296. अश्लील कार्य और गाने ।

जो कोई, -

(क) किसी लोक स्थान में कोई अश्लील कार्य करेगा; या

(ख) किसी लोक स्थान में या उसके समीप कोई अश्लील गाने, पवांड़े या शब्द गाएगा, सुनाएगा या उच्चारित करेगा, जिससे दूसरों को क्षोभ होता हो, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से जो एक हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा ।


खंड- 297. लाटरी कार्यालय रखना ।

(1) जो कोई ऐसी कोई लाटरी, जो न तो राज्य लाटरी हो और न तत्संबंधित राज्य सरकार द्वारा प्राधिकृत लाटरी हो, निकालने के प्रयोजन के लिए कोई कार्यालय या स्थान रखेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा ;

(2) जो कोई ऐसी लाटरी में किसी टिकट, लाट, संख्यांक या आकृति को निकालने से संबंधित या लागू होने वाली किसी घटना या परिस्थिति पर किसी व्यक्ति के फायदे के लिए किसी राशि को देने की, या किसी माल के परिदान को, या किसी बात को करने की, या किसी बात से प्रविरत रहने की कोई प्रस्थापना प्रकाशित करेगा, वह जुर्माने से, जो पांच हजार रुपए तक का हो सकेगा, दण्डित किया जाएगा ।

अध्याय 16- धर्म से संबंधित अपराधों के विषय में

खंड- 298. किसी वर्ग के धर्म का अपमान करने के आशय से उपासना के स्थान को क्षति करना या अपवित्र करना ।

जो कोई किसी उपासना स्थान को या व्यक्तियों के किसी वर्ग द्वारा पवित्र मानी गई किसी वस्तु को नष्ट, नुकसानग्रस्त या अपवित्र इस आशय से करेगा कि किसी वर्ग के धर्म का तद्वारा अपमान किए जाए या यह सम्भाव्य जानते हुए करेगा कि व्यक्तियों का कोई वर्ग ऐसे नाश, नुकसान या अपवित्र किए जाने को अपने धर्म के प्रति अपमान समझेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा ।


खंड- 299. विमर्शित और विद्वेषपूर्ण कार्य जो किसी वर्ग के धर्म या धार्मिक विश्वासों का अपमान करके उसकी धार्मिक भावनाओं को आहत करने के आशय से किए गए हों ।

जो कोई भारत के नागरिकों के किसी वर्ग की धार्मिक भावनाओं को आहत करने के विमर्शित और विद्वेषपूर्ण आशय से उस वर्ग के धर्म या धार्मिक विश्वासों का अपमान उच्चारित या लिखित शब्दों द्वारा या संकेतों द्वारा या दृश्यरूपणों द्वारा या इलेक्ट्रानिक साधनों द्वारा या अन्यथा करेगा या करने का प्रयत्न करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा ।


खंड- 300. धार्मिक जमाव में विघ्न करना ।

जो कोई धार्मिक उपासना या धार्मिक संस्कारों में वैध रूप से लगे हुए किसी जमाव में स्वेच्छया विघ्न कारित करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा ।


खंड- 301. कब्रिस्तानों, आदि में अतिचार करना ।

जो कोई किसी उपासना स्थान में, किसी कब्रिस्तान पर या अन्त्येष्टि क्रियाओं के लिए या मृतकों के अवशेषों के लिए निक्षेप स्थान के रूप में पृथक् रखे गए किसी स्थान में अतिचार या किसी मानव शव की अवहेलना या अन्त्येष्टि संस्कारों के लिए एकत्रित किन्हीं व्यक्तियों को विघ्न कारित, इस आशय से करेगा कि किसी व्यक्ति की भावनाओं को ठेस पहुंचाए या किसी व्यक्ति के धर्म का अपमान करे, या यह सम्भाव्य जानते हुए करेगा कि तद्वारा किसी व्यक्ति की भावनाओं को ठेस पहुंचेगी, या किसी व्यक्ति के धर्म का अपमान होगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा ।


खंड- 302. किसी व्यक्ति की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के विमर्शित आशय से शब्द उच्चारित करना आदि ।

जो कोई किसी व्यक्ति की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के विमर्शित आशय से उसकी श्रवणगोचरता में कोई शब्द उच्चारित करेगा या कोई ध्वनि करेगा या उसकी दृष्टिगोचरता में कोई अंगविक्षेप करेगा, या कोई वस्तु रखेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा ।

अध्याय 17- सम्पत्ति के विरुद्ध अपराधों के विषय में

खंड- 303. चोरी ।

(1) जो कोई किसी व्यक्ति के कब्जे में से, उस व्यक्ति की सम्मति के बिना कोई जंगम सम्पत्ति बेईमानी से ले लेने का आशय रखते हुए वह सम्पत्ति ऐसे लेने के लिए हटाता है, वह चोरी करता है, यह कहा जाता है ।

स्पष्टीकरण 1- जब तक कोई वस्तु भूबद्ध रहती है, चल सम्पत्ति न होने से चोरी का विषय नहीं होती ; किन्तु ज्यों ही वह भूमि से पृथक् की जाती है वह चोरी का विषय होने योग्य हो जाती है ।

स्पष्टीकरण 2-हटाना, जो उसी कार्य द्वारा किया गया है जिससे पृथक्करण किया गया है, चोरी हो सकेगा ।

स्पष्टीकरण 3 कोई व्यक्ति किसी चीज का हटाना कारित करता है, यह कहा जाता है जब वह उस बाधा को हटाता है जो उस चीज को हटाने से रोके हुए हो या जब वह उस चीज को किसी दूसरी चीज से पृथक् करता है तथा जब वह वास्तव में उसे हटाता है

स्पष्टीकरण 4 वह व्यक्ति जो किसी साधन द्वारा किसी जीव-जन्तु का हटाना कारित करता है, उस जीव-जन्तु को हटाता है, यह कहा जाता है; और यह कहा जाता है कि वह ऐसी प्रत्येक एक चीज को हटाता है जो इस प्रकार उत्पन्न की गई गति के परिणामस्वरूप उस जीव-जन्तु द्वारा हटाई जाती है ।

स्पष्टीकरण 5-इस धारा में वर्णित संपत्ति अभिव्यक्त या विवक्षित हो सकती है, और वह या तो कब्जा रखने वाले व्यक्ति द्वारा, या किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा, जो उस प्रयोजन के लिए अभिव्यक्त या विवक्षित प्राधिकार रखता है, दी जा सकती है ।

दृष्टांत

(क) य की सम्मति के बिना य के कब्जे में से एक वृक्ष बेईमानी से लेने के आशय से य की भूमि पर लगे हुए उस वृक्ष को क काट डालता है। यहां, ज्योंहि क ने इस प्रकार लेने के लिए उस वृक्ष को पृथक् किया, उसने चोरी की ।

(ख) क अपनी जेब में कुत्तों के लिए ललचाने वाली वस्तु रखता है, और इस प्रकार य के कुत्तों को अपने पीछे चलने के लिए उत्प्रेरित करता है । यहां, यदि क का आशय य की सम्मति के बिना य के कब्जे में से उस कुत्ते को बेईमानी से लेना हो, तो ज्योंही य के कुत्ते ने क के पीछे चलना आरंभ किया, क ने चोरी की ।

(ग) मूल्यवान वस्तु की पेटी ले जाते हुए एक बैल क को मिलता है । वह उस बैल को इसलिए एक खास दिशा में हांकता है कि वे मूल्यवान वस्तुएं बेईमानी से ले सके । ज्योंही उस बैल ने गतिमान होना प्रारभ्भ किया, क ने मूल्यवान वस्तुएं चोरी की ।

(घ) क, जो य का सेवक है और जिसे य ने अपनी प्लेट की देखरेख न्यस्त कर दी है, य की सम्मति के बिना प्लेट को लेकर बेईमानी से भाग गया। क ने चोरी की ।

(ङ) य यात्रा को जाते समय अपनी प्लेट लौटकर आने तक, क को, जो एक भाण्डागारिक है, न्यस्त कर देता है । क उस प्लेट को एक सुनार के पास ले जाता है और वह प्लेट बेच देता है। यहां वह प्लेट य के कब्जे में नहीं थीं, इसलिए वह य के कब्जे में से नहीं ली जा सकती थी और क ने चोरी नहीं की है, चाहे उसने आपराधिक न्यासभंग किया हो ।

(च) जिस गृह पर य का अधिभोग है उसके मेज पर य की अंगूठी क को मिलती है । यहां, वह अंगूठी य के कब्जे में है, और यदि क उसको बेईमानी से हटाता है, तो वह चोरी करता है ।

(छ) क को राजमार्ग पर पड़ी हुई अंगूठी मिलती है, जो किसी व्यक्ति के कब्जे में नहीं है । क ने उसके ले लेने से चोरी नहीं की है, भले ही उसने संपत्ति का आपराधिक दुर्विनियोग किया हो ।

(ज) य के घर में मेज पर पड़ी हुई य की अंगूठी क देखता है । तलाशी और पता लगने के भय से उस अंगूठी का तुरंत दुर्विनियोग करने का साहस न करते हुए क उस अंगूठी को ऐसे स्थान पर, जहां से उसका य को कभी भी मिलना अति अनधिसम्भाव्य है, इस आशय से छिपा देता है कि छिपाने के स्थान से उसे उस समय ले ले और बेच दे जबकि उसका खोया जाना याद न रहे। यहां, क ने उस अंगूठी को प्रथम बार हटाते समय चोरी की है ।

(झ) य को, जो एक जौहरी है, क अपनी घड़ी समय ठीक करने के लिए परिदत्त करता है । य उसको अपनी दुकान पर ले जाता है। क, जिस पर उस जौहरी का, कोई ऐसा ऋण नहीं है, जिसके लिए कि वह जौहरी उस घड़ी को प्रतिभूति के रूप में विधिपूर्वक रोक सके, खुले तौर पर उस दुकान में घुसता है, य के हाथ से अपनी घड़ी बलपूर्वक ले लेता है, और उसको ले जाता है। यहां क ने भले ही आपराधिक अतिचार और हमला किया हो, उसने चोरी नहीं की है, क्योंकि जो कुछ भी उसने किया, बेईमानी से नहीं किया ।

(ञ) यदि उस घड़ी की मरम्मत के संबंध में य को क से धन शोध्य है, और यदि य उस घड़ी को उस ऋण की प्रतिभूति के रूप में विधिपूर्वक रखे रखता है और क उस घड़ी को य के कब्जे में से इस आशय से ले लेता है कि य को उसके ऋण की प्रतिभूति रूप उस संपत्ति से वंचित कर दे तो उसने चोरी की है क्योंकि जो कुछ वह लेता है, उसे बेईमानी से लेता है ।

(ट) और यदि क अपनी घड़ी य के पास पण्यम करने के बाद घड़ी के बदले लिए गए ऋण को चुकाए बिना उसे य के कब्जे में से य की सम्मति के बिना ले लेता है, तो उसने चोरी की है, यद्यपि वह घड़ी उसकी अपनी ही संपत्ति है, क्योंकि जो कुछ वह लेता है, उसे बेईमानी से लेता है ।

(ठ) क एक वस्तु को उस समय तक रख लेने के आशय से जब तक कि उसके प्रत्यार्वतन के लिए पुरस्कार के रूप में उसे य से धन अभिप्राप्त न हो जाए, य की सम्मत्ति के बिना य के कब्जे में से लेता है। यहां क बेईमानी से लेता है, इसलिए, क ने चोरी की ।

(ड) क, जो य का मित्र है, य की अनुपस्थिति में य के पुस्तकालय में जाता है, और य की अभिव्यक्त सम्मति के बिना एक पुस्तक केवल पढ़ने के लिए और वापस करने के आशय से ले जाता है । यहां यह अधिसम्भाव्य है कि क ने यह विचार किया हो कि पुस्तक उपयोग में लाने के लिए उसको य की विवक्षित सम्मति प्राप्त है, यदि क का यह विचार था, तो क ने चोरी नहीं की है ।

(ढ) य की पत्नी से क खैरात मांगता है । वह क को धन, भोजन और कपड़े देती है जिनको क जानता है कि वे उसके पति य के हैं। यहां, यह अधिसंभाव्य है कि क का यह विचार हो कि य की पत्नी को भिक्षा देने का प्राधिकार है। यदि क का यह विचार था, तो

क ने चोरी नहीं की है । (ण) क, य की पत्नी का जार है । वह क को एक मूल्यवान संपत्ति देती है जिसके संबंध में क यह जानता है कि वह उसके पति य की है, और वह ऐसी संपत्ति है, जिसको देने का प्राधिकार उसे य से प्राप्त नहीं है। यदि क उस संपत्ति को बेईमानी से लेता है, तो वह चोरी करता है ।

(त) य की संपत्ति को अपनी स्वयं की संपत्ति होने का स‌द्भावपूर्वक विश्वास करते हुए ख के कब्जे में से उस संपत्ति को क ले लेता है। यहां क बेईमानी से नहीं लेता, इसलिए वह चोरी नहीं करता ।

(2) जो कोई चोरी करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दंडित किया जाएगा और इस धारा के अधीन किसी व्यक्ति के दूसरे या पश्चातवर्ती दोषसिद्धि के मामले में उसे ऐसे कठिन कारावास से जिसकी अवधि एक वर्ष से कम नहीं होगी किंन्तु पांच वर्ष तक हो सकेगी और जुर्माने से दंडित किया जाएगा :

परन्तु चोरी के उन मामलों में जहां चोरी की गई संपत्ति का मूल्य पांच हजार रुपए से कम है और कोई व्यक्ति पहली बार के लिए दोषसिद्ध किया गया है, चोरी की गई संपत्ति के वापस करने पर या संपत्ति को प्रत्यावर्तित करने पर उसे सामुदायिक सेवा से दंडित किया जाएगा ।

खंड- 304. झपटमारी ।

(1) चोरी झपटमारी है यदि चोरी करने के लिए अपराधी अचानक या शीघ्रता से या बलपूर्वक किसी व्यक्ति से या उसके कब्जे से किसी जंगम संपत्ति को अभिग्रहण कर लेता है या प्राप्त कर लेता है या छीन लेता है या ले लेता है ।

(2) जो कोई झपटमारी करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और वह जुर्माने का भी दायी होगा ।

खंड- 305. निवास-गृह, यातायात के साधन या पूजा स्थल आदि में चोरी ।

जो कोई, -

(क) ऐसे किसी निर्माण, तम्बू या जलयान में चोरी करेगा, जो मानव निवास के रूप में, या संपत्ति की अभिरक्षा के लिए उपयोग में आता हो; या

(ख) ऐसे किसी यातायात के साधन में चोरी करेगा, जो माल या यात्रियों के यातायात के लिए उपयोग किया होता है; या

(ग) ऐसे किसी यातायात के साधन से किसी वस्तु या माल की चोरी करेगा, जो माल या यात्रियों के यातायात के लिए उपयोग किया होता है; या

(घ) किसी पूजा स्थल की मूर्ति या प्रतीक की चोरी करेगा ; या

(ङ) सरकार या किसी स्थानीय प्राधिकारण की किसी संपत्ति की चोरी करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा, और जुर्माने का भी दायी होगा ।

खंड- 306. लिपिक या सेवक द्वारा स्वामी के कब्जे में संपत्ति की चोरी ।

जो कोई लिपिक या सेवक होते हुए, या लिपिक या सेवक की हैसियत में नियोजित होते हुए, अपने मालिक या नियोक्ता के कब्जे की किसी संपत्ति की चोरी करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने का भी दायी होगा ।


खंड- 307. चोरी करने के लिए मृत्यु, उपहति या अवरोध कारित करने की तैयारी के पश्चात् चोरी ।

उ‌द्दापन के विषय में जो कोई चोरी करने के लिए, या चोरी करने के पश्चात् निकल भागने के लिए, या चोरी द्वारा ली गई संपत्ति को रखे रखने के लिए, किसी व्यक्ति की मृत्यु, या उसे उपहति या उसका अवरोध कारित करने की, या मृत्यु का, उपहति का या अवरोध का भय कारित करने की तैयारी करके चोरी करेगा, वह कठिन कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने का भी दायी होगा ।

दृष्टांत

(क) य के कब्जे में की संपत्ति पर क चोरी करता है और यह चोरी करते समय अपने पास अपने वस्त्रों के भीतर एक भरी हुई पिस्तौल रखता है, जिसे उसने य द्वारा प्रतिरोध किए जाने की दशा में य को उपहति करने के लिए अपने पास रखा था। क ने इस धारा में परिभाषित अपराध किया है ।

(ख) क, य की जेब काटता है, और ऐसा करने के लिए अपने कई साथियों को अपने पास इसलिए नियुक्त करता है कि यदि य यह समझ जाए कि क्या हो रहा है और प्रतिरोध करे, या क को पकड़ने का प्रयत्न करे, तो वे य का अवरोध करें । क ने इस धारा में परिभाषित अपराध किया है ।

खंड- 308. उद्दापन ।

(1) जो कोई किसी व्यक्ति को स्वयं उस व्यक्ति को या किसी अन्य व्यक्ति को कोई क्षति करने के भय में जानबूझकर डालता है, और तद्द्वारा इस प्रकार भय में डाले गए व्यक्ति को, कोई संपत्ति या मूल्यवान प्रतिभूति या हस्ताक्षरित या मुद्रांकित कोई चीज, जिसे मूल्यवान प्रतिभूति में परिवर्तित किया जा सके, किसी व्यक्ति को परिदत्त करने के लिए बेईमानी से उत्प्रेरित करता है, वह उद्यापन करता है ।

दृष्टांत

(क) क यह धमकी देता है कि यदि य ने उसको धन नहीं दिया, तो वह य के बारे में मानहानिकारक अपमानलेख प्रकाशित करेगा । अपने को धन देने के लिए वह इस प्रकार य को उत्प्रेरित करता है। क ने उद्दापन किया है ।

(ख) क, य को यह धमकी देता है कि यदि वह क को कुछ धन देने के संबंध में अपने आपको आबद्ध करने वाला एक वचनपत्र हस्ताक्षरित करके क को परिदत्त नहीं कर देता, तो वह य के बालक को सदोष परिरोध में रखेगा । य वचनपत्र हस्ताक्षरित करके परिदत्त कर देता है । क ने उद्यापन किया है ।

(ग) क यह धमकी देता है कि यदि य, ख को कुछ उपज परिदत्त कराने के लिए शास्तियुक्त बंधपत्र हस्ताक्षरित नहीं करेगा और ख को न देगा, तो वह य के खेत को जोत डालने के लिए लठैत भेज देगा और तद्वारा य को वह बंधपत्र हस्ताक्षरित करने के लिए और परिदत्त करने के लिए उत्प्रेरित करता है । क ने उद्घापन किया है ।

(घ) क, य को घोर उपहति करने के भय में डालकर बेईमानी से य को उत्प्रेरित करता है कि वह कोरे कागज पर हस्ताक्षर कर दे या अपनी मुद्रा लगा दे और उसे क को परिदत्त कर दे । य उस कागज पर हस्ताक्षर करके उसे क को परिदत्त कर देता है यहां, इस प्रकार हस्ताक्षरित कागज मूल्यवान प्रतिभूति में परिवर्तित किया जा सकता है, इसलिए क ने उद्घापन किया है ।

(ङ) क य को किसी इलैक्ट्रानिक युक्ति से माध्यम से यह संदेश भेजकर धमकी देता है कि तुम्हारा बच्चा मेरे कब्जे में है और उसे मार दिया जाएगा यदि तुम मुझे एक लाख रुपए नहीं देते हो क इस प्रकार य को उसे पैसे देने के लिए उत्प्रेरित करता है । क ने उद्घापन किया है ।

(2) जो कोई उ‌द्दापन करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दंडित किया जाएगा ।

(3) जो कोई उद्दापन करने के लिए किसी व्यक्ति को किसी क्षति के पहुंचाने के भय में डालेगा या भय में डालने का प्रयत्न करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दंडित किया जाएगा ।

(4) जो कोई उद्दापन करने के लिए किसी व्यक्ति को स्वयं उसकी या किसी अन्य व्यक्ति की मृत्यु या घोर उपहति के भय में डालेगा या भय में डालने का प्रयत्न करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने का भी दायी होगा ।

(5) जो कोई किसी व्यक्ति को स्वयं उसकी या किसी अन्य व्यक्ति की मृत्यु या घोर उपहति के भय में डालकर उद्दापन करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने का भी दायी होगा ।

(6) जो कोई उ‌द्दापन करने के लिए किसी व्यक्ति को, स्वयं उसके विरुद्ध या किसी अन्य व्यक्ति के विरुद्ध यह अभियोग लगाने का भय दिखलाएगा या यह भय दिखलाने का प्रयत्न करेगा कि उसने ऐसा अपराध किया है, या करने का प्रयत्न किया है, जो मृत्यु से या आजीवन कारावास से, या दस वर्ष तक के कारावास से दण्डनीय है, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने का भी दायी होगा ।

(7) जो कोई किसी व्यक्ति को स्वयं उसके विरुद्ध या किसी अन्य व्यक्ति के विरुद्ध यह अभियोग लगाने के भय में डालकर कि उसने कोई ऐसा अपराध किया है, या करने का प्रयत्न किया है, जो मृत्यु से या आजीवन कारावास से या ऐसे कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दंडनीय है, या यह कि उसने किसी अन्य व्यक्ति को ऐसा अपराध करने के लिए उत्प्रेरित करने का प्रयत्न किया है, उद्घापन करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने का भी दायी होगा ।


खंड- 309. लूट ।

(1) सब प्रकार की लूट में या तो चोरी या उद्दापन होता है ।

(2) चोरी लूट है, यदि उस चोरी को करने के लिए, या उस चोरी के करने में या उस चोरी द्वारा अभिप्राप्त सम्पत्ति को ले जाने या ले जाने का प्रयत्न करने में, अपराधी उस उद्देश्य से स्वेच्छया किसी व्यक्ति की मृत्यु, या उपहति या उसका सदोष अवरोध या तत्काल मृत्यु का, या तत्काल उपहति का, या तत्काल सदोष अवरोध का भय कारित करता या कारित करने का प्रयत्न करता है ।

(3) उद्घापन लूट है, यदि अपराधी वह उद्यापन करते समय भय में डाले गए व्यक्ति की उपस्थिति में है, और उस व्यक्ति को स्वयं उसकी या किसी अन्य व्यक्ति की तत्काल मृत्यु या तत्काल उपहति या तत्काल सदोष अवरोध के भय में डालकर वह उद्दापन करता है और इस प्रकार भय में डालकर इस प्रकार भय में डाले गए व्यक्ति को उद्घापन की जाने वाली चीज उसी समय और वहां ही परिदत्त करने के लिए उत्प्रेरित करता है ।

स्पष्टीकरण-अपराधी का उपस्थित होना कहा जाता है, यदि वह उस अन्य व्यक्ति को तत्काल मृत्यु के, तत्काल उपहति के, या तत्काल सदोष अवरोध के भय में डालने के लिए पर्याप्त रूप से निकट हो ।

दृष्टांत

(क) क, य को दबोच लेता है, और य के कपड़े में से य का धन और आभूषण य की सम्मति के बिना कपटपूर्वक निकाल लेता है। यहां, क ने चोरी की है और वह चोरी करने के लिए स्वेच्छया य का सदोष अवरोध कारित करता है । इसलिए क ने लूट की है ।

(ख) क, य को राजमार्ग पर मिलता है, एक पिस्तौल दिखलाता है और य की थैली मांगता है । परिणामस्वरूप य अपनी थैली दे देता है। यहां क ने य को तत्काल उपहति का भय दिखलाकर थैली उ‌द्घापित की है और उद्यापन करते समय वह उसकी उपस्थिति में है । अतः क ने लूट की है।

(ग) क राजमार्ग पर य और य के बालक से मिलता है। क उस बालक को पकड़ लेता है और यह धमकी देता है कि यदि य उसको अपनी थैली नहीं परिदत्त कर देता, तो वह उस बालक को कगार से नीचे फेंक देगा । परिणामस्वरूप य अपनी थैली परिदत्त कर देता है । यहां क ने य को यह भय कारित करके कि वह उस बालक को, जो वहां उपस्थित है, तत्काल उपहति करेगा, य से उसकी थैली उद्घापित की है । इसलिए क ने य को लूटा है ।

(घ) क, य से यह कह कर, सम्पत्ति अभिप्राप्त करता है कि तुम्हारा बालक मेरी टोली के हाथों में है, यदि तुम हमारे पास दस हजार रुपया नहीं भेज दोगे, तो वह मार डाला जाएगा । यह उद्दापन है, और इसी रूप में दण्डनीय है; किन्तु यह लूट नहीं है, जब तक कि य को उसके बालक की तत्काल मृत्यु के भय में न डाला जाए ।

(4) जो कोई लूट करेगा, वह कठिन कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा, और यदि लूट राजमार्ग पर सूर्यास्त और सूर्योदय के बीच की जाए, तो कारावास चौदह वर्ष तक का हो सकेगा ।

(5) जो कोई लूट करने का प्रयत्न करेगा, वह कठिन कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने का भी दायी होगा ।

(6) यदि कोई व्यक्ति लूट करने में या लूट का प्रयत्न करने में स्वेच्छया उपहति कारित करेगा, तो ऐसा व्यक्ति और जो कोई अन्य व्यक्ति ऐसी लूट करने में, या लूट का प्रयत्न करने में संयुक्त तौर पर संपृक्त होगा, वह आजीवन कारावास से या कठिन कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने का भी दायी होगा ।

खंड- 310. डकैती ।

(1) जबकि पांच या अधिक व्यक्ति संयुक्त होकर लूट करते हैं या करने का प्रयत्न करते हैं या जहां कि वे व्यक्ति, जो संयुक्त होकर लूट करते हैं या करने का प्रयत्न करते हैं और वे व्यक्ति जो उपस्थित हैं और ऐसे लूट के किए जाने या ऐसे प्रयत्न में मदद करते हैं, कुल मिलाकर पांच या अधिक हैं, तब प्रत्येक व्यक्ति जो इस प्रकार लूट करता है, या उसका प्रयत्न करता है या उसमें मदद करता है, कहा जाता है कि वह डकैती करता है ।

(2) जो कोई डकैती करेगा, वह आजीवन कारावास से, या कठिन कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने का भी दायी होगा ।

(3) यदि ऐसे पांच या अधिक व्यक्तियों में से, जो संयुक्त होकर डकैती कर रहे हों, कोई एक व्यक्ति इस प्रकार डकैती करने में हत्या कर देगा, तो उन व्यक्तियों में से प्रत्येक व्यक्ति मृत्यु से, या आजीवन कारावास से, या कठोर कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष से कम नहीं होगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने का भी दायी होगा ।

(4) जो कोई डकैती करने के लिए कोई तैयारी करेगा, वह कठिन कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा, और जुर्माने का भी दायी होगा ।

(5) जो कोई डकैती करने के प्रयोजन से एकत्रित पांच या अधिक व्यक्तियों में से एक होगा, वह कठिन कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने का भी दायी होगा ।

(6) जो कोई ऐसे व्यक्तियों की टोली का होगा जो, अभ्यासतः डकैती करने के प्रयोजन से सहयुक्त हों वह आजीवन कारावास से, या कठिन कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने का भी दायी होगा ।

खंड- 311. मृत्यु या घोर उपहति कारित करने के प्रयत्न के साथ लूट या डकैती ।

यदि लूट या डकैती करते समय अपराधी किसी घातक आयुध का उपयोग करेगा, या किसी व्यक्ति को घोर उपहति कारित करेगा, या किसी व्यक्ति की मृत्यु कारित करने या उसे घोर उपहति कारित करने का प्रयत्न करेगा, तो वह कारावास, जिससे ऐसा अपराधी दण्डित किया जाएगा, सात वर्ष से कम का नहीं होगा ।


खंड- 312. घातक आयुध से सज्जित होकर लूट या डकैती करने का प्रयत्न ।

यदि लूट या डकैती करने का प्रयत्न करते समय, अपराधी किसी घातक आयुध से सज्जित होगा, तो वह कारावास, जिससे ऐसा अपराधी दण्डित किया जाएगा, सात वर्ष से कम का नहीं होगा ।


खंड- 313. लुटेरों, आदि की टोली का होने के लिए दण्ड ।

जो कोई ऐसे व्यक्तियों की टोली का होगा, जो अभ्यासतः चोरी या लूट करने से सहयुक्त हों और वह टोली डाकुओं की टोली न हो, वह कठिन कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने का भी दायी होगा ।


खंड- 314. सम्पत्ति का बेईमानी से दुर्विनियोग ।

जो कोई बेईमानी से किसी जंगम सम्पत्ति का दुर्विनियोग करेगा या उसको अपने उपयोग के लिए संपरिवर्तित कर लेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि छह मास से कम नहीं होगी किन्तु जो दो वर्ष तक की हो सकेगी और जुर्माने से, दण्डित किया जाएगा ।

दृष्टांत

(क) क, य की सम्पत्ति को उस समय जब कि क उस सम्पत्ति को लेता है, यह विश्वास रखते हुए कि वह सम्पत्ति उसी की है, य के कब्जे में से स‌द्भावपूर्वक लेता है । क, चोरी का दोषी नहीं है । किन्तु यदि क अपनी भूल मालूम होने के पश्चात् उस सम्पत्ति का बेईमानी से अपने लिए विनियोग कर लेता है, तो वह इस धारा के अधीन अपराध का दोषी है ।

(ख) क, जो य का मित्र है, य की अनुपस्थिति में य के पुस्तकालय में जाता है और य की अभिव्यक्त सम्मत्ति के बिना एक पुस्तक ले जाता है । यहां यदि, क का यह विचार था कि पढ़ने के प्रयोजन के लिए पुस्तक लेने की उसको य की विवक्षित सम्मति प्राप्त है, तो क ने चोरी नहीं की है। किन्तु यदि क बाद में उस पुस्तक को अपने फायदे के लिए बेच देता है, तो वह इस धारा के अधीन अपराध का दोषी है ।

(ग) क और ख एक घोड़े के संयुक्त स्वामी हैं । क उस घोड़े को उपयोग में लाने के आशय से ख के कब्जे में से उसे ले जाता है। यहां, क को उस घोड़े को उपयोग में लाने का अधिकार है, इसलिए वह उसका बेईमानी से दुर्विनियोग नहीं है । किन्तु यदि क उस घोड़े को बेच देता है, और सम्पूर्ण आगम का अपने लिए विनियोग कर लेता है तो वह इस धारा के अधीन अपराध का दोषी है ।

स्पष्टीकरण 1- केवल कुछ समय के लिए बेईमानी से दुर्विनियोग करना इस धारा के अर्थ के अंतर्गत दुर्विनियोग है ।

दृष्टांत

क को य का एक सरकारी वचनपत्र मिलता है, जिस पर निरंक पृष्ठांकन है । क, यह जानते हुए कि वह वचनपत्र य का है, उसे ऋण के लिए प्रतिभूति के रूप में बैंककार के पास इस आशय से गिरवी रख देता है कि वह भविष्य में उसे य को प्रत्यावर्तित कर देगा । क ने इस धारा के अधीन अपराध किया है ।

स्पष्टीकरण 2-जिस व्यक्ति को ऐसी सम्पत्ति पड़ी मिल जाती है, जो किसी अन्य व्यक्ति के कब्जे में नहीं है और वह उसके स्वामी के लिए उसको संरक्षित रखने या उसके स्वामी को उसे प्रत्यावर्तित करने के प्रयोजन से ऐसी सम्पत्ति को लेता है, वह न तो बेईमानी से उसे लेता है और न बेईमानी से उसका दुर्विनियोग करता है, और किसी अपराध का दोषी नहीं है, किन्तु वह ऊपर परिभाषित अपराध का दोषी है, यदि वह उसके स्वामी को जानते हुए या खोज निकालने के साधन रखते हुए या उसके स्वामी को खोज निकालने और सूचना देने के युक्तियुक्त साधन उपयोग में लाने और उसके स्वामी को उसकी मांग करने को समर्थ करने के लिए उस सम्पत्ति की युक्तियुक्त समय तक रखे रखने के पूर्व उसको अपने लिए विनियोजित कर लेता है । ऐसी दशा में युक्तियुक्त साधन क्या हैं, या युक्तियुक्त समय क्या है, यह तथ्य का प्रश्न है । यह आवश्यक नहीं है कि पाने वाला यह जानता हो कि सम्पत्ति का स्वामी कौन है या यह कि कोई विशिष्ट व्यक्ति उसका स्वामी है। यह पर्याप्त है कि उसको विनियोजित करते समय उसे यह विश्वास नहीं है कि वह उसकी अपनी सम्पत्ति है, या स‌द्भावपूर्वक यह विश्वास है कि उसका असली स्वामी नहीं मिल सकता ।

दृष्टांत

(क) क को राजमार्ग पर एक रुपया पड़ा मिलता है । यह न जानते हुए कि वह रुपया किसका है, क उस रुपए को उठा लेता है। यहां क ने इस धारा में परिभाषित अपराध नहीं किया है ।

(ख) क को सड़क पर एक चिट्ठी पड़ी मिलती है, जिसमें एक बैंक नोट है । उस चिट्ठी में दिए हुए निदेश और विषय-वस्तु से उसे ज्ञात हो जाता है कि वह नोट किसका है । वह उस नोट का विनियोग कर लेता है । वह इस धारा के अधीन अपराध का दोषी है ।

(ग) वाहक-देय एक चेक क को पड़ा मिलता है । वह उस व्यक्ति के संबंध में जिसका चेक खोया है, कोई अनुमान नहीं लगा सकता, किन्तु उस चेक पर उस व्यक्ति का नाम लिखा है, जिसने वह चेक लिखा है। क यह जानता है कि वह व्यक्ति क को उस व्यक्ति का पता बता सकता है जिसके पक्ष में वह चेक लिखा गया था, क उसके स्वामी को खोजने का प्रयत्न किए बिना उस चेक का विनियोग कर लेता है। वह इस धारा के अधीन अपराध का दोषी है ।

(घ) क देखता है कि य की थैली, जिसमें धन है, य से गिर गई है। क वह थैली य को प्रत्यावर्तित करने के आशय से उठा लेता है । किन्तु तत्पश्चात् उसे अपने उपयोग के लिए विनियोजित कर लेता है । क ने इस धारा के अधीन अपराध किया है ।

(ङ) क को एक थैली, जिसमें धन है, पड़ी मिलती है । वह नहीं जानता है कि वह किसकी है । उसके पश्चात् उसे यह पता चल जाता है कि वह य की है, और वह उसे अपने उपयोग के लिए विनियुक्त कर लेता है । क इस धारा के अधीन अपराध का दोषी है ।

(च) क को एक मूल्यवान अंगूठी पड़ी मिलती है । वह नहीं जानता है कि वह किसकी है । क उसके स्वामी को खोज निकालने का प्रयत्न किए बिना उसे तुरन्त बेच देता है । क इस धारा के अधीन अपराध का दोषी है ।

खंड- 315. ऐसी सम्पत्ति का बेईमानी से दुर्विनियोग, जो मृत व्यक्ति की मृत्यु के समय उसके कब्जे में थी ।

जो कोई किसी सम्पत्ति को, यह जानते हुए कि ऐसी सम्पत्ति किसी व्यक्ति की मृत्यु के समय उस मृत व्यक्ति के कब्जे में थी, और तब से किसी व्यक्ति के कब्जे में नहीं रही है, जो ऐसे कब्जे का वैध रूप से हकदार है, बेईमानी से दुर्विनियोजित करेगा या अपने उपयोग में संपरिवर्तित कर लेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा, और यदि वह अपराधी, ऐसे व्यक्ति की मृत्यु के समय लिपिक या सेवक के रूप में उसके द्वारा नियोजित था, तो कारावास सात वर्ष तक का हो सकेगा ।

दृष्टांत

य के कब्जे में फर्नीचर और धन था। वह मर जाता है। उसका सेवक क, उस धन के किसी ऐसे व्यक्ति के कब्जे में आने से पूर्व, जो ऐसे कब्जे का हकदार है बेईमानी से उसका दुर्विनियोग करता है । क ने इस धारा में परिभाषित अपराध किया है ।

खंड- 316. आपराधिक न्यासभंग ।

(1) जो कोई, सम्पत्ति या सम्पत्ति पर कोई भी अखत्यार किसी प्रकार अपने को न्यस्त किए जाने पर उस सम्पत्ति का बेईमानी से दुर्विनियोग कर लेता है या उसे अपने उपयोग में संपरिवर्तित कर लेता है या जिस प्रकार ऐसा न्यास निर्वहन किया जाना है, उसको विहित करने वाली विधि के किसी निदेश का, या ऐसे न्यास के निर्वहन के बारे में उसके द्वारा की गई किसी अभिव्यक्त या विवक्षित वैध संविदा का अतिक्रमण करके बेईमानी से उस सम्पत्ति का उपयोग या व्ययन करता है, या जानबूझकर किसी अन्य व्यक्ति का ऐसा करना सहन करता है, वह आपराधिक न्यास भंग करता है ।

स्पष्टीकरण 1–जो व्यक्ति, किसी स्थापन का नियोजक होते हुए, चाहे वह स्थापन कर्मचारी भविष्य-निधि और प्रकीर्ण उपबंध अधिनियम, 1952 की धारा 17 के अधीन छूट प्राप्त है या नहीं, तत्समय प्रवृत्त किसी विधि द्वारा स्थापित भविष्य निधि या कुटुंब पेंशन निधि में जमा करने के लिए कर्मचारी-अभिदाय की कटौती कर्मचारी को संदेय मजदूरी में से करता है उसके बारे में यह समझा जाएगा कि उसके द्वारा इस प्रकार कटौती किए गए अभिदाय की रकम उसे न्यस्त कर दी गई है और यदि वह उक्त निधि में ऐसे अभिदाय का संदाय करने में, उक्त विधि का अतिक्रमण करके व्यतिक्रम करेगा तो उसके बारे में यह समझा जाएगा कि उसने यथापूर्वोक्त विधि के किसी निदेश का अतिक्रमण करके उक्त अभिदाय की रकम का बेईमानी से उपयोग किया है।

स्पष्टीकरण 2-जो व्यक्ति, नियोजक होते हुए, कर्मचारी राज्य बीमा अधिनियम, 1948 के अधीन स्थापित कर्मचारी राज्य बीमा निगम द्वारा धारित और शासित कर्मचारी राज्य बीमा निगम निधि में जमा करने के लिए कर्मचारी को संदेय मजदूरी में से कर्मचारी- अभिदाय की कटौती करता है, उसके बारे में यह समझा जाएगा कि उसे अभिदाय की वह रकम न्यस्त कर दी गई है, जिसकी उसने इस प्रकार कटौती की है और यदि वह उक्त निधि में ऐसे अभिदाय के संदाय करने में, उक्त अधिनियम का अतिक्रमण करके, व्यतिक्रम करता है, तो उसके बारे में यह समझा जाएगा कि उसने यथापूर्वोक्त विधि के किसी निदेश का अतिक्रमण करके उक्त अभिदाय की रकम का बेईमानी से उपयोग किया है ।

दृष्टांत

(क) क एक मृत व्यक्ति की विल का निष्पादक होते हुए उस विधि की, जो चीजबस्त को विल के अनुसार विभाजित करने के लिए उसको निदेश देती है, बेईमानी से अवज्ञा करता है, और उस चीजबस्त को अपने उपयोग के लिए विनियुक्त कर लेता है । क ने आपराधिक न्यासभंग किया है ।

(ख) क भांडागारिक है । य यात्रा को जाते हुए अपना फर्नीचर क के पास उस संविदा के अधीन न्यस्त कर जाता है कि वह भांडागार के कमरे के लिए ठहराई गई राशि के दे दिए जाने पर लौटा दिया जाएगा । क उस माल को बेईमानी से बेच देता है। क ने आपराधिक न्यासभंग किया है ।

(ग) क, जो कलकत्ता में निवास करता है, य का, जो दिल्ली में निवास करता है अभिकर्ता है । क और य के बीच यह अभिव्यक्त या विवक्षित संविदा है कि य द्वारा क को प्रेषित सब राशियां क द्वारा य के निदेश के अनुसार विनिहित की जाएंगी । य, क को इन निदेशों के साथ एक लाख रुपए भेजता है कि उसको कंपनी पत्रों में विनिहित किया जाए । क उन निदेशों की बेईमानी से अवज्ञा करता है और उस धन को अपने कारबार के उपयोग में ले आता है। क ने आपराधिक न्यासभंग किया है ।

(घ) किंतु यदि दृष्टांत (ग) में क बेईमानी से नहीं प्रत्युत सद्भावपूर्वक यह विश्वास करते हुए कि बैंक आफ बंगाल में अंश धारण करना य के लिए अधिक फायदाप्रद होगा, य के निदेशों की अवज्ञा करता है, और कंपनी पत्र खरीदने के बजाय य के लिए बैंक आफ बंगाल के अंश खरीदता है, तो यद्यपि य को हानि हो जाए और उस हानि के कारण, वह क के विरुद्ध सिविल कार्यवाही करने का हकदार हो, तथापि, यतः क ने, बेईमानी से कार्य नहीं किया है, उसने आपराधिक न्यासभंग नहीं किया है।

(ङ) एक राजस्व अधिकारी, क के पास लोक धन न्यस्त किया गया है और वह उस सब धन को, जो उसके पास न्यस्त किया गया है, एक निश्चित खजाने में जमा कर देने के लिए या तो विधि द्वारा निर्देशित है या सरकार के साथ अभिव्यक्त या विवक्षित संविदा द्वारा आबद्ध है । क उस धन को बेईमानी से विनियोजित कर लेता है । क ने आपराधिक न्यासभंग किया है ।

(च) भूमि से या जल से ले जाने के लिए य ने क के पास, जो एक वाहक है, संपत्ति न्यस्त की है । क उस संपत्ति का बेईमानी से दुर्विनियोग कर लेता है । क ने आपराधिक न्यासभंग किया है ।

(2) जो कोई आपराधिक न्यासभंग करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि पांच वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा ।

(3) जो कोई वाहक, घाटवाल, या भांडागारिक के रूप में अपने पास संपत्ति न्यस्त किए जाने पर ऐसी संपत्ति के विषय में आपराधिक न्यासभंग करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने का भी दायी होगा ।

(4) जो कोई लिपिक या सेवक होते हुए, या लिपिक या सेवक के रूप में नियोजित होते हुए, और इस नाते किसी प्रकार संपत्ति, या संपत्ति पर कोई भी अख्त्यार अपने में न्यस्त होते हुए, उस संपत्ति के विषय में आपराधिक न्यासभंग करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने का भी दायी होगा ।

(5) जो कोई लोक सेवक के नाते या बैंकर, व्यापारी, फैक्टर, दलाल, अटर्नी या अभिकर्ता के रूप में अपने कारबार के अनुक्रम में किसी प्रकार संपत्ति या संपत्ति पर कोई भी अख्त्यार अपने को न्यस्त होते हुए उस संपत्ति के विषय में आपराधिक न्यासभंग करेगा, वह आजीवन कारावास से, या दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने का भी दायी होगा ।

खंड- 317. चुराई हुई संपत्ति ।

(1) वह संपत्ति, जिसका कब्जा चोरी द्वारा, या उद्दापन द्वारा या लूट द्वारा या छल द्वारा अंतरित किया गया है, और वह संपत्ति, जिसका आपराधिक दुर्विनियोग किया गया है, या जिसके विषय में आपराधिक न्यासभंग किया गया है, चुराई हुई संपत्ति कहलाती है, चाहे वह अंतरण या वह दुर्विनियोग या न्यासभंग भारत के भीतर किया गया हो या बाहर, किंतु यदि ऐसी संपत्ति तत्पश्चात् ऐसे व्यक्ति के कब्जे में पहुंच जाती है, जो उसके कब्जे के लिए वैध रूप से हकदार है, तो वह चुराई हुई संपत्ति नहीं रह जाती ।

(2) जो कोई किसी चुराई हुई संपत्ति को, यह जानते हुए या विश्वास करने का कारण रखते हुए कि वह चुराई हुई संपत्ति है, बेईमानी से प्राप्त करेगा या रखेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा ।

(3) जो कोई ऐसी चुराई गई संपत्ति को बेईमानी से प्राप्त करेगा या रखे रखेगा, जिसके कब्जे के विषय में वह यह जानता है या विश्वास करने का कारण रखता है कि वह डकैती द्वारा अंतरित की गई है, या किसी ऐसे व्यक्ति से, जिसके संबंध में वह यह जानता है या विश्वास करने का कारण रखता है कि वह डाकुओं की टोली का है या रहा है, ऐसी संपत्ति, जिसके विषय में वह यह जानता है या विश्वास करने का कारण रखता है कि वह चुराई हुई है, बेईमानी से प्राप्त करेगा, वह आजीवन कारावास से, या कठिन कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा, और जुर्माने का भी दायी होगा । (4) जो कोई ऐसी संपत्ति, जिसके संबंध में वह यह जानता है, या विश्वास करने का कारण रखता है कि वह चुराई हुई संपत्ति है, अभ्यासतः प्राप्त करेगा, या अभ्यासतः उसमें व्यवहार करेगा, वह आजीवन कारावास से, या दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने का भी दायी होगा ।

(5) जो कोई ऐसी संपत्ति को छिपाने में, या व्ययनित करने में, या इधर-उधर करने में स्वेच्छया सहायता करेगा, जिसके विषय में वह यह जानता है या विश्वास करने का कारण रखता है कि वह चुराई हुई संपत्ति है, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा ।

खंड- 318. छल ।

(1) जो कोई किसी व्यक्ति से प्रवंचना कर उस व्यक्ति को, जिसे इस प्रकार प्रवंचित किया गया है, कपटपूर्वक या बेईमानी से उत्प्रेरित करता है कि वह कोई संपत्ति किसी व्यक्ति को परिदत्त कर दे, या यह सम्मति दे दे कि कोई व्यक्ति किसी संपत्ति को रख रखे या जानबूझकर उस व्यक्ति को, जिसे इस प्रकार प्रवंचित किया गया है, उत्प्रेरित करता है कि वह ऐसा कोई कार्य करे, या करने का लोप करे, जिसे वह यदि उसे प्रत्येक प्रकार प्रवंचित न किया गया होता तो, न करता, या करने का लोप न करता, और जिस कार्य या लोप से उस व्यक्ति को शारीरिक, मानसिक, ख्याति संबंधी या साम्पत्तिक नुकसान या अपहानि कारित होती है, या कारित होनी सभ्भाव्य है, वह छल करता है, यह कहा जाता है ।

स्पष्टीकरण तथ्यों का बेईमानी से छिपाना इस धारा के अर्थ के अंतर्गत प्रवंचना है ।

दृष्टांत

(क) क सिविल सेवा में होने का मिथ्या अपदेश करके जानबूझकर य से प्रवंचना करता है, और इस प्रकार बेईमानी से य को उत्प्रेरित करता है कि वह उसे उधार पर माल ले लेने दे, जिसका मूल्य चुकाने का उसका इरादा नहीं है । क छल करता है ।

(ख) क एक वस्तु पर कूटकृत चिह्न बनाकर य से जानबूझकर प्रवंचना करके उसे यह विश्वास कराता है कि वह वस्तु किसी प्रसिद्ध विनिर्माता द्वारा बनाई गई है, और इस प्रकार उस वस्तु का क्रय करने और उसका मूल्य चुकाने के लिए य को बेईमानी से उत्प्रेरित करता है । क छल करता है ।

(ग) क, य को किसी वस्तु का, नकली सैम्पल दिखलाकर य से जानबूझकर प्रवंचना करके उसे यह विश्वास कराता है कि वह वस्तु उस सैम्पल के अनुरूप है, और तद्वारा उस वस्तु को खरीदने और उसका मूल्य चुकाने के लिए य को बेईमानी से उत्प्रेरित करता है । क छल करता है ।

(घ) क किसी वस्तु का मूल्य देने में ऐसी कोठी पर हुंडी करके, जहां क का कोई धन जमा नहीं है, और जिसके द्वारा क को हुंडी का अनादर किए जाने की प्रत्याशा है, आशय से य की प्रवंचना करता है, और तद्द्वारा बेईमानी से य को उत्प्रेरित करता है कि वह वस्तु परिदत्त कर दे जिसका मूल्य चुकाने का उसका आशय नहीं है । क छल करता है ।

(ङ) क ऐसे नगों को, जिनको वह जानता है कि वे हीरे नहीं हैं, हीरों के रूप में गिरवी रखकर य से जानबूझकर प्रवंचना करता है, और तद्वारा धन उधार देने के लिए य को बेईमानी से उत्प्रेरित करता है । क छल करता है ।

(च) क जानबूझकर प्रवंचना करके य को यह विश्वास कराता है कि क को जो धन य उधार देगा उसे वह चुका देगा, और तद्वारा बेईमानी से य को उत्प्रेरित करता है कि वह उसे धन उधार दे दे, जबकि क का आशय उस धन को चुकाने का नहीं है । क छल करता है ।

(छ) क, य से जानबूझकर प्रवंचना करके यह विश्वास दिलाता है कि क का इरादा य को नील के पौधों का एक निश्चित परिमाण परिदत्त करने का है, जिसको परिदत्त करने का उसका आशय नहीं है, और तद्द्वारा ऐसे परिदान के विश्वास पर अग्रिम धन देने के लिए य को बेईमानी से उत्प्रेरित करता है । क छल करता है। यदि क धन अभिप्राप्त करते समय नील परिदत्त करने का आशय रखता हो, और उसके पश्चात् अपनी संविदा भंग कर दे और वह उसे परिदत्त न करे, तो वह छल नहीं करता है, किंतु संविदा भंग करने के लिए केवल सिविल कार्यवाही के दायित्व के अधीन है ।

(ज) क जानबूझकर प्रवंचना करके य को यह विश्वास दिलाता है कि क ने य के साथ की गई संविदा के अपने भाग का पालन कर दिया है, जब कि उसका पालन उसने नहीं किया है, और तद्द्वारा य को बेईमानी से उत्प्रेरित करता है कि वह धन दे । क छल करता है ।

(झ) क, ख को एक संपदा बेचता है और हस्तांतरित करता है । क यह जानते हुए कि ऐसे विक्रय के परिणामस्वरूप उस संपत्ति पर उसका कोई अधिकार नहीं है, ख को किए गए पूर्व विक्रय और हस्तांतरण के तथ्य को प्रकट न करते हुए उसे य के हाथ बेच देता है या बंधक रख देता है, और य से विक्रय या बंधक धन प्राप्त कर लेता है। क छल करता है ।

(2) जो कोई छल करेगा, दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा ।

(3) जो कोई इस ज्ञान के साथ छल करेगा कि यह सम्भाव्य है कि वह तद्द्वारा उस व्यक्ति को सदोष हानि पहुंचाए, जिसका हित उस संव्यवहार में जिससे वह छल संबंधित है, संरक्षित रखने के लिए वह या तो विधि द्वारा, या वैध संविदा द्वारा, आबद्ध था, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि पांच वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दंडित किया जाएगा ।

(4) जो कोई छल करेगा, और तद्द्द्वारा उस व्यक्ति को, जिसे प्रवंचित किया गया है, बेईमानी से उत्प्रेरित करेगा कि वह कोई संपत्ति किसी व्यक्ति को परिदत्त कर दे, या किसी भी मूल्यवान प्रतिभूति को, या किसी चीज को, जो हस्ताक्षरित या मुद्रांकित है, और जो मूल्यवान प्रतिभूति में संपरिवर्तित किए जाने योग्य है, पूर्णतः या अंशतः रच दे, परिवर्तित कर दे, या नष्ट कर दे, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने का भी दायी होगा ।

खंड- 319. प्रतिरूपण द्वारा छल ।

(1) कोई व्यक्ति प्रतिरूपण द्वारा छल करता है, यह तब कहा जाता है, जब वह यह अपदेश करके कि वह कोई अन्य व्यक्ति है, या एक व्यक्ति को किसी अन्य व्यक्ति के रूप में जानते हुए प्रतिस्थापित करके, या यह व्यपदिष्ट करके कि वह या कोई अन्य व्यक्ति, कोई ऐसा व्यक्ति है, जो वस्तुतः उससे या अन्य व्यक्ति से भिन्न है, छल करता है ।

स्पष्टीकरण यह अपराध हो जाता है, चाहे वह व्यक्ति, जिसका प्रतिरूपण किया गया है, वास्तविक व्यक्ति हो या काल्पनिक ।

दृष्टांत

(क) क उसी नाम का अमुक धनवान बैंकर है इस अपदेश द्वारा छल करता है । क प्रतिरूपण द्वारा छल करता है ।

(ख) ख, जिसकी मृत्यु हो चुकी है, होने का अपदेश करने द्वारा क छल करता है । क प्रतिरूपण द्वारा छल करता है ।

(2) जो कोई प्रतिरूपण द्वारा छल करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से,

जिसकी अवधि पांच वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दंडित किया जाएगा ।

खंड- 320. लेनदारों में वितरण निवारित करने के लिए संपत्ति का बेईमानी से या कपटपूर्वक अपसारण या छिपाना ।

जो कोई किसी संपत्ति का अपने लेनदारों या किसी अन्य व्यक्ति के लेनदारों के बीच विधि के अनुसार वितरित किया जाना तद्वारा निवारित करने के आशय से, या तद्वारा सम्भाव्यतः निवारित करेगा यह जानते हुए उस संपत्ति को बेईमानी से या कपटपूर्वक अपसारित करेगा या छिपाएगा या किसी व्यक्ति को परिदत्त करेगा या पर्याप्त प्रतिफल के बिना किसी व्यक्ति को अंतरित करेगा या कराएगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि छह मास से कम नहीं होगी किन्तु जो दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दंडित किया जाएगा ।


खंड- 321. ऋण को लेनदारों के लिए उपलब्ध होने से बेईमानी से या कपटपूर्वक निवारित करना ।

जो कोई किसी ऋण का या मांग का, जो स्वयं उसको या किसी अन्य व्यक्ति को शोध्य हो, अपने या ऐसे अन्य व्यक्ति के ऋणों को चुकाने के लिए विधि के अनुसार उपलभ्य होना कपटपूर्वक या बेईमानी से निवारित करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दंडित किया जाएगा ।


खंड- 322. अन्तरण के ऐसे विलेख का, जिसमें प्रतिफल के संबंध में मिथ्या कथन अन्तर्विष्ट है, बेईमानी से या कपटपूर्वक निष्पादन ।

जो कोई बेईमानी से या कपटपूर्वक किसी ऐसे विलेख या लिखत को हस्ताक्षरित करेगा, निष्पादित करेगा, या उसका पक्षकार बनेगा, जिससे किसी सम्पत्ति का, या उसमें के किसी हित का, अंतरित किया जाना, या किसी भार के अधीन किया जाना, तात्पर्यित है, और जिसमें ऐसे अंतरण या भार के प्रतिफल से संबंधित, या उस व्यक्ति या उन व्यक्तियों से संबंधित, जिसके या जिनके उपयोग या फायदे के लिए उसका प्रवर्तित होना वास्तव में आशयित है, कोई मिथ्या कथन अन्तर्विष्ट है, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दंडित किया जाएगा ।


खंड- 323. सम्पत्ति का बेईमानी से या कपटपूर्वक अपसारण या छिपाया जाना ।

जो कोई बेईमानी से या कपटपूर्वक अपनी या किसी अन्य व्यक्ति की किसी सम्पत्ति को छिपाएगा या अपसारित करेगा, या उसके छिपाए जाने में या अपसारित किए जाने में बेईमानी से या कपटपूर्वक सहायता करेगा, या बेईमानी से किसी ऐसी मांग या दावे को, जिसका वह हकदार है, छोड़ देगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दंडित किया जाएगा ।


खंड- 324. रिष्टि ।

(1) जो कोई इस आशय से, या यह सम्भाव्य जानते हुए कि, वह लोक को या किसी व्यक्ति को सदोष हानि या नुकसान कारित करे, किसी सम्पत्ति का नाश या किसी सम्पत्ति में या उसकी स्थिति में ऐसी तब्दीली कारित करता है, जिससे उसका मूल्य या उपयोगिता नष्ट या कम हो जाती है, या उस पर क्षतिकारक प्रभाव पड़ता है, वह रिष्टि करता है ।

स्पष्टीकरण 1-रिष्टि के अपराध के लिए यह आवश्यक नहीं है कि अपराधी क्षतिग्रस्त या नष्ट सम्पत्ति के स्वामी को हानि या नुकसान कारित करने का आशय रखे । यह पर्याप्त है कि उसका यह आशय है या वह यह सम्भाव्य जानता है कि वह किसी सम्पत्ति को क्षति करके किसी व्यक्ति को, चाहे वह सम्पत्ति उस व्यक्ति की हो या नहीं, सदोष हानि या नुकसान कारित करे ।

स्पष्टीकरण 2-ऐसी सम्पत्ति पर प्रभाव डालने वाले कार्य द्वारा, जो उस कार्य को करने वाले व्यक्ति की हो, या संयुक्त रूप से उस व्यक्ति की और अन्य व्यक्तियों की हो, रिष्टि की जा सकेगी ।

दृष्टांत

(क) य की सदोष हानि कारित करने के आशय से य की मूल्यवान प्रतिभूति को क स्वेच्छया जला देता है। क ने रिष्टि की है ।

(ख) य की सदोष हानि करने के आशय से, उसके बर्फ घर में क पानी छोड़ देता है, और इस प्रकार बर्फ को गला देता है। क ने रिष्टि की है।

(ग) क इस आशय से य की अंगूठी नदी में स्वेच्छया फैंक देता है कि य को तद्वारा सदोष हानि कारित करे। क ने रिष्टि की है ।

(घ) क यह जानते हुए कि उसकी चीज-बस्त उस ऋण की तुष्टि के लिए जो य को उस द्वारा शोध्य है, निष्पादन में ली जाने वाली है, उस चीज-बस्त को इस आशय से नष्ट कर देता है कि ऐसा करके ऋण की तुष्टि अभिप्राप्त करने में य को निवारित कर दे और इस प्रकार य को नुकसान कारित करे । क ने रिष्टि की है ।

(ङ) क एक पोत का बीमा कराने के पश्चात् उसे इस आशय से कि बीमा करने वालों को नुकसान कारित करे, उसको स्वेच्छया संत्यक्त करा देता है । क ने रिष्टि की है ।

(च) य को, जिसने बाटमरी पर धन उधार दिया है, नुकसान कारित करने के आशय से क उस पोत को संत्यक्त करा देता है। क ने रिष्टि की है।

(छ) य के साथ एक घोड़े में संयुक्त संपत्ति रखते हुए य को सदोष हानि कारित करने के आशय से क उस घोड़े को गोली मार देता है। क ने रिष्टि की है ।

(ज) क इस आशय से और यह सम्भाव्य जानते हुए कि वह य की फसल को नुकसान कारित करे, य के खेत में ढोरों का प्रवेश कारित कर देता है, क ने रिष्टि की है ।

(2) जो कोई रिष्टि करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दंडित किया जाएगा ।

(3) जो कोई रिष्टि करेगा और तद्द्वारा सरकारी या स्थानीय प्राधिकरण की संपत्ति सहित किसी संपत्ति की हानि या क्षति कारित करेगा वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दंडित किया जाएगा । (4) जो कोई रिष्टि करेगा और तद्वारा बीस हजार रुपए से अधिक किन्तु एक लाख रुपए के अनधिक रकम, रिष्टि की हानि या नुकसान कारित करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दंडित किया जाएगा ।

(5) जो कोई रिष्टि करेगा और तद्द्वारा एक लाख रुपए या उससे अधिक रकम की रिष्टि की हानि या नुकसान कारित करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि पांच वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दंडित किया जाएगा ।

(6) जो कोई किसी व्यक्ति को मृत्यु या उसे उपहति या उसका सदोष अवरोध कारित करने की या मृत्यु का, या उपहति का, या सदोष अवरोध का भय कारित करने की, तैयारी करके रिष्टि करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि पांच वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने का भी दायी होगा ।

खंड- 325. जीव-जन्तु को वध करने या उसे विकलांग करने द्वारा रिष्टि ।

जो कोई किसी जीव-जन्तु को वध करने, विष देने, विकलांग करने या निरुपयोगी बनाने द्वारा रिष्टि करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि पांच वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा ।


खंड- 326. क्षति, जलप्लावन, अग्नि या विस्फोटक पदार्थ द्वारा रिष्टि ।

जो कोई किसी ऐसे कार्य के करने द्वारा रिष्टि करेगा, -

(क) जिससे कृषिक प्रयोजनों के लिए, या मानव प्राणियों के या उन जीव-जन्तुओं के, जो सम्पत्ति है, खाने या पीने के, या सफाई के या किसी विनिर्माण को चलाने के जलप्रदाय में कमी कारित होती हो या कमी कारित होना वह सम्भाव्य जानता हो वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि पांच वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दंडित किया जाएगा ;

(ख) जिससे किसी लोक सड़क, पुल, नाव्य, नदी या प्राकृतिक या कृत्रिम नाव्य जलसरणी को यात्रा या सम्पत्ति प्रवहण के लिए अगम्य या कम निरापद बना दिया जाए या बना दिया जाना वह सम्भाव्य जानता हो, वह दोनों में से, किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि पांच वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दंडित किया जाएगा ;

(ग) जिससे किसी लोक जलनिकास में क्षतिप्रद या नुकसानप्रद जलप्लावन या बाधा कारित हो जाए, या होना वह सम्भाव्य जानता हो, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि पांच वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दंडित किया जाएगा ;

(घ) जिससे रेल, वायुयान या जहाज या अन्य चीज के, जो नौ-चालकों के लिए मार्ग प्रदर्शन के लिए रखी गई हो, या कोई ऐसा कार्य करने द्वारा, जिससे कोई ऐसा चिन्ह या सिग्नल जो नौ-चालकों के लिए मार्ग प्रदर्शक के रूप में कम उपयोगी बन जाए, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दंडित किया जाएगा ;

(ङ) जिससे लोक सेवक के प्राधिकार द्वारा लगाए गए किसी भूमि चिह्न के नष्ट करने या हटाने द्वारा या कोई ऐसा कार्य करने द्वारा, जिससे ऐसा भूमि चिह्न ऐसे भूमि चिह्न के रूप में कम उपयोगी बन जाए, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दंडित किया जाएगा ;

(च) जिससे कृषि उपज सहित किसी सम्पत्ति का नुकसान कारित करने के आशय से, या यह सम्भाव्य जानते हुए कि वह तद्द्वारा ऐसा नुकसान अग्नि या किसी विस्फोटक पदार्थ द्वारा कारित हो, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने का भी दायी होगा ;

(छ) जिससे किसी ऐसे निर्माण का, जो मामूली तौर पर उपासना स्थान के रूप में या मानव-विकास के रूप में या संपत्ति की अभिरक्षा के स्थान के रूप में उपयोग में आता हो, नाश कारित करने के आशय से, या यह सभ्भाव्य जानते हुए कि वह तद्वारा उसका नाश अग्नि या किसी विस्फोटक पदार्थ द्वारा कारित हो, वह आजीवन कारावास से, या दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा, और जुर्माने का भी दायी होगा ।

खंड- 327. रेल, वायुयान, तल्लायुक्त या बीस टन बोझ वाले जलयान को नष्ट करने या सापद बनाने के आशय से रिष्टि ।

(1) जो कोई किसी रेल, वायुयान, तल्लायुक्त जलयान या बीस टन या उससे अधिक बोझ वाले जलयान को नष्ट करने या सापद बना देने के आशय से, या यह संभाव्य जानते हुए कि वह तद्द्वारा उसे नष्ट करेगा, या सापद बना देगा, उस रेल, वायुयान, या जलयान की रिष्टि करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने का भी दायी होगा ।

(2) जो कोई अग्नि या किसी विस्फोटक पदार्थ द्वारा ऐसी रिष्टि करेगा, या करने का प्रयत्न करेगा, जैसी उपधारा (1) में वर्णित है, वह आजीवन कारावास से, या दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने का भी दायी होगा ।

खंड- 328. चोरी, आदि करने के आशय से जलयान को साशय भूमि या किनारे पर चढ़ा देने के लिए दंड ।

जो कोई किसी जलयान को यह आशय रखते हुए कि वह उसमें अंतर्विष्ट किसी संपत्ति की चोरी करे या बेईमानी से ऐसी किसी संपत्ति का दुर्विनियोग करे, या इस आशय से कि ऐसी चोरी या संपत्ति का दुर्विनियोग किया जाए, साशय भूमि पर चढ़ा देगा या किनारे से लगा देगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने का भी दायी होगा ।


खंड- 329. आपराधिक अतिचार और गृह-अतिचार ।

(1) जो कोई ऐसी संपत्ति में या ऐसी संपत्ति पर, जो किसी दूसरे के कब्जे में है, इस आशय से प्रवेश करता है, कि वह कोई अपराध करे या किसी व्यक्ति को, जिसके कब्जे में ऐसी संपत्ति है; अभित्रस्त, अपमानित या क्षुब्ध करे, या ऐसी संपत्ति में या ऐसी संपत्ति पर, विधिपूर्वक प्रवेश करके वहां विधिविरुद्ध रूप में इस आशय से बना रहता है कि तद्वारा वह किसी ऐसे व्यक्ति को अभित्रस्त, अपमानित या क्षुब्ध करे या इस आशय से बना रहता है कि वह कोई अपराध करे, वह आपराधिक अतिचार करता है, यह कहा जाता है ।

(2) जो कोई किसी निर्माण, तम्बू या जलयान में, जो मानव-निवास के रूप में उपयोग में आता है, या किसी निर्माण में, जो उपासना-स्थान के रूप में, या किसी संपत्ति की अभिरक्षा के स्थान के रूप में उपयोग में आता है, प्रवेश करके या उसमें बना रह कर, आपराधिक अतिचार करता है, वह गृह-अतिचार करता है, यह कहा जाता है ।

स्पष्टीकरण-आपराधिक अतिचार करने वाले व्यक्ति के शरीर के किसी भाग का प्रवेश गृह-अतिचार गठित करने के लिए पर्याप्त प्रवेश है ।

(3) जो कोई आपराधिक अतिचार करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो पांच हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दंडित किया जाएगा ।

(4) जो कोई गृह-अतिचार करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो पांच हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दंडित किया जाएगा ।

खंड- 330. गृह-अतिचार और गृह-भेदन ।

(1) जो कोई यह पूर्वावधानी बरतने के पश्चात् गृह-अतिचार करता है कि ऐसे गृह-अतिचार को किसी ऐसे व्यक्ति से छिपाया जाए जिसे उस निर्माण, तम्बू या जलयान में से, जो अतिचार का विषय है, अतिचारी को अपवर्जित करने या बाहर कर देने का अधिकार है, वह प्रच्छन्न गृह-अतिचार करता है, यह कहा जाता है ।

(2) जो व्यक्ति गृह-अतिचार करता है, वह गृह-भेदन करता है, यह कहा जाता है, यदि वह उस गृह में या उसके किसी भाग में एतस्मिन्पश्चात् वर्णित छह तरीकों में से किसी तरीके से प्रवेश करता है या यदि वह उस गृह में या उसके किसी भाग में अपराध करने के प्रयोजन से होते हुए, या वहां अपराध कर चुकने पर, उस गृह से या उसके किसी भाग से ऐसे निम्नलिखित तरीकों में से किसी तरीके से बाहर निकलता है, अर्थात् :-

(क) यदि वह ऐसे रास्ते से प्रवेश करता है या बाहर निकलता है, जो स्वयं उसने या उस गृह-अतिचार के किसी दुष्प्रेरक ने वह गृह-अतिचार करने के लिए बनाया है ;

(ख) यदि वह किसी ऐसे रास्ते से, जो उससे या उस अपराध के दुष्प्रेरक से भिन्न किसी व्यक्ति द्वारा मानव प्रवेश के लिए आशयित नहीं है, या किसी ऐसे रास्ते से, जिस तक कि वह किसी दीवार या निर्माण पर सीढ़ी द्वारा या अन्यथा चढ़कर पहुंचा है, प्रवेश करता है या बाहर निकलता है ;

(ग) यदि वह किसी ऐसे रास्ते से प्रवेश करता है या बाहर निकलता है जिसको उसने या उस गृह-अतिचार के किसी दुष्प्रेरक ने वह गृह-अतिचार करने के लिए किसी ऐसे साधन द्वारा खोला है, जिसके द्वारा उस रास्ते का खोला जाना उस गृह के अधिभोगी द्वारा आशयित नहीं था ;

(घ) यदि उस गृह-अतिचार को करने के लिए, या गृह-अतिचार के पश्चात् उस गृह से निकल जाने के लिए वह किसी ताले को खोलकर प्रवेश करता या बाहर निकलता है ;

(ङ) यदि वह आपराधिक बल के प्रयोग या हमले या किसी व्यक्ति पर हमला करने की धमकी द्वारा अपना प्रवेश करता है या प्रस्थान करता है ;

(च) यदि वह किसी ऐसे रास्ते से प्रवेश करता है या बाहर निकलता है जिसके बारे में वह जानता है कि वह ऐसे प्रवेश या प्रस्थान को रोकने के लिए बंद किया हुआ है और अपने द्वारा या उस गृह-अतिचार के दुष्प्रेरक द्वारा खोला गया है ।

स्पष्टीकरण कोई उपगृह या निर्माण जो किसी गृह के साथ-साथ अधिभोग में है, और जिसके और ऐसे गृह के बीच आने जाने का अव्यवहित भीतरी रास्ता है, इस धारा के अर्थ के अंतर्गत उस गृह का भाग है ।

दृष्टांत

(क) य के गृह की दीवार में छेद करके और उस छेद में से अपना हाथ डालकर क गृह-अतिचार करता है । यह गृह-भेदन है ।

(ख) क तल्लों के बीच की बारी में से रंग कर एक पोत में प्रवेश करने द्वारा गृह- अतिचार करता है । यह गृह-भेदन है ।

(ग) य के गृह में एक खिड़की से प्रवेश करने द्वारा क गृह-अतिचार करता है । यह गृह-भेदन है ।

(घ) एक बंद द्वार को खोलकर य के गृह में उस द्वार से प्रवेश करने द्वारा क गृह- अतिचार करता है । यह गृह-भेदन है ।

(ङ) य के गृह में द्वार के छेद में से तार डालकर सिटकनी को ऊपर उठाकर उस द्वार में प्रवेश करने द्वारा क गृह-अतिचार करता है । यह गृह-भेदन है ।

(च) क को य के गृह के द्वार की चाबी मिल जाती है, जो य से खो गई थी, और वह उस चाबी से द्वार खोल कर य के गृह में प्रवेश करने द्वारा गृह-अतिचार करता है । यह गृह-भेदन है ।

(छ) य अपनी ड्योढ़ी में खड़ा है । य को धक्के से गिराकर क उस गृह में बलात् प्रवेश करने द्वारा गृह-अतिचार करता है । यह गृह-भेदन है ।

(ज) य, जो म का दरबान है, म की ड्योढ़ी में खड़ा है। य को मारने की धमकी देकर क उसको विरोध करने से भयोपरत् करके उस गृह में प्रवेश करने द्वारा गृह-अतिचार करता है । यह गृह-भेदन है ।

खंड- 331. गृह-अतिचार या गृह-भेदन के लिए दंड ।

(1) जो कोई प्रच्छन्न गृह-अतिचार या गृह-भेदन करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने का भी दायी होगा ।

(2) जो कोई सूर्यास्त के पश्चात् और सूर्योदय से पूर्व गृह-अतिचार या गृह-भेदन करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने का भी दायी होगा ।

(3) जो कोई कारावास से दंडनीय अपराध करने के लिए प्रच्छन्न गृह-अतिचार का गृह- भेदन करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने से भी दंडनीय होगा, तथा यदि वह अपराध, जिसका किया जाना आशयित हो, चोरी हो, तो कारावास की अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी ।

(4) जो कोई कारावास से दंडनीय कोई अपराध करने के लिए सूर्यास्त के पश्चात् और सूर्योदय से पूर्व प्रच्छन्न गृह-अतिचार या गृह-भेदन करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि पांच वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने का भी दायी होगा, तथा यदि वह अपराध जिसका किया जाना आशयित हो, चोरी हो, तो कारावास की अवधि चौदह वर्ष तक की हो सकेगी ।

(5) जो कोई किसी व्यक्ति को उपहति कारित करने की या किसी व्यक्ति पर हमला करने की या किसी व्यक्ति का सदोष अवरोध करने की या किसी व्यक्ति को उपहति के, या हमले के, या सदोष अवरोध के भय में डालने की तैयारी करके, प्रच्छन्न गृह-अतिचार या गृह-भेदन करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने का भी दायी होगा ।

(6) जो कोई किसी व्यक्ति को उपहति कारित करने की या किसी व्यक्ति पर हमला करने की या किसी व्यक्ति का सदोष अवरोध या सूर्यास्त के पश्चात् और सूर्योदय से पूर्व गृह-भेदन करने की या किसी व्यक्ति को उपहति के, या हमले के, या सदोष अवरोध के, भय में डालने की तैयारी करके, रात्रौ प्रच्छन्न गृह-अतिचार या रात्रौ गृह-भेदन करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि चौदह वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने का भी दायी होगा ।

(7) जो कोई प्रच्छन्न गृह-अतिचार या गृह-भेदन करते समय किसी व्यक्ति को घोर उपहति कारित करेगा या किसी व्यक्ति की मृत्यु या घोर उपहति कारित करने का प्रयत्न करेगा, वह आजीवन कारावास से, या दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने का भी दायी होगा ।

(8) यदि रात्रौ प्रच्छन्न गृह-अतिचार या रात्रौ गृह-भेदन सूर्यास्त के पश्चात् और सूर्योदय से पूर्व करते समय ऐसे अपराध का दोषी कोई व्यक्ति स्वेच्छया किसी व्यक्ति की मृत्यु या घोर उपहति कारित करेगा या मृत्यु या घोर उपहति कारित करने का प्रयत्न करेगा, तो ऐसे रात्रौ प्रच्छन्न गृह-अतिचार या रात्रौ गृह-भेदन सूर्यास्त के पश्चात् और सूर्योदय से पूर्व करने में संयुक्ततः सम्पृक्त प्रत्येक व्यक्ति, आजीवन कारावास से, या दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने का भी दायी होगा ।


खंड- 332. अपराध को करने के लिए गृह-अतिचार ।

जो कोई कोई ऐसा अपराध करने के लिए गृह-अतिचार करेगा-

(क) जो मृत्यु से दंडनीय है, वह आजीवन कारावास से, या कठिन कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष से अधिक नहीं होगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने का भी दायी होगा ;

(ख) जो आजीवन कारावास से दंडनीय है, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष से अधिक नहीं होगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने का भी दायी होगा ;

(ग) जो कारावास से दंडनीय है, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने का भी दायी होगा :

परन्तु यदि वह अपराध, जिसका किया जाना आशयित हो, चोरी हो, तो कारावास की अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी ।

खंड- 333. उपहति, हमला या सदोष अवरोध की तैयारी के पश्चात् गृह-अतिचार ।

जो कोई किसी व्यक्ति को उपहति कारित करने की, या किसी व्यक्ति पर हमला करने की, या किसी व्यक्ति का सदोष अवरोध करने की या किसी व्यक्ति को उपहति के, या हमले के, या सदोष अवरोध के भय में डालने की तैयारी करके गृह-अतिचार करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने का भी दायी होगा ।


खंड- 334. ऐसे पात्र को, जिसमें संपत्ति है, बेईमानी से तोड़कर खोलना ।

(1) जो कोई किसी ऐसे बंद पात्र को, जिसमें संपत्ति हो या जिसमें संपत्ति होने का उसे विश्वास हो, बेईमानी से या रिष्टि करने के आशय से तोड़कर खोलेगा या उद्घांधित करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दंडित किया जाएगा ।

(2) जो कोई ऐसा बंद पात्र, जिसमें संपत्ति हो, या जिसमें संपत्ति होने का उसे विश्वास हो, अपने पास न्यस्त किए जाने पर उसको खोलने का प्राधिकार न रखते हुए, बेईमानी से या रिष्टि करने के आशय से, उस पात्र को तोड़कर खोलेगा या उद्घांधित करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दंडित किया जाएगा ।

अध्याय 18- दस्तावेजों और संपत्ति चिहनों संबंधी अपराधों के विषय में

खंड- 335. मिथ्या दस्तावेज रचना ।

उस व्यक्ति के बारे में यह कहा जाता है कि वह व्यक्ति मिथ्या दस्तावेज या मिथ्या इलैक्ट्रानिक अभिलेख रचता है, -

(अ) जो बेईमानी से या कपटपूर्वक इस आशय से-

(i) किसी दस्तावेज को या दस्तावेज के भाग को रचित, हस्ताक्षरित, मुद्रांकित या निष्पादित करता है ;

(ii) किसी इलैक्ट्रानिक अभिलेख को या किसी इलैक्ट्रानिक अभिलेख के भाग को रचित या पारेषित करता है ;

(iii) किसी इलैक्ट्रानिक अभिलेख पर कोई इलैक्ट्रानिक चिह्नक लगाता है ;

(iv) किसी दस्तावेज के निष्पादन का या ऐसे व्यक्ति या इलैक्ट्रानिक चिह्नक की अधिप्रमाणिकता का द्योतन करने वाला कोई चिह्न लगाता है,

कि यह विश्वास किया जाए कि ऐसा दस्तावेज या दस्तावेज के भाग, इलैक्ट्रानिक अभिलेख या इलैक्ट्रानिक हस्ताक्षर की रचना, हस्ताक्षरण, मुद्रांकन, निष्पादन, पारेषण या लगाना ऐसे व्यक्ति द्वारा या ऐसे व्यक्ति के प्राधिकार द्वारा किया गया था, जिसके द्वारा या जिसके प्राधिकार द्वारा उसकी रचना, हस्ताक्षरण, मुद्रांकन या निष्पादन, लगाए जाने या पारेषित न होने की बात वह जानता है; या

(आ) जो किसी दस्तावेज या इलैक्ट्रानिक अभिलेख के किसी तात्त्विक भाग में परिवर्तन, उसके द्वारा या ऐसे किसी अन्य व्यक्ति द्वारा, चाहे ऐसा व्यक्ति, ऐसे परिवर्तन के समय जीवित हो या नहीं, उस दस्तावेज या इलैक्ट्रानिक अभिलेख के रचित या निष्पादित किए जाने या इलैक्ट्रानिक चिह्न लगाए जाने के पश्चात्, उसे रद्द करके या अन्यथा, विधिपूर्वक प्राधिकार के बिना, बेईमानी से या कपटपूर्वक करता है; या

(इ) जो किसी व्यक्ति द्वारा, यह जानते हुए कि ऐसा व्यक्ति किसी दस्तावेज या इलैक्ट्रानिक अभिलेख की विषय-वस्तु को या परिवर्तन के रूप को, चित्त-विकृति या मत्तता की हालत होने के कारण जान नहीं सकता था या उस प्रवंचना के कारण, जो उससे की गई है, जानता नहीं है, उस दस्तावेज या इलैक्ट्रानिक अभिलेख को बेईमानी से या कपटपूर्वक हस्ताक्षरित, मुद्रांकित, निष्पादित या परिवर्तित किया जाना या किसी इलैक्ट्रानिक अभिलेख पर अपने इलैक्ट्रानिक चिह्नक लगाया जाना कारित करता है ।

दृष्टांत

(क) क के पास य द्वारा ख पर लिखा हुआ 10,000 रुपए का एक प्रत्यय पत्र है । ख से कपट करने के लिए क 10,000 में एक शून्य बढ़ा देता है और उस राशि को 1,00,000 रुपए इस आशय से बना देता है कि ख यह विश्वास कर ले कि य ने वह पत्र ऐसा ही लिखा था । क ने कूटरचना की है ।

(ख) क इस आशय से कि वह य की सम्पदा ख को बेच दे और उसके द्वारा ख से क्रय धन अभिप्राप्त कर ले, य के प्राधिकार के बिना य की मुद्रा एक ऐसी दस्तावेज पर लगाता है, जो कि य की ओर से क की सम्पदा का हस्तान्तर-पत्र होना तात्पर्यत है । क ने कूटरचना की है ।

(ग) एक बैंकर पर लिखे हुए और वाहक को देय चेक को क उठा लेता है । चेक ख द्वारा हस्ताक्षरित है, किन्तु उस चेक में कोई राशि अंकित नहीं है । क दस हजार रुपए की राशि अंकित करके चेक को कपटपूर्वक भर लेता है । क कूटरचना करता है ।

(घ) क अपने अभिकर्ता ख के पास एक बैंकर पर लिखा हुआ, क द्वारा हस्ताक्षरित चेक, देय धनराशि अंकित किए बिना छोड़ देता है । ख को क इस बात के लिए प्राधिकृत कर देता है कि वह कुछ संदाय करने के लिए चेक में ऐसी धनराशि, जो दस हजार रुपए से अधिक न हो अंकित करके चेक भर ले । ख कपटपूर्वक चेक में बीस हजार रुपए अंकित करके उसे भर लेता है । ख कूटरचना करता है ।

(ङ) क, ख के प्राधिकार के बिना ख के नाम में अपने ऊपर एक विनिमयपत्र इस आशय से लिखता है कि वह एक बैंकर से असली विनिमयपत्र की भांति बट्टा देकर उसे भुना ले, और उस विनिमयपत्र को उसकी परिपक्वता पर ले ले, यहां क इस आशय से उस विनिमयपत्र को लिखता है कि प्रवंचना करके बैंकर को यह अनुमान करा दे कि उसे ख की प्रतिभूति प्राप्त है, और इसलिए वह उस विनिमयपत्र को बट्टा लेकर भुना दे । क कूटरचना का दोषी है ।

(च) य की विल में ये शब्द अन्तर्विष्ट हैं कि मैं निदेश देता हूं कि मेरी समस्त शेष सम्पत्ति क, ख और ग में बराबर बांट दी जाए । क बेईमानी से ख का नाम इस आशय से खुरच डालता है कि यह विश्वास कर लिया जाए कि समस्त सम्पत्ति उसके स्वयं के लिए और ग के लिए ही छोड़ी गई थी। ख ने कूटरचना की है ।

(छ) क एक सरकारी वचनपत्र को पृष्ठांकित करता है और उस पर शब्द य को या उसके आदेशानुसार दे दो लिखकर और पृष्ठांकन पर हस्ताक्षर करके उसे य को या उसके आदेशानुसार देय कर देता है । ख बेईमानी से य को या उसके आदेशानुसार दे दो इन शब्दों को छीलकर मिटा डालता है, और इस प्रकार उस विशेष पृष्ठांकन को एक निरंक पृष्ठांकन में परिवर्तित कर देता है । ख कूटरचना करता है ।

(ज) क एक सम्पदा य को बेच देता है और उसका हस्तांतर-पत्र लिख देता है । उसके पश्चात् क, य को कपट करके सम्पदा से वंचित करने के लिए उसी सम्पदा को एक हस्तान्तर-पत्र जिस पर य के हस्तान्तर-पत्र की तारीख से छह मास पूर्व की तारीख पड़ी हुई है, ख के नाम इस आशय से निष्पादित कर देता है कि यह विश्वास कर लिया जाए कि उसने अपनी सम्पदा य को हस्तान्तरित करने से पूर्व ख को हस्तान्तरित कर दी थी। क ने कूटरचना की है ।

(झ) य अपनी विल क से लिखवाता है । क जानबूझकर एक ऐसे वसीयतदार का नाम लिख देता है, जो कि उस वसीयतदार से भिन्न है, जिसका नाम य ने कहा है, और य को यह व्यपदिष्ट करके कि उसने विल उसके अनुदेशों के अनुसार ही तैयार की है, य को विल पर हस्ताक्षर करने के लिए उत्प्रेरित करता है । क ने कूटरचना की है ।

(ञ) क एक पत्र लिखता है और ख के प्राधिकार के बिना, इस आशय से कि उस पत्र के द्वारा य से और अन्य व्यक्तियों से भिक्षा अभिप्राप्त करे, ख के नाम के हस्ताक्षर यह प्रमाणित करते हुए कर देता है कि क अच्छे शील का व्यक्ति है और अनवेक्षित दुर्भाग्य के कारण दीन अवस्था में है। यहां क, ने य को सम्पत्ति, अलग करने के लिए उत्प्रेरित करने की मिथ्या दस्तावेज रची है, इसलिए क ने कूटरचना की है ।

(ट) ख के प्राधिकार के बिना क इस आशय से कि उसके द्वारा य के अधीन नौकरी अभिप्राप्त करे, क के शील को प्रमाणित करते हुए एक पत्र लिखता है, और उसे ख के नाम से हस्ताक्षरित करता है। क ने कूटरचना की है क्योंकि उसका आशय कूटरचित प्रमाणपत्र द्वारा य को प्रवंचित करने का और ऐसा करके य की सेवा की अभिव्यक्त या विवक्षित संविदा में प्रविष्ट होने के लिए उत्प्रेरित करने का था ।

स्पष्टीकरण 1-किसी व्यक्ति का स्वयं अपने नाम का हस्ताक्षर करना कूटरचना की कोटि में आ सकेगा ।

दृष्टांत

(क) क एक विनिमयपत्र पर अपने हस्ताक्षर इस आशय से करता है कि यह विश्वास कर लिया जाए कि वह विनिमयपत्र उसी नाम के किसी अन्य व्यक्ति द्वारा लिखा गया था । क ने कूटरचना की है ।

(ख) क एक कागज के टुकड़े पर शब्द प्रतिगृहीत किया लिखता है और उस पर य के नाम के हस्ताक्षर इसलिए करता है कि ख बाद में इस कागज पर एक विनिमयपत्र, जो खने य के ऊपर किया है, लिखे और उस विनिमयपत्र का इस प्रकार परक्रामण करे, मानो वह य के द्वारा प्रतिगृहीत कर लिया गया था । क कूटरचना का दोषी है, तथा यदि ख इस तथ्य को जानते हुए क के आशय के अनुसरण में, उस कागज पर विनिमयपत्र लिख देता है, तो ख भी कूटरचना का दोषी है ।

(ग) क अपने नाम के किसी अन्य व्यक्ति के आदेशानुसार देय विनिमयपत्र पड़ा पाता है । क उसे उठा लाता है और यह विश्वास कराने के आशय से स्वयं अपने नाम पृष्ठांकित करता है कि इस विनिमयपत्र पर पृष्ठांकन उसी व्यक्ति द्वारा लिखा गया था जिसके आदेशानुसार वह देय है। यहां, क ने कूटरचना की है ।

(घ) क, ख के विरुद्ध एक डिक्री के निष्पादन में बेची गई सम्पदा को खरीदता है । ख सम्पदा के अभिगृहीत किए जाने के पश्चात् य के साथ दुस्सन्धि करके क को कपटवंचित करने और यह विश्वास कराने के आशय से कि वह पट्टा अभिग्रहण से पूर्व निष्पादित किया गया था, नाममात्र के भाटक पर और एक लम्बी कालावधि के लिए य के नाम उस सम्पदा का पट्टा कर देता है और पट्टे पर अभिग्रहण से छह मास पूर्व की तारीख डाल देता हे । ख यद्यपि पट्टे का निष्पादन स्वयं अपने नाम से करता है, तथापि उस पर पूर्व की तारीख डालकर वह कूटरचना करता है ।

(ङ) क एक व्यापारी अपने दिवाले का पूर्वानुमान करके अपनी चीजवस्तु ख के पास क के फायदे के लिए और अपने लेनदारों को कपटवंचित करने के आशय से रख देता है; और प्राप्त मूल्य के बदले में, ख को एक धनराशि देने के लिए अपने को आबद्ध करते हुए, एक वचनपत्र उस संव्यवहार की सच्चाई की रंगत देने के लिए लिख देता है, और इस आशय से कि यह विश्वास कर लिया जाए कि यह वचनपत्र उसने उस समय से पूर्व ही लिखा था जब उसका दिवाला निकलने वाला था, उस पर पहले की तारीख डाल देता है। क ने परिभाषा के प्रथम शीर्षक के अधीन कूटरचना की है ।

स्पष्टीकरण 2 कोई मिथ्या दस्तावेज किसी कल्पित व्यक्ति के नाम से इस आशय से रचना कि यह विश्वास कर लिया जाए कि वह दस्तावेज एक वास्तविक व्यक्ति द्वारा रची गई थी, या किसी मृत व्यक्ति के नाम से इस आशय से रचना कि यह विश्वास कर लिया जाए कि वह दस्तावेज उस व्यक्ति द्वारा उसके जीवन काल में रची गई थी, कूटरचना की कोटि में आ सकेगा ।

दृष्टांत

क एक कल्पित व्यक्ति के नाम कोई विनिमयपत्र लिखता है, और उसका परक्रामण करने के आशय से उस विनिमयपत्र को ऐसे कल्पित व्यक्ति के नाम से कपटपूर्वक प्रतिगृहीत कर लेता है । क कूटरचना करता है ।

स्पष्टीकरण 3-इस धारा के प्रयोजनों के लिए, इलैक्ट्रानिक हस्ताक्षर लगाने पद का वही अर्थ होगा, जो उसका सूचना प्रौ‌द्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 2 की उपधारा (1) के खंड (घ) में है ।

खंड- 336. कूटरचना ।

(1) जो कोई, किसी मिथ्या दस्तावेज या मिथ्या इलैक्ट्रानिक अभिलेख या दस्तावेज या इलैक्ट्रानिक अभिलेख के किसी भाग को इस आशय से रचता है कि लोक को या किसी व्यक्ति को नुकसान या क्षति कारित की जाए, या किसी दावे या हक का समर्थन किया जाए, या यह कारित किया जाए कि कोई व्यक्ति संपत्ति अलग करे या कोई अभिव्यक्त या विवक्षित संविदा करे या इस आशय से रचता है कि कपट करे, या कपट किया जा सके, वह कूटरचना करता है ।

(2) जो कोई कूटरचना करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा ।

(3) जो कोई कूटरचना इस आशय से करेगा कि वह दस्तावेज या इलैक्ट्रानिक अभिलेख जिसकी कूटरचना की जाती है, छल के प्रयोजन से उपयोग में लाई जाएगी, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा, और जुर्माने का भी दायी होगा ।

(4) जो कोई कूटरचना इस आशय से करेगा कि वह दस्तावेज या इलैक्ट्रानिक अभिलेख जिसकी कूटरचना की जाती है, किसी पक्षकार की ख्याति की अपहानि करेगी, या यह सम्भाव्य जानते हुए करेगा कि इस प्रयोजन से उसका उपयोग किया जाए, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने का भी दायी होगा ।

खंड- 337. न्यायालय के अभिलेख की या लोक रजिस्टर आदि की कूटरचना ।

जो कोई ऐसे दस्तावेज की या ऐसे इलैक्ट्रानिक अभिलेख की जिसका कि किसी न्यायालय का या न्यायालय में अभिलेख या कार्यवाही होना, या सरकार द्वारा जारी किसी पहचान दस्तावेज, जिसके अंतर्गत पहचान पत्र या आधार कार्ड भी है, या जन्म, विवाह या अन्त्येष्टि का रजिस्टर, या लोक सेवक द्वारा लोक सेवक के नाते रखा गया रजिस्टर होना तात्पर्यित हो, या किसी प्रमाणपत्र की या ऐसी दस्तावेज की जिसके बारे में यह तात्पर्यत हो कि वह किसी लोक सेवक द्वारा उसकी पदीय हैसियत में रची गई है, या जो किसी वाद को संस्थित करने या वाद में प्रतिरक्षा करने का, उसमें कोई कार्यवाही करने का, या दावा संस्वीकृत कर लेने का, प्राधिकार हो या कोई मुख्तारनामा हो, कूटरचना करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने का भी दायी होगा ।

स्पष्टीकरण-इस धारा के प्रयोजनों के लिए, रजिस्टर के अंतर्गत सूचना प्रौ‌द्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 2 की उपधारा (1) के खंड (द) में यथापरिभाषित इलैक्ट्रानिक रूप में रखी गई कोई सूची, डाटा या किन्हीं प्रविष्टियों का अभिलेख भी है।

खंड- 338. मूल्यवान प्रतिभूति, विल, इत्यादि की कूटरचना ।

जो कोई किसी ऐसी दस्तावेज की, जिसका कोई मूल्यवान प्रतिभूति या विल या पुत्र के दत्तकग्रहण का प्राधिकार होना तात्पर्यित हो, या जिसका किसी मूल्यवान प्रतिभूति की रचना या अन्तरण का, या उस पर के मूलधन, ब्याज या लाभांश को प्राप्त करने का, या किसी धन, जंगम सम्पत्ति या मूल्यवान प्रतिभूति को प्राप्त करने या परिदत्त करने का प्राधिकार होना तात्पर्यत हो, या किसी दस्तावेज को, जिसका धन दिए जाने की अभिस्वीकृति करने वाला निस्तारणपत्र या रसीद होना, या किसी जंगम संपत्ति या मूल्यवान प्रतिभूति के परिदान के लिए निस्तारणपत्र या रसीद होना तात्पर्यत हो, कूटरचना करेगा, वह आजीवन कारावास से, या दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने का भी दायी होगा ।


खंड- 339. धारा 337 या धारा 338 में वर्णित दस्तावेज को, उसे कूटरचित जानते हुए और उसे असली के रूप में उपयोग में लाने का आशय रखते हुए, कब्जे में रखना ।

जो कोई, किसी दस्तावेज या किसी इलैक्ट्रानिक अभिलेख को उसे कूटरचित जानते हुए और यह आशय रखते हुए कि वह कपटपूर्वक या बेईमानी से असली रूप में उपयोग में लाया जाएगा, अपने कब्जे में रखेगा, यदि वह दस्तावेज या इलैक्ट्रानिक अभिलेख इस संहिता की धारा 337 में वर्णित भांति का हो तो वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा, तथा यदि वह दस्तावेज धारा 338 में वर्णित भांति की हो तो वह आजीवन कारावास से, या दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने का भी दायी होगा ।


खंड- 340. कूटरचित दस्तावेज या इलैक्ट्रानिक अभिलेख और इसे असली के रूप में उपयोग में लाना ।

(1) वह मिथ्या दस्तावेज या इलैक्ट्रानिक अभिलेख जो पूर्णतः या भागतः कूटरचना द्वारा रचा गया है, कूटरचित दस्तावेज या इलैक्ट्रानिक अभिलेख कहलाता है ।

(2) जो कोई किसी ऐसी दस्तावेज या इलैक्ट्रानिक अभिलेख को, जिसके बारे में वह यह जानता या विश्वास करने का कारण रखता हो कि वह कूटरचित दस्तावेज या इलैक्ट्रानिक अभिलेख है, कपटपूर्वक या बेईमानी से असली के रूप में उपयोग में लाएगा, वह उसी प्रकार दण्डित किया जाएगा, मानो उसने ऐसे दस्तावेज या इलैक्ट्रानिक अभिलेख की कूटरचना की हो ।

खंड- 341. धारा 338 के अधीन दण्डनीय कूटरचना करने के आशय से कूटकृत मुद्रा, आदि का बनाना या कब्जे में रखना ।

(1) जो कोई किसी मुद्रा, पट्टी या छाप लगाने के अन्य उपकरण को इस आशय से बनाएगा या उसकी कूटकृति तैयार करेगा कि उसे कोई ऐसी कूटरचना करने के प्रयोजन के लिए उपयोग में लाया जाए, जो इस संहिता की धारा 338 के अधीन दण्डनीय है, या इस आशय से, किसी ऐसी मुद्रा, पट्टी या अन्य उपकरण को, उसे कूटकृत जानते हुए अपने कब्जे में रखेगा, वह आजीवन कारावास से, या दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा ।

(2) जो कोई किसी मुद्रा, पट्टी या छाप लगाने के अन्य उपकरण को इस आशय से बनाएगा या उसकी कूटकृति करेगा, कि उसे कोई ऐसी कूटरचना करने के प्रयोजन के लिए उपयोग में लाया जाए, जो धारा 338 से भिन्न इस अध्याय की किसी धारा के अधीन दण्डनीय है, या इस आशय से किसी ऐसी मुद्रा, पट्टी या अन्य उपकरण को, उसे कूटकृत जानते हुए अपने कब्जे में रखेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने का भी दायी होगा ।

(3) जो कोई किसी मुद्रा, पट्टी या अन्य उपकरण को कूटकृत जानते हुए अपने कब्जे में रखेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने का भी दायी होगा ।

(4) जो कोई किसी मुद्रा, पट्टी या अन्य उपकरण को कूटकृत जानते हुए या उसके बारे में ऐसा विश्वास रखने के कारण कपटपूर्वक या बेईमानी से इसे असली के रुप में उपयोग करता है, उसी रीति में दंड़नीय होगा, जैसे मानो उसने इस प्रकार की मुद्रा, पट्टी या अन्य उपकरण का निर्माण या उसे कूटकृत किया हो ।


खंड- 342. धारा 338 में वर्णित दस्तावेजों के अधिप्रमाणीकरण के लिए उपयोग में लाई जाने वाली अभिलक्षणा या चिह्न की कूटकृति बनाना या कूटकृत चिह्नयुक्त पदार्थ को कब्जे में रखना ।

(1) जो कोई किसी पदार्थ के ऊपर, या उसके उपादान में, किसी ऐसी अभिलक्षणा या चिह्न की, जिसे धारा 338 में वर्णित किसी दस्तावेज के अधिप्रमाणीकरण के प्रयोजन के लिए, उपयोग में लाया जाता हो, कूटकृति यह आशय रखते हुए बनाएगा कि ऐसी अभिलक्षणा या ऐसे चिह्न की, ऐसे पदार्थ पर उस समय कूटरचित की जा रही या उसके पश्चात् कूटरचित की जाने वाली किसी दस्तावेज को अधिप्रमाणीकृत का आभास प्रदान करने के प्रयोजन से उपयोग में लाया जाएगा या जो ऐसे आशय से कोई ऐसा पदार्थ अपने कब्जे में रखेगा, जिस पर या जिसके उपादान में ऐसी अभिलक्षणा को या ऐसे चिह्न की कूटकृति बनाई गई हो, वह आजीवन कारावास से, या दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने का भी दायी होगा ।

(2) जो कोई किसी पदार्थ के ऊपर, या उसके उपादान में, किसी ऐसी अभिलक्षणा या चिह्न की, जिसे धारा 338 में वर्णित दस्तावेजों से भिन्न किसी दस्तावेज या इलैक्ट्रानिक अभिलेख के अधिप्रमाणीकरण के प्रयोजन के लिए, उपयोग में लाया जाता हो, कूटकृति यह आशय रखते हुए बनाएगा कि वह ऐसी अभिलक्षणा या ऐसे चिह्न को, ऐसे पदार्थ पर उस समय कूटरचित की जा रही या उसके पश्चात् कूटरचित की जाने वाली किसी दस्तावेज को अधिप्रमाणीकृत का आभास प्रदान करने के प्रयोजन से उपयोग में लाया जाएगा या जो ऐसे आशय से कोई ऐसा पदार्थ अपने कब्जे में रखेगा, जिस पर या जिसके उपादान में ऐसी अभिलक्षणा या ऐसे चिह्न की कूटकृति बनाई गई हो, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने का भी दायी होगा ।

खंड- 343. विल, दत्तकग्रहण प्राधिकार-पत्र या मूल्यवान प्रतिभूति को कपटपूर्वक रद्द, नष्ट, आदि करना ।

जो कोई कपटपूर्वक या बेईमानी से, या लोक को या किसी व्यक्ति को नुकसान या क्षति कारित करने के आशय से, किसी ऐसे दस्तावेज को, जो विल या पुत्र के दत्तकग्रहण करने का प्राधिकार-पत्र या कोई मूल्यवान प्रतिभूति हो, या होना तात्पर्यित हो, रद्द, नष्ट या विरूपित करेगा या रद्द, नष्ट या विरूपित करने का प्रयत्न करेगा, या छिपाएगा या छिपाने का प्रयत्न करेगा या ऐसी दस्तावेज के विषय में रिष्टि करेगा, वह आजीवन कारावास से, या दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने का भी दायी होगा ।


खंड- 344. लेखा का मिथ्याकरण ।

जो कोई, लिपिक, अधिकारी या सेवक होते हुए, या लिपिक, अधिकारी या सेवक के नाते नियोजित होते या कार्य करते हुए, किसी पुस्तक, इलैक्ट्रानिक अभिलेख, कागज, लेख, मूल्यवान प्रतिभूति या लेखा को जो उसके नियोजक का हो या उसके नियोजक के कब्जे में हो या जिसे उसने नियोजक के लिए या उसकी ओर से प्राप्त किया हो, जानबूझकर और कपट करने के आशय से नष्ट, परिवर्तित, विकृत या मिथ्याकृत करेगा या किसी ऐसी पुस्तक, इलैक्ट्रानिक अभिलेख, कागज, लेख मूल्यवान प्रतिभूति या लेखा में जानबूझकर और कपट करने के आशय से कोई मिथ्या प्रविष्टि करेगा या करने के लिए दुष्प्रेरण करेगा, या उसमें से या उसमें किसी तात्त्विक विशिष्टि का लोप या परिवर्तन करेगा या करने का दुष्प्रेरण करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा ।

स्पष्टीकरण-इस धारा के अधीन किसी आरोप में, किसी विशिष्ट व्यक्ति का, जिससे कपट करना आशयित था, नाम बताए बिना या किसी विशिष्ट धनराशि का, जिसके विषय में कपट किया जाना आशयित था या किसी विशिष्ट दिन का, जिस दिन अपराध किया गया था, विनिर्देश किए बिना, कपट करने के साधारण आशय का अभिकथन पर्याप्त होगा ।

खंड- 345. सम्पत्ति-चिह्न ।

(1) वह चिह्न, जो यह द्योतन करने के लिए उपयोग में लाया जाता है कि जंगम संपत्ति किसी विशिष्ट व्यक्ति की है, सम्पत्ति चिह्न कहा जाता है ।

(2) जो कोई किसी जंगम सम्पत्ति या माल को या किसी पेटी, पैकेज या अन्य पात्र को, जिसमें चल सम्पत्ति या माल रखा है, ऐसी रीति से चिह्नित करता है या किसी पेटी, पैकेज या अन्य पात्र को, जिस पर कोई चिह्न है, ऐसी रीति से उपयोग में लाता है, जो इसलिए युक्तियुक्त रूप से प्रकल्पित है कि उससे यह विश्वास कारित हो जाए कि इस प्रकार चिह्नित सम्पत्ति या माल, या इस प्रकार चिह्नित किसी ऐसे पात्र में रखी हुई कोई सम्पत्ति या माल, ऐसे व्यक्ति का है, जिसका वह नहीं है, वह मिथ्या सम्पत्ति-चिह्न का उपयोग करता है, यह कहा जाता है ।

(3) जो कोई किसी मिथ्या सम्पत्ति-चिह्न का उपयोग करेगा, जब तक कि वह यह साबित न कर दे कि उसने कपट करने के आशय के बिना कार्य किया है, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से दण्डित किया जाएगा ।

खंड- 346. क्षति कारित करने के आशय से सम्पत्ति-चिह्न को बिगाड़ना ।

जो कोई किसी सम्पत्ति-चिह्न को, यह आशय रखते हुए, या यह सम्भाव्य जानते हुए कि वह तद्वारा किसी व्यक्ति को क्षति करे, किसी सम्पत्ति-चिह्न को अपसारित करेगा, नष्ट करेगा, विरूपित करेगा या उसमें कुछ जोड़ेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा ।


खंड- 347. सम्पत्ति-चिह्न का कूटकरण ।

(1) जो कोई किसी सम्पत्ति-चिह्न का, जो किसी अन्य व्यक्ति द्वारा उपयोग में लाया जाता हो, कूटकरण करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा ।

(2) जो कोई किसी सम्पत्ति-चिह्न का, जो लोक सेवक द्वारा उपयोग में लाया जाता हो, या किसी ऐसे चिह्न का, जो लोक सेवक द्वारा यह द्योतन करने के लिए उपयोग में लाया जाता हो कि कोई सम्पत्ति किसी विशिष्ट व्यक्ति द्वारा या किसी विशिष्ट समय या स्थान पर विनिर्मित की गई है, या यह कि वह सम्पत्ति किसी विशिष्ट क्वालिटी की है या किसी विशिष्ट कार्यालय में से पारित हो चुकी है, या यह कि किसी छूट की हकदार है, कूटकरण करेगा, या किसी ऐसे चिह्न को उसे कूटकृत जानते हुए असली के रूप में उपयोग में लाएगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने का भी दायी होगा ।

खंड- 348. सम्पत्ति-चिह्न के कूटकरण के लिए कोई उपकरण बनाना या उस पर कब्जा ।

जो कोई सम्पत्ति-चिह्न के कूटकरण के प्रयोजन से कोई डाई, पट्टी या अन्य उपकरण बनाएगा या अपने कब्जे में रखेगा, या यह द्योतन करने के प्रयोजन से कि कोई माल ऐसे व्यक्ति का है, जिसका वह नहीं है, किसी सम्पत्ति-चिह्न को अपने कब्जे में रखेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा ।


खंड- 349. कूटकृत सम्पत्ति-चिह्न से चिह्नित माल का विक्रय ।

जो कोई किसी माल या चीजों को, स्वयं उन पर या किसी ऐसी पेटी, पैकेज या अन्य पात्र पर, जिसमें ऐसा माल रखा हो, कोई कूटकृत सम्पत्ति-चिह्न लगा हुआ या छपा हुआ होते हुए, बेचेगा या बेचने के लिए अभिदर्शित करेगा या अपने कब्जे में रखेगा, जब तक कि वह यह साबित न कर दे कि-

(क) इस धारा के विरुद्ध अपराध न करने की सब युक्तियुक्त पूर्वावधानी बरतते हुए, चिह्न के असलीपन के सम्बन्ध में संदेह करने के लिए उसके पास कोई कारण अधिकथित अपराध करते समय नहीं था; तथा

(ख) अभियोजक द्वारा या उसकी ओर से मांग किए जाने पर, उसने उन व्यक्तियों के विषय में, जिनसे उसने ऐसा माल या चीजें अभिप्राप्त की थीं, वह सब जानकारी दे दी थी, जो उसकी शक्ति में थी; या

(ग) अन्यथा उसने निर्दोषितापूर्वक कार्य किया था, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा ।

खंड- 350. किसी ऐसे पात्र के ऊपर मिथ्या चिह्न बनाना जिसमें माल रखा है।

(1) जो कोई किसी पेटी, पैकेज या अन्य पात्र के ऊपर, जिसमें माल रखा हुआ हो, ऐसी रीति से कोई ऐसा मिथ्या चिह्न बनाएगा, जो इसलिए युक्तियुक्त रूप से प्रकल्पित है कि उससे किसी लोक सेवक को या किसी अन्य व्यक्ति को यह विश्वास कारित हो जाए कि ऐसे पात्र में ऐसा माल है, जो उसमें नहीं है, या यह कि उसमें ऐसा माल नहीं है, जो उसमें है, या यह कि ऐसे पात्र में रखा हुआ माल ऐसी प्रकृति या क्वालिटी का है जो उसकी वास्तविक प्रकृति या क्वालिटी से भिन्न है, जब तक कि वह यह साबित न कर दे कि उसने वह कार्य कपट करने के आशय के बिना किया है वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा ।

(2) उपधारा (1) के अधिन प्रतिषिद्ध किसी प्रकार से किसी ऐसे मिथ्या चिह्न का उपयोग करेगा, जब तक कि वह यह साबित न कर दे कि उसने वह कार्य कपट करने के आशय के बिना किया है, वह उसी प्रकार दण्डित किया जाएगा, मानो उसने उपधारा (1) के अधीन अपराध किया हो ।

अध्याय 19- आपराधिक अभित्रास, अपमान, मानहानि आदि के विषय में

खंड- 351. आपराधिक अभित्रास ।

(1) जो कोई, किसी अन्य व्यक्ति के शरीर, ख्याति या सम्पत्ति को या किसी ऐसे व्यक्ति के शरीर या ख्याति को, जिससे कि वह व्यक्ति हितबद्ध हो, कोई क्षति करने की धमकी, उस अन्य व्यक्ति को इस आशय से देता है कि उसे संत्रास कारित किया जाए, या उससे ऐसी धमकी के निष्पादन का परिवर्जन करने के साधन स्वरूप कोई ऐसा कार्य कराया जाए, जिसे करने के लिए वह वैध रूप से आबद्ध न हो, या किसी ऐसे कार्य को करने का लोप कराया जाए, जिसे करने के लिए वह वैध रूप से हकदार हो, वह आपराधिक अभित्रास करता है।

स्पष्टीकरण किसी ऐसे मृत व्यक्ति की ख्याति को क्षति करने की धमकी जिससे वह व्यक्ति, जिसे धमकी दी गई है, हितबद्ध हो, इस धारा के अन्तर्गत आता है ।

दृष्टांत

सिविल वाद चलाने से उपरत रहने के लिए ख को उत्प्रेरित करने के प्रयोजन से ख के घर को जलाने की धमकी क देता है। क आपराधिक अभित्रास का दोषी है ।

(2) जो कोई आपराधिक अभित्रास का अपराध करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा ।

(3) जो कोई, मृत्यु या घोर उपहति कारित करने की, या अग्नि द्वारा किसी सम्पत्ति का नाश कारित करने की या मृत्यु दण्ड से या आजीवन कारावास से, या सात वर्ष की अवधि तक के कारावास से दण्डनीय अपराध कारित करने की, या किसी महिला पर असतित्व का लांछन लगाने की धमकी द्वारा आपराधिक अभित्रास का अपराध करेगा; तो वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा ।

(4) जो कोई अनाम संसूचना द्वारा या उस व्यक्ति का, जिसने धमकी दी हो, नाम या निवास-स्थान छिपाने की पूर्वावधानी करके आपराधिक अभित्रास का अपराध करेगा, वह उपधारा (1) के अधीन उस अपराध के लिए उपबन्धित दण्ड के अतिरिक्त, दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा ।

खंड- 352. लोकशांति भंग कराने को प्रकोपित करने के आशय से जानबूझकर अपमान ।

जो कोई किसी व्यक्ति को साशय अपमानित करेगा और तद्वारा उस व्यक्ति को इस आशय से, या यह सम्भाव्य जानते हुए, प्रकोपित करेगा कि ऐसे प्रकोपन से वह लोक शान्ति भंग या कोई अन्य अपराध कारित करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा ।


खंड- 353. लोक रिष्टिकारक वक्तव्य ।

(1) जो कोई किसी कथन, मिथ्या जानकारी, जनश्रुति या रिपोर्ट को-

(क) इस आशय से कि, या जिससे यह सम्भाव्य हो कि, भारत की सेना, नौसेना या वायुसेना का कोई अधिकारी, सैनिक, नाविक या वायुसैनिक विद्रोह करे या अन्यथा वह अपने उस नाते, अपने कर्तव्य की अवहेलना करे या उसके पालन में असफल रहे ;या

(ख) इस आशय से कि, या जिससे यह सम्भाव्य हो कि, लोक या लोक के किसी भाग को ऐसा भय या संत्रास कारित हो जिससे कोई व्यक्ति राज्य के विरुद्ध या लोक-प्रशान्ति के विरुद्ध अपराध करने के लिए उत्प्रेरित हो; या

(ग) इस आशय से कि, या जिससे यह सम्भाव्य हो कि, उससे व्यक्तियों का कोई वर्ग या समुदाय किसी दूसरे वर्ग या समुदाय के विरुद्ध अपराध करने के लिए उद्दीप्त किया जाए, रचेगा, प्रकाशित करेगा या परिचालित करेगा, जिसके अंतर्गत इलैक्ट्रानिक माध्यम से रचना, प्रकाशन या परिचालन भी है, वह कारावास से, जो तीन वर्ष तक का हो सकेगा, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा ।

(2) जो कोई मिथ्या जानकारी, जनश्रुति या संत्रासकारी समाचार अन्तर्विष्ट करने वाले किसी कथन या रिपोर्ट को, इस आशय से कि, या जिससे यह संभाव्य हो कि, विभिन्न धार्मिक, मूलवंशीय, भाषायी या प्रादेशिक समूहों या जातियों या समुदायों के बीच शत्रुता, घृणा या वैमनस्य की भावनाएं, धर्म, मूलवंश, जन्म-स्थान, निवास-स्थान, भाषा, जाति या समुदाय के आधारों पर या अन्य किसी भी आधार पर पैदा या संप्रवर्तित हो, रचेगा, प्रकाशित करेगा या परिचालित करेगा, जिसके अंतर्गत इलैक्ट्रानिक माध्यम से रचना, प्रकाशन या परिचालन भी है, वह कारावास से, जो तीन वर्ष तक का हो सकेगा, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा ।

(3) जो कोई उपधारा (2) में विनिर्दिष्ट अपराध किसी पूजा के स्थान में या किसी जमाव में, जो धार्मिक पूजा या धार्मिक कर्म करने में लगा हुआ हो, करेगा, वह कारावास से, जो पांच वर्ष तक का हो सकेगा, दंडित किया जाएगा और जुर्माने का भी दायी होगा ।

अपवाद-ऐसा कोई कथन, मिथ्या जानकारी, जनश्रुति या रिपोर्ट इस धारा के अर्थ के अन्तर्गत अपराध की कोटि में नहीं आती, जब उसे रचने वाले, प्रकाशित करने वाले या परिचालित करने वाले व्यक्ति के पास इस विश्वास के लिए युक्तियुक्त आधार हो कि ऐसा कथन, मिथ्या जानकारी, जनश्रुति या रिपोर्ट सत्य है और वह उसे स‌द्भावपूर्वक तथा पूर्वोक्त जैसे किसी आशय के बिना रचता है, प्रकाशित करता है या परिचालित करता है ।

खंड- 354. व्यक्ति को यह विश्वास करने के लिए उत्प्रेरित करके कि वह दैवी अप्रसाद का भाजन होगा, कराया गया कार्य ।

जो कोई किसी व्यक्ति को यह विश्वास करने के लिए उत्प्रेरित करके, या उत्प्रेरित करने का प्रयत्न करके, कि यदि वह उस बात को न करेगा, जिसे उससे कराना अपराधी का उद्देश्य हो, या यदि वह उस बात को करेगा जिसका उससे लोप कराना अपराधी का उद्देश्य हो, तो वह या कोई व्यक्ति, जिससे वह हितबद्ध है, अपराधी के किसी कार्य से दैवी अप्रसाद का भाजन हो जाएगा, या बना दिया जाएगा, स्वेच्छया उस व्यक्ति से कोई ऐसी बात करवाएगा या करवाने का प्रयत्न करेगा, जिसे करने के लिए वह वैध रूप से आबद्ध न हो, या किसी ऐसी बात के करने का लोप करवाएगा या करवाने का प्रयत्न करेगा, जिसे करने के लिए वह वैध रूप से हकदार हो, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा ।

दृष्टांत

(क) क, यह विश्वास कराने के आशय से य के द्वार पर धरना देता है कि इस प्रकार धरना देने से वह य को दैवी अप्रसाद का भाजन बना रहा है। क ने इस धारा में परिभाषित अपराध किया है।

(ख) क, य को धमकी देता है कि यदि य अमुक कार्य नहीं करेगा, तो क अपने बच्चों में से किसी एक का वध ऐसी परिस्थितियों में कर डालेगा, जिससे ऐसे वध करने के परिणामस्वरूप यह विश्वास किया जाए, कि य दैवी अप्रसाद का भाजन बना दिया गया है । क ने इस धारा में परिभाषित अपराध किया है ।

खंड- 355. मत्त व्यक्ति द्वारा लोक स्थान में अवचार ।

जो कोई मत्तता की हालत में किसी लोक स्थान में, या किसी ऐसे स्थान में, जिसमें उसका प्रवेश करना अतिचार हो, आएगा और वहां इस प्रकार का आचरण करेगा जिससे किसी व्यक्ति को क्षोभ हो, वह सादा कारावास से, जिसकी अवधि चौबीस घंटे तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो एक हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, या सामुदायिक सेवा से, दंडित किया जाएगा ।


खंड- 356. मानहानि ।

(1) जो कोई बोले गए या पढ़े जाने के लिए आशयित शब्दों द्वारा या संकेतों द्वारा, या दृश्यरूपणों द्वारा किसी व्यक्ति के बारे में कोई लांछन इस आशय से लगाता या प्रकाशित करता है कि ऐसे लांछन से ऐसे व्यक्ति की ख्याति की अपहानि की जाए या यह जानते हुए या विश्वास करने का कारण रखते हुए लगाता या प्रकाशित करता है, ऐसे लांछन से ऐसे व्यक्ति की ख्याति की अपहानि होगी, एतस्मिन्पश्चात् अपवादित दशाओं के सिवाय उसके बारे में कहा जाता है कि वह उस व्यक्ति की मानहानि करता है ।

स्पष्टीकरण 1-किसी मृत व्यक्ति को कोई लांछन लगाना मानहानि की कोटि में आ सकेगा यदि वह लांछन उस व्यक्ति की ख्याति की, यदि वह जीवित होता, अपहानि करता, और उसके परिवार या अन्य निकट सम्बन्धियों की भावनाओं को उपहत करने के लिए आशयित हो ।

स्पष्टीकरण 2 किसी कम्पनी या संगम या व्यक्तियों के समूह के सम्बन्ध में उसकी वैसी हैसियत में कोई लांछन लगाना मानहानि की कोटि में आ सकेगा ।

स्पष्टीकरण 3-अनुकल्प के रूप में, या व्यंगोक्ति के रूप में अभिव्यक्त लांछन मानहानि की कोटि में आ सकेगा ।

स्पष्टीकरण 4 कोई लांछन किसी व्यक्ति की ख्याति की अपहानि करने वाला नहीं कहा जाता जब तक कि वह लांछन दूसरों की दृष्टि में प्रत्यक्षतः या अप्रत्यक्षतः उस व्यक्ति के सदाचारिक या बौद्धिक स्वरूप को हेय न करे या उस व्यक्ति की जाति के या उसकी आजीविका के सम्बन्ध में उसके शील को हेय न करे या उस व्यक्ति की साख को नीचे न गिराए या यह विश्वास न कराए कि उस व्यक्ति का शरीर घृणोत्पादक दशा में है या ऐसी दशा में है जो साधारण रूप से निकृष्ट समझी जाती है ।

दृष्टांत

(क) क यह विश्वास कराने के आशय से कि य ने ख की घड़ी अवश्य चुराई है, कहता है, य एक ईमानदार व्यक्ति है, उसने ख की घड़ी कभी नहीं चुराई है । जब तक कि यह अपवादों में से किसी के अन्तर्गत न आता हो यह मानहानि है ।

(ख) क से पूछा जाता है कि ख की घड़ी किसने चुराई है । क यह विश्वास कराने के आशय से कि य ने ख की घड़ी चुराई है, य की ओर संकेत करता है जब तक कि यह अपवादों में से किसी के अन्तर्गत न आता हो, यह मानहानि है ।

(ग) क यह विश्वास कराने के आशय से कि य ने ख की घड़ी चुराई है, य का एक चित्र खींचता है जिसमें वह ख की घड़ी लेकर भाग रहा है। जब तक कि यह अपवादों में से किसी के अन्तर्गत न आता हो, यह मानहानि है ।

अपवाद 1- किसी ऐसी बात का लांछन लगाना, जो किसी व्यक्ति के सम्बन्ध में सत्य हो, मानहानि नहीं है, यदि यह लोक कल्याण के लिए हो कि वह लांछन लगाया जाए या प्रकाशित किया जाए । वह लोक कल्याण के लिए है या नहीं, यह तथ्य का प्रश्न है ।

अपवाद 2-उसके लोक कृत्यों के निर्वहन में लोक सेवक के आचरण के विषय में या उसके शील के विषय में, जहां तक उसका शील उस आचरण से प्रकट होता हो, न कि उससे आगे, कोई राय, चाहे वह कुछ भी हो, स‌द्भावपूर्वक अभिव्यक्त करना मानहानि नहीं है ।

अपवाद 3 किसी लोक प्रश्न के सम्बन्ध में किसी व्यक्ति के आचरण के विषय में, और उसके शील के विषय में, जहां तक कि उसका शील उस आचरण से प्रकट होता हो, न कि उससे आगे, कोई राय, चाहे वह कुछ भी हो, सद्भावपूर्वक अभिव्यक्त करना मानहानि नहीं है ।

दृष्टांत

किसी लोक प्रश्न पर सरकार को अर्जी देने में, किसी लोक प्रश्न के लिए सभा बुलाने के अपेक्षण पर हस्ताक्षर करने में, ऐसी सभा का सभापतित्व करने में या उसमें हाजिर होने में, किसी ऐसी समिति का गठन करने में या उसमें सम्मिलित होने में, जो लोक समर्थन आमंत्रित करती है, किसी ऐसे पद के किसी विशिष्ट अभ्यर्थी के लिए मत देने में या उसके पक्ष में प्रचार करने में, जिसके कर्तव्यों के दक्षतापूर्ण निर्वहन से लोक हितबद्ध है, य के आचरण के विषय में क द्वारा कोई राय, चाहे वह कुछ भी हो, स‌द्भावपूर्वक अभिव्यक्त करना मानहानि नहीं है ।

अपवाद 4 किसी न्यायालय की कार्यवाहियों की या किन्हीं ऐसी कार्यवाहियों के परिणाम की सारतः सही रिपोर्ट को प्रकाशित करना मानहानि नहीं है ।

स्पष्टीकरणकोई मजिस्ट्रेट या अन्य अधिकारी, जो किसी न्यायालय में विचारण से पूर्व की प्रारम्भिक जांच खुले न्यायालय में कर रहा हो, उपरोक्त धारा के अर्थ के अन्तर्गत न्यायालय है ।

अपवाद 5 किसी ऐसे मामले के गुणागुण के विषय में चाहे वह सिविल हो या दाण्डिक, जो किसी न्यायालय द्वारा विनिश्चित हो चुका हो या किसी ऐसे मामले के पक्षकार, साक्षी या अभिकर्ता के रूप में किसी व्यक्ति के आचरण के विषय में या ऐसे व्यक्ति के शील के विषय में, जहां तक कि उसका शील उस आचरण से प्रकट होता हो, न कि उसके आगे, कोई राय, चाहे वह कुछ भी हो, स‌द्भावपूर्वक अभिव्यक्त करना मानहानि नहीं है ।

दृष्टांत

(क) क कहता है मैं समझता हूं कि उस विचारण में य का साक्ष्य ऐसा परस्पर विरोधी है कि वह अवश्य ही मूर्ख या बेईमान होना चाहिए । यदि क ऐसा स‌द्भावपूर्वक कहता है तो वह इस अपवाद के अन्तर्गत आ जाता है, क्योंकि जो राय वह य के शील के सम्बन्ध में अभिव्यक्त करता है, वह ऐसी है जैसी कि साक्षी के रूप में य के आचरण से, न कि उसके आगे, प्रकट होती है ।

(ख) किन्तु यदि क कहता है जो कुछ य ने उस विचारण में दृढ़तापूर्वक कहा है, मैं उस पर विश्वास नहीं करता क्योंकि मैं जानता हूं कि वह सत्यवादिता से रहित व्यक्ति है, तो क इस अपवाद के अन्तर्गत नहीं आता है, क्योंकि वह राय जो वह य के शील के सम्बन्ध में अभिव्यक्त करता है, ऐसी राय है, जो साक्षी के रूप में य के आचरण पर आधारित नहीं है ।

अपवाद 6 किसी ऐसी कृति के गुणागुण के विषय में, जिसको उसके कर्ता ने लोक के निर्णय के लिए रखा हो, या उसके कर्ता के शील के विषय में, जहां तक कि उसका शील ऐसी कृति में प्रकट होता हो, न कि उसके आगे, कोई राय स‌द्भावपूर्वक अभिव्यक्त करना मानहानि नहीं है ।

स्पष्टीकरण कोई कृति लोक के निर्णय के लिए अभिव्यक्त रूप से या कर्ता की ओर से किए गए ऐसे कार्यों द्वारा, जिनसे लोक के निर्णय के लिए ऐसा रखा जाना विवक्षित हो, रखी जा सकती है ।

दृष्टांत

(क) जो व्यक्ति पुस्तक प्रकाशित करता है वह उस पुस्तक को लोक के निर्णय के लिए रखता है ।

(ख) वह व्यक्ति, जो लोक के समक्ष भाषण देता है, उस भाषण को लोक के निर्णय के लिए रखता है ।

(ग) वह अभिनेता या गायक, जो किसी लोक रंगमंच पर आता है, अपने अभिनय या गायन को लोक के निर्णय के लिए रखता है ।

(घ) क, य द्वारा प्रकाशित एक पुस्तक के संबंध में कहता है य की पुस्तक मूर्खतापूर्ण है, य अवश्य कोई दुर्बल पुरुष होना चाहिए । य की पुस्तक अशिष्टतापूर्ण है, य अवश्य ही अपवित्र विचारों का व्यक्ति होना चाहिए । यदि क ऐसा स‌द्भावपूर्वक कहता है, तो वह इस अपवाद के अन्तर्गत आता है, क्योंकि वह राय जो वह, य के विषय में अभिव्यक्त करता है, य के शील से वहीं तक, न कि उससे आगे सम्बन्ध रखती है जहां तक कि य का शील उसकी पुस्तक से प्रकट होता है ।

(ङ) किन्तु यदि क कहता है मुझे इस बात का आश्चर्य नहीं है कि य की पुस्तक मूर्खतापूर्ण तथा अशिष्टतापूर्ण है क्योंकि वह एक दुर्बल और लम्पट व्यक्ति है । क इस अपवाद के अन्तर्गत नहीं आता क्योंकि वह राय, जो कि वह य के शील के विषय में अभिव्यक्त करता है, ऐसी राय है जो य की पुस्तक पर आधारित नहीं है ।

अपवाद 7- किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा, जो किसी अन्य व्यक्ति के ऊपर कोई ऐसा प्राधिकार रखता हो, जो या तो विधि द्वारा प्रदत्त हो या उस अन्य व्यक्ति के साथ की गई किसी विधिपूर्ण संविदा से उद्भूत हो, ऐसे विषयों में, जिनसे कि ऐसा विधिपूर्ण प्राधिकार सम्बन्धित हो, उस अन्य व्यक्ति के आचरण की स‌द्भावपूर्वक की गई कोई परिनिन्दा मानहानि नहीं है।

दृष्टांत

किसी साक्षी के आचरण की या न्यायालय के किसी अधिकारी के आचरण की सद्भावपूर्वक परिनिन्दा करने वाला कोई न्यायाधीश, उन व्यक्तियों की, जो उसके आदेशों के अधीन है, स‌द्भावपूर्वक परिनिन्दा करने वाला कोई विभागाध्यक्ष, अन्य बालकओं की उपस्थिति में किसी बालक की स‌द्भावपूर्वक परिनिन्दा करने वाला पिता या माता, अन्य विद्यार्थियों की उपस्थिति में किसी विद्यार्थी की स‌द्भावपूर्वक परिनिन्दा करने वाला शिक्षक, जिसे विद्यार्थी के माता-पिता के प्राधिकार प्राप्त हैं, सेवा में शिथिलता के लिए सेवक की सद्भावपूर्वक परिनिन्दा करने वाला स्वामी, अपने बैंक के रोकड़िए की, ऐसे रोकड़िए के रूप में ऐसे रोकड़िए के आचरण के लिए, स‌द्भावपूर्वक परिनिन्दा करने वाला कोई बैंककार इस अपवाद के अन्तर्गत आते हैं ।

अपवाद 8- किसी व्यक्ति के विरुद्ध कोई अभियोग ऐसे व्यक्तियों में से किसी व्यक्ति के समक्ष स‌द्भावपूर्वक लगाना, जो उस व्यक्ति के ऊपर अभियोग की विषय-वस्तु के सम्बन्ध में विधिपूर्ण प्राधिकार रखते हों, मानहानि नहीं है ।

दृष्टांत

यदि क एक मजिस्ट्रेट के समक्ष य पर स‌द्भावपूर्वक अभियोग लगाता है, यदि क एक सेवक य के आचरण के सम्बन्ध में य के मालिक से स‌द्भावपूर्वक शिकायत करता है; यदि क एक बालक य के सम्बन्ध में य के पिता से स‌द्भावपूर्वक शिकायत करता है; तो क इस अपवाद के अन्तर्गत आता है ।

अपवाद 9-किसी अन्य के शील पर लांछन लगाना मानहानि नहीं है, परन्तु यह तब जबकि उसे लगाने वाले व्यक्ति के या किसी अन्य व्यक्ति के हित की संरक्षा के लिए, या लोक कल्याण के लिए, वह लांछन स‌द्भावपूर्वक लगाया गया हो ।

दृष्टांत

(क) क एक दुकानदार है। वह ख से, जो उसके कारबार का प्रबन्ध करता है, कहता है, य को कुछ मत बेचना जब तक कि वह तुम्हें नकद धन न दे दे, क्योंकि उसकी ईमानदारी के बारे में मेरी राय अच्छी नहीं है । यदि उसने य पर यह लांछन अपने हितों की संरक्षा के लिए स‌द्भावपूर्वक लगाया है, तो क इस अपवाद के अन्तर्गत आता है ।

(ख) क, एक मजिस्ट्रेट अपने वरिष्ठ अधिकारी को रिपोर्ट देते हुए, य के शील पर लांछन लगाता है । यहां, यदि वह लांछन स‌द्भावपूर्वक और लोक कल्याण के लिए लगाया गया है, तो क इस अपवाद के अन्तर्गत आता है ।

अपवाद 10-एक व्यक्ति को दूसरे व्यक्ति के विरुद्ध स‌द्भावपूर्वक सावधान करना मानहानि नहीं है, परन्तु यह तब जब कि ऐसी सावधानी उस व्यक्ति की भलाई के लिए, जिसे वह दी गई हो, या किसी ऐसे व्यक्ति की भलाई के लिए, जिससे वह व्यक्ति हितबद्ध हो, या लोक कल्याण के लिए आशयित हो ।

(2) जो कोई किसी अन्य व्यक्ति की मानहानि करेगा, वह सादा कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, या सामुदायिक सेवा से दण्डित किया जाएगा ।

(3) जो कोई किसी बात को यह जानते हुए या विश्वास करने का अच्छा कारण रखते हुए कि ऐसी बात किसी व्यक्ति के लिए मानहानिकारक है, मुद्रित करेगा, या उत्कीर्ण करेगा, वह सादा कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा ।

(4) जो कोई किसी मुद्रित या उत्कीर्ण पदार्थ को, जिसमें मानहानिकारक विषय अन्तर्विष्ट है, यह जानते हुए कि उसमें ऐसा विषय अन्तर्विष्ट है, बेचेगा या बेचने की प्रस्थापना करेगा, वह सादा कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा ।


खंड- 357. असहाय व्यक्ति की परिचर्या करने की और उसकी आवश्यकताओं की पूर्ति करने की संविदा का भंग के विषय में ।

जो कोई किसी ऐसे व्यक्ति की, जो किशोरावस्था या चित्त-विकृति या रोग या शारीरिक दुर्बलता के कारण असहाय है, या अपने निजी क्षेम की व्यवस्था या अपनी निजी आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिए असमर्थ है, परिचर्या करने के लिए या उसकी आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिए विधिपूर्ण संविदा द्वारा आबद्ध होते हुए, स्वेच्छया ऐसा करने का लोप करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो पांच हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा ।

अध्याय 20- निरस और व्यावृत्ति के विषय में

खंड- 358. निरसन और व्यावृत्ति ।

(1) भारतीय दंड संहिता का निरसन किया जाता है ।

(2) उपधारा (1) में निर्दिष्ट संहिता का निरसन होने पर भी, निम्नलिखित पर इसका कोई प्रभाव नहीं होगा, -

(क) ऐसी निरसित संहिता के पूर्व संप्रवर्तन या उसके अधीन सम्यक रुप से की गई या भोगी गई कोई बात; या

(ख) ऐसी निरसित संहिता के अधीन अर्जित, प्रोद्भूत या उपगत कोई अधिकार, विशेष अधिकार, दायित्व या उत्तरदायित्व ; या

(ग) ऐसी निरसित संहिता के विरुद्ध किए गए किन्हीं अपराधों के संबंध में उपगत कोई शास्ति, या दंड़; या

(घ) इस प्रकार की किसी शास्ति या दंड़ के संबंध में कोई अन्वेषण या उपचार; या

(ङ) उपरोक्त शास्ति या दंड़ के संबंध में कोई कार्यवाही, अन्वेषण या उपचार और इस प्रकार की कार्यवाही या उपचार संस्थित हो सकेगा, जारी रह सकेगा या प्रवृत्त हो सकेगा और इस प्रकार की किसी शास्ति का अधिरोपण किया जा सकेगा, मानो उस संहिता का निरसन नहीं किया गया हो ।

(3) ऐसे निरसन के होते हुए भी, उक्त संहिता के अधीन की गई कोई बात या कोई कार्रवाई, इस संहिता के तत्स्थानी उपबंधों के अधीन की गई समझी जाएगी ।

(4) निरसन के प्रभाव के संबंध में उपधारा (2) में विशिष्ट विषयों का उल्लेख साधारण खंड अधिनियम, 1897 की धारा 6 के साधारण अनुप्रयोग पर प्रतिकूल प्रभाव डालने या प्रभावित करने वाला नहीं माना जाएगा ।